सरस्वती पूजा पर निबंध-परिचय
सरस्वती पुजा सबसे प्रसिद्ध हिंदू त्योहारों में से एक है। इस दिन विद्या, ज्ञान, बुद्धि, कला और संगीत की माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ सरस्वती को हंसवाहिनी, माँ शारदा, वाग्देवी, भारती, वीणावादनी तथा अन्य कई नामों से जाना जाता है। यह त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती का उत्पति हुई थी अतः बसंत पंचमी के दिन ही माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
माँ सरस्वती को वीणा-वादनी भी कहा जाता है क्योंकि यह अपने एक हाथ मे वीणा को लिए हुए रहती है और दूसरे हाथ मे पुस्तक को लिए हंस पर विराजमान रहती है इस तरह ज्ञान की देवी माँ सरस्वती हर मनुष्य को बुद्धि तथा विधा प्रदान करती है। इस तरह माँ सरस्वती हमें यह संदेश देती है कि विधार्थी का जीवन मधुर और सरस हो तथा विधार्थी अपने जीवन में ज्ञान एवं विद्या अर्जित करें। कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला द्वारा सरस्वती वंदना कविता की कुछ पंक्तियाँ
प्रिय स्वतंत्र-रव,अमृत-मंत्र नव
भारत मे भर दे।
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि,ज्योतिमय निर्झर,
कलुष -भेद -तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे-
सरस्वती पूजा की तिथि एवं समय
परिचय हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सरस्वती पूजा-saraswati puja हर वर्ष माघ मास के शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है, इसीलिए इस दिन को ‘श्री पंचमी’ अथवा बसंत पंचमी भी कहा जाता है। बसंत पंचमी अँग्रेजी माह में यह जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में पड़ता है। इस दिन से वसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है।
सरस्वती पूजा की की उत्पत्ति कथा
सरस्वती पूजा का त्योहार माँ सरस्वती की उत्पति की कथा से ही जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि माँ सरस्वती का उत्पति बसंत पंचमी के दिन हुआ था, और इसलिए इस त्योहार को माँ सरस्वती की पूजा आराधना के रूप में देखा जाता है। मां सरस्वती की उत्पति की कई कहानियाँ प्रचलित है। जब भगवान ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया, तो वे काफी असंतुष्ट दिखाई दे रहे थे।
ब्रह्मा को सभी विद्याओं एवं ज्ञान का स्रोत के रूप में माँ सरस्वती की आवश्यकता थी जो इस सृष्टि को पूर्ण कर सके। भगवान ब्रह्मा के हजारों वर्षों तक ध्यान के पश्चात विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का आगमन हुआ। यह दिन बसंत पंचमी का था। इस प्रकार भगवान ब्रह्मा ने देवी सरस्वती को पूरे संसार में विद्या और ज्ञान के प्रसार करने का अनुरोध किया।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ सरस्वती को भगवान शिव और देवी दुर्गा की पुत्री भी माना जाता है।
सरस्वती पूजा कैसे मनाया जाता है?
- सरस्वती पूजा के दिन छात्र माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं और अपने-अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए माँ सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। छात्र देवी की चरणों में किताबें भी चढ़ाते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल के मध्यकालीन कवि और संत चैतन्य महाप्रभु ने 16वीं शताब्दी में बंगाल में इस त्योहार की शुरुआत की थी। तब से, सरस्वती पूजा पश्चिम बंगाल में धूम-धाम से मनाया जाता है। घर-घर माँ सरस्वती की पूजा एवं प्रार्थना की जाती है।
- शिक्षा के सभी संस्थानों, स्कूल और कॉलेज में सरस्वती पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।आमतौर पर घर, स्कूल या कॉलेज में एक प्रमुख स्थान पर सरस्वती की मूर्ति या प्रतिमा की स्थापना होती है। प्रतिमा को आमतौर पर फूलों और अन्य प्रसादों से सजाया जाता है। पूजा की रस्में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं, लेकिन आम तौर पर प्रार्थना करना, आरती करना, फूल, मिठाई और अन्य वस्तुओं का चढ़ावा दिया जाता है। बहुत से लोग आरती करते हैं।
- इस दिन सभी बालिकाएँ एवं लड़कियां साड़ी पहनती हैं एवं बच्चे नए कपड़े पहनते हैं। लोग पारंपरिक बंगला गान और नृत्य करते हैं एवं स्वादिष्ट व्यंजन, खिचूरी एवं खीर बनाते है।उत्तर भारत में बसंत पंचमी को बड़े ही जोश और उत्साह से मनाते हैं। नए उद्यम या परियोजनाओं को शुरू करने के लिए बसंत पंचमी का दिन शुभ माना जाता है।
- उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में, खासकर पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश में, बसंत पंचमी को पतंगबाजी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। लोग विभिन्न रंगों और आकारों की पतंग उड़ाते हैं और आसमान पतंगों से भर जाता है। पतंगबाजी के इस त्योहार में बच्चे, बड़े एवं बुजुर्ग भी शामिल होते है एवं खुशी से पतंगबाजी करते हैं।
- इसके अलावा आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु आदि दक्षिण के कई राज्यों में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश के लोग इस दिन को श्री पंचमी के रूप में मनाते हैं। तमिलनाडु में, इस दिन को सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है एवं लोग भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी का नृत्य भी करते हैं।
