Sheetla Saptami Vrat 2025: हिन्दू पुराण में शीतला व्रत का विशेष महत्व है तथा यह त्यौहार माता शीतला को समर्पित है. शीतला सप्तमी के दिन देवी शीतला की विधि-विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि माता शीतला की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने पर हमें आरोग्य की प्राप्ति होती है और हमें मानसिक तथा शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.
माता शीतला को रोगों तथा बीमारियों से सुरक्षा रखने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है तथा यह त्यौहार मार्च और अप्रैल के भीषण गर्मियों में मनाया जाता है ताकि माता शीतला हमारे शरीर को ठंडक और पर्यावरण को शीतलता प्रदान कर सके. शीतला सप्तमी का पर्व गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है
शीतला सप्तमी व्रत कब मनाया जाएगा? (Sheetla Saptami Vrat 2025)
शीतला सप्तमी का व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाएगी. साल 2025 में शीतला सप्तमी का व्रत 21 मार्च, दिन-शुक्रवार को रखा जाएगा. यानी होली के ठीक सातवें दिन पर शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाता है.

शीतला सप्तमी | 21 मार्च 2025, दिन-शुक्रवार |
पूजा का शुभ मुहूर्त | शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 24 मिनट से शाम 06 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। यानि पूजा की कुल अवधि 12 घंटे 09 मिनट की रहेगी। |
शीतला अष्टमी | 22 मार्च 2025, दिन-शनिवार |
शीतला सप्तमी कहाँ मनाया जाता है? | गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल |
शीतला सप्तमी का अन्य नाम क्या है? | शीतला पूजा को बसौड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. |
शीतला सप्तमी की पूजा कैसे करे?
- शीतला सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठ कर नहा धो कर फ्रेश हो जाए और व्रत का संकल्प का लेते हुए पूजा की शुरुआत करे.
- पूजा शुरू करने से पहले आप अपने मंदिरों या फिर पूजा स्थल पर एक लकड़ी की चौकी ले, और उस पर लाल वस्त्र बिछा कर माता शीतला की प्रतिमा स्थापित करे.
- अब माता को सिंदूर लगाते हुए उन्हें लाल फूल चढ़ाए,
- श्रीफल और चने की दाल का भोग लगाते हुए उनके सामने घी का दीपक जलाए.
- उसके बाद माता शीतला का ध्यान करते हुए शीतला माता स्तोत्र तथा अन्य पवित्र भजनों का पाठ करे. अंत मे हाथ जोड़कर माता का आशीर्वाद ले.
माता को अर्पित किया जाता है बसौड़ा भोग:
शीतला सप्तमी के अगले दिन यानी शीतला अष्टमी को बसौरे भोग अर्पित किया जाता है तथा यह भोग शीतला सप्तमी के दिन ही तैयार किया जाता है। इसलिए शीतला पूजा को बसौड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भोग के रूप में गुड़, चावल तथा गन्ने को मिलाकर खीर तैयार किया जाता है तथा इसके अगले दिन शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है.
शीतला अष्टमी के दिन लगाए गए इसी भोग को प्रसाद के रूप में परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते है तथा इस दिन भोजन बनाने की मनाही होती है. मान्यता है कि शीतला सप्तमी की पूजा तथा विधि-विधान का पालन करने से हमें माता का कृपा प्राप्त होता है और परिवार के हर एक सदस्य को समस्त कष्टों से निवारण मिलता है.
माता शीतला का स्वरूप:
माता शीतला का स्वरूप काफी अलौकिक तथा दिव्य है। माता अपने एक हाथ में कलश तथा दुसरे हाथ में झाड़ू लेकर विराजमान रहती है। झाड़ू का प्रतीक घर की साफ-सफाई का सन्देश देता है तथा कलश का प्रतीक ठंडक जल से होती है यानि इस दिन रखे हुए भोजन और घड़ा में रखा हुआ ठंडक जल का सेवन करने से हमें स्वास्थ सम्बंधित बीमारियाँ नहीं होती है.

शीतला सप्तमी का महत्व:
शीतला पूजा में माने गए परम्परा के अनुसार इस दिन ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है अर्थात् इसके एक दिन पहले तैयार किए गए भोजन को ही प्रसाद के रूप में लोग ग्रहण करते है. इस दिन भोजन बनाने के लिए आग नहीं जलाया जाता है. भक्तों द्वारा शीतला पूजा अपार आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है ताकि माता शीतला का कृपा उन पर बना रहे.
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