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    रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय, रचनाएँ, परिवार, पुरस्कार एवं उपलब्धियां (Rabindranath Tagore ki Jivani)

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    रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय- नोबल पुरस्कार विजेता विश्व कवि, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कवि होने के साथ -साथ दार्शनिक, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार,  कथाकार, संगीतकार, चित्रकार, दार्शनिक, समाज सुधारक, शिक्षाविद्, भाषाविद थे। वर्ष 2024 में देश उनकी 163वीं जयंती मना रहा है।

    गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जयंती (Rabindranath Tagore Jayanti)

    रवींद्रनाथ टैगोर जयंती (Rabindranath Tagore Jayanti 2024) – वर्ष 2024 में रवींद्रनाथ टैगोर जयंती 8 मई, 2024 को मनाई जा रही है। यह उनकी 163वीं जयंती है। रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म हिन्दू कैलेंडर के अनुसार बैशाख माह की 25 तारीख को हुआ था। जबकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनकी जन्मतिथि 7 मई, 1861 को कोलकाता में जोरासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। 

    उनकी याद में इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे रवींद्र संगीत, कविताएं, नृत्य एवं नाटक, आदि का आयोजन किया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आज पूरी दुनिया उन्हें विश्वकवि, कविगुरु एवं गुरुदेव के नाम से जानती है। साहित्य एवं कला में उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें वर्ष 1913 में उन्हें साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

    गुरुदेव रवींद्रनाथ की रचनाओं की खासियत यह है कि उनमें मानव जीवन के सम्पूर्ण दर्शन मिलता है औ उनकी रचनाओं मानवतावाद सबसे बड़ा संदेश है। उन्होंने जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में व्याख्यान दिए। रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी (जयंती ) पर आधारित इस ब्लॉग में  साहित्य, संगीत और कला को पूरे विश्व से परिचित करवाने रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी एवं साहित्यिक गतिविधियों पर प्रकाश डाला गया है।

    रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय (Rabindranath Tagore biography) 

    नाम (मूल नाम)रवीन्द्रनाथ ठाकुर 
    उप-नाम विश्वकवि, कविगुरु, टैगोर एवं गुरुदेव 
    जन्म 7 मई, 1861
    जन्मस्थान जोरासांको, ठाकुरबाड़ी, कलकत्ता, पश्चिम बंगाल
    पिता का नाम श्री देवेंद्रनाथ टैगोर 
    माता का नाम  श्रीमती शारदा देवी
    स्कूल विद्यालय सेंट ज़ेवियर स्कूल, लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय
    पत्नी का नाम मृणालिनी देवी
    विवाह तिथि 1883, 9 दिसंबर 
    पुत्र एवं पुत्रियाँरथींद्रनाथ टैगोर, शमिंद्रनाथ टैगोर, रेणुका देवी, माधुरीलता देवी, मीरा देवी
    उपाधि टैगोर, नाइटहुड (सर), ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय  से डॉक्टरेट की उपाधि, विश्वकवि, कविगुरु एवं गुरुदेव 
    मृत्यु 7 अगस्त 1941 (आयु 80)
    विश्व प्रसिद्ध पुरस्कार
     
    वर्ष 1913 में ‘गीतांजलि’ के लिए में नोबेल पुरस्कार, नाइटहुड, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय  से डॉक्टरेट की उपाधि
    रचनाएँ साहित्य की सभी विधाओं पर रचनाएँ : गीतांजलि, घरे-बैरे, भरत भाग्य बिधाता, गोरा, जन गण मन, रवींद्रसंगीत, बांग्लादेश का राष्ट्र-गान- ‘आमार सोनार बांग्ला’, भारत के राष्ट्रगान – जन गण मन अधिनायक जय हे 
    भाषाबंगाली, अंग्रेजी
    नागरिकता भारतीय 
    राज्य  पश्चिम बंगाल, भारत 

    जानें गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के माता-पिता कौन थे ?

    गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की माता का नाम श्रीमती शारदा देवी और पिता का नाम श्री देबेंद्रनाथ टैगोर था। देवेन्द्रनाथ ठाकुर बंगाल के एक सम्पन्न एवं प्रसिद्ध जमींदार थे।  रवींद्रनाथ की माँ, शारदा देवी, एक धार्मिक महिला थी।

    गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की शिक्षा कहाँ एवं किस परिवेश में हुई थी? 

