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    कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद : जीवनी, जयंती, रचनाएँ, कहानियाँ एवं उपन्यास (Munshi Premchand ka jeevan parichay)

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    मुंशी प्रेमचंद की जीवनी: हिंदी साहित्य में कथा सम्राट, उपन्यास सम्राट, अगर किसी को कहा जाता है तो वह मुंशी प्रेमचंद ही हैं। प्रेमचंद जी ने साहित्य की हर एक विधा अर्थात् कहानी, नाटक, उपन्यास, बाल साहित्य, पत्रों की समीक्षाएँ एवं सम्पादन, सम्पादकीय आदि पर लेखन कार्य किया था। इन्होंने अपना लेखन कार्य हिंदी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओँ में लिखा है। हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रेम चंद द्वारा रचित साहित्य तथा उनके काल को ‘प्रेम चंद युग’ के नाम से जाना जाता है। इनकी उपन्यास लेखन की कला से प्रभावित होकर बंगला के महान लेखक श्री बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी।

    मुंशी प्रेमचंद की जीवनी पर एक संक्षिप्त दृष्टि (Munshi Premchand ka jeevan parichay)

    नाममुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, धनपत राय
    बचपन का नामधनपत राय
    अन्य नामनवाब राय
    जन्म31 जुलाई, 1880
    जन्म स्थान बनारस के पास लमही नामक गाँव में
    पिता अजायब लाल
    पिता का पेशाडाकघर में मुंशी का कार्य करते थे.
    माता आनंदी देवी
    पत्नी शिवरानी देवी
    प्रेमचंद के पुत्र एवं पुत्री का नामपुत्र- 1)अमृत राय 
          2)श्री पथ राय 
    पुत्री-  कमला देवी 
    प्रेमचंद के नाटक संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी (प्रेमचंद ने केवल 3 ही नाटक लिखे हैं।)
    प्रेमचंद के कहानी मानसरोवर, नमक का दारोग़ा(1913) सज्जनता का दंड (1916) ईश्वरीय  न्याय (1917) दुर्गा का मंदिर (1917)
    प्रेमचंद के उपन्यास गोदान, ग़बन, सेवासदन, निर्मला, प्रेमाश्रम
    प्रेमचंद की रचनाओं का मूल विषयगाँव, ग्रामीण जीवन, समाज एवं किसान जीवन, राष्ट्रीय चेतना,
    भाषा ज्ञानहिंदी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी
    देहांत56 साल के उम्र में 8 अक्टूबर 1936 

    कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जीवनी (Munshi Premchand ka jeevan parichay )

    प्रेम चंद का जन्म  31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के पास लमही नामक गाँव में हुआ था। प्रेमचंद का मूल एवं वास्तविक नाम धनपत राय था। लोग उन्हें नवाब के नाम से भी बुलाते थे।

    प्रेमचंद जयंती कब और क्यों मनाई जाती है?

    प्रत्येक वर्ष 31 जुलाई को प्रेमचंद जयंती के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन प्रेमचंद को नमन कर उनके साहित्य को याद किया जाता है और इस दौरान कई जगहों पर उनके द्वारा रचित नाटक तथा कहानियों पर  कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

    प्रेमचंद के माता -पिता का संक्षिप्त परिचय

    प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब लाल था जो  डाकघर में मुंशी का कार्य करते थे. प्रेमचंद के माता का नाम आनंदी देवी थी जो सुंदर, सुशील तथा एक गृहणी थी तथा प्रेमचंद के आठ वर्ष के उम्र में ही इनकी माता का देहांत हो गया।

    प्रेमचंद की शिक्षा:

    प्रेमचंद को हिंदी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओं का ज्ञान था। पर वे शुरू में हिंदी नहीं जानते थे एवं अपने बचपन के लगभग 8 वर्षों तक फ़ारसी का ही अध्ययन किया। 13-14 साल की उम्र से वे हिंदी की ओर उन्मुख हुए। 17 वर्ष की आयु तक इनके पिता का भी देहांत हो चुका था। परिवार की ज़िम्मेदारी का बोझ प्रेमचंद के कंधों पर ही था।

    प्रेम चंद का दैयनीय अवस्था बहुत ही खराब थी तथा उनके माता -पिता के जाने के बाद  प्रेम चंद को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। प्रेम चंद जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी तथा इस गरीबी अवस्था में भी उन्होंने अपने पढ़ाई को जारी रखा। प्रेमचंद पढ़ाई में बहुत ही तेज तथा अव्वल छात्र थे तथा उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर अध्यापक की नौकरी करना प्रारभ किये।

