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    2024 में काली पूजा कब है? काली पूजा 2024 की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं माँ काली से जुड़ी कथाओं के बारे में।(2024)

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    2024 में काली पूजा कब है? : काली पूजा हिंदुओं का सबसे महत्वपूर्ण तथा धार्मिक त्योहारों में से एक है तथा खास कर पश्चिम बंगाल में काली पूजा का त्योहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। मां काली को ऊर्जा तथा शक्ति का देवी माना जाता है इसलिए मां काली को सभी देवियों में सबसे शक्तिशाली देवी कहा जाता है और यह भी मान्यता है कि माँ काली की उत्पति पापियों और राक्षसों का संहार तथा विनाश करने के लिए हुआ।

    2024 में काली पूजा कब है?

    2024 में काली पूजा का त्योहार 31 अक्टूबर, दिन- गुरुवार को मनाया जाएगा। काली पूजा का यह त्योहार हर साल अक्टूबर माह के अंत में या फिर नवंबर के शुरुआत में अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। कार्तिक मास के अमावस्या की मध्य रात्रि में मां काली की पूजा की जाती है तथा काली चौदास के दिन ही मां काली का जन्म हुआ था तथा माँ काली के जन्मदिन के मौक़े पर ही काली पूजा का त्योहार मनाया जाता है. मां काली जिसे कालिका भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में माँ काली के चार रूपों का बखान किया गया है. 1. दक्षिणा काली 2. शमशान काली 3. मात्त काली और 4. महाकाली

    काली पूजा का शुभ मुहूर्त:

    काली पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर को रात 11:39 बजे से लेकर 12:41 बजे तक है तथा यह पहर पूजा के लिए काफी शुभ माना गया है। माँ काली की पूजा कार्तिक मास के अमावस्या की मध्यरात्रि में की जाती है।

    2024 में काली पूजा कब है?31 अक्टूबर, दिन- गुरुवार
    पूजा का शुभ मुहूर्तरात 11:39 बजे से लेकर 12:41 बजे
    माँ काली का रूपदक्षिणा काली, शमशान काली, मात काली और महाकाली
    काली पूजा का त्योहार कहाँ मनाया जाता है?पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड तथा असम में धूम-धाम से मनाया जाता है।
    काली पूजा का अन्य नामश्यामा पूजा तथा कालरात्रि पूजा भी कहा जाता है।
    राक्षसों का वधचंड मुंड, रक्त बीज, शुम्भ निशुंभ, धूर्माक्ष
    कोलकाता में माँ काली का मंदिर1) दक्षिणेश्वर काली मंदिर 
    2) हज़ार हाट काली मंदिर 
    काली पूजा

    माँ काली की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री :

    माँ काली की पूजा के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। जिनमें से सिंदूर, अक्षत, जवा फुल, धूप या अगर बत्ती, नारियल, मिठाई, संदेश, पान के पत्ते, फल और बताशा आदि।

    पूजा की विधि-विधान: 

    • माँ काली की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह जल्दी उठ कर स्नान करे, तथा साफ और स्वच्छ कपड़े धारण करे। 
    • उसके बाद माँ काली की प्रतिमा तथा मूर्ति स्थापित करे। 
    • उसके बाद माँ काली को सिंदूर अर्पित कर गुडहल के फूल का माला पहनाए। अब माता काली को संदेश का भोग लगाते हुए धूप तथा अगरबत्ती जलाए। 
    • अब माँ काली की कपूर से आरती करे तथा मंत्रो का जाप करते हुए ध्यान लगाए। 

    दिवाली के दिन माँ काली की पूजा:

    दिवाली के दिन सभी अपने घर में माता लक्ष्मी तथा भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते है तथा इसी दिन अर्धरात्रि को मां काली की भी पूजा की जाती है और इस दिन को काली चौदस कहा जाता है. मां काली के रौद्र रूप को महाकाली कहा जाता है. पश्चिम बंगाल के अलावा मां काली की पूजा का त्योहार उड़ीसा और असम में भी धूमधाम से मनाई जाती है.

    मां काली का अन्य नाम-

    मां काली माता पार्वती का ही विकराल रूप है जो दुष्टों तथा राक्षसों का संहार करने के लिए रौद्र रूप धारण कर उनका अंत की थी. मां काली को अर्द्धनारीश्वर, आदिशक्ति, कालिका, भद्रकाली, शिवशक्ति  तथा महाकाली के नाम से भी जाना जाता है.

