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    जानें कबीरदास का जीवन परिचय, शिक्षाएँ, जयंती, रचनाएँ एवं दोहे। (Kabirdas ka jivan parichay)

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    आज हम कबीरदास का जीवन परिचय के माध्यम से ऐसे व्यक्तित्व के बारे में जानेंगे जिसने अपने कर्म एवं मेहनत से आम जनता में अपनी जगह बनाई, समाज में व्याप्त बुराइयों, धार्मिक कुरीतियों एवं आडंबरों पर जमकर हमला बोला। कबीरदास मध्ययुग के सबसे प्रसिद्ध संत, कवि, समाजसुधारक थे। वे हिन्दी साहित्य में भक्तियुग के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माने जाते हैं। वे हिन्दी साहित्य में निर्गुण भक्ति एवं ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक हैं।

    कबीरदास का जीवन का परिचय

    विद्वानों ने कबीरदास की जीवनी को अधिकतर जनश्रुतियों पर आधारित माना है। अतः जनश्रुतियों पर आधारित कबीरदास का जीवन परिचय प्रस्तुत किया गया है-

    नामकबीरदास 
    जन्म 1398
    मृत्यु 1518 
    जन्मस्थान  काशी 
    मृत्युस्थान  मगहर
    पिता का  नाम  पिता का
    नाम नीरू
     
    माता का नाम  माता का
    नाम नीमा
    पत्नी का नाम लोई 
    पुत्र एवं पुत्रियाँ पुत्र का
    नाम -कमाल, 
     पुत्री का
    नाम -कमाली
     
    गुरु का नाम रामानन्द 
    भाषा सधुक्क्ड़ी, पँचमेल खिचड़ी
    अवधि 14वीं से 15वीं शताब्दी 
    प्रवर्तक एवं आंदोलन  हिन्दी
    साहित्य में निर्गुण भक्ति एवं ज्ञानाश्रयी शाखा
    जाति एवं पेशा  जुलाहा
    संत काव्य धारा के प्रथम कवि कबीरदास 
    कबीर के प्रमुख शिष्य का नाम धर्मदास 
    कबीर वाणी का संग्रह बीजक। इसके तीन भाग है-साखी, सबद एवं रमैनी
      

    कबीरदास का जन्म कब हुआ था? कबीरदास का जीवन परिचय

    सभी संत कवियों की तरह कबीर का जन्म तिथि के बारे में भी संदेह है। हालांकि अधिकतर विद्वान  कबीरदास का जन्म तिथि सन 1398 में मानते हैं। 

    कबीरदास का जन्म स्थान कहाँ है?

    कबीर दास का जन्म स्थान काशी माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान मगहर भी मानते हैं। पर अधिकतर लोग काशी को ही प्रमाणिक मानते है। इस संबंध में कबीर के  इस दोहे का उदाहरण देते हैं-

    ‘काशी में हम प्रकट भयो रामानन्द चेतायो।’

     

    कबीरदास के माता-पिता का नाम क्या था?

     

    माना जाता है कि कबीरदास के पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था जो पेशे से जुलाहे थे। कबीरदास के माता-पिता के संबंध में भी मतभेद है। 

     

    इस संबंध में कहा जाता है कि कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मण के गर्भ से हुआ था। लोकलाज के भय से उसे उसकी माँ ने लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख कर आई थी जिसे बाद में  नीरू एवं नीमा के जुलाहे, जो निसंतान थे,  ने कबीर को उस तालाब से उठा लिया एवं उसका पालन-पोषण किया। बाद में कबीर भी पेशे से जुलाहे बने। 

    कबीरदास का परिवार

    कबीर की पत्नी का नाम लोई था एवं कबीर के पुत्र का नाम कमाल एवं पुत्री का नाम कमाली था। 

    कबीरदास की शिक्षा

    कबीरदास को कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं मिली थी बल्कि उन्होने साधु-संगति में रहकर ज्ञान अर्जन किया था।  

    मसि कागज छुयौ नहीं, कलम गहयो नहीं हाथ। 

     

    कबीरदास के गुरु थे-संत रामानन्द 

    कबीर दास के गुरु भक्ति युग के संत   रामानन्द जी थे। कबीर अपनी रचनाओं में गुरु को अत्यधिक महत्व देते थे। 

          कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानन्द।    

    कबीरदास जयंती- Kabirdas Jayanti, 2024

    वर्ष 2024 में कबीरदास जयंती 22 जून 2024 को मनाया जा रहा है। जनश्रुति के अनुसार कबीरदास का जन्म ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ था। अँग्रेजी कैलेंडर में कबीरदास जयंती प्रतिवर्ष जून माह में पड़ता है।

    कबीर प्रकट दिवस Kabir Prakat Divas : 

    कबीरदास जी के अनुयायी उनके जन्मदिवस को कबीर साहेब प्रकट दिवस के रूप में भी मनाते है। ऐसा माना जाता है कि कबीरदास जी काशी के लहरतारा तालाब के किनारे प्रकट हुए थे एवं उस समय कबीर का शिशु रूप कमल फूल पर लेटे हुए थे जिसे नीरू-नीमा नाम के जुलाहे दंपति ने कबीर को  उस तालाब से उठाकर  पालन-पोषण किया।

    कबीरदास जयंती के दिन कबीरदास के अनुयायी एवं उनकी शिक्षाओं पर चलने वाले लोग उनका स्मरण करते हैं एवं उनके बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हैं। कबीरदास के दोहों एवं रचनाओं का पाठ भी किया जाता है।

    कबीरदास का समय एवं तत्कालीन परिस्थितियाँ : 

    कबीरदास का समय धार्मिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल वाला था। इस उथल-पुथल से आम जनता भी प्रभावित हो रही थी। कबीर का आगमन ऐसे समय हुआ था जब  देश की कमान मुस्लिम शासकों के हाथ में थी। कबीर के समय देश में लोदी वंश का शासन था। कबीर ने अपने समय में तीन वंशों का शासन देखा था – -तुगलक वंश, लोदी वंश, सैयद वंश।

    उस समय का समाज वर्ण व्यवस्था, जाति भेद-भाव, उंच-नीच ही निर्भर हो गया था। चारों तरफ सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़िवाद, आडंबर एवं पाखंड का बोलबाला था। निम्न श्रेणी की जनता को पूजा पाठ एवम मंदिरों में जाने की मनाही थी। कबीरदास के समय दो धर्मों की ही प्रधानता थी -हिन्दू एवं मुस्लिम। कबीरदास का दोनों धर्मों में व्याप्त रूढ़िवाद, आडंबर एवं पाखंड पर जमकर हमला बोला एवं ऐसी बुराइयों को सुधारने के उपदेश दिया जो लोक कल्याण के हित में नहीं-

    अरे इन दोउन राह न पाई ।

    —————————-

    हिंदून के हिंदुवाई देखि तुरकन के तुरकाई। 

    तत्कालीन समाज में मूर्ति पूजा, धार्मिक कर्मकांड के बहाने कुव्यवस्था फैल रही थी। कबीर आखों देखी पर विश्वास करते थे एवं धर्माधिकारियों को डांट-फटकार का एक उदाहरण –

    तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आंखन की देखी।’ 

     

    कबीरदास के भगवान कौन थे?

    कबीरदास जी निर्गुण ब्रह्म की उपासना एवं भक्ति करते थे। निर्गुण ब्रह्म से तात्पर्य ऐसे ईश्वर से है, जिसका कोई गुण रूप (शारीरिक) नहीं। केवल उसकी अनुभूति की जा सकती है जैसे कस्तुरी की सुगंध से हिरण पूरे जंगल में उसे ढूंढता रहता है, कस्तुरी की सुगंध उसके शरीर के अंदर से ही आ रही है। उसी प्रकार ईश्वर की प्राप्त मंदिर -मस्जिदों में नहीं हो सकती। उसे अपने अंदर तलाशना पड़ता है। सांसारिक माया से वशीभूत होने के कारण व्यक्ति उसे देख नहीं पाता।

    (1)कस्तुरी कुंडली बसे मृग ढूंदे वन माहे। 

    ऐसे घट-घट राम है दुनिया देखत नाहीं॥    

    (2) मोको कहाँ ढूंडे रे बंदे मै, तो तेरे पास में,

    न मैं मस्जिद, न मैं मंदिर न काबा-कैलास में। 

    इस प्रकार कबीर ने ईश्वर भक्ति का द्वार उन सभी लोगों के लिए खोल दिया जिन्हें मंदिर -मस्जिदों में आवाजाही  करने की मनाही थी। 

