तुलसीदास का जीवन परिचय-Tulsidas ka jivan parichay
तुलसीदास का जीवन परिचय | |
तुलसीदास का जन्म | 1532 ईस्वी |
बचपन का नाम | रामबोला |
जन्मस्थान | (I) सुकर खेत, सोरो, जिला एटा, उत्तर प्रदेश
(II)राजापुर, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश |
पिता एवं माता | पिता का माता का |
पत्नी का नाम | दीनबंधु पाठक की पुत्री |
पुत्र का नाम | तारक |
साहित्यिक रचनाएँ एवं कृतियाँ
| कुल 12 प्रामाणिक ग्रंथ-रामचरित मानस, रामाज्ञा |
भाषा एवं अलंकार
| अवधि भाषा एवं ब्रजभाषा रूपक अलंकार |
तुलसीदास के गुरु एवं दार्शनिक सिद्धान्त | नरहर्यानन्द स्मार्त वैष्णव |
तुलसीदास के समय के अन्य कवि | दादू दयाल, रहिमदास, शेख मुबारक, अबुल फजल, गुरु रामदास एवं अर्जुन दास |
मृत्यु | 1623 ईस्वी |
तुलसीदास जयंती, 2024 –Tulsidas Jayanti, 2024
तुलसीदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था? (Tulsidas ka janm kab hua)
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईस्वी में हुआ था। इनके जन्मस्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है। यों देखा जाए तो प्रायः सभी भक्तिकालीन कवियों की जन्म एवं जन्मस्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। तुलसीदास के दो जन्मस्थानों को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
कुछ विद्वान इनका जन्मस्थान सुकर खेत, सोरो, जिला एटा को मानते हैं तो कोई राजापुर, जिला बांदा को। पर जनश्रुति के अनुसार तुलसीदास का जन्मस्थान राजापुर, जिला बांदा, उत्तरप्रदेश ही सही है।
तुलसीदास के माता-पिता का नाम क्या था?
तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे था एवं माता का नाम- हुलसी था। इनकी माता के संबंध में रहिमदास जी के इस दोहा का उदाहरण दिया जाता है।
गोद लिए हुलसी फिरे तुलसी सो सूत होय।
तुलसीदास का बचपन (Tulsidas ka bachpan)
कहा जाता है कि तुलसीदास का बचपन बड़ें अभाव एवं कष्ट में बीता था। जनश्रुति यह भी है कि अशुभ नक्षत्र में पैदा होने के कारण तुलसीदास को उसके माता पिता ने त्याग दिया था एवं पाँच वर्ष की आयु में वे गुरु नरहर्यानन्द से मिले। तुलसीदास जी अपने गुरु के आश्रम में पले-बढ़े। गुरु नरहर्यानन्द ने ही उन्हें शिक्षा एवं दीक्षा दी।
तुलसीदास की पत्नी : रत्नावली (Tulsidas wife)
तुलसीदास जी का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली नाम की एक महिला से हुआ था पर वैवाहिक जीवन भी उतना सफल नहीं रहा।
तुलसीदास का पारिवारिक एवं वैवाहिक जीवन
कहा जाता है कि तुलसीदास को रत्नावली से अत्यधिक लगाव था एवं वे हर स्थान पर उसके साथ ही चले आते थे, एक बार रत्नवाली कुछ दिन के लिए अपने माइके गयी थी, वहाँ भी तुलसीदास जी उनके पास चले गए, यह बात रत्नावली को अच्छी नहीं लगी और उसने अपनी प्रतिक्रिया के रूप में तुलसीदास को यह दोहा कहा :
‘लाज न लागत आपको
दौरे आयहु साथ।
धिक धिक ऐसे प्रेम को कहा कहाँ मैं नाथ ॥
अस्थि चर्म मय देह मम तामे जैसी प्रीति ।
तैसी जौ श्री राम महँ होति न तौ भवभीति ॥“
अर्थात आपको मेरे पास यहां आने में शर्म नहीं आया, मेरे हाड़-मांस के शरीर से जितना प्रेम दिखा रहे हैं उतना प्रेम अगर राम में होता तो आपका जीवन कब का संवर चुका होता।
अपनी पत्नी की बातों से दुखी होकर तुलसीदास जी ने सन्यास एवं वैराग्य धारण कर लिया एवं काशी की ओर चले गए। वहाँ जाकर गुरु शेष सनातन जी से वेद, पुराण, दर्शन एवं इतिहास की शिक्षा ग्रहण किया। उनके जीवन का अधिकांश भाग काशी में बीता।
