More

    जानें समान नागरिक संहिता क्या है?(Uniform Civil Code In Hindi)

    Share

    समान नागरिक संहिता भारत के सभी धर्मों एवं समुदायों के लिए शादी-विवाह, जमीन-जायदाद, सम्पत्ति, बँटवारे से संबंधित मामलों पर एक समान कानून को बनाने एवं लागू करने की बात करता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राज्य स्तर पर इसे झारखंड एवं उत्तराखंड जैसे राज्यों में लागू करने की बात चल रही है।

    समान नागरिक संहिता क्या है? (Uniform Civil Code in hindi )

    Uniform Civil Code भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए शादी-विवाह, जमीन-जायदाद, संपति, बँटवारे, उतराधिकारी से संबंधित मामलों पर एक समान कानून को बनाने एवं लागू किए जाने की बात करता है। भारतीय संविधान के राज्य के नीति निदेशक, भाग 4, अनुच्छेद 44 में ‘समान नागरिक संहिता’  का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है-“देश पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।” 
     
    वर्तमान में भारत के विभिन्न धर्मों एवं समुदायों के पर्सनल लॉ धर्मग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित है एवं इन पर्सनल लॉ को बदलकर सभी के लिए Uniform Civil Code अर्थात एक समान कानून लागू किया जाना है।

    Uniform Civil Code (UCC)-समान नागरिक संहिता क्यों आवश्यक है?

    Uniform Civil Code : जानें समान नागरिक संहिता क्या है?
    1. भारत में सिविल पर्सनल लॉ धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं द्वारा शासित होते हैं, जिसका अर्थ है कि अलग- अलग धार्मिक समुदायों के पास शादी-विवाह, जमीन-जायदाद, सम्पत्ति, बँटवारे से संबंधित मामलों के निपटान के लिए अपने – अपने विशेष कानून हैं। अतः एक देश एक कानून होना आवश्यक है।
    2. कहा जा रहा है कि धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित पर्सनल लॉ में महिला अधिकार को महत्व नहीं दिया जाता अतः सभी नागरिकों को एक समान दर्जा प्रदान करना आवश्यक है ताकि सभी लोग समान नागरिक कानूनों द्वारा शासित हों, चाहे उनका धर्म, जाति, भाषा या समुदाय कुछ भी हो।
    3. भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी और अन्य धार्मिक समूहों के विवाह एवं तलाक, बच्चों को गोद लेने एवं संपति से संबंधित अलग-अलग पर्सनल लॉ  हैं। इनमें एकरूपता लाना आवश्यक है।

    चूंकि Uniform Civil Code का सीधा संबंध सिविल पर्सनल लॉ अर्थात न्याय विधि से जुड़ा हुआ है। अतः  पर्सनल लॉ  एवं uniform civil code के साथ -साथ भारतीय न्याय प्रणाली के तहत क्रिमिनल लॉ, सिविल लॉ की अवधारणा को समझना आवश्यक है।

    क्रिमिनल लॉ, सिविल लॉ, सिविल पर्सनल लॉ  की अवधारणा:

    uniform civil code को समझने के लिए भारतीय न्याय व्यवस्था एवं न्याय प्राणली के तहत क्रिमिनल लॉ, सिविल लॉ एवं पर्सनल लॉ को समझना आवशयक है। प्रायः हम आए दिन इन तीन तरह के लॉ को सुनते रहते हैं। क्रिमिनल लॉ, सिविल लॉ एवं पर्सनल लॉ भारतीय न्याय व्यवस्था का आधारभूत स्तम्भ है।

    क्रिमिनल लॉसिविल लॉपर्सनल लॉ
    क्रिमिनल लॉ भारत के सभी धर्मों एवं समुदाय पर एक समान रूप से लागू है। अर्थात कोई भी व्यक्ति अगर किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति हिंसा या अपराध करता है, तो अपराधी व्यक्ति को बिना उसके धर्म या समुदाय के भेदभाव किए बिना क्रिमिनल लॉ के तहत बनाए गए नियमों के तहत सजा दी जाएगी। भले ही अपराधी व्यक्ति  हिन्दू हो या मुस्लिम हो या ईसाई हो, पारसी हो या जैन हो या बौद्ध हो। 

