Laxmi Puja Katha In Hindi: धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्मोत्सव कार्तिक मास के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है तथा कार्तिक मास के अमावस्या के दिन पूरे भारतवर्ष में दिवाली का त्योहार मनाया जाता है और दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना की जाती है। इस तरह माता लक्ष्मी से जुड़ी कई कथायें प्रचलित है जो आपको इस आर्टिकल के माध्यम से जानने को मिलेगी।
शास्त्रों के अनुसार माँ लक्ष्मी का स्वभाव चंचल बताया गया है, जिसके कारण वह अपनी भक्तों को उनके कर्म के अनुसार उन्हें फल देती है तथा यह भी बताया गया है कि सच्चे मन से माता लक्ष्मी की उपासना करने से माँ अपनी भक्तों को धन-वैभव तथा सुखी प्रदान करती है।
लक्ष्मी पूजा से जुड़ी कथा: (Laxmi Puja Katha In Hindi)
पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास के अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी भ्रमण के लिए निकली इस दौरान चारों ओर अंधकार फैला हुआ था और माता लक्ष्मी रास्ता भटक गई और रास्ते में माता लक्ष्मी को सभी घर के द्वार बंद दिखाई दिए, तभी माता लक्ष्मी यह सोची कि आज रात मैं इसी अंधकार में बिता लेती हूँ और कल सुबह बैंकुंठ धाम चली जाऊँगी।
इस दौरान माता लक्ष्मी को रास्ते में एक द्वार खुला दिखा और इस द्वार पर दीपक की लौ टिमटिमा रही थी, तो इस तरह माता लक्ष्मी इस रोशनी की ओर चल पड़ी और यहाँ आकर उन्होंने यह देखी कि एक वृद्धा महिला चरखा चला रही है तथा माता लक्ष्मी उस महिला से अनुमति माँगते हुए यह कहती है कि क्या आज रात में इस कुटिया में रुक सकती हूँ।
वृद्धा महिला माता लक्ष्मी को अनुमति देते हुए उन्हें बिस्तर में सोने को कहती है और महिला अपने कार्य में पुनः व्यस्त हो जाती है। इस तरह वृद्धा महिला काम करते-करते सो जाती है और जब अगले दिन महिला की आँख खुलती है तो वह अपने आस-पास चीजों को देख कर आश्चर्यचकित रह जाती है। वृद्धा महिला की कुटिया महलों में बदल जाता है और चारों तरफ़ धन-धान्य तथा ज़ेवरात बिखरे-पड़े होते है।
माता लक्ष्मी वृद्धा महिला से प्रसन्न हुई और इस तरह माता लक्ष्मी के प्रसन्न होने से उस वृद्धा महिला के पास धन वैभव की प्राप्ति हुई और तब से ही कार्तिक मास के अमावस्या के दिन दीपक जलाने की प्रथा चालू हुई तथा हर साल अमावस्या के दिन लोग अपने घरों के द्वार को खोलकर माता लक्ष्मी की प्रतीक्षा करते है।
सहेली के रूप में माता लक्ष्मी:
माता लक्ष्मी से जुड़ी एक ओर अन्य कथा यह है कि एक गाँव में एक साहूकार रहता था तथा साहूकार की एक पुत्री थी। साहूकार की पुत्री हर रोज़ पीपल के पेड़ की पूजा किया करती थी तथा एक दिन अचानक उस पीपल के पेड़ से एक लड़की निकलती है और यह लड़की कोई ओर नहीं बलकी माता लक्ष्मी का रूप धारण कर प्रतीत होती है।
इस तरह माता लक्ष्मी साहूकार की बेटी से सहेली बनने को कहती है लेकिन साहूकार की बेटी यह कहती है कि मैं अपने पिता से पूछ कर बताऊँगी, अपने पिता से पूछने पर साहूकार की बेटी माता लक्ष्मी की सहेली बन जाती है और दोनों की मित्रता काफी गहरी हो जाती है।
