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बक़रीद 2025 : जानें बक़रीद का अर्थ, इतिहास, महत्व एवं बकरीद पर निबंध

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बक़रीद 2025 : जानें बक़रीद का अर्थ, इतिहास, महत्व एवं बकरीद पर निबंध
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बक़रीद 2025- बक़रीद एक अंतरराष्ट्रीय त्योहार है। यह ईद उल फित्तर के 70 दिन बाद मनाया जाता है। इस त्योहार को बकरीद जिसे ईद-उल-अजहा तथा ईद-उल-जुहा के नाम से भी जाना जाता है।

बकरीद का त्योहार बकरे की क़ुर्बानी का प्रतीक माना जाता है तथा यह त्योहार इस्लामी चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने में मनाया जाता है। इस साल बकरीद का त्योहार 17 जून, 2024 को मानाया जाएगा तथा इस पावन दिन पर लोग हज जैसी पवित्र दरगाह की यात्रा करते है।

बक़रीद का अर्थ (Bakrid meaning in hindi)

बक़रीद का अर्थ क़ुर्बानी वाली ईद से लिया जाता है। यह त्योहार क़ुर्बानी का त्योहार है। इसे ईद उल ज़ुहा, ईद अल-अधा, ईद अल-अज़हा, बक़्रईद, बक़्रीद, क़ुरबानी की ईद, इदे क़ुरबाँ आदि कई नामों से जाना जाता है। पवित्र त्योहार रमजान के 70 दिन बाद बक़रीद का त्योहार आता है। बक़रीद साल के अंतिम माह भी होता है। आम धारणा यह है कि बक़र का अर्थ, बकरे से लिया जाता है। इसी नाम से बक़रीद, या बक़्रईद, बक़्रीद प्रसिद्ध होने लगा।

बक़रीद 2025: बक़रीद कब है 2025 (Bakrid 2025 Date)

वर्ष 2025 में बकरीद का त्योहार 7 जून, दिन- शनिवार को मनाए जाने की उम्मीद है। मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बकरीद का त्योहार त्याग, आत्मसमर्पण तथा आस्था का प्रतीक है। बकरीद को क़ुर्बानी वाली ईद भी कहा जाता है। यह त्योहार रमजान के 70 दिन बाद मनाया जाता है, इस्लाम धर्म में ईद के बाद दूसरा बड़ा त्योहार बकरीद को ही माना जाता है।

20257 जून, दिन- शनिवार

बक़रीद का इतिहास : बक़रीद क्यों मनाया जाता है ? (Why is Bakrid celebrated?)

बक़रीद 2025 :  जानें बक़रीद का अर्थ, इतिहास, महत्व एवं बकरीद पर निबंध
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बकरीद का त्योहार मनाने के पीछे हज़रत इब्राहिम से जुड़ी एक रोमांचक घटना है जो इस प्रकार है, हज़रत इब्राहिम जो अल्लाह के के प्रति असीम आस्था रखते थे एवं वे हर रोज़ अल्लाह की इबादत किया करते थे। हज़रत इब्राहिम के परिवार में उसकी पत्नी एवं एक पुत्र था, पुत्र का नाम इस्माइल था। एक दिन इब्राहिम के सपने में अल्लाह आते है और इब्राहिम की परीक्षा लेते हुए यह कहते है कि अल्लाह के प्रति तुम्हें अपनी भक्ति, निष्ठा एवं आत्मसमर्पण सिद्ध करना होगा। इसके लिए अपनी किसी प्रिय तथा क़ीमती चीज़ की क़ुर्बानी देनी होगी, तो इस बात को लेकर इब्राहिम काफ़ी सोच में पड़ जाता है।

हज़रत इब्राहिम इस दुनिया में सबसे ज़्यादा अपने बेटे इस्माइल से प्यार करता था तथा वह अपने दिल पर पत्थर रख कर अपने बेटे की क़ुर्बानी देने के लिए तैयार हो जाता है।

क़ुर्बानी के दौरान इब्राहिम अपनी आँखो में पट्टी बांध लेते है ताकि वह अपने बेटे का चेहरा न देख सके और जैसे ही ये अपने बेटे की क़ुर्बानी देने जाते है तो बेटे के जगह एक बकरे की क़ुर्बानी हो जाती है और इस्माइल बच जाता है। अल्लाह हज़रत इब्राहिम की यह निष्ठा देख कर काफी प्रसन्न होते है और इस घटना के बाद से बक़रीद के दिन बकरा की क़ुर्बानी देने की चलन शुरू हो गई।

बक़रीद का बकरा (Bakrid ka bakra)

बक़रीद 2025 :  जानें बक़रीद का अर्थ, इतिहास, महत्व एवं बकरीद पर निबंध
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बक़रीद का बकरा त्याग, भक्ति, निष्ठा एवं आत्मसमर्पण और आस्था का प्रतीक है। यह पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) द्वारा परम शक्ति एवं संसार के रचियता अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे की बलि देने के लिए आतुर हो जाने की भावना को व्यक्त कराता है। बक़रीद के बकरे का गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस उत्सव का केंद्र ही बलि का बकरा है।

इस प्रकार बकरीद के दौरान बकरे की बलि देने की प्रथा की शुरुआत हो जाती है।

बक़रीद के बकरे का चुनाव कैसे किया जाता है?

बकरीद के लिए बकरे का चयन धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि बकरा स्वस्थ होना चाहिए, उसमें कोई दोष नहीं होना चाहिए और बकरे की आयु एक वर्ष या उससे अधिक की नहीं होनी चाहिए। त्यौहार से कुछ दिन पहले लोग सबसे अच्छा बकरा ख़रीदने के लिए बाज़ार जाते हैं। चुने गए बकरे की तब तक ध्यान रखा जाता है, जब तक बलि नहीं दी जाती।

बकरीद के दिन मस्जिद में विशेष नमाज़ के बाद बलि की रस्म शुरू होती है। बलि दिए गए बकरे के मांस को तीन भागों में बांटा जाता है: एक परिवार के लिए, एक रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और एक भाग ग़रीबों के लिए।

बक़रीद का चाँद (Bakrid ka Chand) का महत्व

आप सभी ने हिजरी कैलेंडर का नाम सुना होगा, यह इस्लाम धर्म का प्रमुख कैलेंडर है। इसे चंद्र कैलेंडर भी कहा जाता है। इस चंद्रा कैलेंडर में 12 माह होते हैं एवं कुल दिनों की संख्या 354 या 355 होते हैं। हिजरी कैलेंडर चंद्रमा के चक्रों पर निर्भर करता है। प्रत्येक महीने की शुरुआत नए चाँद के दिखने से होती है। त्योहारों की तिथि की घोषणा नए चाँद के दिखने पर निर्भर करता है। बकरीद की तारीख हर साल बदलती रहती है, क्योंकि यह चंद्र चक्र पर निर्भर करती है।

बकरीद चाँद का ख़ास महत्व है क्योंकि यह ईद-उल-अज़हा के आगमन का प्रतीक है। बक़रीद का चाँद इस्लामी कैलेंडर के 12वें और अंतिम महीने धू अल-हिज्जा के 10वें दिन दिखाई देने का संकेत देता है, इस दिन ईद-उल-अज़हा मनाई जाती है। यह त्योहार खुशी, एकता, भाईचारे एवं सामूदायिक की भावना का प्रतीक है। इस दिन दुनिया भर के लोग, चाहे वे किसी भी देश या स्थान पर हों, एक ही चाँद को देखते हैं, जिससे वैश्विक एकजुटता की भावना को बढ़ावा मिलता है।

बक़रीद का रोजा कब है? (Bakrid ka roza kab hai)

यों तो रमजान का रोजा सबसे प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण रोजा है। पर बकरीद का रोज़ा का खास महत्व है। कहा जाता है कि बक़्रिद का रोजा नेकी को बढ़वा देता है। यह वर्ष का अंतिम माह होता है। इस त्योहार के शुरू होने से पहले 9 दिन तक रोजा रखे जाते हैं। बकरीद से पहले का दिन, जिसे अराफा का दिन कहा जाता है जो बहुत महत्वपूर्ण है। यह इस्लामी महीने जिल-हिज्जा का 9वाँ दिन होता है।

अराफा के दिन उपवास करना अत्यधिक अनुशंसित है। ऐसा माना जाता है कि यह पिछले वर्ष और आने वाले वर्ष के पापों के प्रायश्चित से मुक्ति दिलाता है। 10वें दिन बक़रीद मनाया जाता है और इस दिन रोजा नहीं रखा जाता है।

बक़रीद का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

बकरीद का त्योहार आने से पहले लोग इसकी तैयारी में जुट जाते है तथा 10 दिन पहले ही लोग अपनी घर की साफ-सफाई करने लगते है तथा अन्य त्योहारों की तरह लोग बकरीद में पहनने के लिए नये कपड़े ख़रीदते है तथा इस दिन लोग अपने मित्रों को घर पर इन्वाइट करते है और इस खास अवसर पर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते है।

नए कपड़े पहनना, विशेष प्रार्थना करना और दोस्तों और परिवार से मिलना आम रीति-रिवाज हैं। इस दौरान गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान देने जैसे महान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाता है। बकरीद के दिन बकरे की क़ुर्बानी दी जाती है और इस पावन दिन पर कई जगहों में जरूरत मंदो को भोजन कराया जाता है।

बक़रीद का महत्व:

मुस्लिम समुदाय में बकरीद के त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन दुनिया भर के मुसलमान बकरीद के चांद को देखते हुए, एक-दूसरे से जुड़ते हैं, बलिदान एवं ईश्वर के प्रति समर्पण भाव रखकर इस त्योहार को बड़े ही धूम-धाम से मानते हैं।

बकरीद का यह त्योहार भाईचारे का प्रतीक है। तथा इस दिन लोग अल्लाह को याद कर नमाज अदा करते है और लोग एक-दूसरे से गले मिलकर बकरीद के त्योहार का बधाई देते है और मिठाइयाँ बाँटते है।

बकरीद के उत्सव का आर्थिक महत्व भी है। बलि अर्थात् फ़र्ज़ ए क़ुर्बानी के बकरे की माँग बाज़ार में सबसे अधिक होती है। इससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।

बक़रीद आस्था, बलिदान, धर्मार्थ कार्यों और सामुदायिक भावना को भी व्यक्त करता है। इस दिन लोग ग़रीबों एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मदद करते हैं। क़ुर्बानी के मांस का एक हिस्सा उन्हें भी दिया जाता है।

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हिंदी दिवस 2024-जानें हिंदी दिवस का इतिहास एवं महत्व (Hindi Diwas)

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हिंदी दिवस का इतिहास एवं महत्व (Hindi Diwas)

हिंदी दिवस-हर साल 14 सितंबर को राजभाषा के रूप में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, कार्यालयों, स्वायत संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों, सरकारी बैंकों में हिन्दी दिवस बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है।

इस blog में हिन्दी दिवस कब एवं क्यों मनाया जाता है? हिन्दी दिवस 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है? हिन्दी दिवस का इतिहास एवं महत्व, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 एवं 351, 345, मुंशी-अयंगर सूत्र, संयुक्त राष्ट्र संघ की महाशक्तिशाली राष्ट्रों की भाषाएं एवं हिन्दी, केंद्र सरकार की राजभाषा एवं राज्यों की राजभाषा नीति में अंतर आदि बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है।

हिंदी दिवस 2024-हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है?

