Tulsi Vivah 2024: भारतीय संस्कृति तथा हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का बहुत अधिक महत्व है तथा आयुर्वेद में तुलसी के पौधे को औषधिय गुणों से भरपूर माना जाता है। इसलिए सुहागन महिला हर रोज़ माता तुलसी को जल अर्पित कर इनकी पूजा आराधना करती है और इनसे वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करती है।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है तथा इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ करवाया जाता है और शालिग्राम, भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है। मान्यता यह भी है कि तुलसी विवाह का पर्व करने से व्यक्ति को कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है तथा तुलसी विवाह पर्व के बाद हिंदू धर्म में सारे शुभ कार्य की शुरुआत हो जाती है और इस दौरान शादी-ब्याह का कार्यक्रम शुरू हो जाते है।
तुलसी विवाह: (Tulsi Vivah 2024)
तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप में शालिग्राम पत्थर के साथ कराया जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का बहुत अधिक महत्व है तथा इन पौधे को पवित्र माना जाता है और यह मान्यता है कि तुलसी के पौधे में देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए सुहागन महिलाएँ माता तुलसी की पूजा करती है और तुलसी के पौधे में जल चढ़ाती है। जिससे उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल से भरा रहे।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त:
साल 2024 में तुलसी विवाह का पर्व 13 नवम्बर, दिन बुधवार को मनाया जाएगा तथा तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 5:29 बजे से लेकर 7:53 बजे तक है तथा इस शुभ मुहूर्त पर माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ विधि विधान के साथ किया जा सकता है।
तुलसी विवाह से ठीक एक दिन पहले देवउठनी एकादशी का त्योहार मनाया जाता है, इस तरह साल 2024 में देवउठनी एकादशी 12 नवम्बर 2024 को है तथा यह वहीं दिन है जब दिन भगवान विष्णु पूरे चार महीने के बाद अपनी निद्रा से जागते है इस तरह कार्तिक के महीने में तुलसी विवाह हो जाने के बाद सारे शुभ कार्य की शुरुआत हो जाती है।
तुलसी विवाह के लिए आवश्यक सामाग्री:
तुलसी विवाह के लिए हमें विभिन्न सामाग्री की आवश्यकता पड़ती है। जिनमें से तुलसी का पौधा, शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु की प्रतिमा, लकड़ी की चौकी, गन्ना, मूली, बेर, आंवला, फल, फूल, हल्दी, धूप, लाल चुनरी तथा श्रिंगार की चीजें आदि।
तुलसी विवाह की विधि:
- माता तुलसी की विवाह के लिए शाम के समय पूरी तैयारी कर ले और उसके बाद सभी महिलाएँ नए वस्त्र धारण कर तैयार हो जाए। अब तुलसी विवाह के लिए गन्ने का मंडप तैयार करे अर्थात् तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाए तथा माता तुलसी को भी फूलों से सजाए। अब तुलसी विवाह पूजा की शुरुआत करे।
- अब दो लकड़ी की चौकी ले और उस पर आसन बिछाए और अब एक आसन पर तुलसी जी का पौधा तथा दूसरे आसन पर भगवान शालिग्राम को स्थापित करे।
- अब गंगा जल से माता तुलसी तथा शालिग्राम को स्नान कराए, उसके बाद माता तुलसी तथा भगवान शालिग्राम को दूध के मिश्रण से बने हल्दी का लेप लगाए। अब माता तुलसी को सिंदूर, फल, फूल तथा लाल चुनरी ओढ़ाए और सोलह श्रिंगार की सभी चीजें अर्पित करे।
- अब भगवान शालिग्राम को भी फूलों की माला, वस्त्र तथा फल अर्पित करे और अब मिठाई तथा दूध से बने खीर का भोग लगाए।
- अब धूप तथा अगर बत्ती दिखा कर घी का दीपक जलाए तथा माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की आरती करे। अब अपने हाथों में भगवान शालिग्राम का आसन उठा कर 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करे। अंत में तुलसी चालीसा का पाठ जरुर करे।
