Boro Maa Temple: कोलकाता के नैहाटी शहर में स्थित माँ काली की प्रतिमा के रूप में बोरो माँ की मंदिर है तथा यह मंदिर नैहाटी रेलवे स्टेशन से पाँच मिनट की दूरी पर स्थित है। देवी काली के रूप में बोरो माँ का स्वरूप काफ़ी भव्य तथा सौंदर्य है।
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना में हुगली नदी के समीप बसा घनी आबादी वाला शहर नैहाटी है और नैहाटी शहर में बोरो माँ का घर है। बोरो माँ के प्रति लोगों का इतनी बड़ी आस्था है कि हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु माँ काली के दर्शन के लिए नैहाटी शहर आते है।
बोरो माँ का स्वरूप कैसा है?
बोरो माँ के स्वरूप में इनका गहरा काला रंग, लम्बे खुले बाल, चौड़ी आँखें, पैरों में पहने हुए चाँदी का पायल तथा आभूषण से सजा इनका शरीर माँ काली की दिव्यता को दर्शाता है तथा इनका यह रूप विनाश और नवीनीकरण का प्रतीक माना जाता है।
बोरो माँ की मूर्ति को दक्षिणा काली के रूप में पूजा जाता है इसलिए बोरो माँ की मंदिर में पशु बलि का कोई नियम नहीं है। शमशान काली के रूप में बोरो माँ अपने भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाती है।
बोरो माँ का मंदिर: (Boro Maa Temple)
शक्ति का प्रतीक के रूप में माँ काली का मंदिर बहुत ही दिव्य तथा सुंदर है। सोने के आभूषण से सजे माँ काली की प्रतिमा अलौकिक प्रतीत होती है। माँ काली के रूप में बोरो माँ के दर्शन के लिए प्रत्येक दिन श्रद्धलुओं की काफी भिड़ उमड़ती है। खास कर सप्ताह के दो दिन मंगलवार तथा शनिवार को बोरो माँ की रौनक़ देखते ही बनती है। साल 2023 में बोरो माँ की पूजा ने 100 सालों का सफर पूरा किया है। इस तरह स्थानीय लोगों का बोरो माँ के प्रति काफी आस्था देखने को मिलती है।
बोरो माँ मंदिर का दर्शन सिर्फ़ पश्चिम बंगाल के लोग ही नहीं बल्कि भारत के अन्य राज्यों से भी इनके दर्शन के लिए यहाँ आते है। इसके अलावा बोरो माँ के एकमात्र दर्शन के लिए बंगलादेश तथा नेपाल से पर्यटक यहाँ आते है।
बोरो माँ मंदिर से जुड़ा इतिहास:
पौराणिक कथाओं के अनुसार आज से लगभग 100 साल पहले भावेश चक्रवर्ती अपने साथियों के साथ रास उत्सव देखने के लिए नवद्वीप गए थे तथा नवद्वीप में इन्होंने राधा कृष्ण की विशाल मूर्ति देखी और इस मूर्ति को देखते ही इनके मन में भी नैहाटी में माँ काली की मूर्ति बनाने की इच्छा जागी।
भावेश चक्रवर्ती अपने साथियों के साथ जब नवद्वीप से वापस लौटे तो इन्होंने माँ काली की 21 फीट ऊँची मूर्ति बनवाई और इस तरह नैहाटी में माता काली की पूजा शुरू हुई।
बोरो माँ नाम क्यों पड़ा?
शुरुआत में मंदिर के संस्थापक भावेश चक्रवती के नाम पर इस मंदिर को भावेश काली कहा जाता था। लेकिन कुछ वर्षों बाद विशाल आकृति होने के कारण तथा माँ काली की मूर्ति 21 फीट ऊँची होने के कारण इसे बोरो काली कहा गया और अंत में साल 2014 से इस मंदिर का नाम बोरो माँ रखा गया, इस तरह माता काली की मूर्ति अधिक ऊँचाई पर होने के कारण माँ का नाम बोरो माँ पड़ा।

नैहाटी का काली पूजा:
नैहाटी का काली पूजा पूरे पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है तथा काली पूजा के दौरान पंडाल में, मिट्टी से तैयार किया गया बोरो माँ की मूर्ति बनाई जाती है तथा मूर्ति बनाने से पहले लक्खी पूजा के दिन कथामो (यानि बांस की पूजा, जिस पर माँ काली की प्रतिमा बनाई जाएगी) की पूजा की जाती है। उसके बाद बोरो माँ की मूर्ति बनाने की शुरुआत की जाती है।
दीपावली की रात तथा काली पूजा के दौरान बोरो माँ के रूप में माँ काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है। खास कर माँ की आँखें चौड़ी तथा इनका स्वरूप काफी सौंदर्य बनाया जाता है और इस तरह दिवाली की रात माँ काली की भव्य पूजा की जाती है।
नैहाटी में काली पूजा की रौनक़:
- नेहाटी में काली पूजा की धूम पूरे चार दिनों तक देखने को मिलती है तथा नैहाटी में बोरो माँ की पूजा से ही काली पूजा की शुरुआत की जाती है तथा इस दौरान माँ काली को अन्न का भोग चढ़ाया जाता है और हर दिन अलग-अलग भोग चढ़ाए जाते है।