    कबीरदास के शिष्य एवं अनुयायी-

    कबीरदास के प्रमुख शिष्य का नाम धर्मदास एवं मूलकदास था। इसके अलावा अन्य भक्त  भी  कबीरपंथ के अनुयायी बनें। इसमें शामिल हैं-कबीर दोनों संताने कमाल और कमाली, हरदास, जीवा, गरीबदास आदि ।

    कबीरदास की रचनाएँ- बीजक

    चूंकि कबीरदास की पारम्परिक  शिक्षा नहीं मिली हुई थी। इनके वाणियों एवं उपदेशों का संकलन इनके शिष्यों ने ही किया। कहा जाता है कि कबीर वाणी का पहला संकलन धर्मदास ने बीजक नाम से 1464 में किया।  बीजक का अर्थ परम ज्ञान या धन। जीव अर्थात मनुष्य के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान। बीजक में भक्ति, गुरु की महत्ता, ब्रह्म, जीव, जगत की निश्वरता, माया से संबंधित बातें कही गयी है।  

     बीजक- इसके तीन भाग है-साखी, सबद एवं रमैनी।

    1. साखी – साखी का अर्थ है कि साक्षी। इसमें जीव अर्थात मनुष्य के संबंध में विचार व्यक्त किए गए है।
    2. सबद – इसमें ब्रह्म एवं ईश्वर संबंधी विचार व्यक्त किए गए है।
    3. रमैनी -इसमें मनुष्य के सांसारिक जगत के संबंध में विचार व्यक्त किए गए है।

     सिख धर्म के आदि ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में कबीरदास की रचनाओं का संकलन –

    इसके अलावा सिख धर्म के प्रमुख धर्मग्रंथ-गुरु ग्रंथ साहिब में कबीरदास की कुछ पदों  का संकलन किया गया है। कहा गया है कि कबीर के पदों का सबसे पुराना संकलन गुरु ग्रंथ साहिब में ही मिलता है।  

    कबीरदास की सधुक्क्ड़ी भाषा: 

    कबीरदास के आम जनों की भाषा का उपयोग अपने वाणी एवं उपदेशों में किया है जिसे साधुक्क्ड़ी भाषा या पँचमेल भाषा या मिश्रित भाषा भी कहा जाता है। कबीरदास ने अपनी भाषा में ब्रजभाषा, खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी, मागधी आदि का प्रयोग किया है।  इनकी रचना में निम्नलिखित भाषा के नमूने मिलते है –

    1. साखी – ब्रजभाषा एवं पूर्वी बोली।
    2. सबद – ब्रजभाषा एवं पूर्वी बोली।
    3. रमैनी -खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी

    कबीरदास की शिक्षाएँ-Teachings of Kabirdas

    कहा जाता है कि कबीर भक्तिकाल एवं संत काव्यधारा के अग्रणी कवि थे एवं उनकी रचनाओं में लोक-कल्याण एवं समाज को सुधारने की भावना थी।  

    1) वे हिन्दू -मुस्लिम एकता के पक्षधर थे एवं वे मानते थे कि  ईश्वर एक है। अतः वे लोगों को  बाहरी विधि-विधान एवं मर्ति पूजा, नमाज एवं  कर्मकांड (दिखावे के लिए धार्मिक अनुष्ठान) आदि से लोगों को दूर रहने का संदेश देते थे-

    ‘पाथर पूजे हरी मिलै तो मैं पूजू पहाड़।’ 
    याते वह चक्की भली पीस खाय संसार॥ 
    कांकड़ पाथर जोड़ि के मस्जिद लिया बनाय ।
    ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥ 
     

    2) ईश्वर ने सबको एक समान बनाया है। उसकी नजर में भेद-भाव नहीं। अतः हमें छुआ-छूत, जाति, धर्म आदि के नाम पर भेदभाव नहीं रखना चाहिए। 