देश की भाषायी सौहार्द एवं हिंदी की ऐतिहासिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया।सरकारी कार्यालयों में प्रतिवर्ष 14 सितंबर (14 सितंबर 1949 को भारत संघ की राजभाषा का दर्जा मिलने की कारण) को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि सरकारी दफ्तरों में राजभाषा हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ता रहे।

इस दिन सरकारी कार्यालयों में हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार के लिए कई कार्यक्रम आयोजित की जाते हैं एवं सरकारी कर्मचारियों द्वारा हिंदी में किए गए कार्यों की समीक्षा की जाती है। 

हिन्दी दिवस का इतिहास – History of Hindi Diwas

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी का महत्व लगातार बढ़ता गया। यह संचार साधन और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक था। भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत की संविधान सभा राजभाषा के मुद्दे पर भी गहन रूप से चर्चा की जिसमें हिंदुस्तानी (उर्दू मिश्रित हिंदी) एवं हिंदी (संस्कृत निष्ठ हिंदी) पर काफ़ी बहस हुई। 

देश की कामकाज की भाषा हिंदी हो या हिंदुस्तानी-यह विवाद का विषय हो गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि हिंदी (हिंदुस्तानी) ही राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी हिंदी को बढ़ावा देने का समर्थन किया था।

कैबिनेट मिशन योजना, 1946 एवं राजभाषा हिन्दी

भारत  कैबिनेट मिशन योजना, 1946के तहत भारत का संविधान तैयार करने के लिए एक संविधान सभा के गठन किया गया जिसकी पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई एवं संविधान सभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को अनंतिम अध्यक्ष के रूप में चुना। 11 दिसंबर, 1946 को, संविधान सभा ने डॉ राजेंद्र प्रसाद को अपना स्थायी अध्यक्ष चुना।

संविधान सभा ने संविधान बनाने के लिए कई समितियों की नियुक्ति की। इसमें भाषा संबंधित मामलों पर भी समिति गठित की गयी। इनमें बाबा साहेब अंबेडकर सहित 16 सदस्य थे।

संविधान में भाषा संबंधित विस्तृत  प्रावधान हेतु मुंशी-अयंगर सूत्र-Munshi-Iyengar formula

देश की राजकाज की भाषा क्या हो इस पर  एक प्रारूप समिति का गठन किया गया जिसमें 16 सदस्य थे। इनमें बाबा साहेब अंबेडकर, मौलाना आजाद और श्यामाप्रसाद मुखर्जी, गोपालस्वामी आयंगर और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी आदि लोग थे। संविधान सभा के सदस्य श्री के.एम. मुंशी और श्री एन. गोपालस्वामी अयंगर ने संविधान में भाषा संबंधित विस्तृत  प्रावधान तैयार किए जिसे मुंशी-अयंगर सूत्र के रूप में जाना जाता है। 

संविधान में भाषा संबंधित अनुच्छेद 343 से लेकर 351, इसके अलावा अनुच्छेद120 एवं 210 भी लागु किए गए। 

14 सितंबर 1949 के दिन एवं हिंदी

अंततः 14 सितंबर 1949 के दिन ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किया गया एवं  एवं 26 जनवरी 1950 को जब हम भारतीयों ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव अर्थात् भारतीय संविधान को अपनाने के साथ राजभाषा के रूप में हिंदी को भी अपनाया।भारत की संविधान सभा ने सरकारी भाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार का दायित्व केंद्र सरकार को दिया। 

भारतीय संविधान में हिन्दी राजभाषा के रुप में : अनुच्छेद 343

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को राजभाषा के रूप में उल्लेख किया गया है।  

एवं केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के प्रयोग सरकारी कार्य के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय (1,2,3,4,5,6,7,8,9,10) रूप को मान्यता दी गयी है। 

राज्य सरकार की  राजभाषा-अनुच्छेद 345

राज्य सरकार, राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को राजभाषा स्वीकार कर सकता। आज भारत के 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशो ने हिन्दी सहित अपने राज्यों में प्रयुक्त होने वाली राजभाषा को अपनाया है। संबंधित राज्य सरकार का कामकाज उसी भाषा में हो रहा है। मसलन पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार की राजभाषा बंगला है तो बिहार, यूपी, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली आदि राज्यों की राजभाषा हिन्दी है। 

हिंदी के प्रचार-प्रसार का पूरा दायित्व केंद्र सरकार का संवैधानिक दायित्व : अनुच्छेद 351 / Constitutional responsibility of the Central Government for the promotion of Hindi: Article 351

भारत की संविधान सभा ने  सरकारी भाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार का दायित्व केंद्र सरकार को सौंपा है। केंद्र सरकार को यह निदेश दिया गया है कि  – हिंदी भाषा का प्रसार करने का दायित्व केंद्र सरकार उठाएगी। 

हिंदी भाषा का प्रसार इस प्रकार करना है ताकि हिन्दी भारत की मिश्रित एवं बहुभाषी संस्कृति के  अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। 

आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ

हिंदी भाषा का प्रसार इस प्रकार करना है जिससे कि हिन्दी की मूल प्रकृति में हस्तक्षेप न हो, एवं हिंदुस्तानी और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य 22 भाषाएं :-

असमिया
बंगाली
गुजराती
हिंदी
कन्नड़
कश्मीरी
कोंकणी
मलयालम
मणिपुरी
मराठी
नेपाली
उड़िया
पंजाबी
संस्कृत,
सिंधी
तमिल
तेलुगु
उर्दू
बोडो
संथाली
मैथिली और
डोगरी

में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात किया जाए एवं और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करना है।  

केंद्र सरकार की राजभाषा एवं राज्यों की राजभाषा नीति  में अंतर 

राज्यों के पास पूरा अधिकार है कि वे अपनी राजभाषा को राज्य के प्रत्येक कार्यों में उसे अनिवार्य घोषित करे या राज्य अपने क्षेत्र में भाषा नीति को बलपूर्वक लागू कर सकता है। जबकि केंद्र सरकार की राजभाषा नीति प्रेरणा एवं प्रोत्साहन पर आधारित है। राजभाषा हिन्दी का प्रचार प्रसार प्रेरणा एवं प्रोत्साहन की नीति के आधार पर ही किया जा रहा है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ की महाशक्तिशाली राष्ट्रों की भाषाएं एवं हिन्दी

संयुक्त राष्ट्र संघ की महाशक्तिशाली राष्ट्रों की छह राजभाषाएं हैं- अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश जबकि अंग्रेजी और फ्रेंच संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकाज की भाषाएं हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार कि हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को स्थान दिलाने के लिए कुल 193 सदस्य देशों में से न्यूनतम 129 सदस्य देशों का समर्थन चाहिए। इसके अलावा इसमें भारत सरकार को काफी खर्च भी वहन करना पड सकता है।

विश्व हिन्दी सम्मेलन

हिन्दी दिवस का इतिहास-हिंदी दिवस 2024-जानें हिंदी दिवस का इतिहास एवं महत्व (Hindi Diwas)

चूंकि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में एक महत्वपूर्ण देश है। भारत सरकार का यह प्रयास रहा है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की 7 वे राजभाषा के रूप में शामिल किया जाए। भारत विश्व हिन्दी सम्मेलनों के माध्यम से हिन्दी का प्रचार -प्रसार वैश्विक स्तर पर कर रहा है। 

अब तक कुल 12 विश्व हिन्दी सम्मेलनों का आयोजन भी किया जा चुका है। प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस का भी आयोजन किया जा रहा है ताकि विदेशों में भी दुनिया के सबसे लोकतन्त्र की भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ में भी स्थान मिले।

हिंदी प्रचार -प्रसार के सरकारी प्रयास 

“हिंदी दिवस समारोह” एक ऐसा आयोजन है जहां सरकारी अधिकारी, नीति निर्माता और भाषा विशेषज्ञ हिंदी भाषा के विकास पर चर्चा करने के लिए एक साथ एकत्रित होते हैं और हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित करते हैं।  हिंदी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की गई हैं:

राजभाषा कीर्ति पुरस्कार

केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों में राजभाषा हिंदी के सफल कार्यान्वयन के लिए हर साल राजभाषा कीर्ति पुरस्कार दिया जाता है।

राजभाषा गौरव पुरस्कार

राजभाषा गौरव पुरस्कार हर साल भारतीय नागरिकों को दिया जाता है। यह पुरस्कार ज्ञान, विज्ञान, कला, इतिहास, धर्म और संस्कृति पर मौलिक पुस्तकें लिखने के लिए दिया जाता है।

हिंदी परीक्षा उत्तीर्ण करने पर नकद पुरस्कार और प्रोत्साहन

केंद्र सरकार के कर्मचारियों को भारत सरकार की हिंदी शिक्षण योजना के तहत केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने पर व्यक्तिगत वेतन, नकद पुरस्कार और प्रोत्साहन से सम्मानित किया जाता है। इस योजना के तहत कर्मचारियों को एक समयबद्ध कार्यक्रम के भीतर हिंदी सीखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

हिन्दी दिवस का महत्व-Importance of Hindi Day 

भारत भाषायी सौहार्द का अनूठा देश है। यहाँ अनेक भाषाएँ व बोलियां बोली जाती है एवं हिंदी सदियों से बहुभाषी देश की सम्पर्क भाषा रही है जो वर्तमान में भारत की राजभाषा होनी के साथ -साथ भारत कुल 11 राज्यों एवं तीन संघ शासित राज्यों की प्रमुख राजभाषा भी है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने कहा था –

‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल’।

अर्थात सभी को अपनी भाषा का महत्व एवं ज्ञान होना चाहिए। अपनी भाषा से ही देश प्रगति के मार्ग प्रशस्त होगा। जब हम अपनी भाषा में बात करते है तो दूसरे भी इसका सम्मान करते हैं।

हिंदी दिवस समारोह

भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को भारत गणराज्य की राजभाषा के रूप में अपनाई गई थी एवं हिंदी दिवस पहली बार 1953 में उस दिन मनाया गया था जब हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। इसके साथ ही भारत की संविधान सभा ने हिंदी के विकास, प्रचार-प्रसार एवं सरकारी कार्य की भाषा के रुप में विकसित करने का दायित्व केंन्द्र सरकार को सौंपा।

इस दिन, सरकारी संस्थान, स्कूल और सांस्कृतिक संगठन सेमिनार, वाद -विवाद, निबंध लेखन, स्लोगन एवं पोस्टर प्रतियोगिता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

आज हिंदी एक विकसित भाषा बन चुकी है, जो अन्य देशों के लोगों द्वारा भी बोली और अच्छी तरह से समझी जाती है। हिंदी को राजभाषा बनाए जाने पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था,

“भारत की सारी प्रान्तीय बोलियाँ जिनमें सुन्दर साहित्य रचना हुई है, अपने घर या प्रान्त में रानी बनकर रहें, प्रान्त के जनगण के हार्दिक चिन्तन की प्रकाशभूमि स्वरूप कविता की भाषा होकर रहें और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि हिन्दी भारत-भारती होकर विराजती रहे।”

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हिंदी दिवस सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q-हिन्दी दिवस कब मनाया जाता है?

A-प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

Q-हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है?

A-संविधान सभा ने अनुच्छेद 343 के अनुसार भारत सरकार की राजभाषा हिन्दी घोषित किया था इसीलिए हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

Q-हिन्दी दिवस 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है?

A-14 सितंबर के दिन ही हिंदी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया था इसीलिए प्रतिवर्ष भारत में हिन्दी दिवस 14 सितंबर मनाया जाता है।

Q-भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में कितनी भाषाएँ है?

A-संविधान की 8वीं अनुसूची में कुल 22 भाषाएँ है।

Q-भारतीय संविधान का अनुच्छेद 351 क्या है?

A-इसके तहत हिंदी के प्रचार-प्रसार का पूरा दायित्व केंद्र सरकार को सौंपा गया है।

Q-भारतीय संविधान का अनुच्छेद 345 क्या है?

A-राज्य सरकार की राजभाषा के संबंध में प्रावधान है।

Q-भारतीय संविधान का अनुच्छेद 343 क्या है? 

A-हिंदी को भारत सरकार की राजभाषा होगी।


राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस : जानें राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस का इतिहास एवं महत्व (National Safety Day)

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(National Safety Day)

भारत में हर साल 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस (National Safety Day) मनाया जाता है। प्रतिवर्ष 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के दिन कार्यस्थलों एवं कारख़ानों में काम करने वाले मजदूरों एवं कर्मचारियों को सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन सभी तरह के सुरक्षा उपायों के बारे में आम लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाती है। कहा भी गया है -‘Awareness is the key to safety 

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस (National Safety Day)

सुरक्षा दिवस एक महत्वपूर्ण दिवस है जो दुनिया भर में कार्यस्थलों पर सुरक्षित और स्वस्थ परिवेश के बारे में हमें जागरूक करता है। दुनिया भर की  सरकारें इस विषय को लेकर अत्यंत गंभीर है। इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों, कानूनों और विनियमों को लागू किए जाने के प्रयास किए जा रहे है।

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? 

