Rama Ekadashi Katha 2024: हिंदू धर्म में रमा एकादशी पर्व का विशेष महत्व है तथा यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है। रमा एकादशी का यह पर्व हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है तथा यह पर्व प्रत्येक वर्ष दीपावली के ठीक चार दिन पहले मनाया जाता है। रमा एकादशी का पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है और मान्यता यह भी है कि रमा एकादशी का व्रत करने से हमें पापों से मुक्ति मिलती है और हमें बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
हिंदू शास्त्रों में रमा एकादशी पर्व का बहुत अधिक महत्व है तथा इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत करने से हमारे जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा हम पर बनी रहती है।
रमा एकादशी व्रत कब है?
रमा एकादशी का व्रत जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है तथा साल 2024 में रमा एकादशी का व्रत 28 अक्टूबर दिन- सोमवार को रखा जाएगा।
पर्व | रमा एकादशी व्रत |
कब मनाया जाता है? | कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को। |
2024 में रमा एकादशी व्रत कब है? | 28 अक्टूबर, दिन- सोमवार |
रमा एकादशी का पारण कब है? | 29 अक्टूबर, दिन- मंगलवार |
पारण का शुभ मुहूर्त | सुबह 06:31 बजे से लेकर 08:44 बजे तक का है। |
अन्य नाम | रंभा एकादशी तथा कार्तिक कृष्ण एकादशी |
रमा एकादशी व्रत के लिए आवश्यक सामाग्री:
रमा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है तथा इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए रोली, चंदन, नैवेध, अक्षत, फूल, फल, दीप तथा बात्ती की आवश्यकता पड़ती है।
रमा एकादशी व्रत की पूजा की विधि-विधान:
- रमा एकादशी व्रत के दिन आप सुबह उठ कर स्नान कर ले और साफ तथा स्वच्छ कपड़े धारण करे।
- अब आप अपने मंदिर तथा पूजा स्थल को साफ कर ले और उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करे।
- अब एक लौटे में जल भरकर कलश स्थापित करे और भगवान विष्णु को रोली, चंदन, नैवेध तथा फूल अर्पित करे तथा भगवान विष्णु को भोग में फल के साथ-साथ तुलसी पत्ता भी अर्पित करे।
- उसके बाद भगवान विष्णु को धूप तथा अगरबत्ती दिखाए और घी का दीपक जलाते हुए उनके समक्ष रखे और अब विष्णु पुराण की कथा जरुर सुने।
रमा एकादशी व्रत पारण:
रमा एकादशी व्रत का पारण द्वदशी तिथि ख़त्म होने से पहले किया जाता है। ऐसे में रमा एकादशी व्रत का पारण 29 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 31 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन सुबह 08 बजकर 44 मिनट पर होगा अर्थात् आपके पास रमा एकादशी व्रत का पारण करने की कुल अवधि दो घंटे का है।
रमा एकादशी व्रत से जुड़ी कथा: (Rama Ekadashi Katha 2024)
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में मुचुकंद नाम का एक राजा था और इनकी एक पुत्री थी तथा इनकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था। चंद्रभागा को पूजा-पाठ करना काफी पसंद था तथा चंद्रभागा एक परम धर्मात्मा थी।
अन्य नगर में एक ओर राजा थे और इस राजा का नाम चंद्रसेन था तथा चंद्रसेन राजा को धार्मिक कार्यों पर काफी विश्वास था और ये अपने सभी कार्यों को श्रद्धा भाव से करते थे। चंद्रसेन राजा का एक बेटा था तथा इनके बेटे का नाम शोभन था। शोभन को भूख बर्दाश्त नहीं होती थी जिसके कारण ये कभी व्रत नहीं रख पाता था।
एक दिन दोनों प्रतापी राजा मुचुकंद तथा चंद्रसेन का मिलन हुआ और इस मिलन के दौरान चंद्रभागा तथा शोभन का रिश्ता तय हो गया तथा कुछ दिनों बाद इन दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ।
विवाह के बाद कार्तिक के महीने में चंद्रभागा अपने पति शोभन के साथ अपने मायके रहने के लिए आई तथा इसके अगले दिन ही रमा एकादशी का पर्व था। चंद्रभागा को व्रत तथा पूजा-पाठ करना काफी पसंद था, इसलिए चंद्रभागा ने अपने पति शोभन को भी रमा एकादशी का व्रत रखने को कही, लेकिन शोभन अपनी पत्नी चंद्रभागा का यह बात सुन कर आश्चर्य में पड़ गया और अपनी पत्नी को घबराते हुए यह बताता है कि वह रमा एकादशी का व्रत नहीं कर सकता है क्योंकि वह भूखा नहीं रह पाता है।
चंद्रभागा अपने पति शोभन को यह बताती है कि रमा एकादशी का व्रत सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं बलकी जीव-जंतु भी रखते है और इस दिन कोई भी हमारे यहाँ जल यापन तथा भोजन ग्रहण नहीं करता है तथा शोभन अपनी पत्नी चंद्रभागा का यह बात सुनकर रमा एकादशी का व्रत रखने के लिए तैयार हो जाते है और इस तरह शोभन अपनी पत्नी चंद्रभागा के साथ रमा एकादशी का व्रत रखते है, लेकिन शोभन को भूखे रहने की आदत नहीं थी जिसकी वजह से इनकी तबियत बिगड़ने लगती है और व्रत पारण से पहले ही शोभन की मृत्यु हो जाती है।
इस तरह चंद्रभागा अपने पति शोभन को वापस पाने के लिए रमा एकादशी व्रत करने का अखंड निर्णय लेती है और यह दृंढ़ संकल्प करती है कि रमा एकादशी व्रत से भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करेगी और अपने पति को भी वापस प्राप्त करेगी। इस तरह चंद्रभागा कई वर्षों तक रमा एकादशी का अखंड व्रत रखने लगी।
कुछ सालों बाद भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी चंद्रभागा को दर्शन दिए और वे शोभन को पुनः जन्म कर चंद्रभागा को उनके पति वापस लौटा दिए।
इस तरह कार्तिक मास के रमा एकादशी के दिन चंद्रभागा को उनके पति शोभन का पुनः जन्म का वरदान प्राप्त हुआ और तभी से ही महिलायें अपनी शादी-शुदा जीवन तथा पति की सलामती के लिए रमा एकादशी का व्रत रखने लगी।
रमा एकादशी का महत्व:
- रमा एकादशी का यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है तथा इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-उपासना करने से हमें हमारे जीवन में सुख-शांति तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता यह भी है कि रमा एकादशी का व्रत करने पर कामधेनु गाय को घर में रखने के बराबर है।
- रमा एकादशी व्रत के दौरान भगवान विष्णु के साथ-साथ तुलसी माता की पूजा का विशेष महत्व है और इस दिन माता तुलसी के समक्ष घी के दीपक जलाए जाते है और कहा भी जाता है कि जो व्यक्ति रमा एकादशी का व्रत करता है। भगवान विष्णु उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते है।
- रमा एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है तथा मान्यता यह भी है कि विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से हमारे सभी पापों का नाश होता है।
- रमा एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है तथा इस दिन ग़रीबों और जरुरत मंदों को दान दिया जाता है और रमा एकादशी के दिन दान करने से हमें पुण्य की प्राप्ति होती है।
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