    अध्यापक की नौकरी के लिए प्रेमचंद को 18 रुपए का वेतन मिला करता था. वे अपने काम के प्रति बहुत ही सजग थे तथा वे नौकरी के साथ-साथ अपने पढ़ाई को भी जारी रखा. बाद में इनकी नियुक्ति ज़िला सरकारी स्कूल में हो गयी। प्रेम चंद बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण किए एवं साथ में इलाहाबाद टीचर ट्रेनिंग विद्यालय से शिक्षक बनने का ट्रेनिंग लिए।

    प्रेम चंद का वैवाहिक जीवन कैसा था?

    प्रेम चंद की पहली शादी 15 साल के उम्र में ही हो गई तथा इनका वैवाहिक जीवन खुशहाल नही था। बाद में इनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो जाता है। 1906 में प्रेम चंद ने एक विधवा लड़की से दोबारा शादी की जिनका नाम शिवरानी देवी था तथा शिवरानी देवी के साथ इनके तीन बच्चे हुए।

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    प्रेम चंद के दो पुत्र तथा एक पुत्री थे.

    प्रथम पुत्र- अमृत राय जो एक लेखक थे 

    दृतिय पुत्र- श्री पथ राय 

     बेटी- कमला देवी 

    ‘प्रेमचंद’ नाम कैसे पड़ा ?

    उपन्यास के सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद ने कई साहित्य की रचना की थी। कहा जाता है कि उनका यह नाम(प्रेमचंद ) उर्दू के लेखक दया नारायण निगम ने दिया था, तब से वह प्रेमचंद नाम से लेखन कार्य करने लगे।  

    प्रेमचंद का साहित्य -मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ

    प्रेमचंद अत्यंत ही सरल एवं सहज स्वभाव के व्यक्ति थे। इस सरलता एवं सहजता को उन्होंने अपनी लेखनी में भी उतारा। उनका रचा हुआ साहित्य समाज के हर व्यक्ति पढ़ता है, भले ही वह कोई गरीब हो या कोई रईस। प्रेम चंद  अपने जीवन काल में 14 उपन्यास तथा 300 से अधिक कहानियां लिखे। प्रेम चंद हिंदी साहित्य के प्रमुख रचनाकार है तथा इनके लेखन से हिंदी उपन्यास को एक नई राह तथा दिशा मिली।

    उन्होंने सर्वप्रथम साहित्य को उर्दू में लिखना शुरू किए। उनका पहला उपन्यास “हम ख़ुर्मा और हम सबाब” 1907 ईसवी में प्रकाशित हुआ जो एक समाजिक उपन्यास है।

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    सोजे वतन कहानी संग्रह

    यह प्रेम चंद की पहली कहानी है जो 1909 में प्रकाशित हुई थी तथा यह कहानी उर्दू में लिखा गया था. इस कहानी के माध्यम से  प्रेम चंद  ने देशभक्ति को दुनिया की अनमोल वस्तु माना तथा इस कहानी के द्वारा प्रेम चंद ने देश भक्ति की भावना व्यक्त किया है। चूँकि यह कहानी ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध लिखी गयी थी, इसीलिए अंग्रेजों ने इस कहानी संग्रह पर पाबंदी लगा दी थी। कहानी का एक कथन नीचे दिया गया है-

    “खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है”.

    सोजे वतन में पाँच कहानी संकलित है जो निम्न है 

    • 1) सांसारिक प्रेम ओर देश प्रेम 
    • 2) दुनिया का सबसे अनमोल रत्न 
    • 3) यह मेरा वतन है 
    • 4) शेख़ मखमूर
    • 5) शोक का पुरस्कार  

    पंच परमेशवर कहानी

    पंच परमेश्वर कहानी  प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक श्रेष्ठ कहानी है जो 1916 में प्रकाशित हुआ. ‘पंच परमेश्वर’ कहानी में ग्रामीण जीवन को दर्शाया है तथा इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने बताया है कि पंच का पद बहुत ही बड़ा तथा उत्तरदायित्व से भरा होता है।

    सवा सेर गेहूँ कहानी

    देश की आजादी से पहले प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी सवा सेर गेहूँ में किसानों की कठोर परिस्थितियों को दर्शाया है जो 1924 में प्रकाशित हुआ तथा इस कहानी के माध्यम से  प्रेम चंद्र ने किसान के आर्थिक शोषण का चित्रण किया है इस कहानी का मुख्य पात्र शंकर है जो अपने अंतिम दिनों तक भी सवा सेर आटे का दाम नही चुका पाता है.