गोस्वामी तुलसीदास के गुरु जी का नाम (tulsidas ke guru kaun the)
गोस्वामी तुलसीदास के बचपन के गुरु – नरहर्यानंद (नरहरिदास) थे पर शेष सनातन जी से वेदशास्त्रों की शिक्षा ग्रहण की थी।
गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति
गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति में लोककल्याण की भावना निहित है, उनके राम सभी के लिए सुलभ है, सृष्टि के हर कान में व्याप्त है, उसे पाना सभी के लिए आसान है –
निगम अगम, साहब सुगम राम सांचली चाह ।
अंबु असन अवलोकियत सुलभ सबहि जग मांह ॥
‘रामचरितमानस‘ का महत्व एवं विशेषताएं (Tulsidas ki rachna-Ramcharitmanas)
तुलसीदास द्वारा रचित राम के जीवन पर आधारित महाकाव्य ‘रामचरितमानस‘ आज एक धर्म ग्रंथ का रूप ले चुका है। तुलसीदास जी के ख्याति एवं प्रसिद्धि का आधार यही ‘रामचरितमानस‘ ही है। इसमें जनता की मंगल कामना, आदर्श राम राज्य, भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों का बखूबी वर्णन किया गया है।
कहा जाता है कि यह रचना समाज को संस्कार प्रदान करता है एवं जीवन के मूल्यों को दर्शाता है। इसमें जो गुरु-शिष्य, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-भाई, भाई-बहन, आदर्श चरित्र एवं समन्वय किया गया है वह किसी अन्य रचना में नहीं मिलता और यही आदर्श चरित्र एवं समन्वय भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक रूप का प्रतिबिंब है।
‘रामचरितमानस‘ की रचना का वर्ष
| वर्ष 1574 |
‘रामचरितमानस‘ की भाषा एवं शैली
| अवधि एवं दोहा चौपाई की शैली |
रामकथा का श्रोत
| वाल्मीकि का रामायण |
‘रामचरितमानस‘ की रचना लगा कुल
| 2 वर्ष, 7 माह 26 दिन |
कुल कांड या भाग की संख्या
| 7 -‘बालकाण्ड‘, ‘अयोध्याकाण्ड‘, ‘अरण्यकाण्ड‘, ‘किष्किन्धाकाण्ड‘, ‘सुन्दरकाण्ड‘, ‘लंकाकाण्ड‘ एवं ‘उत्तरकाण्ड‘।
|
‘रामचरितमानस‘ की रचना तुलसीदास ने वर्ष 1574 में की थी, इसकी रचना में 2 वर्ष, 7 माह 26 दिन लगे थे। इसमें भगवान राम के जीवन एवं संघर्ष का वर्णन है। रामचरितमानस के रामकथा का आधार वाल्मीकि का रामायण है जो कि संस्कृत भाषा के कवि एवं संत थे। कहा जाता है कि तुलसीदास ने सर्वप्रथम कृष्ण भक्त कवि रसखान को रामचरितमानस‘ सुनाया था।
रामचरितमानस को तुलसीदास ने सात काण्डों (भाग या सोपान) में रेखांकित किया है– ‘बालकाण्ड‘, ‘अयोध्याकाण्ड‘, ‘अरण्यकाण्ड‘, ‘किष्किन्धाकाण्ड‘, ‘सुन्दरकाण्ड‘, ‘लंकाकाण्ड‘ एवं ‘उत्तरकाण्ड‘। यहाँ संक्षेप में हम सभी कांडों अर्थात भागों
की चर्चा करेंगे।
‘बालकाण्ड‘
यह रामचरित मानस का प्रथम भाग है। इसमें राम और उनके भाइयों के जन्म से लेकर राम-सीता के स्वयंवर का आयोजन, शिव-धनुष तोड़ने की घटना एवं राम-सीता का विवाह, ताड़का, मारीच एवं सुबाहु जैसे राक्षसों का बध, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार संबंधित घटनाओं का जिक्र किया गया है।
‘अयोध्याकाण्ड‘
यह रामचरित मानस का दूसरा भाग है। अयोध्याकाण्ड‘ में राम-सीता के वैवाहिक जीवन, राजा दशरथ द्वारा राम को अयोध्या का राजा घोषित करना एवं तत्पश्चात कैकेयी द्वारा राजा दशरथ से पिछली लड़ाई में दशरथ की जान
बचाने के लिए इनाम के रूप में उसकी दो इच्छाएँ पूरी करने की मांग-
(1)भगवान राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास भेजा जाए।