    टैगोर को पारंपरिक स्कूली शिक्षा में कोई खास रुचि नहीं थी।  उनकी स्कूली शिक्षा उस समय के प्रसिद्ध  सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। बचपन में स्कूल प्रायः न के बराबर ही जाते थे। टैगोर की शिक्षा घर पर हुई थी एवं 12 वर्ष की आयु में ही उन्होने साहित्य सृजन शुरू कर दिया था। सत्रह वर्ष की आयु तक उन्होंने कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की थी।

    बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया, एक वर्ष तन उन्होने अङ्ग्रेज़ी भाषा की शिक्षा ग्रहण की लेकिन पढ़ाई पूरी किए बिना ही पढ़ाई छोड़ दी।

    उनके पिता का इरादा उन्हें बैरिस्टर बनने का था, इसलिए उन्हें 1878 में इंग्लैंड भेज दिया गया था।  बाद में, उन्हें लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में नामांकित किया गया।  लेकिन उन्होंने एक बार फिर अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खुद शेक्सपियर के कई नाटकों का अध्ययन किया। अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का अध्ययन करने के बाद, वह भारत लौट आए।

    गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का परिवार

    रवीन्द्रनाथ परिवार में सबसे छोटा थे।  उनका परिवार शिक्षा, कला एवं संस्कृति के लिए पूरे मुहल्ले में प्रसिद्ध था।   रवीन्द्रनाथ ठाकुर की भी परिवरीश  शिक्षा, कला  एवं संस्कृति, वेद और उपनिषदों वाले पारिवारिक माहौल  में हुई थी। अपने भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे। टैगोर की मां की मृत्यु बाल्यावस्था में ही हो गयी थी, इस घटना ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला। 

    रवीन्द्रनाथ को कविता लिखने का शौक कब चढ़ा?

    बचपन से ही उन्हें कविताएं लिखने का शौक था कहा जाता है कि 8 वर्ष की आयु में उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कीं और सोलह वर्ष की उम्र में ही  छद्म नाम भानुसिम्हा के तहत अपनी कविताओं को प्रकाशित भी कर दिया। वर्ष 1877 में उन्होंने लघुकथा ‘भिखारिनी’ का प्रकशन किया जो बंगला भाषा में लघुकथा की शुरुआत मानी जाती है और वर्ष 1882 में उन्होने अपनी कविता संग्रह ‘संध्या संगीत’ लिखी।

    गुरुदेव ने कालिदास की शास्त्रीय कविता से प्रभावित होकर अपनी शास्त्रीय कविताएँ भी लिखी थी। उनकी बहन स्वर्णकुमारी भी एक प्रसिद्ध साहित्यकार थीं। ब्रिटिश भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की परीक्षा पास करने वाले सत्येन्द्रनाथ टैगोर रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे।  

    मृणालिनी देवी एवं रवीन्द्रनाथ टैगोर का विवाह

    22 वर्ष की उम्र में टैगोर की शादी 1883 में मृणालिनी देवी से हुई थी। मृणालिनी देवी से टैगोर की शादी उनके परिवारों द्वारा तय की गई थी।  उनके पाँच पुत्र एवं पुत्रियाँ थी। रेणुका टैगोर, समिंद्रनाथ टैगोर, सुशीला टैगोर, रतींद्रनाथ टैगोर, माधुरीलता टैगोर, टैगोर का अपने बच्चों के साथ घनिष्ठ संबंध था, और वे अक्सर उनके लिए कविताएँ और कहानियाँ लिखते थे। टैगोर परिवार के अधिकतर सदस्य  साहित्य, संगीत और सामाजिक सुधार, लोक सेवा आदि गतिविधियों में शामिल थे।

    रवीन्द्रनाथ टैगोर एवं शांतिनिकेतन  

    चूंकि स्कूलों का नीरस परिवेश उन्हें पसन्द नहीं था। यही कारण था कि स्कूलों व कॉलेजों में वे न पढ़ सके। परन्तु स्व-अध्ययन के प्रति उनकी रुचि बढ़ती ही गई। वे एसी शिक्षा के पक्षधर थे जहां बच्चे खुशी से जाए, जहां बच्चे स्वतंत्र हो, स्कूल के बंद वातावरण की अपेक्षा प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा दिया जा सके और बच्चों की सृजनशीलता को बढ़ावा मिले।