    वरदान उपन्यास

    प्रेम चंद आर्य समाज से प्रभावित होकर वरदान नामक उपन्यास को प्रकाशित किया। यह प्रेम चंद का धार्मिक तथा समाजिक उपन्यास है जो 1921 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास की कथा यह थी की एक महिला जिनका नाम अष्टभुजा था जो माता देवी से प्रार्थना करती है कि उन्हें ऐसे पुत्र चाहिए जो इस देश की उनती के लिए अपना सहयोग दे.

    सेवासदन उपन्यास

    सेवासदन प्रेम चंद जी एक प्रसिद्ध उपन्यास है तथा यह प्रेमचंद का पहला पौढ़ हिंदी उपन्यास है जो 1919 में  प्रकाशित हुआ. प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से  अपने पात्रों को विश्वसनीय बनाने के लिए जिस परिवेश का निर्माण किया वह बहुत ही प्रभावशाली था तथा इस उपन्यास में  भाव तथा भाषा का सुंदर सामंजस्य देखने को मिलता है. प्रेमचंद ने सेवासदन उपन्यास में वेश्याओँ के जीवन से सम्बंध समस्या का चित्रण किया।

    प्रेमाश्रम उपन्यास

    प्रेमा श्रम  उपन्यास प्रेमचंद द्वारा रचित  किसानों से संबंधित उपन्यास है जो 1922 में प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास में  किसानों पर हो रहे अत्याचारों तथा शोषण को दर्शाया है जो कि बहुत ही गम्भीर समस्या थी. 

    रंगभूमि उपन्यास

    यह 1925 में प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास के माध्यम से प्रेमचंद ने काशी में बसे एक गाँव को दर्शाया है जिसमें एक राजा महेन्द्र कुमार था जो बहुत ही धनी तथा स्वभाव में कूर था इसके अलावा इस गाँव में एक सूरदास नामक व्यक्ति रहता था जो एक गरीब तथा बहुत ही दयालु व्यक्ति था तथा राजा के बच्चे सूरदास के साथ रहते थे ओर इन्हें ही अपना सब कुछ मानते थे.

    गोदान उपन्यास

    गोदान  प्रेम चंद का अंतिम तथा बहुत ही महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है. गोदान ग्राम्य जीवन से संबंधित तथा कृषि संस्कृति का महाकाव्य माना जाता है. गोदान उपन्यास का प्रकाशन 1936 ईस्वी में हुआ. इस उपन्यास का प्रमुख पात्र होरी तथा धनिया है. इस उपन्यास के माध्यम से प्रेमचंद ने  किसानों  की दयनीय दशा को प्रस्तुत किया है तथा प्रेमचंद ने बताया है कि किसान ऋण से डूबे होने के कारण भी वे अपने काम को बखूबी करते है।

    इस तरह प्रेम चंद द्वारा रचित उपन्यास में एक से अधिक मूल्यवान समस्याओं का चित्रण हुआ है. उनके द्वारा लिखित साहित्य किसानों, दलितों तथा ग्रामीण लोगों के प्रति रचित है. इसके अलावा प्रेमचंद ने नमक का दरोगा, कफन, बूढ़ी काकी, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा, कानूनी कुमार, ईदगाह, बैर का अंत, पूस की रात आदि कहानियों की रचना की।

    प्रेमचंद स्वाधीनता आंदोलन में भी शामिल हुए तथा उन्होंने महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में भी भाग लिए. प्रेम चंद ने गांधी जी का समर्थन किया तथा प्रेम चंद की यही आकांक्षा थी कि हमारा देश भी स्वतंत्र हो तथा प्रेमचंद अपने साहित्य ओर पत्रिका के माध्यम से देश को स्वतंत्रत बनाने में सहयोग दिए।

    प्रेमचंद द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ

    प्रेम चंद ने 1930 इशवी में साप्ताहिक पत्रिका “हंस” की शुरुआत की थी जिसमे उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लिखा था तथा भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों को भी उन्होंने इस पत्रिका के माध्यम से दर्शाया. इसके बाद उन्होंने “जागरण” नामक संपादन शुरू किया तथा इस सभी कार्य के लिए  प्रेमचंद ने सरस्वती प्रेस खरीदा.  