एक दिन माता लक्ष्मी साहूकार की बेटी को भोजन पर निमंत्रण करती है इस तरह साहूकार की बेटी भोजन के लिए माता लक्ष्मी के घर पहुँचती है तो माता लक्ष्मी ने साहूकार की बेटी को सोने की चौकी पर बैठाती है और चाँदी के बर्तनों में खाना परोसती है, भोजन करने के बाद माता लक्ष्मी साहूकार की बेटी को क़ीमती वस्त्र ओढ़ने को देती है ओर उनसे यह कहती है कि कल मैं तुम्हारे घर आऊँगी।
साहूकार की बेटी घर वापस आती है और अपने पिता से सब बात कहती है लेकिन साहूकार की बेटी काफी उदास हो जाती है तथा साहूकार के पूछने पर यह जबाब देती है कि बाबा मेरे पास तो अपने मित्र को बैठाने के लिए चादर भी नहीं है ओर न ही भोजन परोसने के लिए चाँदी का बर्तन।
ऐसे में साहूकार अपनी पुत्री से यह कहते है कि तुम ज़मीन को गोबर से लीप लो और तुम्हारे पास जो भी अनाज है तुम उसे अपने हाथों से बनाकर तथा प्रेम से अपनी सहेली को परोस देना। पिता और पुत्री के वार्तालाप के दौरान ही एक चील वहाँ से उड़ते हुए आई और साहूकार के घर में नौ लखा हार गिरा कर चली गई। यह हार देख कर साहूकार की पुत्री बेहद खुश हुई तथा साहूकार की पुत्री इस हार को बेचकर अपनी सहेली यानि माता लक्ष्मी से लिए भोजन का इंतज़ाम की।
इसके बाद साहूकार के घर में माता लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश भी आए तो साहूकार की बेटी ने इन्हें बैठने के लिए सोने से बनी चौकी दी और अच्छा भोजन करवाया यह सब देख माता लक्ष्मी बेहद प्रसन्न हुई और साहूकार के घर को धन- वैभव तथा समाप्ति से भर दी।
इस तरह अपनी आर्थिक स्थिति को बनाए रखने के लिए हमें नियमित रूप से माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए, जिससे माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा हम पर बनी रहे।
धरती पर माता लक्ष्मी का निवास:
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु स्वर्ग लोक पर बैठे-बैठे बोर हो गए थे, तभी उन्होंने धरती पर घूमने का विचार बनाया। इस तरह भगवान विष्णु धरती पर यात्रा करने के लिए तैयारी में जुट गए तथा यह देख माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती है कि आज सुबह-सुबह क़हाँ जाने की तैयारी कर रहे है??
तब भगवान विष्णु कहते है कि मैं धरती लोक पर घूमने जा रहा हूँ, यह सुन माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से कहती है क्या मैं भी आपके साथ धरती पर चल सकती हूँ?? कुछ पल सोचने के बाद भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को यह कहते है कि तुम मेरे साथ चल सकती हो लेकिन एक शर्त है कि तुम धरती पर पहुँच कर उत्तर दिशा की ओर मत देखना बलकी मेरे साथ चलते रहना।
इस तरह माता लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु धरती लोक पर पहुँचते है। धरती पर पहुँचते ही चारों तरफ हरियाली ही फैली थी तथा धरती का यह दृश्य माता लक्ष्मी को मंत्रमुग्ध कर रहा था और इस हरियाली को देखते हुए माता लक्ष्मी कब उत्तर दिशा की ओर चल पड़ी, उन्हें पता भी नहीं चला तथा रास्ते में चलते-चलते माता लक्ष्मी को एक बगीचा दिखा तथा इस बगीचे में एक सुंदर स फूल खिला हुआ था और यह फ़ूल काफी सुगंधित होने के कारण माता लक्ष्मी इस फूल की ओर आकर्षित हो जाती है और फूल को तोड़ भगवान विष्णु के पास वापस जाती है।