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस प्रतिवर्ष 4 मार्च को पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने एवं दुर्घटनाओं की रोकथाम एवं सभी सुरक्षा उपायों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। कहा भी गया है -‘जागरूकता ही संरक्षा की कुंजी है।‘

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस एवं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO )

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO ) के वर्ष 2000 के आंकड़ों के अनुसार से कार्यस्थल पर हुए दुर्घटनाओं और बीमारियों के कारण हर साल बीस लाख मजदूरों एवं कार्मिको की मृत्यु हो जाती है। काम से संबंधित इस जानलेवा दुर्घटनाओं से लाखों ज़िंदगी बर्बाद हो जाती है। प्रति दिन के हिसाब से यह मौत के ये आंकड़े 5,000 से अधिक है। वैश्विक स्तर पर यह एक गंभीर चिंता का विषय हैं। 

वैश्विक स्तर पर विश्व सुरक्षा दिवस का अनुपालन 

वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 28 अप्रैल को विश्व सुरक्षा दिवस पालन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने वैश्विक स्तर पर दुर्घटनाओं की रोकथाम एवं कार्यस्थलों पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 28 अप्रैल को विश्व सुरक्षा दिवस घोषित किया विश्व सुरक्षा दिवस मुख्य उद्देश्य विश्व के लोगों में सुरक्षा (Safety), स्वास्थ्य (Health) और पर्यावरण (Environment)  के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना है। 

History of the National Safety Day राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस का इतिहास

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस का इतिहास राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना से ही जुड़ा हुआ है। अतः राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के इतिहास को समझने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की भी जानकारी आवश्यक है। वर्तमान में पूरे देश में राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस से संबंधित विभिन्न अभियानों को गति एवं कार्यान्वयन यही परिषद करता है।

National Safety Council (NSC) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद

तत्कालीन सरकार की इच्छा थी कि कार्यस्थलों पर सुरक्षा संबंधी जागरूकता  फैलाने, जागरूक एवं जिम्मेदार होकर इन दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए एक संस्था का गठन हो। अतः   राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 4 मार्च, 1966 को श्रम मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना की गई थी। 

इसीलिए इस दिनअर्थात 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। उस समय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था और बाद में बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के तहत एक सार्वजनिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया था।

भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस कैसे मनाया जाता है? (Important activities on National Safety Day)

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के तहत आम लोगों को सुरक्षा नियमों की जानकारी के लिए सेमिनार, कार्यशालाएं, सुरक्षा अभ्यास, प्रशिक्षण सत्र, सुरक्षा पर निबंध लेखन, प्रशंमंच, सेफ़्टी प्लेज  और जागरूकता अभियान का आयोज्न किया जाता है। 

National Safety Day राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस का इतिहास

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के अवसर पर विभिन्न जागरूकता अभियान कार्यक्रमों का आयोजन:

सड़क सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा, विद्युत सुरक्षा और अग्नि सुरक्षा सहित सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी देने के लिए विभिन्न जागरूकता अभियान आयोजित किए जाते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के अवसर पर  राष्ट्रीय अभियानों का विवरण इस प्रकार है :

अग्नि से सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय अभियान : 

हमारे देश में प्रतिवर्ष 14 अप्रैल अग्निशमन दिवस अथवा राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है एवं इसी दिन से प्रारम्भ होकर अगले एक सप्ताह तक के लिये अग्नि संरक्षा सप्ताह भी मनाया जाता है। इसके आयोजन का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को आग से होने वाली क्षति के प्रति जागरूक करना, आग की रोकथाम एवं आग से बचाव के उपायों के संबंध में शिक्षित करना है।

“अग्नि दुर्घटना से है जबर्दस्त नुकसान, अग्नि बचाव को बनाये जन-जन का अभियान।”

भारत को एक विकासशील देश माना जाता है एवं इस विकास के साथ आग से संबंधित दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ी है। अतः आग की रोकथाम से संबंधित उपायों को ध्यान में रखकर हम अपने कार्यालय एवं आवास को सुरक्षित रख सकते हैं। पर इसके लिए अनिवार्य है कि हमारे पास ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एक उचित प्रबंध हो। जानकारी के अभाव में ही बड़ी–बड़ी दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। अतः इस विषय में पर्याप्त जानकारी भी होना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, इस संबंध में लोगों की इच्छा शक्ति एवं उनकी जागरूकता से काफी हद तक आग से होने वाली दुर्घटनाओं को रोक सकते हैं।  

सड़क सुरक्षा अभियान 

भारत में सबसे ज्यादा सड़क हादसे होते हैं। भारत सड़क दुर्घटना के मामले में पहले स्थान पर, अमेरिका और चीन से आगे है।  सड़क संरक्षा उपायों का प्रमुख लक्ष्य सभी प्रकार की दुर्घटनाओं को कम करना है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में 43.6 फीसदी दोपहिया वाहन चालक हुए हादसों का शिकार हुए। एनसीआरबी के अनुसार लॉकडाउन के बावजूद हर दिन 328 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना से हुई।

पर नियमों का जानकारी एवं जागरूक रहकर इन दुर्घटनाओं से हम अपने आप को एवं अपने परिवार को  सुरक्षित रख सकते हैं। इस अभियान के तहत मोटर चालकों और पैदल यात्रियों को सूचनात्मक सामग्री, जैसे पैम्फलेट और ब्रोशर का वितरण किया जाता है।

कहा गया है –“सुरक्षित कार्य है कर्त्तव्य हमारा, सुरक्षित जीवन से जुड़ा है परिवार हमारा”

विद्युत सुरक्षा अभियान 

सरकारी आँकड़ों के अनुसार, अग्नि के 60 प्रतिशत से ज्यादा मामले विद्युत की शॉटसर्किट, ओवरहोल्डिंग, गैर मानकीकृत उपकरणों का प्रयोग, लापरवाही एवं अज्ञानता आदि के कारण होते हैं। अतः इस विषय में पूरी सावधानी बरतना अनिवार्य है। भारतीय मानक संस्थान द्वारा प्रमाणित विद्युतीय उपकरणों का ही सदैव प्रयोग करें। आग लगने पर शुष्क रेत, कार्बन डाई ऑक्साइड, शुष्क पाऊडर अथवा एबीसी प्रकार के अग्निशामकों का प्रयोग करें।

साइबर सुरक्षा अभियान:

आज के इस डिजिटल युग के बढ़ते खतरों से निपटने के लिए, सुरक्षा दिवस में साइबर सुरक्षा को संबोधित करने वाले कार्यक्रम भी शामिल किए जाते हैं इसके तहत सेमिनार और वेबिनार सुरक्षित ऑनलाइन लेन देन, साइबर खतरों से सुरक्षा और डेटा गोपनीयता के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।

पर्यावरण सुरक्षा अभियान:

व्यक्तिगत सुरक्षा के अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस पर्यावरण सुरक्षा पर भी जोर दे सकता है। इसके तहत अपशिष्ट निपटान, प्रदूषण नियंत्रण आदि के बारे में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। 

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के अवसर पर पोस्टर एवं सूचनापत्रों का वितरण:

सुरक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए निम्नलिखित प्रचार सामाग्री का सहारा लिया जाता है:  पोस्टर, पुस्तिकाएं,  बैनर,  पॉकेट बुकलेट, सुरक्षा फिल्में,  प्रचार साहित्य और सुरक्षा पर आलेख आदि। इनमें सुरक्षा प्रदर्शन, सूचनात्मक सामग्री का वितरण एवं लोगो की सहभागिता को शामिल महत्व दिया जाता  हैं।

उपरोक्त अभियानों को प्रभावी ढंग से आयोजित करने के लिए, यह विशेष रूप से डिज़ाइन की गई प्रचार सामग्री लाता है:

1) बैज,  सूचना पुस्तिकाएं

3) कपड़े के बैनर

4)  पोस्टर, पॉकेट गाइड / बुकलेट 

6) विशिष्ट सुरक्षा संदेशों को ले जाने वाले विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए प्रचार साहित्य और उपयोगी लेख एवं  सुरक्षा से संबंधित फिल्में

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के अवसर पर सुरक्षा के संबंध मे जागरूकता फैलाना-

कार्यस्थलों एवं कारखानो में कार्यरत सभी कर्मचारियों एवं आम जनता में सुरक्षा के संबंध मे जागरूकता बढ़ाया जाता है। विभिन्न संगठनों को सुरक्षा के बारे में जागरूक किया जाता हैं। विभिन्न राष्ट्रीय अभियानों द्वारा लोगों को सुरक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है ताकि दुर्घटनाओं को समय रहते रोक कर आर्थिक नुकसान को रोका जा सके एवं किसी के जीवन को बचाया जा सके।

जानकारी के अभाव में ही बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। अतः इस विषय में पर्याप्त जानकारी भी होना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, इस संबंध में लोगों की इच्छा शक्ति एवं उनकी जागरूकता से काफी हद तक दुर्घटनाओं को रोक सकते हैं। 

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के अवसर पर थीम जारी किया जाना 

भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस पर प्रत्येक वर्ष, एक थीम जारी किया जाता जो महत्वपूर्ण सुरक्षा से जुड़े विषयों पर आधारित होता है। थीम पर आधारित कई  गतिविधियों, चर्चाओं और अभियानों का आयोजन किया जाता है। जिसमें सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना, दुर्घटनाओं और घटनाओं को रोकना और कार्यस्थलों और दैनिक जीवन में सुरक्षा को बढ़ावा देना शामिल है।

सेफ़्टी प्लेज

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस के अवसर पर सेफ़्टी प्लेज का भी सभी कार्यालयों में अनुपालन किया जाता है ताकि कार्यस्थलों में सुरक्षा को प्राथमिकता मिले एवं सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करें।

फास्ट एड ट्रेनिंग

प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण सत्र आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस पर आयोजित किए जाते हैं, जिससे व्यक्तियों को बुनियादी जीवन-रक्षक कौशल से लैस किया जाता है। इससे दुर्घटनाओं या आपात स्थिति के मामले में तत्काल सहायता मिलती है।

इमरजेंसी मैनेजमेंट अभ्यास 

कुछ संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस को सही तौर पर अमल में लाने के आप्तकालीन स्थिति से निपटने के लिए कैसे कार्य किया जाता है, कैसे कठिन परिस्थितियों से निपटा जाता है, आदि पर इमरजेंसी मैनेजमेंट का आयोजन करते हैं।  ये अभ्यास प्रत्याशित आपातकालीन स्थितियों का अनुकरण कर समस्याओं से निपटने के लिए किया जाता है ताकि अगर सही में ऐसी स्थिति आ जाए तो तुरंत समाधान हो। अभ्यास के तहत इसमें टीमों का गठन किया जाता है प्रत्येक टीम को कुछ विशेष टास्क दे दिया जाता है।

Safety Training-सुरक्षा प्रशिक्षण

कार्यस्थलों में सुरक्षित वातावरण बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि कार्मिकों को सुरक्षा से संबंधित सभी सुरक्षा प्रशिक्षण दिए जाए। इस प्रशिक्षण में प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण, अग्नि सुरक्षा प्रशिक्षण और खतरनाक वस्तुओं को संभालने का प्रशिक्षण शामिल है।

Personal Protective Equipment (PPE) व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) की जानकारी 

कार्मिकों को खतरों से बचाने के लिए उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) एवं प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है। तभी वे सुरक्षित रूप से काम कर सकेंगे। 

Security Audit-सुरक्षा ऑडिट 

सुरक्षा संबंधित ऑडिट करने से कार्यस्थल में सुरक्षा खतरों और जोखिमों (Risk) की पहचान करने में मदद करते हैं और जोखिम मूल्यांकन से संभाविर खतरों की पहचान की जा सकती है।

Importance of National Safty Day – राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस का महत्व :

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस की संकलपना अत्यंत ही विस्तृत है। इसके अंतर्गत आग से सुरक्षा, सड़क सुरक्षा, विद्युत सुरक्षा, आग से संबंधी दुर्घटनाओं की रोकथाम, मनुष्य द्वारा निर्मित गतिविधियों से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचे इसीलिए पर्यावरण सुरक्षित करने वाली कार्य प्रणाली को बढ़ावा दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त सड़क सुरक्षा नियमों के अनुपालन हेतु सड़क सुरक्षा सप्ताह/दिवस एवं विद्युत से होने वाली दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय विद्युत सुरक्षा सप्ताह एवं दिवस का अनुपालन शामिल है। भारत में सड़क सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष जनवरी माह में सड़क सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। भारत में सबसे ज्यादा सड़क हादसे होते हैं।

भारत सड़क दुर्घटना के मामले में पहले स्थान पर, अमेरिका और चीन से आगे है। सरकारी आकड़ों के अनुसार सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों की संख्या के मामले में 199 देशों की सूची में भारत पहले स्थान पर है और दुनिया में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों में लगभग भारत का 11% हिस्सा है।

Conclusion-निष्कर्ष 

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि भारत को एक विकासशील देश माना जाता है एवं इस विकास के साथ दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ी है अतः सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखकर हम अपने कार्यालय एवं आवास को सुरक्षित रख सकते हैं। 

पर इसके लिए अनिवार्य है कि हमारे पास ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एक उचित प्रबंध हो। सुरक्षा उपायों का प्रमुख लक्ष्य सभी प्रकार की दुर्घटनाओं को कम करना है। एक साथ काम करके, हम दुनिया भर में सुरक्षा की संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं और काम से संबंधित चोटों और बीमारियों को रोक सकते हैं।

सड़क सुरक्षा हो या स्वास्थ्य और पर्यावरण पर सुरक्षा या कार्यस्थलों पर सुरक्षा हो, हम जागरूक रहकर काफी हद अपने एवं परिवार को सुरक्षित कर सकते हैं। सड़कों पर बढ़ती दुर्घटनाओं का मुख्य कारण तेज रफ्तार एवं लापरवाही है। कहा भी गया है कि ‘जो नियमों से जोड़ेगा नाता, वही समझदार कहलायेगा

National Safety Day-FAQ

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस कब मनाया जाता है? 

