महा शिवरात्रि क्यों मानाया जाता है-महा शिवरात्रि पर्व देवों के महादेव की आराधना का सबसे बड़ा दिन है। महा शिवरात्रि के दिन महाप्रभु शिव की पूजा अर्चना से संबंधित हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्योहार कई देशों में मनाया जाता है। महा शिवरात्रि का व्रत करने से महा शिव महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस दिन शिव भगवान की आराधना, उपवास, एवं ध्यान किया जाता है। शिव भक्त रात भर जागकर शिव की आराधना करते हैं। कहा जाता है कि शिव भगवान का ध्यान करने से मनुष्यों में सात्विक गुण विकसित होते हैं।
महा शिवरात्रि 2025 : 2025 में महा शिवरात्रि कब है ?
शिव पूजा से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक महा शिवरात्रि का पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार शिवरात्रि, माघ और फाल्गुन (फरवरी-मार्च) के बीच में पड़ने वाली अमावस्या की पूर्व संध्या पर 13 वें या 14 वें दिन में मनाई जाती है। अंग्रेजी माह में यह त्योहार आमतौर पर फरवरी/मार्च के महीने में मनाया जाता है।
वर्ष 2025 में महा शिवरात्रि का त्योहार 26 फरवरी, 2025 को मनाया जाएगा।
शिवरात्रि एवं महाशिवरात्रि में अंतर
महा शिवरात्रि क्यों मानाया जाता है ?
भारत एवं अन्य देशों में महा शिवरात्रि त्योहार मनाने के पीछे कई कहानी एवं मिथक लोक प्रचलित है जो अत्यंत ही रोचक है :
महा शिवरात्रि की कथा- शिवलिंग की उत्पत्ति की कहानी
महा शिवरात्रि की कहानी शिवलिंग की उत्पत्ति से भी जुड़ा हुआ है। शिवलिंग भगवान शिव के आदि-अनादि एवं निराकार स्वरुप का प्रतीक है। पूरे भारत में 12 ज्योर्तिलिंग हैं जिसके बारे में आम धारणा है कि इन ज्योर्तिलिंगो की उत्पत्ति स्वयं हुई है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस ब्रह्मांड के निर्माण से पहले इस संसार का कोई अस्तित्व नहीं था। पूरा ब्रह्मांड एक शून्य था। चारों ओर एक ही तत्व की प्रधानता थी वहां एक विशाल अग्नि स्तम्भ के रूप में शिवलिंग ऊर्जा के रूप में प्रवाहित हो रही थी। इसी से भगवान विष्णु की उत्पत्ति होती है और विष्णु की नाभि से भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है।
ब्रह्मा और विष्णु देखते है कि इस ब्रह्मांड में केवल वे ही दोनों है अतः दोनों में संघर्ष की शुरुआत हुई।वे इस बात को लेकर लड़ रहे थे कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है- ब्रह्मा या विष्णु। उसी पल आकाशवाणी होती है कि जो भी इस अग्नि स्तम्भ का अंत ढूंढ लेगा उसे ही सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा।
भगवान ब्रह्मा अग्नि स्तम्भ का अंत ढूंढने के लिए ऊपर की ओर चले गए और विष्णु नीचे की ओर। इस स्तंभ की कोई सीमा नहीं थी, यह अग्नि स्तंभ महादेव शिव के आदि अनंत स्वरूप का प्रतीक था। इसका कोई अंत नहीं है।
ब्रह्मा को जब अग्नि स्तम्भ का अंत नहीं मिला तो उसने आगे कोई यात्रा न कर लौट जाने का निर्णय लिया एवं अग्नि स्तम्भ का अंत को प्राप्त कर लेने की बात को सच साबित करने के लिए केतकी फूल को साक्षी के रूप में लेने का फैसला किया।
भगवान विष्णु भी वापिस उसी अग्नि स्तंभ के समीप आ गए जहां से आकाशवाणी हुई थी। भगवान विष्णु ने आकार यह सच बता दिया कि इस अग्नि लिंग का कोई अंत नहीं है। इसका अंत पाया नहीं जा सकता जबकि ब्रह्मा ने झूठ कहा कि अग्नि स्तम्भ का अंत उसने पा लिया है। साक्षी के रूप में भगवान ब्रह्मा ने केतकी के फूल को प्रस्तुत किया।
तभी अग्नि स्तम्भ से आकाशवाणी होती है कि झूठ है यह, झूठ है यह कि इस अग्नि लिंग का अंत आपने पा लिया। इस पर अग्नि लिंग से विशाल रूप धारण किए हुए शिव प्रकट होते हैं और ब्रह्मा को झूठ बोलने के लिए दंड दिया।
उसे श्राप देते हैं कि कोई भी कभी भी उसकी पूजा नहीं करेगा। केतकी के फूल को भी किसी भी पूजा में उपयोग में नहीं लाने का अभिशाप दिया। चूंकि यह फाल्गुन महीने में ही शिव पहली बार प्रकट हुए थे। इसीलिए शिवलिंग की उत्पत्ति की घटना महा शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
महा शिवरात्रि के दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती का विवाह
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव कई वर्षों से गहरे ध्यान में थे, और पार्वती, जो उनसे बहुत प्यार करती थीं, उनसे शादी करना चाहती थीं। महा शिवरात्रि पर, भगवान शिव ने आखिरकार पार्वती के प्यार को स्वीकार किया । महा शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव एवं माता पार्वती का विवाह हुआ था। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
कहा जाता है कि भगवान शिव एवं माता पार्वती का विवाह में सम्मिलित होने वाले संसार के प्रत्येक प्राणी को पुण्य प्राप्त हुआ था। सभी भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। इस विवाह में हर प्रकार के जीव, जन्तु, देव, दानव, ऋषिमूनी, भूत-पिशाच सभी शामिल हुए थे एवं सभी शिव एवं माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसीलिए इस दिन महा शिवरात्रि की पूजा की जाती है।
महादेव शिव का नीलकंठ रूप एवं समुद्र मंथन की घटना