माता लक्ष्मी को देख भगवान विष्णु के आँखों में आंसू आ गए। भगवान विष्णु के आँखों में आंसू देख माता लक्ष्मी को अपना वचन याद आता है तो माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से क्षमा माँगने लगती है लेकिन भगवान विष्णु ने यह कहा कि तुम्हें इस भूल की सजा जरुर मिलेगी इसलिए जिस बगीचे से तुमने यह फूल तोड़ा है तुम उस माली के यहाँ 3 साल तक नौकर बन कर रहोगी और तब जाकर मैं तुम्हें अपने साथ बैकुंठ ले जाऊँगा तथा माँ लक्ष्मी, भगवान विष्णु की यह शर्त मानते हुए धरती पर रुक जाती है।
अब माता लक्ष्मी एक गरीब लड़की बनकर बगीचे के मालीक के घर पहुँची। माली का नाम माधव था तथा माधव एक झोपड़ी में रहता था, माधव अपने इस झोपड़ी में अपनी पत्नी, दो बेटे तथा तीन बेटियाँ के साथ रहता और खेत में काम कर अपना पालन-पोषण तथा जीवन यापन करता।
गेट के ढक ढकाने पर माधव उस गरीब लड़की(माता लक्ष्मी) से पूछँते है कि तुम कौन हो और यहाँ क्यों आई हो?? तब लड़की(माता लक्ष्मी) यह कहती है कि मैं बहुत गरीब हूँ और मेरा देख-भाल करने वाला कोई नहीं है और मैंने कुछ दिनों से कुछ खाया भी नहीं, क्या तुम मुझे अपने घर पर काम के लिए रखोगे। मैं तुम्हारे घर पर रह कर सारी काम करूँगी और इसके बदले में तुम मुझे अपने इस घर पर थोड़ी से आसरा दे दो। माधव बहुत ही अच्छे तथा दयालु इंसान था और गरीब लड़की को अपने घर में रहने के लिए जगह दिया।
कुछ दिन बाद माधव की आमदनी बढ़ने लगी तथा आमदनी बढ़ते ही माधव ने एक गाय ख़रीद ली, धीरे-धीरे ज़मीन जायदाद भी ख़रीदने लगे, तथा इनकी बीवी अपने लिए कई गहने बनवा ली और अब यह झोपड़ी भी महल में बदल गई तथा माधव हमेशा यह सोचता था कि मुझे इतनी धन-दौलत इस गरीब स्त्री के आने से हुआ और इस स्त्री के आने से मेरी क़िस्मत ही चमक गई।
इस तरह से तीन साल बीत गए और भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी को लेने के लिए धरती पर वापस आए तथा उसी दिन अचानक जब माधव खेतों में काम ख़त्म कर घर वापस आया तो उन्होंने अपने द्वार पर गहनों से लदी एक स्त्री को देखा तथा यह स्त्री कोई ओर नहीं बलकी माता लक्ष्मी है और इस स्त्री का चेहरा माधव के घर में रह रही गरीब लड़की से मिल रहा था।
यह दृश्य देख माधव आश्चर्यचकित रह जाता है तथा माधव माता लक्ष्मी के सामने झुक कर माफ़ी माँगने लगता है और यह कहता है कि माँ मुझे माफ़ कर दीजिए मुझसे घोर अपराध हुआ है मैंने आपसे खेतों में काम करवाया तथा घरों में झाड़ू लगवाया- ये मैंने आपके साथ कैसा अनर्थ कर दिया। तब माता लक्ष्मी मुस्कुराते हुए माधव से यह कहती है कि माधव तुम बहुत अच्छे इंसान हो तुमने मुझे रहने के लिए जगह दी तथा अपने घरों में एक सदस्य की तरह रखा। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ
इसके लिए मैं तुम्हें वरदान देती हूँ, कि तुम्हारे घर में कभी भी ख़ुशियों तथा धन की कमी नहीं होगी और तुम्हें वो सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हक़दार हो, यह कहते हुए माता लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु के साथ बैकुंठ के लिए निकल गई।
आपको माता लक्ष्मी से जुड़ी कथा कैसी लगी आप हमें कॉमेंट में जरुर बतायें।
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