4 मार्च

विश्व सुरक्षा दिवस कब मनाया जाता है? 

प्रतिवर्ष 28 अप्रैल को विश्व सुरक्षा दिवस घोषित किया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस क्यों मनाया जाता है?

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने एवं दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए मनाया जाता है।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद : जीवनी, जयंती, रचनाएँ, कहानियाँ एवं उपन्यास (Munshi Premchand ka jeevan parichay)

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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी: हिंदी साहित्य में कथा सम्राट, उपन्यास सम्राट, अगर किसी को कहा जाता है तो वह मुंशी प्रेमचंद ही हैं। प्रेमचंद जी ने साहित्य की हर एक विधा अर्थात् कहानी, नाटक, उपन्यास, बाल साहित्य, पत्रों की समीक्षाएँ एवं सम्पादन, सम्पादकीय आदि पर लेखन कार्य किया था। इन्होंने अपना लेखन कार्य हिंदी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओँ में लिखा है। हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रेम चंद द्वारा रचित साहित्य तथा उनके काल को ‘प्रेम चंद युग’ के नाम से जाना जाता है। इनकी उपन्यास लेखन की कला से प्रभावित होकर बंगला के महान लेखक श्री बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी।

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी पर एक संक्षिप्त दृष्टि (Munshi Premchand ka jeevan parichay)

नाममुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, धनपत राय
बचपन का नामधनपत राय
अन्य नामनवाब राय
जन्म31 जुलाई, 1880
जन्म स्थान बनारस के पास लमही नामक गाँव में
पिता अजायब लाल
पिता का पेशाडाकघर में मुंशी का कार्य करते थे.
माता आनंदी देवी
पत्नी शिवरानी देवी
प्रेमचंद के पुत्र एवं पुत्री का नामपुत्र- 1)अमृत राय 
      2)श्री पथ राय 
पुत्री-  कमला देवी 
प्रेमचंद के नाटक संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी (प्रेमचंद ने केवल 3 ही नाटक लिखे हैं।)
प्रेमचंद के कहानी मानसरोवर, नमक का दारोग़ा(1913) सज्जनता का दंड (1916) ईश्वरीय  न्याय (1917) दुर्गा का मंदिर (1917)
प्रेमचंद के उपन्यास गोदान, ग़बन, सेवासदन, निर्मला, प्रेमाश्रम
प्रेमचंद की रचनाओं का मूल विषयगाँव, ग्रामीण जीवन, समाज एवं किसान जीवन, राष्ट्रीय चेतना,
भाषा ज्ञानहिंदी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी
देहांत56 साल के उम्र में 8 अक्टूबर 1936 

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जीवनी (Munshi Premchand ka jeevan parichay )

प्रेम चंद का जन्म  31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के पास लमही नामक गाँव में हुआ था। प्रेमचंद का मूल एवं वास्तविक नाम धनपत राय था। लोग उन्हें नवाब के नाम से भी बुलाते थे।

प्रेमचंद जयंती कब और क्यों मनाई जाती है?

प्रत्येक वर्ष 31 जुलाई को प्रेमचंद जयंती के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन प्रेमचंद को नमन कर उनके साहित्य को याद किया जाता है और इस दौरान कई जगहों पर उनके द्वारा रचित नाटक तथा कहानियों पर  कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

प्रेमचंद के माता -पिता का संक्षिप्त परिचय

प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब लाल था जो  डाकघर में मुंशी का कार्य करते थे. प्रेमचंद के माता का नाम आनंदी देवी थी जो सुंदर, सुशील तथा एक गृहणी थी तथा प्रेमचंद के आठ वर्ष के उम्र में ही इनकी माता का देहांत हो गया।

प्रेमचंद की शिक्षा:

प्रेमचंद को हिंदी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओं का ज्ञान था। पर वे शुरू में हिंदी नहीं जानते थे एवं अपने बचपन के लगभग 8 वर्षों तक फ़ारसी का ही अध्ययन किया। 13-14 साल की उम्र से वे हिंदी की ओर उन्मुख हुए। 17 वर्ष की आयु तक इनके पिता का भी देहांत हो चुका था। परिवार की ज़िम्मेदारी का बोझ प्रेमचंद के कंधों पर ही था।

प्रेम चंद का दैयनीय अवस्था बहुत ही खराब थी तथा उनके माता -पिता के जाने के बाद  प्रेम चंद को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। प्रेम चंद जी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी तथा इस गरीबी अवस्था में भी उन्होंने अपने पढ़ाई को जारी रखा। प्रेमचंद पढ़ाई में बहुत ही तेज तथा अव्वल छात्र थे तथा उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर अध्यापक की नौकरी करना प्रारभ किये।

अध्यापक की नौकरी के लिए प्रेमचंद को 18 रुपए का वेतन मिला करता था. वे अपने काम के प्रति बहुत ही सजग थे तथा वे नौकरी के साथ-साथ अपने पढ़ाई को भी जारी रखा. बाद में इनकी नियुक्ति ज़िला सरकारी स्कूल में हो गयी। प्रेम चंद बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण किए एवं साथ में इलाहाबाद टीचर ट्रेनिंग विद्यालय से शिक्षक बनने का ट्रेनिंग लिए।

प्रेम चंद का वैवाहिक जीवन कैसा था?

प्रेम चंद की पहली शादी 15 साल के उम्र में ही हो गई तथा इनका वैवाहिक जीवन खुशहाल नही था। बाद में इनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो जाता है। 1906 में प्रेम चंद ने एक विधवा लड़की से दोबारा शादी की जिनका नाम शिवरानी देवी था तथा शिवरानी देवी के साथ इनके तीन बच्चे हुए।

जानें मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, प्रेमचंद जयंती 2024, रचनाएँ, अनमोल वचन, कहानियाँ एवं उपन्यास की सम्पूर्ण जानकारी (Munshi Premchand ka jeevan parichay)

प्रेम चंद के दो पुत्र तथा एक पुत्री थे.

प्रथम पुत्र- अमृत राय जो एक लेखक थे 

दृतिय पुत्र- श्री पथ राय 

 बेटी- कमला देवी 

‘प्रेमचंद’ नाम कैसे पड़ा ?

उपन्यास के सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद ने कई साहित्य की रचना की थी। कहा जाता है कि उनका यह नाम(प्रेमचंद ) उर्दू के लेखक दया नारायण निगम ने दिया था, तब से वह प्रेमचंद नाम से लेखन कार्य करने लगे।  

प्रेमचंद का साहित्य -मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ

प्रेमचंद अत्यंत ही सरल एवं सहज स्वभाव के व्यक्ति थे। इस सरलता एवं सहजता को उन्होंने अपनी लेखनी में भी उतारा। उनका रचा हुआ साहित्य समाज के हर व्यक्ति पढ़ता है, भले ही वह कोई गरीब हो या कोई रईस। प्रेम चंद  अपने जीवन काल में 14 उपन्यास तथा 300 से अधिक कहानियां लिखे। प्रेम चंद हिंदी साहित्य के प्रमुख रचनाकार है तथा इनके लेखन से हिंदी उपन्यास को एक नई राह तथा दिशा मिली।

उन्होंने सर्वप्रथम साहित्य को उर्दू में लिखना शुरू किए। उनका पहला उपन्यास “हम ख़ुर्मा और हम सबाब” 1907 ईसवी में प्रकाशित हुआ जो एक समाजिक उपन्यास है।

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सोजे वतन कहानी संग्रह

यह प्रेम चंद की पहली कहानी है जो 1909 में प्रकाशित हुई थी तथा यह कहानी उर्दू में लिखा गया था. इस कहानी के माध्यम से  प्रेम चंद  ने देशभक्ति को दुनिया की अनमोल वस्तु माना तथा इस कहानी के द्वारा प्रेम चंद ने देश भक्ति की भावना व्यक्त किया है। चूँकि यह कहानी ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध लिखी गयी थी, इसीलिए अंग्रेजों ने इस कहानी संग्रह पर पाबंदी लगा दी थी। कहानी का एक कथन नीचे दिया गया है-

“खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है”.

सोजे वतन में पाँच कहानी संकलित है जो निम्न है 

  • 1) सांसारिक प्रेम ओर देश प्रेम 
  • 2) दुनिया का सबसे अनमोल रत्न 
  • 3) यह मेरा वतन है 
  • 4) शेख़ मखमूर
  • 5) शोक का पुरस्कार  

पंच परमेशवर कहानी

पंच परमेश्वर कहानी  प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक श्रेष्ठ कहानी है जो 1916 में प्रकाशित हुआ. ‘पंच परमेश्वर’ कहानी में ग्रामीण जीवन को दर्शाया है तथा इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने बताया है कि पंच का पद बहुत ही बड़ा तथा उत्तरदायित्व से भरा होता है।

सवा सेर गेहूँ कहानी

देश की आजादी से पहले प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी सवा सेर गेहूँ में किसानों की कठोर परिस्थितियों को दर्शाया है जो 1924 में प्रकाशित हुआ तथा इस कहानी के माध्यम से  प्रेम चंद्र ने किसान के आर्थिक शोषण का चित्रण किया है इस कहानी का मुख्य पात्र शंकर है जो अपने अंतिम दिनों तक भी सवा सेर आटे का दाम नही चुका पाता है.

वरदान उपन्यास

प्रेम चंद आर्य समाज से प्रभावित होकर वरदान नामक उपन्यास को प्रकाशित किया। यह प्रेम चंद का धार्मिक तथा समाजिक उपन्यास है जो 1921 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास की कथा यह थी की एक महिला जिनका नाम अष्टभुजा था जो माता देवी से प्रार्थना करती है कि उन्हें ऐसे पुत्र चाहिए जो इस देश की उनती के लिए अपना सहयोग दे.

सेवासदन उपन्यास

सेवासदन प्रेम चंद जी एक प्रसिद्ध उपन्यास है तथा यह प्रेमचंद का पहला पौढ़ हिंदी उपन्यास है जो 1919 में  प्रकाशित हुआ. प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से  अपने पात्रों को विश्वसनीय बनाने के लिए जिस परिवेश का निर्माण किया वह बहुत ही प्रभावशाली था तथा इस उपन्यास में  भाव तथा भाषा का सुंदर सामंजस्य देखने को मिलता है. प्रेमचंद ने सेवासदन उपन्यास में वेश्याओँ के जीवन से सम्बंध समस्या का चित्रण किया।

प्रेमाश्रम उपन्यास

प्रेमा श्रम  उपन्यास प्रेमचंद द्वारा रचित  किसानों से संबंधित उपन्यास है जो 1922 में प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास में  किसानों पर हो रहे अत्याचारों तथा शोषण को दर्शाया है जो कि बहुत ही गम्भीर समस्या थी. 

रंगभूमि उपन्यास

यह 1925 में प्रकाशित हुआ. इस उपन्यास के माध्यम से प्रेमचंद ने काशी में बसे एक गाँव को दर्शाया है जिसमें एक राजा महेन्द्र कुमार था जो बहुत ही धनी तथा स्वभाव में कूर था इसके अलावा इस गाँव में एक सूरदास नामक व्यक्ति रहता था जो एक गरीब तथा बहुत ही दयालु व्यक्ति था तथा राजा के बच्चे सूरदास के साथ रहते थे ओर इन्हें ही अपना सब कुछ मानते थे.