(2)और उनकी दूसरी इच्छा थी कि भरत को अयोध्या के राजा के रूप में ताज पहनाया जाए।
उस समय किसी द्वारा किए गए वादे या वचन का मोल प्राणों से बढ़कर था। कहा भी गया है- रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाए | इस प्रकार भगवान राम को राज्य छोड़ने और 14 वर्ष के वनवास के लिए पत्नी सीता एवं लक्ष्मण सहित वन में जाना पड़ा। इसके साथ राम के दुःख में दशरथ की मृत्यु, राम-भरत
मिलाप इत्यादि घटनाओं का वर्णन है।
‘अरण्यकाण्ड’
यह रामचरित मानस का तीसरा भाग है। इसमें राम का वनयात्रा एवं साधुसंतों से भेंट, शूर्पणखा का अपमान एवं शूर्पणखा बध, सीता का हरण से संबंधित घटनाओं का जिक्र है।
‘किष्किन्धाकाण्ड’
यह रामचरित मानस का चौथा भाग है। इसमें राम-लक्ष्मण सीता की खोज करते हैं, राम- हनुमान मिलन, सुग्रीव का दुःख, राम व सुग्रीव की मित्रता, सुग्रीव के बड़े भाई बालि का वध, जामवंत द्वारा हनुमान को उसकी शक्ति से
परिचित करवाना आदि घटनाओं का उल्लेख किया गया है।
‘सुन्दरकाण्ड’
सुन्दरकाण्ड‘ हनुमान जी के सहासिक कार्यों के बारे में बताया गया है। राम का संदेश सीता को पहुंचाने क लिए
हनुमान द्वारा समुद्र लांघ कर लंका की ओर प्रस्थान करना, सीता की खोज करते हुए रावण के भाई विभीषण से भेंट, अशोक वाटिका में हनुमान द्वारा राक्षसों का संहार एवं माता सीता को राम का संदेश देना, विभीषण एवं राम की मित्रता, मेघनाध द्वारा हनुमान को बंदी बनाया जाना, हनुमान एवं रावण का संवाद, हनुमान द्वारा लंका दहन, हनुमान द्वारा राम को सीता का सन्देश मिलना, लंका पर आक्रमण, लंका जाने के लिए समुद्र देव से रास्ता मांगना इत्यादि घटनाओं का वर्णन है।
‘लंकाकाण्ड‘
नल नील द्वारा समुद्र पर राम सेतु बनाना एवं सेना सहित राम का लंका पर प्रवेश, मंदोदरी द्वारा रावण को परामर्श एवं सलाह, अंगद को शान्ति-दूत बनाकर रावण के पास जाना, राम व रावण की सेना में युद्ध, लक्ष्मण -मेघनाद युद्द एवं लक्ष्मण को शक्ति अस्त्र से घायल होना, हनुमान द्वारा लक्ष्मण के लिए संजीविनी बूटी लाना, रावण, सहित मेघनाद, और कुम्भकरण का वध, विभीषण को लंका का राजा घोषित करना, राम एवं सीता का पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान आदि घटनाओं का जिक्र है।
‘उत्तरकाण्ड
अयोध्या में राम का राजतिलक एवं स्वागत, रामराज्य का वर्णन एवं अयोध्या में आनंद एवं खुशी मनाना, आदि का
वर्णन है। इसके साथ ही शिव -पार्वती संवाद, गरुण का कागभुशुंडि से राम कथा सुनना, कागभुशुंडि द्वारा कलियुग एवं कलि महिमा का वर्णन करना।
तुलसीदास की रचनाएँ : (Tulsidas ki rachnaen-books)
तुलसीदास | |||
रचना का नाम | विषय | शैली | भाषा |
रामललानहछु | राम के विवाह पर गीत एवं महिलाओं के हाव-भाव का वर्णन | प्रबंध | अवधि |
वैराग्य संदीपनी | वैराग्य एवं सन्यास संबंधी उपदेश है। | मुक्तक | अवधि |
कवितावली | तत्कालीन समय की महामारी, मृत्यु से पहले का कष्ट आदि। इसमें कलिकाल का वर्णन किया गया है। | मुक्तक, कवित एवं सवैया | ब्रजभाषा |
दोहावली | भक्ति, नीति संबंधी दोहे एवं राम का गुणगान | मुक्तक | ब्रजभाषा |
रामाज्ञा प्रश्न | यह एक ज्योतिष ग्रंथ है। | मुक्तक | अवधि |
गीतावली | इसमें राम कथा से संबंधित पद है। | गीतिकाव्य | ब्रजभाषा |
कृष्णगीतवाली | कृष्ण से संबंधित 61 पद है। | गीतिकाव्य | ब्रजभाषा |
‘बरवै‘ रामायण | भगवान राम से संबंधित कथा जो ‘बरवै‘ छन्दों में है। इसीलिए इसे ‘बरवै‘ रामायण कहा जाता है। | मुक्तक | अवधि |
