वैशाख पूर्णिमा 2025: वैशाख पूर्णिमा कब है? जाने वैशाख पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा एवं वैशाख पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।

वैशाख पूर्णिमा 2025: हिंदू शास्त्र में वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है तथा वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का रिवाज है तथा कुछ लोग गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए हरिद्वार तथा ऋषि केश जैसे पवित्र धार्मिक स्थल पर जाते है। वैशाख पूर्णिमा का दिन बेहद ही खास माना जाता है कि क्योंकि इस दिन चंद्रमा की रोशनी सीधे पृथ्वी पर पड़ती है और मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा का व्रत करने से हमें कष्टों से निवारण मिलता है। वैशाख पूर्णिमा के दिन हमें अपने घरों में भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करनी चाहिए। जिससे हमारे घरों में सुख-समृद्धि तथा धन-वैभव की प्राप्ति होती है।

2025 में वैशाख पूर्णिमा की तिथि एवं शुभ मुहूर्त?

साल 2025 में वैशाख पूर्णिमा का व्रत 12 मई, दिन -सोमवार को रखा जाएगा तथा इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है।

पूर्णिमा तिथि आरम्भ: 11 मई 2025 को रात 08 बजकर 04 मिनट पर शुरू होगी।

पूर्णिमा तिथि समाप्ति: 12 मई 2025 को रात्रि 10 बजकर 28 मिनट पर समाप्ति है।

2023 में वैशाख पूर्णिमा कब है?5 मई, दिन- शुक्रवार
2024 में वैशाख पूर्णिमा कब है?23 मई, दिन- गुरुवार
2025 में वैशाख पूर्णिमा कब है?12 मई, दिन- सोमवार
2026 में वैशाख पूर्णिमा कब है?01 मई, दिन- शुक्रवार
वैशाख पूर्णिमा 2025

वैशाख पूर्णिमा व्रत की पूजा कैसे करे?

  1. वैशाख पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठ कर नहा धो कर फ़्रेश हो जाए, उसके बाद साफ तथा स्वच्छ कपड़े धारण करे तथा व्रत का संकल्प लेते हुए पूजा की शुरुआत करे। इसके लिए आप एक लकड़ी की चौकी ले, तथा इस चौकी पर लाल टुकड़ा बिछाते हुए भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करे।
  2. भगवान विष्णु को फल, फूल, माला तथा सिंदूर अर्पित करे। उसके बाद भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाए तथा धूप बात्ती दिखाते हुए भगवान विष्णु को कपूर से आरती करे।
  3. अंत में भगवान विष्णु का मंत्र तथा वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ जरुर करे।

वैशाख पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्म :

वैशाख पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा का यह त्योहार बौद्ध धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है। गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का दसवाँ अवतार माना जाता है तथा यह मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इस दिन ही इन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

वैशाख पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए?

  • वैशाख पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठ कर गंगा स्नान जरुर करे।
  • उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करे तथा भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी उपासना करे।
  • व्रत का संकल्प लेते हुए पानी का घड़ा किसी ब्राह्मण को दान दे।
  • खास कर वैशाख पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण पूजा करने का विशेष महत्व है।
  • वैशाख पूर्णिमा के दिन ग़रीबों तथा जरुरत मंदों में दान पुण्य जरुर करना चाहिए क्योंकि इस दिन दान-पुण्य करने से हमारे घरों में धन-वैभव की प्राप्ति होती है।
  • वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से हमारी हर बाधा दूर होती है।
  • यदि आप वैशाख पूर्णिमा का व्रत कर रहे है तो आपको व्रत के दौरान वैशाख पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ जरुर करना चाहिए।

वैशाख पूर्णिमा से जुड़ी व्रत कथा:

1.पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में धनेश्वर नाम का एक धनी व्यक्ति था। लेकिन इनका कोई संतान नहीं था जिसके कारण धनेश्वर तथा इनकी पत्नी हमेशा दुखी रहती थी। एक दिन धनेश्वर की मुलाक़ात ऋषि मुनि से हुई तथा ऋषि मुनि ने धनेश्वर को वैशाख पूर्णिमा का व्रत करने को कहा और इस तरह धनेश्वर ने वैशाख पूर्णिमा का व्रत रखा और व्रत के दौरान भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की। कुछ समय बाद ही धनेश्वर की पत्नी सुशीला गर्भवती हो गई और इस तरह धनेश्वर के घर में एक पुत्र का जन्म हुआ और तभी से ही वैशाख पूर्णिमा का व्रत रखा जाने लगा।

2.दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार रानी मायादेवी, पूर्णिमा के रात लुम्बिनी जंगल में फूलों से भरी चादर पर सो रही थी। तभी चंद्रमा की तेज रोशनी उनके पेट पर पड़ी। जिसके कारण वह गर्भवती हो गई। कुछ दिन बाद ही रानी मायादेवी के गर्भ से बालक के रूप में भगवान सिद्धांत का जन्म हुआ और बालक के जन्म के तुरंत बाद ही देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की और इसी तरह आकाश में मधुर संगीत बजने लगी।

भगवान सिद्धांत सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे, लेकिन 29 वर्ष की आयु में उन्हें इस संसार की सच्चाई के बारे में पता चला और इस तरह वे संसार की मोह माया को त्याग कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े। छः वर्षों की कठिन तपस्या के बाद बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे भगवान सिद्धांत को ज्ञान की प्राप्ति हुई और तब से इन्हें भगवान बुद्ध के नाम से जाना गया और मात्र 49 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध ने कुशीनगर में महा परिनिर्वाण प्राप्त किए अर्थात् उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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