गोदान उपन्यास

गोदान  प्रेम चंद का अंतिम तथा बहुत ही महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है. गोदान ग्राम्य जीवन से संबंधित तथा कृषि संस्कृति का महाकाव्य माना जाता है. गोदान उपन्यास का प्रकाशन 1936 ईस्वी में हुआ. इस उपन्यास का प्रमुख पात्र होरी तथा धनिया है. इस उपन्यास के माध्यम से प्रेमचंद ने  किसानों  की दयनीय दशा को प्रस्तुत किया है तथा प्रेमचंद ने बताया है कि किसान ऋण से डूबे होने के कारण भी वे अपने काम को बखूबी करते है।

इस तरह प्रेम चंद द्वारा रचित उपन्यास में एक से अधिक मूल्यवान समस्याओं का चित्रण हुआ है. उनके द्वारा लिखित साहित्य किसानों, दलितों तथा ग्रामीण लोगों के प्रति रचित है. इसके अलावा प्रेमचंद ने नमक का दरोगा, कफन, बूढ़ी काकी, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा, कानूनी कुमार, ईदगाह, बैर का अंत, पूस की रात आदि कहानियों की रचना की।

प्रेमचंद स्वाधीनता आंदोलन में भी शामिल हुए तथा उन्होंने महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में भी भाग लिए. प्रेम चंद ने गांधी जी का समर्थन किया तथा प्रेम चंद की यही आकांक्षा थी कि हमारा देश भी स्वतंत्र हो तथा प्रेमचंद अपने साहित्य ओर पत्रिका के माध्यम से देश को स्वतंत्रत बनाने में सहयोग दिए।

प्रेमचंद द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ

प्रेम चंद ने 1930 इशवी में साप्ताहिक पत्रिका “हंस” की शुरुआत की थी जिसमे उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लिखा था तथा भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों को भी उन्होंने इस पत्रिका के माध्यम से दर्शाया. इसके बाद उन्होंने “जागरण” नामक संपादन शुरू किया तथा इस सभी कार्य के लिए  प्रेमचंद ने सरस्वती प्रेस खरीदा.  

प्रेमचंद द्वारा रचित नाटक

प्रेमचंद ने तीन नाटकों की रचना की तथा इनका पहला नाटक संग्राम जो 1922 में प्रकाशित हुआ. कर्बला जो 1924 में प्रकाशित हुआ तथा यह एक ऐतिहासिक नाटक है तथा  प्रेम की वेदी जो 1933 में प्रकाशित हुआ।

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ-उर्दू उपन्यास

जैसा कि विदित है कि मुंशी प्रेमचंद के कई ऐसे उपन्यास हैं जो मूल रूप से उर्दू में रचे गए हैं, पर बाद में जिनका अनुवाद हिंदी में हुआ-

उर्दू उपन्यासहिंदी रूपांतरवर्ष
असरारे मआविददेवस्थान रहस्य1905
हम ख़ुर्मा व हमसवाबप्रेमा अर्थात् दो सखियों का विवाह1907
किशनाग़बन1931
जलवाए ईसारवरदान1921
बाज़ारे हुस्नसेवासदन1918
गोशाएँ आफ़ियतप्रेमा श्रय1922
चौग़ाने हस्तीरंगभूमि1925

कालक्रम के अनुसार रचनाओं का क्रम :

उपन्यासरचना क्रम के अनुसार
देवस्थान रहस्य1905
प्रेमा1907
सेवा सदन1919
वरदान1921
प्रेमाश्रम1922
रंग भूमि1925
कायाकल्प1926
निर्मला1927
ग़बन1931
कर्मभूमि1933
गोदान1936

प्रेमचंद की कहानियाँ

प्रेमचंद  का मूल नाम धनपत राय था किंतु वह अपना नाम बदलकर नवाब राय रख लिए थे तथा वह अपना साहित्य नवाब राय के नाम पर ही लिखते थे लेकिन एक दिन ब्रिटिश सरकार ने नवाब राय नाम पर आरोप लगाकर  उनके सारे संग्रह को ज़ब्त कर लिया।इसके बाद अब वे प्रेमचंद नाम से कहानी लिखना शुरू किए तथा प्रेमचंद नाम से इनकी पहली कहानी  बड़े  घर की बेटी है  जो 1910 में  प्रकाशित हुआ 

प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानियाँ लिखी है जो मानसरोवर शीर्षक से आठ भागो में प्रकाशित है इसके अलावा प्रेमचंद ने अपने कहानी के माध्यम से यह बताया है कि  “सबसे उतम कहानी वह होती है, जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर होता है “

प्रेमचंद्र का कहानी संग्रह प्रकाशन वर्ष
नमक का दारोग़ा1913
सज्जनता का दंड1916
ईश्वरीय न्याय1917
दुर्गा का मंदिर1917
बूढ़ी काकी1920
शांति1921
सवा सेर गेहूं1924
शतरंज के खिलाड़ी1924
मुक्तिमार्ग1924
मुक्तिधन1924
सौभाग्य के कोड़े1924
दो सखियाँ1928
अलगयोझा1929
पूस की रात1930
समर यात्रा1930
पत्नी से पति1930
सद्गगति1930
दो बैलों की कथा1931
होली का उपहार1931
ठाकुर का कुँआ1932
ईदगाह1933
नशा1934
बड़े भाई साहब1934
कफ़न1936

प्रेमचंद के जीवन आखरी दौर

प्रेमचंद अपने जीवन के आखरी दौर में भी  साहित्य लिखना नही छोड़े. करीब एक साल से गम्भीर बीमारी से जूझने के बाद 8 अक्टूबर 1936 को आखिरी सांसे ली तथा उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र जो पूरा नही लिख सके. प्रेमचंद अपने जीवन काल के 56 वर्षो तक  उपन्यास, नाटक  तथा कहानियां लिखे  थे तथा प्रेमचंद्र अपने लेखन से साहित्य को बहुत ही ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने अपने जीवन के बारे में बड़े ही सादगी से कहा है कि –

“मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं -कहीं गढ़ें तो हैं, पर टीलें, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों एवं खंडहरों का स्थान नहीं है। “

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रोचक जानकारियाँ-

जानें कारक किसे कहते हैं, कारक के शुद्ध प्रयोग, चिन्ह, भेद, उदाहरण, प्रकार की सम्पूर्ण जानकारी। (karak kise kahate hain aur uske bhed)

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कारक किसे कहते हैं: कारक, क्रिया से जुड़ा हुआ है। दूसरे शब्दों में हम वाक्य में काम करने वाले या क्रिया को करने वाले कारक कह सकते हैं। यह किसी वाक्य में संज्ञा एवं सर्वनाम शब्दों को जोड़ने का भी कार्य करता है। आइए जानते है कि कारक किसे कहते हैं, कारक चिन्ह क्या -क्या है , कारक के कितने भेद हैं, आदि की सम्पूर्ण जानकारी।

कारक किसे कहते हैं ? (karak kise kahate hain)

किसी वाक्य में प्रयुक्त ऐसे शब्द जिसका क्रिया के साथ संबंध स्थापित होता है, दूसरे शब्दों में कारक की परिभाषा के अंतर्गत ऐसे संज्ञा एवं सर्वनाम शब्दों को लिया जाता है जिसका क्रिया से संबंध स्थापित हो। जैसे मोहन ने सोहन से 10 रुपए के लिए मारपीट की। इस वाक्य में ने, से, के लिए कारक परसर्ग से मारपीट का संबंध स्थापित हो रहा है।

कारक का शाब्दिक अर्थ क्या है? (karak ki paribhasha)

कारक का शब्दिक अर्थ है – किसी वाक्य में ‘क्रिया को करने वाला या किसी शब्द का क्रिया से संबंध स्थापित करने वाला। जैसे महाकाली ने रण में राक्षसों का वध किया। यहाँ क्रिया (वध) को करने वाला है – महाकाली जिसे ने कारक द्वारा क्रिया से संबंध स्थापित किया गया है।

कारक के 10 उदाहरण

  1. हनुमान ने सीता को बचाया।
  2. सीता ने एक पत्र लिखी।
  3. राम को बाज़ार से आम लाने को कहा।
  4. मै बस से जा रहा हूँ।
  5. मेज़ पर किताब रखी हुई है।
  6. मैंने धोबी से कपड़ा धुलवाया।
  7. नौकर के हाथों खाना भेजवाया गया।
  8. मै तालाब के पास खड़ा हूँ।
  9. यह गाड़ी राम की है।
  10. वह पेड़ से गिर पड़ा।

कारक चिह्न/विभक्तियाँ/परसर्ग किसे कहते है? (karak chinh)

कई लोग कारक चिह्न को विभक्ति या परसर्ग भी कहते हैं। कारक चिह्न वाक्य में शब्दों को अर्थात् संज्ञा एवं सर्वनाम शब्दों को क्रिया से जोड़ने का कार्य करता है। जैसे राम ने रावण को तीर से मारा। यहाँ संज्ञा एवं सर्वनाम शब्द राम, रावण, तीर को क्रिया मारने का संबंध कारक चिह्न ने, को, से के द्वारा हो रहा है। कारक चिह्न इस प्रकार हैं- ने, को, से, द्वारा, को, के लिए, का-के-की, रा-रे-री, में, पर, हे, अरे, हाय आदि।

कारककारक चिह्न/विभक्तियाँ/परसर्ग
कर्ताने
कर्मको
करणसे, द्वारा
सम्प्रदानको, के लिए
अपादानसे
सम्बन्धका-के-की, रा-रे-री
अधिकरणमें, पर
सम्बोधनहे, अरे, हाय,

कारक के भेद एवं उदाहरण (karak ke bhed)

हिंदी भाषा में कारकों की कुल संख्या 8 मानी गयी है, कारक के भेद एवं उदाहरण पर संक्षिप्त परिचय टेबल में प्रस्तुत किया गया है, जो इस प्रकार है: –

  1. कर्ता कारक
  2. कर्म कारक
  3. करण कारक
  4. सम्प्रदान कारक
  5. अपादान कारक
  6. सम्बंध कारक
  7. अधिकरण कारक
  8. संबोधन कारक
कारकपरिभाषाकारक चिह्न/विभक्तियाँ/परसर्ग
कर्ता कारकक्रिया को करने वाला कर्ताने, या ने के बिना
कर्म कारकजिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता हैको या बिना को के
करण कारकक्रिया के साधनसे, के द्वारा, साथ
सम्प्रदान कारकजिसके लिए कार्य किया गया होके लिए,
संबोधन कारककिसी को बुलाना या संबोधित करनाहे, अरे, हाय,
अपादान कारकअलगाव या पृथक होने का बोध हो से
सम्बंध कारकक्रिया के संबंध का बोध होका-के-की, रा-रे-री
अधिकरण कारककार्य का स्थान या आधारमें, पर,

कर्ता कारक: कर्ता कारक किसे कहते है?

जिस संज्ञा या के जिस रूप से क्रिया को संपत्र करने वाला बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि क्या कोई कार्य बिना कर्ता के हो सकता है। किसी भी वाक्य में कर्ता एवं क्रिया के संबंध को नकारा नहीं जा सकता है। कर्ता कारक का मुख्य कारक चिह्न ‘ने’ है। वाक्य में कभी ‘ने’ का प्रयोग होता है तो कभी नहीं। ‘ने’ का प्रयोग क्रिया पर आधारित होता है।

कर्ता कारक के 10 उदाहरण

  1. मोहन ने पत्र लिखा।
  2. रमेश ने किताब पढ़ी।
  3. सुनील किताब पढ़ता है।
  4. सोहन ने किताब लाया।
  5. शिक्षक ने पढ़ाया।
  6. कृष्ण ने राधा की मदद की।
  7. राम ने घर बनवाया।
  8. सोहन ने पुस्तक ख़रीदी।
  9. पुलिस ने चोर को पकड़ा।
  10. श्याम ने कृष्णा को क्यों मारा?

वाक्य में कर्ता कारक अर्थात् ‘ने’ का शुद्ध प्रयोग

यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि वाक्य में ‘ने’ का प्रयोग क्रिया के आधार पर होता है कर्ता के आधार पर नहीं। वाक्य में कर्ता कारक अर्थात् ‘ने’ के प्रयोग का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया गया है।

1- प्रेरणार्थक क्रियाएँ (जहां कार्य कोई दूसरा करता हो) कर्म के साथ आती है, अतः जहाँ भी प्रेरणार्थक क्रियाएँ हों वहाँ ‘ने’ या करता कारक का प्रयोग होना चाहिए। जैसे –

  • राम ने मोहन से घर बनवाया।
  • मैंने उसे पढ़ना -लिखना सिखाया।
  • सीता ने अपने बच्चे को सिलाई मशीन सिखाई।

2- क्रिया भूतकाल अर्थात् अपूर्ण भूत (Past Continuous) रहने पर ‘ ने ‘ का प्रयोग नहीं होगा। जैसे

राम खाना खा रहा था।-सही

राम ने खाना खा रहा था – गलत

सीता सो रही थी -सही

सीता ने सो रही थी।

3- ऐसी सभी क्रियाएँ जो कर्म के साथ आती है अर्थात् सकर्मक होती है जैसे –

  • पुष्पा ने पुस्तक पढ़ी।
  • उसने अपनी मेहनत से परीक्षा पास की।
  • राम ने फिल्म देखी।
  • लड़के ने लड़की को देखा।

कर्म कारक (karm karak) : कर्म कारक किसे कहते है?