पार्वती मंगल | पार्वती एवं शिव के‘ विवाह वर्णन | प्रबंध | अवधि |
विनय पत्रिका, | राम के प्रति प्रार्थना एवं आत्मनिवेदन संबंधी पद | गीतिकाव्य | ब्रजभाषा |
तुलसीदास जी की भाषा शैली
तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में मुख्यतः अवधी भाषा का ही प्रयोग किया है। रामचरितमानस की रचना अवधि भाषा में ही हुई है। इसके अलावा ब्रजभाषा का प्रयोग गोस्वामी जी ने अपनी रचनाओं में किया है, जिसमें विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, कृष्णगीतावाली, गीतवाली आदि शामिल है।
गोस्वामी तुलसीदास जी का कलापक्ष अत्यंत समृद्ध है। उन्होने अपने समय के अनुकूल एवं – प्रचलित दोहा-चौपाई, छप्पय, गीतिशैली, कवित्त-सवैया-शैली, आदि सभी का प्रयोग उन्होंने अपनी रचनाओं में किया है।
तुलसीदास के संबंध में विद्वानों के मत :
तुलसीदास के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने अपने मत प्रस्तुत किए है-
- विदेशी विद्वान स्मिथ ने गोस्वामी तुलसीदास जी को मुगलकाल का सबसे महान व्यक्ति कहा है।
- भक्तिकाल के प्रमुख संत भक्त नाभादास ने उन्हें कलिकाल का वाल्मीकि कहा है।
- जबकि जार्ज ग्रियर्सन ने तुलसीदास को बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक कहा है।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी भाषा एवं साहित्य में उनके इतने बड़े योगदान को देखते हुए यह एक कवि ही हिन्दी की प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।
- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य ले कर आया हो।—–उसमें केवल लोक और शास्त्र का ही समन्वय नहीं है अपितु गार्हस्थ्य और वैराग्य का, भक्ति और ज्ञान का, भाषा और संस्कृति का, निर्गुण और सगुण का, पुराण और काव्य का, भावावेग और अनासक्त चिंता का समन्वय ‘रामचरितमानस‘ के आदि से अंत तक दो छोरों पर जाने वाली पराकोटियों को मिलाने का प्रयत्न है। “
तुलसीदास के दोहे-Tulsidas ke dohe
तुलसीदास जी की रचनाओं से संबंधित दोहों का परिचय संक्षेप में दिया जा रहा है –
रामचरितमानस की प्रसिद्ध पंक्तियाँ एवं दोहे
- सिया राम मय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी ॥
- कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित॥
- ढोल गँवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी ॥
- अगुन सगुन दुई ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा ॥
- वर्णानामर्थ संघानां रसानां छन्दसामपि । मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ ॥
- नानापुराणनिगमागम सम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यत। स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा भाषा निबन्धमतिमञ्जुल॥
- विधिहु न नारि हृदय गति जानी
- बंदउगुरु पद पदमु परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥
- ईश्वर अंस जीव अविनासी। चेतन, अमल, सहज सुख रासी ॥
- कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखी कागद को
- गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न ।
दोहावली की प्रसिद्ध पंक्तियाँ एवं दोहे –
- हिय निर्गुन नयनन्हि सगुन, रसना राम सुनाम । मनहुँ परट-संपुट लसत, तुलसी ललित ललाम ॥
- साखी सबदी दोहरा, कहि किहनी उपखान। भगति निरूपहि भगत कलि निंदहि वेद पुरान ॥
कवितावली की प्रसिद्ध पंक्तियाँ एवं दोहे –
- आणि बडवागि ते बड़ी है आगि पेट की
