Mahavir Jayanti 2025 : जैन धर्म के संस्थापक एवं 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म उत्सव को पूरी दुनिया में महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार महावीर जयंती को महावीर जन्म कल्याणक कहा जाता है।
महावीर जयंती 2025 में कब है? (Mahavir Jayanti 2025)
महावीर जयंती हिंदू महीने चैत्र के 13 वें दिन मनाया जाता है। अंग्रेजी माह में महावीर जयंती मार्च या अप्रैल के महीने में आती है।
महावीर जयंती 2025 में 10 अप्रैल, 2025 , गुरुवार को मनाई जा रही है।
महावीर जयंती क्यों मनायी जाती है?
महावीर जयंती स्वामी महावीर की शिक्षाओं को याद करने का दिन है क्योंकि उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और दुनिया भर के लोगों को शांति, करुणा और अहिंसा का जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। पूरे विश्व में इस दिन को बड़े उत्साह और खुशी से मनाया जाता है।
महावीर स्वामी का जीवन परिचय
माहवीर स्वामी के जीवन का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
नाम | महावीर स्वामी |
बचपन का नाम | वर्धमान |
जन्म एवं जन्मस्थान | 540 ईसा पूर्व में बिहार के कुंडग्राम में |
निर्वाण एवं निर्वाण (मृत्यु) स्थान | 72 वर्ष की आयु में 468 ईपू बिहार के पावपुरी, राजगीर में |
वंश का नाम | ‘इक्ष्वाकु वंश’ |
माता-पिता | वज्जि संघ के राजा सिद्धार्थ एवं माता का नाम लिच्छिवी राजा चेटक की बहन रानी त्रिशला था। |
पत्नी एवं पुत्री | पत्नी का नाम यशोदा था एवं पुत्री का नाम अनोज़ा प्रियदर्शनी |
महावीर स्वामी के नाम एवं उपाधियाँ | जिन- अर्थात् विजेता, अर्हत-अर्थात् पूज्य निग्रन्थ -अर्थात् बंधन हीन महावीर-महानायक जितेंद्रिय – जिसने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया है। वर्धमान -महावीर स्वामी का वास्तविक नाम |
मृत्यु अर्थात निर्वाण | महावीर स्वामी की मृत्यु अर्थात निर्वाण की प्राप्ति महावीर की मृत्यु ७२ वर्ष की आयु में ४६८ ईपू बिहार के पावपुरी, राजगीर में हुई। |
जैन धर्म के तीन रत्न | सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चरित्र |
स्वामी महावीर की शिक्षाएँ | अहिंसा पर विश्वास, कर्म की अवधारणा, संपति न रखना, सत्य बोलना, भोग-विलास से दूर रहना आदि |
पाँच मुख्य महाव्रत या पंचशील | अहिंसा-किसी भी जीव के प्रति किसी भी प्रकार से हिंसा न करना सत्य बोलना – हमेशा सत्य बोलना अस्तेय-चोरी न करना अपरिगृह -संपति अधिग्रहण न करना ब्रह्मचर्य का पालन उपर्युक्त सन्यासियों के लिए अनिवार्य है। |
महावीर स्वामी कौन थे? (Biography/History of Mahavir Swami )
भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में भारत के बिहार राज्य के एक छोटे से शहर कुंडग्राम में हुआ था। भगवान महावीर ‘इक्ष्वाकु वंश’ से संबंधित थे। उनके पिता वज्जि संघ के राजा राजा सिद्धार्थ थे और एवं माता का नाम रानी त्रिशला था। माता लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थी।
जन्म के समय भगवान महावीर का नाम वर्धमान रखा गया था, जिसका अर्थ है “जो आगे बढ़ता रहता है”। महावीर की पत्नी का नाम यशोदा था एवं उनकी पुत्री का नाम अनोज़ा प्रियदर्शनी था।
महावीर स्वामी का गृह त्याग एवं ‘कैवल्य’ की प्राप्ति
जैन परंपरा के अनुसार, भगवान महावीर ने 30 वर्ष की आयु में अपने शाही जीवन को त्याग दिया एवं जंगल में रहने चला गया एवं सन्यासी बन गए। उन्होंने एक कठिन और एकाकी जीवन व्यतीत करते अगले 12 साल ध्यान और तपस्या में बिताए, जिसके दौरान उन्होंने उन्हें ‘कैवल्य’ अर्थात ज्ञान प्राप्त किया और तीर्थंकर बन गए। इस समय से महावीर जिन अर्थात् विजेता, अर्हत अर्थात् पूज्य और निग्रन्थ अर्थात् बंधन हीन कहलाने लगे।
जैन धर्म के तीर्थंकर
जैन धर्म में आध्यात्मिक गुरुओं को तीर्थंकर कहा जाता हैं जो अपने ज्ञान से दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं। जैन धर्म के विकास एवं उत्पति इन्हीं तीर्थंकरों की देन है। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभ देव थे।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। इससे पहले 23वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ जी थे।
महावीर स्वामी के अन्य नाम एवं उपाधियाँ
जिन- अर्थात् विजेता,
अर्हत-अर्थात् पूज्य
निग्रन्थ -अर्थात् बंधन हीन
महावीर-महानायक
जितेंद्रिय – जिसने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया है।
वर्धमान -महावीर स्वामी का वास्तविक नाम
महावीर स्वामी को निर्वाण की प्राप्ति कब और कहाँ हुई ?