वाक्य में क्रिया का फल अर्थात् कर्म पर पड़ता है। दूसरे शब्दों में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़े उसे कर्म कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ‘को’ है। जैसे – मोहन ने राम को पढ़ाया। पढ़ाने का प्रभाव राम पर पड़ रहा है।

कर्म कारक के 10 उदाहरण:

  1. राम ने रावण को मारा।
  2. कृष्ण को बुलाओ
  3. राधा ने बड़े को सम्मान दी।
  4. पूलीस ने चोर को पकड़ा।
  5. गोपाल को आयोध्या घूमना है।
  6. सोहन को काम पर जाना है।
  7. राम को स्कूल जाना है।
  8. उसको घर जाना है।
  9. राम को सिनेमा देखने जाना है।
  10. रहीम को अपने नानी घर जाना है।

वाक्य में कर्म कारक अर्थात् ‘को ‘ का शुद्ध प्रयोग

1-वाक्य में कर्म कारक अर्थात् ‘को ‘ का प्रयोग हमेशा जीवित (living things) कर्म के साथ होता है, जैसे-

  • मैने राम को साइकल चलाना सिखाया
  • सीता राम को पसंद करती है, पर कह नहीं पाती
  • पुलिस ने चोर को पकड़ा।

2- वाक्य में कर्म कारक अर्थात् ‘को ‘ का प्रयोग निर्जीव (non-living things) कर्म के साथ नहीं होता है, जैसे-

  • राम ने आम को खाया।-गलत
  • राम ने आम खाया-सही

3-जहाँ कर्ता को अनिवार्य कार्य करने हो अर्थात् वाक्य से किसी बाध्यकारी वाक्य को बोध हो जैसे –

  • राम को कल परीक्षा देना ही है।
  • सोहन को कल कार्यालय जाना है।
  • मुझे (मुझको) घर जाना है।

करण कारक किसे कहते है?

क्रिया के जिस साधन से कार्य पूरा होता है। उसे करण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ‘से ‘ एवं ‘द्वारा’ है। जैसे – राम कलम से लिख रहा है। सभी लोग ट्रेन से शिमला जा रहें हैं।

कारण कारक के 10 उदाहरण

  1. राम से कहो खाना खा ले
  2. पुलिस द्वारा चोर को मारा जाता है।
  3. कृष्ण गेंद से खेल रहा है।
  4. सुमन के द्वारा खाना बनाया गया।
  5. पेड़ से पते गिर रहें हैं।
  6. राम कलम से लिख रहा है।
  7. सभी लोग ट्रेन से शिमला जा रहें हैं।
  8. यह पत्र डाक से आया है।
  9. पानी से बर्फ़ बन सकता है।
  10. बच्चे खिलौने से खेल रहें हैं।

वाक्य में करण कारक अर्थात् ‘से ‘ एवं ‘द्वारा’ का शुद्ध प्रयोग

1-‘से’ का प्रयोग साधन के लिए होता है एवं सभी प्रकार के वस्तुओं अर्थात् सजीव तथा निर्जीव दोनों में इसका प्रयोग होता है।

  • राम ट्रेन से आ रहा है।
  • वह कलम से लिख रहा है।
  • उसे चोरी करते हुए मोहन ने अपनी आँखों से देखा।

2-‘से’ का प्रयोग कारण, पृथक होने का बोध एवं स्थान में परिवर्तन दर्शाने के लिए भी किया जाता है-

  • राम का पड़ोसी कैंसर से मर गया। -कारण
  • राम मुंबई से घर आ रहा है। -स्थान परिवर्तन
  • भूख से वह तड़प रहा है।-कारण
  • वह छत से कूद पड़ा। -स्थान परिवर्तन

3-‘के द्वारा’ का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी के माध्यम से या किसी व्यक्ति के कारण कोई कार्य सम्पन्न हुआ है –

डाकिया द्वारा पत्र प्राप्त हुआ। राम द्वारा पत्र लिखा गया।

4-असमर्थता या लाचारी का भाव होने पर ‘से’ का प्रयोग किया जाता है-

  • उससे लिखा नहीं जाएगा।
  • राम से पढ़ा भी नहीं जाता।
  • इस बीमारी में सीता से उठा नहीं जा सकता।

5- तुलना के लिए –

  • राम, श्याम से अधिक बलवान है।
  • वह रोहन से पढ़ने में अच्छा है।
  • वह सोहन से लम्बा है।

6-किसी लम्बे समय का बोध कराने लिए –

  • वह कई महीनों से स्कूल नहीं आया।
  • वह मंगलवार से आ सकता है।

7-किसी भी प्रकार के डर या ख़तरे की आशंका से

  • बढ़ती तकनीक से खतरा हो सकता है।
  • उसे ऊँचाई से डर लगता है।
  • राम को भूत से डर लगता है।

संप्रदान कारक की परिभाषा

जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है या जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य किया जाता हो, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ‘के लिए’, ‘को’, ‘हेतु’ है। कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं-

संप्रदान कारक के 10 उदाहरण

  1. माँ अपने बच्चों के लिए खाना पकाती है।
  2. पिता अपने बच्चों के लिए खिलौना ख़रीदता है।
  3. सोहन पढ़ने के लिए स्कूल जा रहा है।
  4. रोहन मेरे लिए गिफ़्ट लाये।
  5. मैं बच्चों के लिए खाना बना रही हूँ।
  6. पापा अपने बच्चों के लिए आम लाए।
  7. सुमन ने रोहन के लिए गाड़ी खरीदी।
  8. उसने राम के लिए पुस्तक ख़रीदी।
  9. मैं उसके लिए खिलौने ख़रीद दूँगा।
  10. वह खेलने के लिए इंदौर गया है।

वाक्य में संप्रदान कारक अर्थात् ‘के लिए ‘ का शुद्ध प्रयोग

1- प्रयोजन या जिसके लिए कार्य किया गया हो, वहाँ ‘के लिए ‘ का प्रयोग किया जाता है-जैसे-

  • उसने बच्चों के लिए गाय का दूध लाया।
  • उसने राम के लिए घर ख़रीदा।

2- क्रियार्थक संज्ञा में – प्रयोजन का बोध करवाने के लिए –

  • वह पढ़ने के लिए इंग्लैंड गया।
  • गाने के लिए उसने अभ्यास किया।
  • घर जाने के लिए वह जल्दी कार्यालय से निकल गया।

अपादान कारक किसे कहते हैं?

अपादान का अर्थ होता है -अलग, पृथक आदि। जिस शब्द या संज्ञा से अलग होने का बोध हो उसे अपादान कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ‘से’ है। जैसे वह छत से कूद पड़ा।

अपादान कारक के 10 उदाहरण:

  1. पेड़ से पत्ते गिरते है।
  2. गंगा घर से बाहर जा रही है
  3. छत से नीचे आओ
  4. बच्चे रास्ते में गिर पड़े
  5. नल से पानी गिर रहा है।
  6. गंगा हिमालय से निकलती है।
  7. पेड़ से फल गिर गया।
  8. राम मुंबई से दिल्ली आया।
  9. उसका घर यहाँ से काफी दूर है।
  10. राम के घर से साँप निकला।

संबंध कारक किसे कहते हैं?

जिस संज्ञा या सर्वनाम शब्द से किसी वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध स्थापित होता है, उसे संबंध कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिह्न ‘का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी’ आदि है-जैसे यह राम का घर है। यह सीता की कार है।

संबंध कारक के दस उदाहरण:

  1. रोहन का घर पास में है।
  2. तुम रानी की अच्छी दोस्त हो।
  3. सीता राम की पत्नी है।
  4. मैं अपनी पापा की बेटी हूँ
  5. रोहन का भाई पुलिस है
  6. मुझे मामा का घर जाना है
  7. यह राम का घर है।
  8. यह सीता की कार है।
  9. यह पुस्तक मेरी है।
  10. राम का भाई स्कूल जा रहा है।

संबंध कारक ‘का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी’ का शुद्ध प्रयोग

1-संबंध कारक का प्रयोग संबंध, गुण, एवं अधिकार के लिए होता है-

  • उसकी एक बहन आईआईटी में पढ़ती है।
  • मनुष्य के पास बुद्धि होती है।
  • राधा के दो पुत्र हैं।
  • गाय के चार पैर होते हैं।
  • रामू की लड़की की कल सगाई हुई।

2-किसी धातु या द्रव्य से बनी चीजों के लिए संबंध बताने के लिए-

  • मेरी अंगूठी सोने की है।
  • यह टेबल लोहे की है।
  • यह चाँदी का हार है।
  • यह बर्फ़ की पहाड़ है।

3- उद्देश्य या प्रयोजन बताने के लिए -जैसे –

  • अभी स्कूल जाने का समय है।
  • यह खाने बनाने का समान है।

4-मूल्य बताने के लिए –

  • यह 10 रुपए की कलम है।
  • इस घर की कीमत 10 लाख रुपए है।

5-स्थान एवं समय बताने के लिए

  • रात के भोजन का निमंत्रण है।
  • अमेरिका के लोग, भारत के लोग,
  • दोपहर का भोजन अच्छा था।

6-किसी घटना की अतिशयोक्ति बताने के लिए

  • देश का देश तबाह हो गया।
  • शहर का शहर बाढ़ में बह गया।
  • गाँव का गाँव बह गया।

अधिकरण कारक की परिभाषा :

जिस स्थान या समय पर क्रिया की जाती है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ‘में’, ‘पर’, है। जैसे गंगा नदी में पानी ही पानी है। वह कोलकाता में है। राम मुंबई में है। अन्य उदाहरण नीचे दिया गया है-

अधिकरण कारक के दस उदाहरण:

  1. सड़क पर गाड़ी चल रही है।
  2. भाई घर पर है
  3. पिंजड़े में तोता है।
  4. मुझे तुम पर भरोसा है।
  5. बैग में टिफ़िन है।
  6. मेज़ पर किताब है
  7. तालाब में मछली है
  8. रास्ते में पुलिस है।
  9. टेबल पर खाना रखा हुआ है
  10. तुम बिस्तर पर सो जाओ

अधिकरण कारक ‘में’ शुद्ध प्रयोग

1-स्थान एवं समय का बोधा कराने के लिए –

वह घर में काम कर रहा है।

वह कोलकाता में रह रहा है।

2- परिवर्तन का बोध कराने के लिए

अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करो।

3-मनुष्य के भावों को व्यक्त करने के लिए –

  • राम और श्याम में गहरी दोस्ती है।
  • पति एवं पत्नी में प्यार है।
  • उन दोनों में शत्रुता है।

अधिकरण कारक ‘पर’ शुद्ध प्रयोग

1-ऊँचाई, स्थान, भीतर आदि का बोध कराने के लिए –

पेड़ पर पक्षी बैठे हैं।

वह बंदर चैट पर बैठा है।

2- अधिकता बताने के लिए

दिन पर दिन गर्मी बढ़ती ही जा रही है।

3- शर्त एवं समय, स्थान बताने के लिए –

  • उसके यह करने पर ही मैं आऊँगा।
  • वह मौक़े पर आ गया।
  • वह आजकल छुट्टी पर ही रहता है।

सम्बोधन कारक की परिभाषा :

संज्ञा के जिस शब्द से किसी को बुलाने, पुकारने, धमकाने, सुनाने, आवाज़ देने का बोध हो उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति हे, अरे, देवियों और सज्जनों!, आदि है। कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं-

सम्बोधन कारक के दस उदाहरण:

  1. देवियों और सज्जनों! आप सभी का स्वागत है।
  2. है भगवान! ये कैसे हो गया।
  3. हे लड़के! तुम यंहा क्या कर रहे हो
  4. बच्चों! तार को मत छुओं।
  5. अजी! कहाँ गए आप।
  6. लड़कियों, आप सब इधर आओ।
  7. मेरे देशवासियों!
  8. बच्चों! शोर मत करो।
  9. ए राजू, उधर मत जा, वहाँ खतरा है।
  10. अरे, आप लोग आ गए।

करण और अपादान कारक में अंतर:

करण और अपादान कारक में दोनों में ‘से ‘ का प्रयोग होता है, पर कारण कारक में से का प्रयोग साधन के अर्थ में होता है जैसे राम ने रावण को तीर से मारा। मारने का काम तीर हो रहा है, इसीलिए यहाँ ‘से’ का प्रयोग साधन के अर्थ में हुआ है। वहीं अपादान कारक में ‘से’ का प्रयोग अलगाव दिखाने के लिए होता है। जैसे पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं। पेड़ से पते का अलग होने के लिए ‘से’ का प्रयोग किया गया है। -कुछ उदाहरण

  1. बच्चे रास्ते में गिर पड़े-अपादान कारक
  2. नल से पानी गिर रहा है।-अपादान कारक
  3. गंगा हिमालय से निकलती है।-अपादान कारक
  4. सुमन के द्वारा खाना बनाया गया।-कारण कारक
  5. पेड़ से पते गिर रहें हैं।-कारण कारक
  6. राम कलम से लिख रहा है।-कारण कारक
  7. सभी लोग ट्रेन से शिमला जा रहें हैं।-कारण कारक