- खेती न किसान को भिखारी को न भीख गली।
- माँगी के खइबौ मसीत को सोइबो, लेने को एक न देने को दोऊ ॥
- गोरख जगायो जोगु, भगति भगायो लोगु । निगम नियोगते, सो केलि ही छरो सो है ॥
- मातु-पिता जग जाइ तज्यो बिधि हूँ न लिखी कछु भाल भलाई ॥
- धूत कहो अवधूत कहाँ, रजपूत कहाँ जुलहा कहाँ कोऊ ।
- काहू की बेटी सौं बेटा न व्याहब काहू की जाति बिगार न सोक ॥
‘विनय पत्रिका’ की प्रसिद्ध पंक्तियाँ एवं दोहे –
- जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही ॥
- अबला नसानी, अब न नसैहौं। राम कृपा भव निसा सिरानी, जागे फिरि न उसैहौं ।
- ऐसो को उदार जग माहीं। बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाहीं ॥
- माधव। मो समान जग माहीं। सब विधि हीन, मलीन, दीन अति, लीन-विषय कोउ नाहीं ॥
- केसव कहि न जाइ का कहिये। सून्य भीति पर चित्र रंग नहि, तनु बिनु लिखा चितेरे ॥
निष्कर्ष-
कहा जा सकता है कि गोस्वामी जी के के कारण ही हिंदी में रामकथा को इतनी लोकप्रिय हुई कि आज भी घर-घर में इसका पाठ होता है। कहा जाता है कि उत्तर-भारत के घर-घर में रामचरितमानस का पाठ होता है।
समाज एवं पारिवारिक संबंध में जिस मर्यादा अर्थात भाई-भाई, पति-पत्नी, माता-पिता, पिता-पुत्र, माता-पुत्र का चित्रण रामचरित मानस में हुआ है, वैसा आज तक किसी भी कृति में नहीं हुआ है और उसी सामाजिक एवं पारिवारिक संबंधों एवं मर्यादाओं का आज हम सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में अनुसरण कर रहें हैं। गोस्वामी जी लोकमंगल के प्रबल पक्षधर थे, उनका मानना था –
अर्थात परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है एवं दुसरो को दुख एवं पीड़ा पहुंचाने जैसा कोई अधर्म नहीं है।
तुलसीदास के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –Frequently asked questions regarding Tulsidas :-
Q-तुलसीदास की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है?
A- रामचरितमानस
Q- तुलसीदास का मूल नाम क्या था?
A- तुलसीदास का मूल नाम ‘रामबोला’ था, जो आगे चलकर गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध हुए।
Q-रामचरितमानस किसकी रचना है इसकी भाषा क्या है?
A- रामचरितमानस तुलसीदास जी की रचना है एवं रामचरितमानस की भाषा अवधि है।
Q-रामचरितमानस में कितने कांड है?
A-7 कांड
Q-तुलसीदास ने कुल कितने ग्रंथों की रचना की है?
A-कुल 12 प्रामाणिक ग्रंथ
Q-तुलसी की कौन सी रचना ब्रजभाषा में है?
A-विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, कृष्णगीतवाली, गीतवाली
Q-तुलसीदास की पत्नी का नाम
A-रत्नावली
Q-तुलसीदास के माता का नाम
A-हुलसी दुबे
Q-तुलसीदास की 12 रचनाएं कौन कौन सी है?
A-तुलसीदास की 12 प्रामाणिक रचनाएं हैं- रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, कृष्णगीतवाली, गीतवाली, पार्वती मंगल, ‘बरवै’ रामायण, रामाज्ञा प्रश्न, रामाज्ञा प्रश्न, रामललानहछु, वैराग्य संदीपनी
Q-रामचरितमानस का मुख्य छंद कौन सा है?
A-छप्पय
Q-‘रामचरितमानस‘ की रचना कब हुई ?
A- वर्ष 1574
Q-‘रामचरितमानस‘ की रचना में कितना समय लगा?
A- 2 वर्ष, 7 माह 26 दिन
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2-Khesari Lal Yadav : खेसारी लाल यादव की जीवनी, फिल्में, नेटवर्थ, उम्र एवं परिवार के बारे में।
3-जानें टाइगर श्रॉफ का जीवन परिचय, फ़िल्में एवं परिवार के बारे में (Tiger Shroff Ka Jivan Parichay)