महावीर की मृत्यु ७२ वर्ष की आयु में ४६८ ईपू बिहार के पावपुरी, राजगीर में हुई।
स्वामी महावीर के उपदेश एवं शिक्षाएँ (Teachings of Swami Mahavir)
- महावीर की प्रमुख शिक्षाओं में से अहिंसा जैन धर्म का केंद्र है और इस विश्वास पर आधारित है कि सभी जीवित प्राणियों में जीवन होती है और किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान पहुंचाना जैन धर्म के पवित्र सिद्धांतों का उल्लंघन करना है।
- उन्होंने सिखाया कि यह प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने समुदायों में शांति और अहिंसा को बढ़ावा दे।
- महावीर की एक अन्य महत्वपूर्ण शिक्षा अनेकांतवाद की अवधारणा है, जिसका अर्थ है कई दृष्टिकोणों को स्वीकार करना। महावीर का मानना था कि दूसरों की राय और विश्वासों का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
- महावीर ने भौतिक संपत्ति से पृथक रहने के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि भौतिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति दुख का स्रोत है और सच्चा सुख केवल आंतरिक शांति और संतोष ही है।
- महावीर स्वामी जी कर्म की अवधारणा में विश्वास करते थे, जिसमें कहा गया है कि हमारे कार्यों के परिणाम ही हमारे भविष्य के जीवन को निर्धारित करते हैं।
- जैन शिक्षाओं के अनुसार, जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्मों से निर्धारित होता है। कर्म के चक्र से स्वयं और आत्मा की मुक्ति के लिये तपस्या और त्याग की आवश्यकता होती है। जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है पर आत्मा की मान्यता है।
- सत्य की जानने की इच्छा रखने वाले सभी पुरुष और महिलाएं को गृह त्याग करना चाहिए।
जैन धर्म के त्रिरत्न कौन-कौन से हैं ?
- सम्यक ज्ञान
- सम्यक दर्शन
- सम्यक चरित्र
जैन धर्म के सिद्धान्त / महाव्रत/शिक्षाएँ:
त्रिरत्न के अनुपान हेतु पंचशील का पालन आवश्यक है। जैन धर्म पाँच मुख्य सिद्धान्त है जिसे महाव्रत या पंचशील भी कहा जाता है-
- अहिंसा-किसी भी जीव के प्रति किसी भी प्रकार से हिंसा न करना
- सत्य बोलना – हमेशा सत्य बोलना
- अस्तेय-चोरी न करना
- अपरिगृह -संपति अधिग्रहण न करना
- ब्रह्मचर्य का पालन
- उपर्युक्त सन्यासियों के लिए अनिवार्य है।
जबकि सांसारिक एवं घरेलू व्यक्तियों के पाँच अनुव्रत का पालन करना होता है :
- हिंसा न करना
- सत्य बोलना
- चोरी न करना
- संपति अधिग्रहण न करना
- भोग-विलास से दूर रहना
जैन संप्रदाय ‘श्वेतांबर’ एवं ‘दिगंबर’ में अंतर (Difference between Jain sect ‘Shwetambar’ and ‘Digambar’)
पहली जैन सभा के समय जैन धर्म दो संप्रदायों में विभाजित हो गया:
पहली जैन महासभा :
पहली जैन महासभा का आयोजन चंद्रगुप्त मौर्य के काल में 300 ई.में पाटलिपुत्र में हुआ था। जिसका नेतृत्व स्थूलभद्र ने किया। इसमें जैन धार्मिक साहित्य के 12 अंगों का संपादन हुआ। प्रथम जैन सभा में जैन धर्म दिगंबर एवं श्वेतांबर दो भागों में बँट गया।
स्थलबाहु के नेतृत्व में ‘श्वेतांबर’ जो सफ़ेद कापड़े पहनते है।
भद्रबाहु के नेतृत्व में ‘दिगंबर’ जो एकदम नग्न अवस्था में रहते हैं।
दूसरी जैन महासभा :