    मां काली का स्वरूप-

    मां दुर्गा के रौद्र तथा विकराल रूप को महाकाली कहा जाता है तथा इनका काला रंग इनकी उग्रता और क्रूरता का प्रतीक माना जाता है। माँ काली के खुले तथा लम्बे बाल सभ्यता का प्रतीक है। माँ काली अपने एक हाथ में तलवार लिए हुए ओर दूसरे हाथ में कटा हुआ सिर लिए हुए रहती है। गले में खोपड़ियों का हार पहने हुए ओर अपने जीभ को बहार निकाले हुए इतना भयंकर रूप होते हुए भी मां काली अपने भक्तों की कष्टो को हरण करने के लिए अग्रणी है तथा माँ काली के तीनों नेत्र सूर्य, चंद्र और अग्नि का प्रतीक माना जाता है।

    माता काली से जुड़ी कथा:

    पौराणिक कथाओं के अनुसार रक्तबीज जैसे शक्तिशाली असुर का संहार करने के लिए माता पार्वती ने मां काली का रूप धारण की थी। रक्तबीज असुर, भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और इन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या करने के बाद इन्हें यह वरदान मिला कि तुम्हारे रक्त की जितनी बूँदे ज़मीन पर गिरेगी, उतने ही शक्तिशाली असुर उत्पन्न होंगे।

    भगवान शिव से यह वरदान पाकर शक्ति शाली असु,र ऋषि मुनियों पर अत्याचार करने लगे। ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए सभी देवता रक्तबीज से युद्ध करने लगे, इस तरह रक्तबीज के शरीर से गिरने वाली खून की हर एक बूँद से एक नया शक्तिशाली असुर पैदा हो जाता है। इस तरह देवताओं युद्ध में रक्त बीज को हरा नहीं पाए, उसके बाद सभी देवता कैलाश पर्वत पर शिवजी के पास पहुँचे और उनसे अपनी रक्षा के लिए प्राथना करने लगे।

    माँ काली की उत्पति:

    कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी मौजूद थी और देवताओं की यह बात सुनकर वह क्रोधित होने लगी, इस तरह माता पार्वती के शरीर से माता काली की उत्पति हुई। उसके बाद माता काली, रक्तबीज से युद्ध करने के लिए निकल पड़ी। युद्ध के दौरान माँ काली, रक्तबीज के शरीर से निकलने वाली रक्त की हर एक बूँद को अपने जीभ से पी लेती थी और एक बूँद भी रक्त को ज़मीन पर गिरने नहीं देती, इस तरह जब रक्तबीज का शरीर रक्त विहीन हो जाता है तो माता काली रक्तबीज असुर का अंत कर देती है।

    रक्तबीज जैसे शक्तिशाली असुर का वध करने के बाद भी मां काली का क्रोध शांत नही होता और वह बहुत ही उग्र हो जाती है तथा जो कोई भी  व्यक्ति  मां काली के रास्ते में आ रहा था मां उसे नही वक्षति बल्कि उनका संहार कर उन्हें भी मार तथा काट रही थी.  तो इस रौद्र रूप को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके कदमो के नीचे लेट जाते  ओर जैसे ही मां काली का चरण भगवान शिव को स्पर्श करता तो मां काली का क्रोध शांत हो जाता है और माँ काली का रूप माता पार्वती में बदल जाता है।

    मां काली की पूजा का महत्व-

    • दिवाली के अर्धरात्रि को मां काली की पूजा की जाती है तथा खास कर पश्चिम बंगाल में  काली पूजा का बहुत अधिक महत्व है।
    • पश्चिम बंगाल में प्रत्येक वर्ष काली पूजा का त्योहार बहुत ही भव्य तथा धूम-धाम से मनाया जाता है. खास कर कोलकाता के नेहाटी क्षेत्र में काली पूजा का रौनक़ देखते ही बनता है। काली पूजा के दौरान नैहाटी शहर में भव्य पंडाल बनाये जाते है तथा इन पंडालो में विभिन्न प्रकार की मूर्तियां स्थापित की जाती है तथा इस दौरान नेहाटी शहर में काफी भिड़ उमड़ती है।
    • नेहाटी में ‘बोड़ो माँ’ नाम से काली माँ की प्रतिमा है तथा इस ‘बोड़ो माँ’ की प्रतिमा को देखने के लिए लाखों श्रधालों एकत्रित होते है।
    • मान्यता है की दिवाली के दिन अर्धरात्रि में मां काली की विधि-विधान से पूजा करने पर लोगों के जीवन में दुःख तथा कष्टों का निवारण होता है और साथ ही उनके आने वाला जीवन खुशहाली से भरा होता है और माँ काली अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि बनाए रखती है।
    काली पूजा

    काली पूजा की पूजा कब करे:

    काली पूजा के दौरान मां काली की पूजा रात को ही की जाती है. माता काली को 108 गुड़हल(जवा) के फूल से बने माला चढ़ाया जाता है इसके अलावा मिट्टी से बने दीपक को तिल का तेल से जलाया जाता है ओर मिठाई तथा संदेश का भोग लगाया जाता है ओर रात भर जाग कर मां काली की पूजा तथा आराधना की जाती है, इसके अलावा पूरी रात मां काली की मंत्रो का जाप किया जाता है। मान्यता है कि माँ काली की पूजा आराधना करने से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती है तथा जो भक्त सच्ची श्रद्धा से माता काली की पूजा करते है तो माता काली उनके जीवन के हर कष्टों को दूर करती है। 

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