    3) मानव मात्र को अपने अंदर छिपे बुराई को पहले दूर करना चाहिए-

    माला फेरत युग गया मिटा न मन का मेल।
    कर का मनका ढार दे मन का मनका फेर। । 
     

    4) कबीर के अनुसार गुरु का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु ही शिष्य को संसार का ज्ञान कराता है। अतः गुरु का महत्व ईश्वर से भी ज्यादा है। कबीर ने आम लोगों को अपने गुरु का सम्मान करने का संदेश दिया है। 

    गुरु गोविंद दोउ खड़े काकै लागु पाय।
    बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय॥ 
     

    5) कबीर कहते हैं कि हमें मानव मात्र से प्रेम करना चाहिए। प्रेम से बड़ा धर्म कोई नहीं। कबीर का मानना था कि 

    ‘पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम के पढे सो पंडित होय ॥’
     

    6) हमें एक दूसरे की बुराई कभी नहीं करनी चाहिए। किसी की बुराई करने से पहले हमें अपने अंदर झांकना चाहिए क्या हमारे अंदर कोई बुराई नहीं।  कबीर कहते है- 

    बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोई ।
    जो दिल खोजा आपमा मुझसा बुरा न कोई ॥ 

     

    निष्कर्ष –

    कहा जा सकता है कि कबीर अपने समय के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। वे भक्तिकाल के प्रथम कवि भी थे। विद्वानों ने कबीरदास को हिन्दी साहित्य में निर्गुण काव्यधारा, संत काव्यधारा एवं ज्ञानाश्रयी के प्रवर्तक मानते है। कबीरदास ने अपनी प्रखर उपदेशों से आम जनता के दिलों में अपनी जगह बना ली थी।
     
    प्रायः यह देखा गया है कि कबीरदास की कविताएं आम जनता के जुबान पर रहती है। कबीर का जीवन ही तत्कालीन समाज का दर्पण माना जाता है। उस सामंती एवं राजशाही व्यवस्था का पूरा प्रतिबिंब हमें कबीर की रचनाओं में देखने को मिलता है। कबीर का जीवन ही उस समय के दूरव्यवस्था का जीवंत दस्तावेज़ है।
     
    कबीर की सबसे बड़ी विशेषता थी – वे दिल के एकदम सच्चे थे एवं उसकी तर्कशक्ति एवं लोकल्याण की भावना पूरे भक्ति साहित्य में कहीं नहीं मिलता। उन्होने अपने ज्ञान एवं तर्क से लोगों को अपनी बात मनवायी और ऐसा वे इसीलिए कर पाए क्योंकि उनमें लोककल्याण की भावना निहित थी। आज पूरे देश में उनके अनुयायी एवं चाहने वालों की कोई कमी नहीं है। उनके अनुयायी कबीरपंथी के नाम से जाने जाते है। कबीर अत्यंत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, इस बात को हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी माना है-‘प्रतिभा उनमें प्रखर थी, इसमें कोई संदेह नहीं।’    
     

    कबीरदास के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

    Q- कबीर के अनुसार भगवान कहां निवास करते हैं?

    A-प्रत्येक व्यक्ति के अंदर उस परमतत्व का वास रहता है। 

    Q-कबीर के अनुसार ईश्वर है? कबीर दास जी भगवान है?

    A-निर्गुण एवं निराकार ईश्वर।

    Q-कबीर की शिक्षा क्या थी?

    A-कबीरदास को कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं मिली थी बल्कि उन्होने साधु-संगति में रहकर ज्ञान अर्जन किया था।

    Q-कबीर दास जी की रचनाएं कौन -कौन सी है?

    A-कबीर दास जी की रचना बीजक है एवं इसके तीन भाग है-साखी, सबद एवं रमैनी।
     

    Q-कबीर दास जी की भाषा कौन सी है?

    A-साधुक्क्ड़ी भाषा या पँचमेल भाषा या मिश्रित भाषा।

    Q-कबीर किसके अनुयायी थे?

    A-रामानन्द

    Q-कबीर दास का जन्म कब हुआ था? Kabirdas ka janm kab hua tha? 

    A-कबीरदास का जन्म सन 1398 में हुआ था। 

    Q-कबीरदास का जन्म कहाँ हुआ था? Kabirdas ka janm kaha hua tha? 

    A-कबीर दास का जन्म स्थान काशी माना जाता है।

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