दूसरी जैन महासभा का आयोजन चंद्रगुप्त मौर्य के काल में 512 ई.में वल्लभी में में हुआ था। जिसका नेतृत्व देवर्षि क्षमाश्रमण ने किया। इसमें धर्म ग्रंथों को अंतिम रूप से संकलित कर लिपिबद्ध किया गया।
Jain literature जैन साहित्य :
अंग की संख्या : 12
सूत्र ग्रंथ की संख्या : 2
प्रिकर्ण की संख्या : 10
उपांग की संख्या : 12
मूल सूत्र की संख्या : 4
छेदसूत्र की संख्या : 6
महावीर स्वामी की शिक्षाओं का महत्व :
जैन धर्म के अनुयायियों ने महावीर की शिक्षाओं को सदियों तक मौखिक रूप से प्रसारित किया गया। धीरे-धीरे जैन धर्म भारत के कई भागों में फैल गया। प्रचार -प्रसार का माध्यम स्थानीय भाषा प्राकृत था। जैन विद्वानों ने विभिन्न भाषाओं – प्राकृत, संस्कृत और तमिल में साहित्य की रचानाएँ तैयार किया।
महावीर जयंती कैसी मनाई जाती है?
जैन धर्म के अनुसार तीर्थंकरो को कल्याणक के रूप में याद किए जाते हैं जैसे – जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, मोक्ष कल्याणक आदि। महावीर स्वामी की इनकी जयंती को महावीर जन्म कल्याणक के रूप में मनया जाता है। इस दिन जुलूस, प्रार्थना, उपवास और दान आदि का आयोजन किया जाता है।
रथ यात्रा एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम
महावीर जयंती की शुरुआत ध्वजारोहण के साथ होती है जिसे झंडा के नाम से जाना जाता है। इसके बाद एक जुलूस निकाला जाता है जिसमें भगवान महावीर की मूर्ति को एक सुंदर ढंग से सजाए गए रथ पर ले जाया जाता है। जुलूस संगीत और भगवान महावीर की स्तुति में भजनों के साथ होता है और यह जैन मंदिर में समाप्त होता है जहां एक विशेष प्रार्थना की जाती है।
उपवास, दान एवं प्रसाद अर्पण
लोग एक दिन का उपवास भी रखते हैं और दान और दया के कार्यों में संलग्न होते हैं। कई जैन संगठन सामुदायिक भोजन भी आयोजित करते हैं और जरूरतमंदों को भोजन खिलाते हैं। महावीर जयंती के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक अभिषेक है, जिसमें दूध, शहद और अन्य शुभ पदार्थों के साथ भगवान महावीर की मूर्ति का औपचारिक स्नान कराया जाता है। फिर मूर्ति को नए कपड़ों और गहनों से सजाया जाता है, और देवता को मिठाई और फलों का विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है।
भगवान महावीर की शिक्षाओं को याद करना
यह दिन भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं पर आध्यात्मिक प्रवचनों और शिक्षाओं को याद किया जाता है। लोग जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने और अहिंसा, सच्चाई और करुणा का जीवन जीने का संकल्प लेते हैं। महावीर जयंती सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया में भी मनाई जाती है।
अतः कहा जा सकता है कि महावीर परसेवा और समुदाय की सेवा के महत्व में विश्वास करते थे। उन्होंने सिखाया कि व्यक्तियों को अपनी प्रतिभा और क्षमताओं का उपयोग जरूरतमंद लोगों की मदद करने और अधिक अच्छे को बढ़ावा देने के लिए करना चाहिए। महावीर की शिक्षाएँ दुनिया भर के लोगों को करुणा, अहिंसा, सत्य और सेवा के मार्ग पर जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। इन सिद्धांतों को अपनाने से हम शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर सकते हैं।
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