    वर्ष 1901 में टैगोर ने मुख्य शहर कलकत्ता से सैकड़ों किलोमीटर की दूर शांतिनिकेतन की स्थापना की।  उन्होंने भारतीय और पश्चिमी शिक्षा म संस्कृति अच्छी तथ्यों को ग्रहण कर इसे शांतिनिकेतन की एवं शिक्षा व्यवस्था में लागू किया. शांतिनिकेतन में कक्षाएं प्राकृतिक वातावरण एवम पेड़ों की छावं में आयोजित की जाती थीं जिसकी कल्पना करते हमारा मन रोमांचित हो जाता है। तत्कालीन नीरस शिक्षा व्यवस्था से दूर शांतिनिकेतन की शिक्षा व्यवस्था का एक नवीनतम उदाहरण था।

    वर्ष 1921 में शांतिनिकेतन को विश्वभारती विश्वविद्यालय बना दिया गया। शांतिनिकेतन में साहित्य, कला, संगीत और नृत्य के साथ-साथ विज्ञान की भी शिक्षा दी जाती है। 

    विश्व भारती’ – शांतिनिकेतन को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा

    विश्व भारती’ – शांतिनिकेतन को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा वर्ष 1951 में मिला। विश्व-भारती को संसदीय अधिनियम द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं “राष्ट्रीय महत्व का संस्थान” का दर्जा दिया गया।

    रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएं

    टैगोर ने अपनी मातृभाषा बांग्ला में लघु कहानियाँ, नाटक, उपन्यास, धर्म, शिक्षा, दर्शन, राजनीति और साहित्य जैसे विविध विषयों पर जमकर साहित्य की रचनाएं की। उनकी कविताओ की संख्या हज़ार से भी ऊपर है  और दो हज़ार से भी अधिक गीतों की रचना की। इनके अलावा उन्होंने बहुत सारे निबंध लिखे।

    रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय

    जब टैगोर सिर्फ युवा थे, तब उन्होंने लघु कथाएँ लिखना शुरू किया। उनकी पहली प्रकाशित रचना “भिखारिणी” थी। उनकी रचनाओं का मूल लक्ष्य मानवतावाद एवं मनुष्य सत्य को बढ़ावा देना है। रवींद्रनाथ 15वीं और 16वीं शताब्दी के शास्त्रीय कवियों से प्रभावित थे, जिनमें रामप्रसाद सेन और कबीर शामिल थे, जिसकी झलक उनकी रचनाओं में देखि जा सकती है।

    गीतांजलि के लिए उन्हें वर्ष 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया। उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ- ‘काबुलीवाला’, ‘गोरा’, ‘गीतांजलि’ (कविता), बालाका, पुरोबी, सोनार तोरी, आदि हैं। यहां उनकी प्रमुख रचनाओं की संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है:-

    रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियाँगल्पगुच्छ,  घर वापसी 
    रवीन्द्रनाथ टैगोर के संस्मरणजीवनस्मृति, रूस के पत्र, छेलेबेला
     
    रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविता एवं काव्य संग्रहगीतांजलि, सोनार तरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गीतिमाल्य, वलाका;
    रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाटकचित्रांगदा, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा, रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर,  राजा ओ रानी
    रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास गोरा, घरे बाइरे, चोखेर बाली, नष्टनीड़, योगायोग, नौका डूबी आदि
    प्रसिद्ध लघु कथाएँ“खुदिता पासन,” “अट्टुजू,” “हैमंती,” “काबुलीवाला,” और “मुसलमानिर गोलपो।”

    रवींद्र संगीत के जनक थे -रवीन्द्रनाथ टैगोर

    रवींद्रनाथ टैगोर ने संगीत एक अलग ही विधा की रचना की जिसे दुनिया आज रवीन्द्र संगीत के नाम से जानती है। उन्होंने 2000 से भी ज्यादा गीतों की रचनाएं की। रवींद्र संगीत को शास्त्रीय संगीत का दर्जा भी मिला हुआ है। 

    गीताबितान क्या है?

    उनके 2,232 गीतों का संग्रह, ‘गीताबितान’ ( ‘गीतों का बगीचा’) के नाम से प्रसिद्ध है।

    दो प्रमुख देशों के राष्ट्रगान के रचियता थे–रवीन्द्रनाथ टैगोर

    भारत एवं बांगलादेश के राष्ट्रगान के रचनाकर-रवींद्रनाथ टैगोर भारत के राष्ट्रीय गान ‘जन-गण-मन’ गान के रचियता है जिसकी रचना उन्होने वर्ष 1911 में की। रवींद्रनाथ टैगोर बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान “आमार सोनार बांग्ला”  के रचियता भी हैं।