    क्रिमिनल लॉ के तहत 1860 में अधिनियमित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) आधारशिला के रूप में कार्य करती है, इसमें किए गए अपराधों के अनुसार दंड का विधान है।
    सिविल ला के तहत व्यक्तियों, संगठनों या संस्थाओं के बीच अनुबंध का उल्लंघन, संपत्ति विवाद, पारिवारिक मामले और टॉर्ट्स (सिविल अपराध), दायित्वों, अनुबंधों, संपत्ति और अन्य नागरिक मामलों से संबंधित विवादों से निपटता है।
     
    क्रिमिनल ला के विपरीत, सिविल लो  सजा पर नहीं बल्कि विवादों को सुलझाने और पीड़ित पक्षों को उनके नुकसान की भरपाई करने पर केंद्रित रहता है। भारत में सिविल ला के तहत भारतीय अनुबंध अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम और नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) शामिल हैं।
    भारत अनेक धर्मों वाला एक विविधतापूर्ण देश है, जिनमें से प्रत्येक धर्म का  विवाह, तलाक, विरासत, उतराधिकारी  और गोद लेने जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाले अपने पर्सनल लॉ हैं जो कि मुख्य रूप से धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित है एवं विभिन्न समुदायों, जैसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख और अन्य के लिए अलग-अलग है।
    उदाहरण के लिए, हिंदू पर्सनल लॉ हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और संबंधित कानूनों द्वारा शासित होता है, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एक्ट के तहत। 

    समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के क्या फायदे हैं?

    इससे शादी-विवाह एवं तलाक संबंधित मामलों पर देश में एकरूपता बनेगी एवं महिला अधिकारों एवं महिला सशक्तिकरण को बल मिलेगा। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का लक्ष्य सभी नागरिकों के लिए बिना धार्मिक भेदभाव के एक समान कानूनी ढांचा लागू व्यक्तिगत कानूनों में निहित भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त कर दिया जाएगा एवं महिलाओं को विवाह, तलाक, जमीन -जायदाद और संपत्ति के अधिकार में समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है।

    विधि आयोग एवं समान नागरिक संहिता

    वर्ष 2023 में में 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के संबंध आम जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों विचार जानने के लिए एक सूचना जारी की थी जिससे इस विषय पर एक नई बहस आरंभ हो गयी है। बता दें कि भारत का विधि आयोग सरकार के लिए कानूनों की समीक्षा  एवं सुधार पर कार्य करता है। नोट करने योग्य है कि विधि आयोग की सिफारिशें कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।
     
    समान नागरिक संहिता लागू करने के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के पक्ष में नहीं है एवं भेदभाव है। मौजूदा पर्सनल लॉ के तहत महिला अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। अतः यूसीसी लागू किया जाना चाहिए जिससे महिला अधिकारों एवं महिला सशक्तिकरण को बल मिलेगा।

    विश्व के कई देशों में लागू है- UCC

    पाकिस्तान, आयरलैंड, पुर्तगाल, ग्रीस, फ़्रांस, सूडान, मिस्र, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, मिस्र, अमेरिका, जैसे देशों में uniform civil code का पालन किया जाता है। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए सिविल पर्सनल लॉ एक ही है और किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए कोई अलग कानून नहीं है। इन देशों में पर्सनल लॉ, क्रिमिनल लॉ, सिविल लॉ, सभी में कानून एक समान है।

    गोवा में लागू है- uniform civil code

    भारत में गोवा ही एकमात्र राज्य है जहां गोवा नागरिक संहिता के तहत समान नागरिक संहिता को सफलतापूर्वक लागू किया गया है जहां शादी-विवाह, जमीन-जायदाद, सम्पत्ति, बँटवारे से संबंधित मामलों के निपटान के लिए सभी धर्मों के लिए एक ही कानून है।

    समान नागरिक संहिता लागू नहीं करने के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि पर्सनल लॉ धार्मिक मान्यताओं एवं विश्वासों पर आधारित हैं एवं जो कि संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार दिया गया है इसीलिए इसे मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए। 

    यह भी तर्क दिया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता लागू करने से धार्मिक स्वतंत्रता और देश की सांस्कृतिक विविधता खतरे में पड़ सकती है। आइए देखते हैं कि संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित क्या प्रावधान है-

    धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मौलिक अधिकार –

    कहा जा रहा है कि Uniform Civil Code को लागू करने में  निम्नलिखित  संवैधानिक प्रावधान आड़े आते है –

    अनुच्छेद 25 से 28 के तहत मौलिक अधिकार भारत के संविधान में निहित हैं। ये अधिकार धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों से संबंधित हैं। यहां प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
     
    अनुच्छेद 25: अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता
    अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता।
    अनुच्छेद 27: किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने के लिए करों के भुगतान से मुक्ति।
    अनुच्छेद 28: पूर्णतः राज्य द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा से मुक्ति।
    इन मौलिक अधिकारों से देश के नागरिकों को बिना किसी भेदभाव या दबाव के अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता मिलती है।

    इसके अलावा भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव को रोकेगा। यह एक मौलिक अधिकार है जिसका उद्देश्य समानता को बढ़ावा देना एवं भेदभाव को रोकना है।

    इसके अलावा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्षता’ की बात कही गयी है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की मूल विशेषता माना है।

    समान नागरिक संहिता का इतिहास

    भारत में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का वास्तविक शुरुआत भारत की आजादी के बाद से ही शुरू हुआ। ब्रिटिश सरकार हिंदू एवं मुस्लिम धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ पर हस्तक्षेप न के बराबर किया। ब्रिटिश काल में ही  मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत एक्ट), 1937, पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम, 1936 एवं इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 में पास किए गए।  

    Uniform Civil Code : जानें समान नागरिक संहिता क्या है?
    image credit canva

    हिन्दू कोड बिल, 1956 

    भारत की आजादी के बाद, हिंदू कोड बिल पेश किया गया, जिसने बौद्ध, हिंदू, जैन और सिख जैसे भारतीय धर्मों के पर्सनल लॉ को एक ही नियम अर्थात  हिंदू कोड बिल के तहत रखा गया  लेकिन ईसाइयों, यहूदियों, मुसलमानों और पारसियों को हिन्दू कोड बिल से अलग रखा गया।  

    हिंदू, बौद्ध, जैन एवं सिख धर्म के विवाह, तलाक, उतराधिकारी  एवं संपति से संबंधित पर्सनल लॉ हिंदू कोड अर्थात हिन्दू विवाह अधिनियम एवं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संचालित किए जाते है।इस बिल के जरिए ही महिलाओं की सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया गया एवं महिलाओं को संपति का अधिकार दिया गया।   

    मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत एक्ट), 1937 

    विवाह, तलाक, उत्तराधिकारी से संबंधित मामलों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत एक्ट), 1937 आधार ग्रंथ है।

    इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 

    ईसाइयों के लिए इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट बनाया गया है जिसके तहत विवाह एवं अन्य पारिवारिक मामलों का निपटान किया जाता है।  

    पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम, 1936 

    पारसियों के लिए पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम  लागू  किए गए है। 

    ट्रिपल तलाक बिल (2019):

    सिविल पर्सनल लॉ में सुधार हेतु ट्रिपल तलाक बिल, 2019 एक महतूपूर्ण कदम है। सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया, जिसमें तत्काल ट्रिपल तलाक को ग़ैर क़ानूनी एवं अपराध घोषित किया गया।

    इस कानून से मुस्लिम महिलाओं को मनमानी तलाक प्रथाओं से सुरक्षा प्रदान करना है जिसमें सिर्फ़ तीन बार तलाक़ कहकर मुस्लिम महिलाओं को तलाक़ दे दिया जाता था।

     क्या भारतीय संविधान में Uniform Civil Code का जिक्र है? 

    जी हाँ। भारतीय संविधान के राज्य के नीति निदेशक, भाग 4, अनुच्छेद 44 में ‘समान नागरिक संहिता’  का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 44 के अनुसार,

    “देश पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।” 

    “The State shall endeavour to secure for the citizens a uniform civil code throughout the territory of India.”

    राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत में गौर करने लायक बात यह है कि इन्हें वे किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं किए जा सकते।
    भारत में, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) एवं राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत (डीपीएसपी) से जुड़े हुए विषय हैं।  राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भारतीय संविधान के भाग IV के अनुच्छेद 36 से 51 में निहित हैं जिसमें आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण नीतियों का समावेश है

    कहा जाता है कि ये सिद्धांत न्यायपूर्ण एवं समानता पर आधारित समाज की स्थापना हेतु  देश के शासन के लिए सरकार को दिशानिर्देश प्रदान करते हैं।

    Uniform Civil Code के बारे में माननीय सुप्रीम कोर्ट के विचार

    भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई महत्वपूर्ण निर्णय और टिप्पणियाँ में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की अनिवार्यता का जिक्र किया हैं। इस संबंध में सबसे प्रथम स्थान पर शाह बानो मामले का उदाहरण दिया जाता है।

    Uniform Civil Code के संबंध में शाह बानो केस का महत्व :

     1985 में, ऐतिहासिक शाह बानो मामले ने UCC के मुद्दे को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया था। इस ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया, जो तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता मांग रही थी। अदालत ने माना कि मुस्लिम महिलाओं को कोड ओफ़ क्रिमिनल प्रोसिड्योर की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मुस्लिम महिला, शाहबानो, इद्दत की अवधि (तलाक के बाद प्रतीक्षा अवधि) से परे भरण-पोषण अर्थात गुजारा भत्ता राशि दी जाए। इस निर्णय ने से पूरे देश एक समान क़ानून  को लागू करने की बहश शुरू हो गयी। 

     Uniform Civil Code के संबंध में सरला मुद्गल बनाम भारत संघ : 

    इस मामले में, यह प्रश्न सामने आया कि हिंदू नियमों के तहत शादीशुदा व्यक्ति क्या इस्लाम धर्म अपनाकर दूसरी शादी कर सकता है इस पर शीर्ष अदालत ने निर्णय दिया कि हिंदू नियमों के तहत हुए विवाह की समाप्ति हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत ही समाप्त किया जा सकता है एवं इस प्रकार इस्लाम धर्म अपनाकर दूसरी शादी करना भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध माना जाएगा। 

    इसके साथ भारत में समान नागरिक संहिता न होना गम्भीर चिंता का विषय है। अदालत ने कहा कि समान नागरिक संहिता की कमी से कानूनी अनिश्चितता पैदा होती है और इससे महिला अधिकार एवं  न्याय और समानता का अधिकार कमजोर होता है। 

    निष्कर्ष 
    कहा जा सकता है कि समान नागरिक संहिता-UCC को लागू करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है एवं यह एक संवेदनशील मुद्दा भी है। समान नागरिक संहिता-यूसीसी सीधे धार्मिक पर्सनल लॉ से जुड़ा हुआ है। भारत में क्रिमिनल लॉ अर्थात अपराध से जुड़े मामले एवं उन निर्धारित सजा सभी के लिए बराबर है।

    यों कह सकते है कि समान नागरिक संहिता तो है पर विभिन्न धर्मों से जुड़े पर्सनल लॉ में समानता नहीं है। संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है, पर इसे लागू करना एक विवादास्पद मुद्दा है। UCC शुरू करने के लिए, हमें ऐसे विधि की आवश्यकता होगी जो पर्सनल लॉ के साथ सभी धार्मिक रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक तत्वों को ध्यान में रखे।

    अन्य जानकारी –

    1-जाने जाह्नवी कपूर का जीवन परिचय, उम्र, नेट वर्थ, फिल्में एवं परिवार के बारे में। (2024)

    2-कंगना रनौत का जीवन परिचय, फिल्में, परिवार, कुल सम्पत्ति, पुरस्कार एवं उपलब्धियाँ (Kangana Ranaut biography in Hindi)

    3-फिल्म अभिनेता राम चरण की जीवनी, आनेवाली फ़िल्में, नेटवर्थ एवं परिवार।

    jivanvrit.com
    jivanvrit.comhttps://jivanvrit.com
    जीवनवृत्त पत्रिका(www.jivanvrit.com) एक हिंदी भाषा में प्रस्तुत की गयी एक ब्लॉग वेबसाइट है । यह ब्लॉग कला, संस्कृति एवं मनोरंजन पर आधारित है।पत्रिका के विषय एवं इससे जुड़े किसी भी कंटेंट पर कोई प्रश्न हो तो मुझे Contact us मेनू के माध्यम से पूछ सकते हैं।

    Table of contents

    Read more

    Popular Post