- मान्यता है कि तुलसी विवाह का पर्व मनाने से हमारे वैवाहिक जीवन खुशहाल से भरपूर रहता है और हमारे घर में सुख-समृद्धि तथा वैभव की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह का महत्व:
- प्रत्येक वर्ष तुलसी विवाह का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है तथा इस दौरान सुहागन महिलाएँ एकजुट होकर माता तुलसी तथा भगवान शालिग्राम का विवाह करवाती है।
- तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी को दुल्हन की तरह सजाकर उनकी शादी भगवान विष्णु के साथ कराई जाती है तथा इस शुभ अवसर पर महिलायें अपने आँगन में भव्य तुलसी की रंगोली बनाती है।
- मान्यता है कि जो व्यक्ति तुलसी विवाह कराता है उन्हें अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
तुलसी विवाह से जुड़ी कहानी:
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में जलंधर नाम का एक राक्षस था और यह राक्षस बहुत ही वीर तथा शक्तिशाली था। इस तरह जलंधर ऋषि मुनियों तथा देवताओं पर अत्याचार करने लगे और जलंधर को हराना किसी के बस की बात नहीं थी। जलंधर की पत्नी का नाम वृंदा था और वृंदा पतिव्रता थी।
जलंधर के दुष्ट व्यवहार के कारण सभी देवता गण हमेशा परेशान रहते थे तथा एक दिन अचानक सभी देवता आपस में मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुँचे और भगवान विष्णु से सभी ऋषि मुनियों ने अपनी व्यथा तथा परेशानी सुनाई। तभी भगवान विष्णु ने वृंदा की पतिव्रता धर्म को भंग करने का निश्चय किया।
इस तरह भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुँचे। राक्षस जलंधर युद्ध में व्यस्त था और वृंदा अपने पति की सलामती के लिए यज्ञ कर रही थी जैसे ही वृंदा भगवान विष्णु के रूप में पति जलंधर को देखी तो वह पूजा से तुरंत उठकर अपने पति का चरण छूने गई, इस तरह वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट हो जाता है तथा इनका पतिव्रता धर्म नष्ट हो जाने की वजह से जलंधर का सर धर से अलग हो जाता है।
जब यह बात वृंदा को पता चली कि उसने अपने पति जलंधर को नहीं बल्कि भगवान विष्णु को स्पर्श किया है अर्थात् हमारे साथ क्षल हुआ है, तो वृंदा क्रोधित हो कर भगवान विष्णु को श्राप देती है कि वे पत्थर बन जाए। भगवान विष्णु, वृंदा के श्राप को स्वीकार करते हुए वो पत्थर का रूप धारण कर लेते है।
यह देख माता लक्ष्मी काफी दुखी हुई और देवी वृंदा से प्रार्थना कि वे भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त करे। माता लक्ष्मी के आग्रह पर देवी वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त की और अपने पति का कटा सर लेकर सती हो गई।
उसी दौरान वृंदा के राख से एक पौधा निकला और इस पौधे को भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और भगवान विष्णु यह कहे कि शालिग्राम नाम से मेरा एक ओर रूप माता तुलसी के साथ हमेशा रहेगा। जिसकी पूजा देवी तुलसी के साथ की जाएगी। इस तरह भगवान विष्णु के साथ माता तुलसी का नाम जुड़ा और भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का उपयोग किया जाने लगा।
तभी से ही कार्तिक मास के इस पावन महीने में माता तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ किया जाने लगा और इस तरह तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाने लगा।
तुलसी विवाह की रंगोली:
तुलसी विवाह के इस पावन पर्व तथा शुभ अवसर पर तुलसी के पौधे की रंगोली बनाई जाती है और महिलायें अपने आँगन में बहुत ही ख़ूबसूरत रंगोली तैयार करती है। जो इस प्रकार है:
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