    प्रेमचंद द्वारा रचित नाटक

    प्रेमचंद ने तीन नाटकों की रचना की तथा इनका पहला नाटक संग्राम जो 1922 में प्रकाशित हुआ. कर्बला जो 1924 में प्रकाशित हुआ तथा यह एक ऐतिहासिक नाटक है तथा  प्रेम की वेदी जो 1933 में प्रकाशित हुआ।

    मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ-उर्दू उपन्यास

    जैसा कि विदित है कि मुंशी प्रेमचंद के कई ऐसे उपन्यास हैं जो मूल रूप से उर्दू में रचे गए हैं, पर बाद में जिनका अनुवाद हिंदी में हुआ-

    उर्दू उपन्यासहिंदी रूपांतरवर्ष
    असरारे मआविददेवस्थान रहस्य1905
    हम ख़ुर्मा व हमसवाबप्रेमा अर्थात् दो सखियों का विवाह1907
    किशनाग़बन1931
    जलवाए ईसारवरदान1921
    बाज़ारे हुस्नसेवासदन1918
    गोशाएँ आफ़ियतप्रेमा श्रय1922
    चौग़ाने हस्तीरंगभूमि1925

    कालक्रम के अनुसार रचनाओं का क्रम :

    उपन्यासरचना क्रम के अनुसार
    देवस्थान रहस्य1905
    प्रेमा1907
    सेवा सदन1919
    वरदान1921
    प्रेमाश्रम1922
    रंग भूमि1925
    कायाकल्प1926
    निर्मला1927
    ग़बन1931
    कर्मभूमि1933
    गोदान1936

    प्रेमचंद की कहानियाँ

    प्रेमचंद  का मूल नाम धनपत राय था किंतु वह अपना नाम बदलकर नवाब राय रख लिए थे तथा वह अपना साहित्य नवाब राय के नाम पर ही लिखते थे लेकिन एक दिन ब्रिटिश सरकार ने नवाब राय नाम पर आरोप लगाकर  उनके सारे संग्रह को ज़ब्त कर लिया।इसके बाद अब वे प्रेमचंद नाम से कहानी लिखना शुरू किए तथा प्रेमचंद नाम से इनकी पहली कहानी  बड़े  घर की बेटी है  जो 1910 में  प्रकाशित हुआ 

    प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियाँ लिखी है जो मानसरोवर शीर्षक से आठ भागो में प्रकाशित है इसके अलावा प्रेमचंद ने अपने कहानी के माध्यम से यह बताया है कि  “सबसे उतम कहानी वह होती है, जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर होता है “

    प्रेमचंद्र का कहानी संग्रह प्रकाशन वर्ष
    नमक का दारोग़ा1913
    सज्जनता का दंड1916
    ईश्वरीय न्याय1917
    दुर्गा का मंदिर1917
    बूढ़ी काकी1920
    शांति1921
    सवा सेर गेहूं1924
    शतरंज के खिलाड़ी1924
    मुक्तिमार्ग1924
    मुक्तिधन1924
    सौभाग्य के कोड़े1924
    दो सखियाँ1928
    अलगयोझा1929
    पूस की रात1930
    समर यात्रा1930
    पत्नी से पति1930
    सद्गगति1930
    दो बैलों की कथा1931
    होली का उपहार1931
    ठाकुर का कुँआ1932
    ईदगाह1933
    नशा1934
    बड़े भाई साहब1934
    कफ़न1936

    प्रेमचंद के जीवन आखरी दौर

    प्रेमचंद अपने जीवन के आखरी दौर में भी  साहित्य लिखना नही छोड़े. करीब एक साल से गम्भीर बीमारी से जूझने के बाद 8 अक्टूबर 1936 को आखिरी सांसे ली तथा उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र जो पूरा नही लिख सके. प्रेमचंद अपने जीवन काल के 56 वर्षो तक  उपन्यास, नाटक  तथा कहानियां लिखे  थे तथा प्रेमचंद्र अपने लेखन से साहित्य को बहुत ही ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने अपने जीवन के बारे में बड़े ही सादगी से कहा है कि –

    “मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं -कहीं गढ़ें तो हैं, पर टीलें, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों एवं खंडहरों का स्थान नहीं है। “

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