इसे भी जानें :

1-Ranveer Singh: रणवीर सिंह की सुपरहिट फ़िल्में, नेटवर्थ, हाईट, जीवनी एवं परिवार के बारें में।

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अरविंद केजरीवाल का जीवन परिचय : IRS अधिकारी से दिल्ली के मुख्यमंत्री तक का सफर।

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अरविंद केजरीवाल का जीवन परिचय : IRS अधिकारी से दिल्ली के मुख्यमंत्री तक का सफर : दिल्ली के मुख्य मंत्री एवं IRS ऑफ़िसर अरविंद केजरीवाल किसी परिचय के मोहताज नहीं है। इनकी राजनीतिक पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी है जिनके वे संयोजक एवं संस्थापक रहें हैं। राजनीति में प्रवेश करने से पहले अरविंद केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी थे एवं वे सरकार के लिए टैक्स संग्रह का कार्य करते थे।

अरविंद केजरीवाल का जीवन परिचय

नामअरविंद केजरीवाल
जन्म16 अगस्त 1968
जन्म स्थानहरियाणा
निवास दिल्ली, फ्लैगस्टाफ रोड, सिविल लाइन्स, भारत
पार्टी का नामआम आदमी पार्टी(AAP)
शैक्षिक योग्यतामैकेनिकल इंजीनियरिंग
पेशादिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में, समाज सेवक
शिक्षाआईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री
प्रमुख उपलब्धि एवं पदजन लोकपाल बिल, दिल्ली के मुख्यमंत्री, IRS ऑफिसर
पुरस्काररोमन मैग्सेस पुरस्कार
पुस्तक एवं रचनाएँस्वराज, सूचना का अधिकार: व्यावहारिक मार्गदर्शिका

अरविंद केजरीवाल का जन्मतिथि, जन्मस्थान एवं माता-पिता

आम आदमी पार्टी के संयोजक, संस्थापक तथा दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त 1968 को हरियाणा के हिंसार जिले मे हुआ, तथा इनके पिता का नाम गोविंद राम केजरीवाल है, जो एक इंजीनियर थे तथा जिंदल स्टील कंपनी मे नौकरी करते थे, तथा इनकी माँ का नाम गीता देवी है।

अरविंद केजरीवाल का शैक्षणिक योग्यता :

अरविंद केजरीवाल अपनी स्कूली शिक्षा हरियाणा के हिसार स्कूल से कंप्लीट किये तथा आगे की पढ़ाई के लिये इन्होंने खड़गपुर से IIT की डिग्री हासिल किये, उसके बाद मैकेनिकल इंजीनियरिंग मे बी-टेक की डिग्री प्राप्त किये तथा अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद टाटा स्टील कंपनी मे नौकरी करने लगे।

अरविंद केजरीवाल की उम्र :

अरविंद केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त 1968 को हुआ, तथा 2024 मे अरविंद केजरीवाल का वर्तमान उम्र 55 साल है, तथा अरविंद केजरीवाल बहुत ही कम उम्र मे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।

अरविंद केजरीवाल के पिता:

अरविंद केजरीवाल के पिता का नाम गोविंद राम केजरीवाल है, तथा इनके पिता जी काफी पढे-लिखे हुये व्यक्ति थे, जो इलेक्ट्रिक इंजीनियर मे कार्यरत थे, तथा इनके पिता अपने बेटे अरविंद केजरीवाल को हमेशा से लोगो की सेवा तथा देश की भलाई के लिये सपोर्ट किये।

पितागोविंद राम केजरीवाल
मातागीता देवी
पत्नीसुनीता केजरीवाल
बेटीहर्षिता केजरीवाल
बेटापुलकित केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल की पत्नी:

अरविंद केजरीवाल की पत्नी का नाम सुनीता केजरीवाल है तथा साल 1995 मे अरविंद केजरीवाल ने सुनीता केजरीवाल से शादी की, तथा सुनीता केजरीवाल काफी पढ़ी लिखी तथा पूर्व आईआरएस मे कार्यरत थी, तथा इस पद पर इनहोने 22 साल तक काम की। अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तारी के बाद सुनीता केजरीवाल ही सारा कार्य संभाल रही है तथा इस दौरान इनहोने कई रैली भी किये, तथा मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह अनुमान जताया जा रहा है कि आगे कि मुख्यमंत्री का पद सुनीता केजरीवाल संभाल सकती है।

अरविंद केजरीवाल की बेटी:

अरविंद केजरीवाल की बेटी का नाम हर्षिता केजरीवाल है, तथा हर्षिता केजरीवाल का जन्म 1996 मे हुआ। हर्षिता केजरीवाल पढ़ाई मे काफी अव्वल छात्र रही है, तथा बारहवीं की पढ़ाई मे हर्षिता केजरीवाल ने 96 प्रतिशत अंक हासिल की, तथा इसके बाद इनहोने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पुरी की, और अब वह आम आदमी पार्टी के प्रचार तथा प्रसार मे जुटी हुई है, साल 2022 मे हर्षिता केजरीवाल ने पंजाब मे भगवंत मान के लिये स्टेज पर प्रचार करती हुई नजर आई.

अरविंद केजरीवाल का बेटा:

अरविंद केजरीवाल के बेटे का नाम पुलकित केजरीवाल है, तथा पुलकित 12 वीं कक्षा पास करने के बाद बीटेक की पढ़ाई कर रहा है।

अरविंद केजरीवाल का मुख्य मंत्री बनने का सफर:

केजरीवाल पहले टाटा स्टील में नौकरी करते थे। उनके पिता गोविंदराम केजरीवाल भी इंजीनियर थे एवं जिंदल स्टील में कार्यरत थे। इसके पश्चात वे कई समाज सेवी संस्थान जैसे मिशनरीज ऑफ चैरिटी, रामकृष्ण मिशन से भी जुड़े एवं वहाँ भी समाज सुधार के लिए काम किया।

अरविंद केजरीवाल – IRS ऑफ़िसर के रूप में

टाटा स्टील कंपनी मे नौकरी छोड़ कर अरविंद केजरीवाल सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना शुरू किये और वर्ष 1993 में पहले प्रयास मे ही भारत की सबसे बड़ी प्रतियोगिता परीक्षा कही जाने वाली भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (ICS), में सफलता हासिल की एवं भारतीय राजस्व सेवा में इनकम टैक्स कमिश्नर के रूप में कई वर्षों तक काम किया।

पद पर रहते हुए वे सरकारी तन्त्र में पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन के लिए अच्छा काम किया। बाद में वर्ष 2006 में नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।

साल 2005 के सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) एवं लोकपाल बिल को क़ानून का रूप देने के लिए इन्होंने कई अभियान किए एवं लोगों में इसके लिए जागरूकता फैलाई।

इन्होंने मनीष सिसोदिया के साथ ‘परिवर्तन’ नामक एक संस्था की शुरुआत की। साल 2011 मे अरविंद केजरीवाल अन्ना हजारे के नेतृत्व मे देश की भ्रष्टाचार को कम करने के लिए इनके साथ धरने मे बैठे थे। इस धरने के बाद इन्होंने आपस मे ही एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया गया तथा इस पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी रखा गया और यहीं से अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक करियर की शुरुआत होती है।

आम आदमी पार्टी की शुरुआत का श्रेय भी अरविंद केजरीवाल को ही जाता है। इस पार्टी का गठन जन लोकपाल विधेयक की माँग को लेकर 26 नवंबर 2012 को किया गया था।

अरविंद केजरीवाल मुख्य मंत्री कब बने ?

अरविंद केजरीवाल एक आम आदमी से मुख्य मंत्री बनने तक का सफर बेहद ही रोमांचक है, अरविंद केजरीवाल अपनी खुद की एक पार्टी आम आदमी पार्टी की नेतृत्व किये तथा साल 2013 मे दिल्ली विधान सभा चुनाव मे जीत हासिल कर शीला दीक्षित को हराते हुए दिल्ली के मुख्य मंत्री बने। और मात्र 50 दिनो के अंदर ही इन्होंने इस्तीफा दे दिया, तथा साल 2014 मे लोकसभा चुनाव लड़े।

साल 2015 मे चुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल 70 मे से 67 सीट हासिल किये, तथा 14 फरवरी 2015 को अरविंद केजरीवाल दिल्ली के दूसरी बार मुख्य मंत्री बने, तथा इस दौरान शपथ ग्रहण किये। साल 2020 मे अरविंद केजरीवाल दिल्ली के तीसरी बार मुख्य मंत्री के रूप मे शपथ लिये,

मुख्य मंत्री के रूप मे अरविंद केजरीवाल दिल्ली के नागरिकों के लिये अनेक कार्य किये तथा इनके सरकार ने मुफ्त बिजली तथा पानी की योजना बनाई, उसके बाद दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के लिये इन्होंने दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में भी सुधार किया।

अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले के मामले तथा मनी लौंडिंग के मामले से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय अर्थात् ED द्वारा गिरफ्तार किया गया तथा कुछ दिनों के लिए वह दिल्ली के तिहाड़ जेल में भी थे।

अरविंद केजरीवाल द्वारा लिखी किताबें:

अरविंद केजरीवाल द्वारा लिखी किताब स्वराज है, तथा इस पुस्तक को 29 जुलाई 2012 दिल्ली के जंतर मंतर पर लॉंच किया गया

अरविंद केजरीवाल twitter:

अरविंद केजरीवाल का टिवीटर पेज @ArvindKejriwal है।

अरविंद केजरीवाल का घर:

अरविंद केजरीवाल का घर दिल्ली के सिविल लाइन्स रोड के बीच स्थित है, इनके घर का पता 6, फ्लैग स्टाफ रोड, दिल्ली है तथा अरविंद केजरीवाल का घर दो मंजिला इमारत का बना हुआ है, और इनके घर के बाहरी एरिया मे काफी सारे पौधे तथा रंग-बिरंगे फूल लगे हुये है।

इनके घर का हॉल एरिया काफी बड़ा है, जिसमें लकड़ी के फर्नीचर तथा काफी खूबसूरत चाय का टेबल रखा हुआ है, जो इनकी घर की खूबसूरती को चार चाँद लगता है, तथा इनके घर की सबसे खास बात यह है कि इनके घर के दरवाजे बहुत ही यूनिक है, जो कि रिमोट कंट्रोल के साथ खुलते तथा बंद होते है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अरविंद केजरीवाल के घर की कीमत 45 करोड़ रूपेए हैं।

अरविंद केजरीवाल : पुरस्कार एवं उपलब्धियाँ

  • साल 2006 में ही अरविंद केजरीवाल को रोमन मैग्सेस पुरस्कार से स्म्मानित किया गया एवं
  • लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन, ‘इन्डियन ऑफ़ द इयर’ पुरस्कार।
  • साल 2014 मे टाइम मैगजीन द्वारा सबसे प्रभाव शाली के रूप मे अवार्ड दिया गया। आईआईटी कानपुर द्वारा ‘सत्येन्द्र दुबे मेमोरियल अवार्ड’, एवं विशिष्ट छात्र पुरस्कार, उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए
  • अमेरिकी पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ द्वारा सबसे प्रभाव शाली व्यक्तियों में शामिल।

रोचक सूचनाएँ : –

1- Karwa Chauth 2024 : करवा चौथ की तिथि, महत्व, सरगी एवं व्रत की कथा।

2-फिल्म अभिनेता राम चरण की जीवनी, आनेवाली फ़िल्में, नेटवर्थ एवं परिवार।

3-जानें भारत के राष्ट्रीय प्रतीक कौन – कौन से हैं? भारत के राष्ट्र गान, गीत, तिरंगा झंडा, पशु, पक्षी, फूल, खेल, पचांग एवं राष्ट्रीय मुद्रा जैसे राष्ट्रीय प्रतिकों की जानकारी। (Bharat ke Rashtriya Pratik)

Karwa Chauth 2024 : करवा चौथ की तिथि, महत्व, सरगी एवं व्रत की कथा।

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Karwa Chauth 2024: सुहागन महिलाओं के लिये करवा चौथ का त्योहार अत्यंत ही पवित्र धार्मिक त्योहार है। हर विवाहित महिला करवा चौथ के व्रत का पालन बिना अन्न एवं जल ग्रहण किए ही रहती है, इसे निर्जला व्रत कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

Karwa Chauth 2024 का संक्षिप्त परिचय

इस वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार करवा चौथ का यह त्योहार हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, तथा इस दौरान सुहागन महिलायें सोलह शृंगार कर चाँद की पूजा करती है और अपनी पति की लम्बी आयु की कामना करती है।

तिथि एवं मास20 अक्टूबर, रविवार, कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को
करवा चौथ का शुभ मुहूर्तमुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट पर शुरु होगी, और रात 8 बजे तक पूजा
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?पति की लम्बी आयु तथा सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त हो
धर्महिंदू
करवा चौथ कौन मनाती हैविवाहित स्त्रियाँ
त्योहार का दूसरा नामकारक चतुर्थी
कैसे मनाते हैंव्रत धारण कर सुबह सूर्योदय से लेकर शाम चाँद दिखने तक।

Karwa Chauth 2024 : करवा चौथ का शुभ मुहूर्त एवं तिथि

साल 2024 में करवा चौथ का यह त्योहार 20 अक्टूबर यानि रविवार को पूरे भारत में मनाया जायेगा, तथा करवा चौथ की शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट पर शुरु होगी, और रात 8 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।

साल करवा चौथ कि दिन तथा तारीख़
2024 में करवा चौथ20 अक्टूबर, रविवार
2025 में करवा चौथ9 अक्टूबर, शुक्रवार
2026 में करवा चौथ29 अक्टूबर, गुरुवार
2027 में करवा चौथ18 अक्टूबर, सोमवार

करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?