    रवींद्रनाथ टैगोर -पुरस्कार एवं उपलब्धियां  

    ‘गीतांजलि’ पर विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार 

    सन् 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को  ‘गीतांजलि’ पर विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार मिला और इससे उनका यश सारे संसार में फैल गया। उनकी रचनाएँ भी पश्चिमी देशों की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं।  उन्होंने अपनी रचनाओं के अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित कराए। 

    नाइटहुड (सर) की उपाधि 

    3 जून 1915 को रवींद्रनाथ टैगोर को ब्रिटिश सरकार ने अंग्रेजो के  सर्वोच्च सरकारी सम्मान नाइटहुड  की उपाधि से नवाजा.  नाइटहुड ब्रिटिश सरकार का सर्वोच्च सम्मान है। ब्रिटिश सरकार की ओर से यह संम्मान कला, विज्ञान, साहित्य, चिकित्सा आदि के क्षेत्र महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया जाती है।

    रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1919 में, “जलियांवाला बाग हत्याकांड” से दुखी होकर नाइटहुड की उपाधि ब्रिटिश सरकार को वापस कर दिया।

    ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय  से डॉक्टरेट की उपाधि

    वर्ष 1940 में, “ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी” ने उन्हें शांतिनिकेतन में ही डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधि से नवाजा।

    महात्मा गांधी द्वारा ‘गुरुदेव’ की उपाधि 

    स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी महात्मा गाँधी उनका बड़ा सम्मान करते थे और उनको ‘गुरुदेव’ कहा करते थे। बाद में रवीन्द्रनाथ ‘गुरुदेव’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। । 

    Rabindranath Tagore Quotes : रवींद्रनाथ टैगोर के प्रेरक विचार 

    (हिन्दी में अनुवाद)

    1. ‘आप केवल खड़े होकर और समुद्र को देखते हुए समुद्र को पार नहीं कर सकते हैं’
    2. ‘तितली महीने नहीं बल्कि क्षण गिनती है और उसके पास पर्याप्त समय होता है।’
    3. ‘यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजा बंद कर देते हैं, तो सच्चाई बंद हो जाएगी।’
    4. ‘हमे खतरों से बचने के लिए प्रार्थना नहीं करनी चाहिए, बल्कि उनका निडरता से सामना करना चाहिए।’
    5. ‘यदि आप इसीलिए रोते हैं क्योंकि सूर्य (प्रकाश) आपके जीवन से बाहर चला गया है, तो आपके यह आँसू आपको सितारों को देखने से रोकेंगे।’
    6. ‘वो व्यक्ति जो दूसरों की भलाई करने में अत्यंत व्यस्त रहता है, वह खुद के भलाई के लिए समय नहीं निकाल पाता।’

    भारत ही नहीं विश्व में रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। 80 वर्ष की आयु में 8 अगस्त 1941 को उनका निधन हो गया। बहु-प्रतिभाशाली व्यक्तित्व रवींद्रनाथ टैगोर के निधन से भारत सहित  सारे विश्व में शोक मनाया गया। कहने की आवश्यकता नहीं है कि हम सब भारतवासियों का उन्होंने विश्व में मां सम्मान बढ़ाया एवं उसके लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे। भारतीय साहित्य, संगीत, कला, दर्शन, शिक्षा और सामाजिक सुधार में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया. मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी रचनाओं की गूंज सुनाई देती है । सभी भाषाओं में उनकी रचनाओं के अनुवाद किया गया है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की जयंती पर उन्हें कोटि -कोटि नमन।

    गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर परअक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

    Q टैगोर को नोबेल पुरस्कार कब एवं किसी रचना पर मिला?

    उत्तर. कवि रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार उनके काब्य संग्रह ‘गीतांजली ‘ पर मिला।

     Q रवींद्रनाथ टैगोर क्यों प्रसिद्ध हैं?

    उत्तर. रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले गैर-यूरोपीय लेखक थे। नोबल पुरस्कार प्राप्त होने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर उन्हें ख्याति मिली।
     

    Q टैगोर ने किस भाषा में लिखा था?

    उत्तर. बंगला भाषा।

    Q रवींद्रनाथ टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कविता कौन सी है?

    उत्तर. गीतांजलि।

    Q रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि क्यों लौटा दिया ?

    उतर। रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1919 में, “जलियांवाला बाग हत्याकांड” से दुखी होकर नाइटहुड की उपाधि ब्रिटिश सरकार को वापस कर दिया। 

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