प्राचीन कथाओं के अनुसार देव एवं दानव एक-दूसरे के साथ लड़ते रहते थे। भगवान विष्णु ने इस समस्या के समाधान के लिए एक उपाय सुझाया कि यदि देव -दानव अगर समुद्र की गहराई में पड़े अमृत को प्राप्त करने के लिए एक साथ समुद्र मंथन करते हैं तो वे अमृत का पान कर सकते है जिससे वे अमर हो जाएंगे। समुद्र मंथन के दौरान प्राणघातक विष चारों ओर फैलने लगा एवं संसार का संतुलन बिगड़ने लगा।
ऐसी विकट स्थिति में भगवान शिव ने इस विष का पान कर लिया, जिससे देवताओं और मानव जाति दोनों की रक्षा हुई। ऐसा माना जाता है कि विष इतना शक्तिशाली था कि यह पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता था।
हालाँकि, भगवान शिव ने उस विष को अपने गले में दबा लिया, जिससे उनका गला वह नीला पड गया। उस दिन से, भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा। भगवान शिव ने संसार को नष्ट होने से बचाया था इसीलिए भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है और इसे अंधकार और बुराई पर विजय के दिन के रूप में मनाया जाता है।
महा शिवरात्रि पर गंगा का पृथ्वी पर अवतरण
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी गंगा गंगा नदी का अवतार है, जो भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा की उत्पत्ति भगवान शिव के जटाओं से हुई है।
कहानी यह है कि सूर्यवंशी वंश के राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्माओं को शुद्ध करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तपस्या की। गंगा के प्रचंड वेग को संभालना अत्यंत मुश्किल था, अगर गंगा अपने वेग से धरती पर आती तो जल प्रलय आने की संभावना थी।
अततः भगवान शिव ने गंगा के वेग को अपनी जटाओं से बांधकर कई धाराओं में धरती में उतारा। इसने पृथ्वी पर विनाश को रोका जा सका। गंगा नदी की उत्पत्ति की कहानी अक्सर भगवान शिव के साथ जोड़कर बताई जाती है।
महा शिवरात्रि कैसे मनाई जाती है?
प्रेम, भक्ति और श्रद्धा एवं शिव भक्तों का महोत्सव महा शिवरात्रि दुनिया भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। महा शिवरात्रि को मनाने के कुछ प्रचलित तरीके इस प्रकार हैं:
इस दिन भक्त उपवास एवं व्रत रखते हैं। यह त्योहार महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह माना जाता है कि जो लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
महा शिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा- अर्चना:
शंकर के शिवलिंग की जल, दूध, बेल-पत्र से पूजा की जाती है। भक्त शिव मंदिरों में जाते हैं और पूजा एवं अभिषेक करते हैं। शिव लिंग को दूध, शहद, पानी और अन्य प्रसाद से स्नान कराने की भी परंपरा है।
मंत्र जाप एवं ध्यान-योग :
शिव को आदि योगी कहा जाता है। लोग दिन और रात भर भगवान शिव के मंत्र, भजन और प्रार्थना करते हैं एवं ॐ नमः शिवाय का जाप करते। महा शिवरात्रि की रात नक्षत्रों की स्थिति साधना के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। इसलिए, लोगों को सलाह दी जाती है कि वे शिवरात्रि पर जागकर ध्यान करें। योग करने से मानसिक विकार दूर हो जाते हैं।
नौ लाख पातरि आगे नाचे पीछे सहज अखाड़ा।
दान-पुण्य:
लोग भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महा शिवरात्रि पर गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करते हैं।
महा शिवरात्रि के दिन ज्योतिर्लिंग पूजा का महत्व:
ज्योतिर्लिंग हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित बारह पवित्र मंदिरों को कहा जाता है। इन ज्योतिर्लिंगों को बहुत पवित्र माना जाता है और हर साल लाखों भक्त इनके दर्शन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन तीर्थस्थलों पर जाने और पूजा करने से भक्तों को शांति, खुशी और आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में बारह ज्योतिर्लिंग स्थित हैं, और उनमें से प्रत्येक का एक अपना एक अनूठा इतिहास और महत्व है। महा शिवरात्रि के दिन ज्योतिर्लिंग दर्शन एवं पूजा के लिए बड़ी संख्या में भक्त विभिन्न राज्यों में उपस्थित होते हैं:
- महाराष्ट्र में त्र्यंबकेश्वर
- झारखंड में वैद्यनाथ
- गुजरात में नागेश्वर
- तमिलनाडु में रामेश्वरम
- महाराष्ट्र में घृष्णेश्वर
- गुजरात में सोमनाथ
- मध्य प्रदेश में महाकालेश्वर
- मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर
- उत्तराखंड में केदारनाथ
- महाराष्ट्र में भीमाशंकर
- आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन
- उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ
महाशिवरात्रि के दिन शिव तांडव श्रुति का महत्व:
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम
ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर इस प्रार्थना का पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि देवों के देव महादेव शिव की आराधना से समर्पित महा शिवरात्रि एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका अत्यधिक धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। भारतीय समाज में शिव की आराधना हजारों वर्षों से चली आ रही है. सबसे बड़ी बात है कि इस पूजा में सभी के लिए स्थान है, शिव तो मात्र एक बेल-पत्र पर ही भक्तों की पुकार सुन लेते है. देव हो या दानव, पशु हो या पक्षी, भूत हो या पिशाच भगवान शिव का द्वार सभी के लिए खुला है.
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