- माँ काली की पूजा में अनाज के साथ-साथ फल, आलता, सिंदूर तथा साड़ी चढ़ाया जाता है तथा चढ़ाए गए अनाज से बोरो माँ के लिए भोग तैयार किया जाता है और इस भोग यानि प्रसाद को शुद्ध देसी घी से बनाया जाता है। उसके बाद माँ काली के प्रासादों को मंदिर के सामने तथा अनाथ आश्रम में वितरित किया जाता है।
- काली पूजा के इन चार दिनों तथा महात्सव के दौरान लोगों को सात्विक भोजन करवाया जाता है और साथ ही साथ पूजा में चढ़ाया गया फल तथा अनाज को ग़रीबों और जरुरत मंदों में वितरित किया जाता है।
- माँ काली की इस दिव्य मूर्ति को देखने के लिए सिर्फ़ भारतीय ही नहीं बलकी विदेशी पर्यटक भी शामिल होते है और इस तरह काली पूजा के दौरान नैहाटी शहर में लाखों की संख्या में पर्यटकों की भिड़ उमड़ती है।
- काली पूजा जैसे बड़े उत्सव में बोरो माँ के लिए कोई चंदा इकट्ठा नहीं किया जाता है बल्कि भक्तों द्वारा मंदिरों में चढ़ाए गए दान पेटी से सारे खर्च किए जाते है।
- मान्यता है कि- ‘अगर आप सच्चे मन से कुछ माँगते है तो बोरो माँ आपकी इच्छा जरुर पूरा करती है। बोरो माँ सर्व शक्तिमान है, इनके द्वार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है।’
बोरो माँ का शृंगार:
काली पूजा के दौरान माँ काली की प्रतिमा को 200 भरी चाँदी तथा 100 किलो सोने के गहनों से सजाया जाता है तथा माँ काली के गहनों में माँगटिका, नथ, पायल, गले का हार, कंगन होता है और इसके साथ-साथ माँ काली का जीभ, इनका नेत्र तथा भगवान शिव की आँखें सोने के आभूषण से बनाया जाता है।

बोरो माँ की आस्था:
भक्त तथा श्रद्धालु माँ काली की पूजा करते है और मनोकामना पूरी हो जाने पर भक्तजन दंडी प्रदर्शन करते है और साथ ही साथ बोरो माँ को चढ़ावे के लिए सोने तथा चाँदी का आभूषण बनवाते है।
माँ काली का विसर्जन:
बोरो माँ का विसर्जन पूरे पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है तथा माँ काली का विसर्जन बड़े ही अनोखे और खास तरीक़े से किया जाता है। बोरो माँ के विसर्जन से पहले नैहाटी के किसी भी पूजा पंडाल में माँ काली का विसर्जन नहीं किया जाता है अर्थात् सबसे पहले बोरो माँ की मूर्ति को ही गंगा में विसर्जित किया जाता है।
विसर्जन के दौरान माँ काली की चाँदी तथा सोने से बने सभी आभूषण को उतार दिया जाता है तथा इनकी प्रतिमा को ताजे फूलों से बने आभूषण और गहनों से सजाया जाता है। बोरो माँ को अंतिम बिदाई देने तथा इनकी एक झलक पाने के लिए लाखों श्रद्धालु विसर्जन में शामिल होते है। मान्यता है कि माँ काली के एकमात्र दर्शन से ही आत्मा को शांति मिलती है और मानो ऐसा प्रतीत होता है कि माँ काली मेरी हर दुखों को हर लेने वाली है।
बोरो माँ मंदिर ओपनिंग टाईम: (Boro Maa Temple Opening Time)
नैहाटी में बोरो माँ मंदिर की रोज़ाना पूजा की जाती है। खास कर मंगलवार तथा शनिवार के दिन बोरो माँ के मंदिर में काफी भिड़ उमड़ती है। बोरो माँ की मंदिर सुबह 5:00 बजे से लेकर रात 10:00 बजे तक खुली रहती है तथा जब आप चाहे बोरो माँ के दर्शन के लिए यहाँ आ सकते है। बोरो माँ के मंदिर के पास में ही शंकर भगवान की मूर्ति स्थापित है।
नैहाटी कैसे पहुँचे?
कोलकाता में स्थित नैहाटी शहर आप बस तथा ट्रेन के माध्यम से आसानी से यहाँ पहुँच सकते है। इसके लिए आपको सियालदह रेलवे स्टेशन से नैहाटी के लिए ट्रेन मिल जाती है। सियालदह रेलवे स्टेशन से आप नैहाटी लोकल, शांतिपूर लोकल, कृष्णा नगर सिटी लोकल तथा राणा घाट जाने वाली ट्रेन पकड़ कर आप आसानी से नैहाटी पहुँच सकते है।
यदि आप हावड़ा जक्शन से नैहाटी आना चाहते है तो इसके लिए हावड़ा से डायरेक्ट नैहाटी शहर के लिए बसे खुलती है। आप इस बस को पकड़ कर आसानी से नैहाटी पहुँच सकते है। इसके अलावा आप हावड़ा जक्शन से पहले सियालदह पहुँचे और सियालदह में आपके लिए कई सारे ट्रेन मौजूद है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न: FAQ
Q- बोरो माँ की मंदिर कहाँ है?
A- बोरो माँ की मंदिर कोलकाता के नैहाटी शहर में स्थित है।
Q- बोरो माँ मंदिर कब खुलता है?
A- मंदिर की कपाट सुबह 5:00 बजे खोल दिया जाता है।
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