सरस्वती पूजा की तैयारी:
सरस्वती पूजा के वास्तविक दिन से एक सप्ताह पहले ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। इसमें घर की सफाई और सजावट, माँ सरस्वती की मूर्ति, प्रसाद के लिए फल-फूल एवं अन्य समान, नए कपड़े और किताबें खरीदना होता है।
पूजा के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान कर खुद को शुद्ध करते हैं। वे नए कपड़े पहनते हैं और पूजा पंडालों में जाते हैं । पंडालों को फूलों, लाइटों और रंग-बिरंगे कागजों से सजाया जाता है। माँ सरस्वती की मूर्ति को एक सजे-सजाए टेबल पर रखा जाता है।
सरस्वती पूजा व्रत
- पंडित एवं पुरोहित घर-घर एवं पुजा पंडालों में जाकर माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना पारंपरिक विधि से करते हैं। पंडित महशय सरस्वती पूजा से संबंधित मंत्रों का जाप करते है। पंडित महशय फिर आरती करते है, और देवी को हल्दी, चंदन, पीला फूल, फूल, फल और मिठाई चढ़ाते हैं। छात्र, देवी से आशीर्वाद मांगते हुए अपनी किताबें, कलम और संगीत वाद्ययंत्र भी चढ़ाते हैं।
- पूजा के बाद, भक्तों के बीच प्रसाद वितरित किया जाता है। प्रसाद में आमतौर पर लड्डू, पेड़ा,बुंदिया,जलेबी और पाइश तथा ताजे फल शामिल होते हैं।इस दिन माँ सरस्वती को पीले रंग वाले फूल अर्पित किए जाते है तथा पीला रंग ज्ञान और विधा का प्रतीक है । माँ सरस्वती को पीले रंग वाले प्रसाद का भोग चढ़ाया जाता है तथा इस दिन महिलाएं अपने चेहरे पर पीला हल्दी का लेप लगाती है।
- माँ सरस्वती की व्रत करने से हमे मनचाहा वरदान मिलता है तथा इस व्रत मे हमे स्वच्छता और पवित्रता का पूरा ध्यान रखना चाहिए इस व्रत मे हमे पीले रंग की मिठाइयाँ,मीठा चावल,माल-पुआ,जलेबी,बूंदी के लड्डू खाना चाहिए तथा इस व्रत मे फल भी खा सकते है, पर पूजा सम्पन्न होने के पश्चात ही।
सरस्वती पूजा का महत्व
सरस्वती पूजा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। यह पूजा बसंत ऋतु में मनाया जाता है। बसंत को सभी ऋतुओ का राजा कहा जाता है । बसंत ऋतु सर्दियों के मौसम के अंत और वसंत के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन से वसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है। वसंत ऋतु का मौसम बहुत ही सुहावाना होता है, डालियो मे नए पत्ते खिलने लगते है। बसंत ऋतु के आगमन से वातावरण सुगंधित हो जाते है तथा बगीचे मे रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते है तथा वसंत ऋतु को हरियाली का प्रतीक कहा जाता है।
बसंत पंचमी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। किसान अपने लहलहाते खेतों एवं खलिहानों को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते है। क्योंकि इस मौसम में फसल सबसे अच्छी होती है। इस ऋतु के आगमन से सरसो के फूल खिलने लगते है, सरसो का फूल पीला रंग का होता है जो माँ सरस्वती से जुड़ा हुआ है तथा यह रंग हमारी विधा, ऊर्जा और सकारात्मक का प्रतीक है।
परंपरागत रूप से इस दिन बच्चे की शिक्षा की शुरुआत की जाती है। बच्चे को पहला शब्द लिखना और पढ़ना सिखाया जाता है। सरस्वती पुजा के दिन छोटे बच्चों का पढ़ना-लिखना शुरू करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि बच्चो की शिक्षा जी शुरुवात इस दिन से करने पर शुभ होता है तथा इस नियम को अक्षराभयास कहा जाता है ।
निष्कर्ष
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि विद्या, ज्ञान, कला और संगीत की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है तथा सरस्वती पूजा का यह त्योहार एक महत्वपूर्ण त्योहार है। ऐसा त्योहार केवल समृद्ध भारतीय संस्कृति में देखा जाता है एवं भारतीय संस्कृति का ऐसा उदाहरण शायद ही कहीं मिले। यह त्योहार हमें यह भी बताता है कि ज्ञान एवं विद्या की शक्ति का कोई मूकाबला नहीं।
हमें जीवन में सीखने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस दिन विधार्थी मन, क्रम और वचन से माँ सरस्वती की पुजा करते है। माँ सरस्वती की पुजा विधार्थी के जीवन मे ज्ञान का प्रकाश लाती है और उनके जीवन को उज्ज्वल बनाती है।
सरस्वती पूजा के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q – बसंत पंचमी पर पतंगबाजी क्यों उड़ाई जाती है?
A- बसंत ऋतु के आने की खुशी में।
Q- माँ सरस्वती को वीणा-वादनी क्यों कहा जाता है?
A- माँ सरस्वती को वीणा-वादनी कहा जाता है क्योंकि यह अपने एक हाथ मे वीणा को लिए हुए रहती है।
Q- बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा क्यों मनाया जाता है?
A- बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती का उत्पति हुई थी इसलिए वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा मनाई जाती है।
Q- मां सरस्वती को क्या प्रसाद चढ़ाया जाता है?
A- देवी को हल्दी, चंदन, पीला फूल, फल और मिठाई चढ़ाते हैं।
Q- मां सरस्वती को कौन सा फूल पसंद है?
A- पीला फूल ।
Q- सरस्वती पूजा में पीला क्यों पहना जाता है?
A- पीला रंग का वस्त्र शुभ माना जाता है।
Q- मां सरस्वती किसकी बेटी थी?
A- माहदेव शिव एवं पार्वती की ।