हिंदू धर्म में हर सुहागन महिला बेसब्री से करवा चौथ त्योहार का इंतजार करती है एवं पति के दीर्घायु के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक व्रत रखती हैं। करवा चौथ का त्योहार पति पत्नी के बीच प्रेम तथा विश्वास का प्रतीक है, तथा पत्नी द्वारा करवा चौथ का व्रत करने से पति की आयु लम्बी होती है और पति-पत्नी के बीच का रिश्ता ओर भी गहरा होता है, तथा इनके सौभाग्य जीवन मे कोई कष्ट नहीं आता है,

इसलिए करवा चौथ के दिन सुहागन महिला पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है तथा शाम को चाँद की पूजा करने के बाद व्रत का पारण करती है। इस व्रत से जुड़ी कई कहानियां और किंवदंतियां हैं। एक लोकप्रिय कहानी रानी वीरवती की है, जिन्होंने करवा चौथ का कठोर व्रत रखकर अपने पति की जान बचाई थी। एक और प्रसिद्ध कहानी महाभारत की द्रौपदी की है, जिसने अपने पतियों की सलामती के लिए व्रत रखा था।

Karwa Chauth 2024
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रानी वीरवती की कहानी:

यह करवा चौथ से जुड़ी एक लोकप्रिय कहानी है। रानी वीरवती अपने पति के प्रति बहुत समर्पित थी और उनकी सलामती के लिए करवा चौथ का कठोर व्रत रखती थी। व्रत के दौरान वह भूख-प्यास सहन नहीं कर पाई और बेहोश हो गई। उसके सात भाई, जो उसे कष्ट में नहीं देख सकते थे, उन्होंने एक पीपल के पेड़ में एक दर्पण बनाया और उसे धोखा दिया कि यह चंद्रमा का उदय है। यह सोचकर कि चंद्रमा निकल आया है, वीरवती ने अपना व्रत तोड़ दिया।

हालाँकि, जैसे ही उसे खबर मिली कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। व्याकुल होकर, उसने देवताओं से प्रार्थना की और उसे अपने पति को फिर से जीवित करने का वरदान मिला। तब से वह पूरी श्रद्धा से करवा चौथ का व्रत करने लगी और उसका पति स्वस्थ और जीवित रहा।

द्रौपदी की कहानी:

महाभारत में, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने अपने पतियों की सुरक्षा और भलाई के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। यह कहानी द्रौपदी की अपने पतियों के प्रति अटूट भक्ति और प्रेम के साथ-साथ पति-पत्नी के बीच के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक है।

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करवा की कहानी:

एक अन्य किंवदंती करवा नाम की महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने अपनी भक्ति और समर्पण का उपयोग करके अपने पति की जान डूबने से बचाई थी। करवा तुंगभद्रा नदी के किनारे अपने पति के साथ रहती थी, एक बार जब उसके पति नदी में स्नान कर रहा था तभी एक मगरमच्छ ने उसे धर दबोचा। इस देखकर करवा ने यम देवता से प्रार्थना करने लगी । अपने पति के प्रति प्रेम से प्रभावित होकर, मृत्यु के देवता यम ने उन्हें वरदान दिया कि जो कोई भी सच्ची श्रद्धा के साथ करवा चौथ अनुष्ठान का पालन करेगा, तो उसे अपने परिवार में समृद्धि और खुशी मिलेगी।

करवा चौथ में सती सावित्री की कहानी

सती सावित्री की कहानी करवा चौथ से जुड़ी एक और प्रसिद्ध कहानी है। सावित्री एक पतिव्रता पत्नी थी जिसने अपने अटूट समर्पण और चतुराई से अपने पति सत्यवान को मृत्यु के चंगुल से बचाया था। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया था, जिसकी एक वर्ष के भीतर मृत्यु होनी तय थी। यह जानने के बावजूद, सावित्री ने उनसे विवाह करने का निर्णय लिया और निष्ठापूर्वक विवाह की परंपराओं का पालन किया।

उनकी अनुमानित मृत्यु के दिन, सावित्री ने व्रत रखा और सत्यवान के साथ जंगल में चली गईं। जंगल में रहते हुए, मृत्यु के देवता यम, सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए प्रकट हुए। सावित्री ने यम से अपने पति को न ले जाने की प्रार्थना की और उनका आशीर्वाद मांगा कि वह सदा सुहागिन रहे एवं संतान की प्राप्त हो। उसकी भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रभावित होकर यम ने उसे वरदान दिए।

अपने वचन से बंधे यम को उसकी इच्छाएँ पूरी करनी पड़ीं और सत्यवान को जीवन मिल गया। सती सावित्री की यह कहानी प्रेम, भक्ति की शक्ति और एक महिला के चरित्र की ताकत को दर्शाती है। इसे अक्सर करवा चौथ के दौरान विवाहित महिलाओं के लिए अपने पतियों की भलाई और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करने में यह कहानी सुनाई जाती है।

छलनी का विशेष महत्व:

करवा चौथ व्रत में छलनी का विशेष महत्व होता है तथा इस दिन महिलायें पूजा की थाली को सजाती है, तथा पूजा की थाली सजाने के बाद कई महिलायें छलनी को भी भव्य तरीक़े से सजाती है, तथा इस पूजा का व्रत तभी पूरा होता है जब वह छलनी से चाँद को देखने के बाद अपने पति के चेहरे को देखती है, और उसके बाद अपने पति के हाथों जल ग्रहण कर व्रत को खोलती है, करवा चौथ के दिन महिलायें सुबह से लेकर शाम तक निर्जला व्रत रखती है।

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करवा चौथ की पूजा में लगने वाली सामग्री

करवा चौथ का व्रत करने के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री की आवश्यकता पड़ती है तथा पूजा के लिये हमें पान के पत्ते, मिट्टी का दीपक, मिठाई, फल, नारियल, गंगा जल तथा फूल की आवश्यकता होती है तथा इस दौरान करवा चौथ के व्रत में भगवान शिव तथा पार्वती, गणेश और कार्तिक भगवान की पूजा की जाती है।

करवा चौथ में सरगी का क्या महत्व है?

करवा चौथ का व्रत रखने से पहले सरगी का विशेष महत्व होता है, विवाहित महिला इस दिन सोलह शृंगार कर अपने पति के लिये निर्जला व्रत रखती है। “सरगी” करवा चौथ परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरगी एक प्रकार का भोजन है जो सास अपनी बहू के लिए करवा चौथ का व्रत शुरू करने से पहले तैयार करती है।

सरगी भोजन में आम तौर पर विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं जो उपवास के पूरे दिन ऊर्जा प्रदान करते हैं। ताकि उपवास करने वाली महिलाओं को बहुत अधिक कमजोरी या भूख का अहसास न हो। सरगी में ड्राई फ़्रूट्स, दही, मिठाई तथा मल्टी ग्रेन आटे की कुकीज़, फल, मेवे, सेवईयाँ, होती हैं। करवा चौथ व्रत रखने से पहले सरगी की जाती है, तथा सरगी मध्यरात्रि तथा सूर्यौदय होने से पहले की जाती है।

करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व:

करवा चौथ के दिन चंद्रमा का विशेष महत्व होता है, तथा इस दिन चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही इस व्रत का पारण किया जाता है, करवा चौथ के दिन शिव और माता पार्वती के साथ भगवान गणेश तथा कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है, माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत करने के दौरान सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त हुआ था , तो ऐसे में हर महिला अपनी पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा को लम्बी आयु का वरदान प्राप्त है, तो इस दौरान चाँद की पूजा कर महिलायें अपनी पति के लिये लम्बी उम्र की कामना करती है।

मेहंदी का महत्व (karva chauth mehndi)

करवा चौथ सुहागन महिलाओं के लिए एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन मेहंदी लगाना काफी शुभ माना जाता है, महिलाओं के सोलह शृंगार में मेहंदी का विशेष महत्व होता है, तथा ऐसा माना जाता है कि जिस महिला के हाथ में मेहंदी का रंग जितना गाढ़ा रचता है उनसे उनका पति उतना ही ज़्यादा प्यार करते है, इसके अलावा मेहंदी की तासीर ठंडी होती है तथा करवा चौथ के दौरान मेहंदी लगाने से हमें मानसिक रूप से ठंडक का एहसास होता है,

करवा चौथ की पूजन विधि:

करवा चौथ के दिन महिलायें शाम को स्नान कर साफ कपड़े तथा पोशाक पहनती है और इस दौरान सोलह शृंगार कर तथा खुद को तैयार कर पूजा स्थान पर बैठती है, तथा करवा माता की पूजा करने के बाद बुजुर्गों से करवा चौथ की कथा सुना जाता है, कथा सुनने के बाद सात बार अपनी पूजा थाल को अदला-बदली किया जाता है, उसके बाद छलनी से चंद्रमा का दर्शन कर अपने पति का चेहरा देखा जाता है और उसके बाद अपनी पति का आरती कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।

करवा चौथ की व्रत कथा:

करवा चौथ की पूजा करने के बाद कथा सुनना काफी शुभ माना जाता है तथा करवा चौथ की कथा आप पंडित या फिर अपनी सांस तथा बुजुर्ग महिलाओं से कथा जरुर सुने तथा कथा सुनने के बाद घर के सभी बड़े सदस्यों का आशीर्वाद ले।

करवा चौथ की आरती:

करवा चौथ का व्रत सूर्योदय के साथ शुरुआत होता है तथा चंद्रोदय के साथ इस व्रत की समाप्ति होती है, करवा चौथ की पूजा करने के बाद सभी महिलायें अपने पति की आरती करती है,

करवा चौथ के दिन क्या खाना चाहिये:

करवा चौथ के दौरान रात को पूजा करने के बाद तथा व्रत खोलते वक्त कुछ मीठा खा कर व्रत खोले तथा इसके बाद आप जूस ले सकते है या फिर आप हल्का आहार ले सकते है ताकि आसानी से पच जायें तथा इस दौरान एकदम से मसाले तथा ऑयली भोजन से दूरी बनायें क्योंकि इस दौरान मसालेदार भोजन का सेवन करने से आपको एसिडीटी की समस्या हो सकती है,

करवा चौथ का महत्व:

करवा चौथ का व्रत रखने से सुहागन महिलाओं का जीवन सुखमय होता है, तथा पति पत्नी के बीच प्रेम का अटूट रिश्ता क़ायम होता है जिससे इन दोनो के बीच का रिश्ता तथा प्रेम ओर भी गहरा होता है। करवा चौथ के दिन चाँद का विशेष महत्व होता है क्योंकि इस दिन रात को चाँद की पूजा की जाती है तथा पूजा करते समय महिलायें अपनी पति की लंबी आयु के लिये प्रार्थना करती है। इस दिन विवाहित महिला अपनी लिये करवा चौथ का व्रत रखती है।

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सूरदास जयंती, जीवन परिचय, सूरदास की रचनाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी (Surdas ka jivan parichay)

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Surdas ka jivan parichay : आज हम ऐसे कवि एवं संत के बारे में जानेंगे जिसकी कृष्ण भक्ति  पूरे भारतीय संस्कृति में रची बसी है। सूरदास भक्तिकाल के कृष्णभक्ति शाखा के सबसे महत्वपूर्ण कवि, कृष्ण भक्त, गीतकार माने जाते है। ( सूरदास का जीवन परिचय (Surdas ka jivan parichay)) 

सूरदास जयंती 

सूरदास जयंती 2024 में 12 मई को मनाया जा रहा है। इस वर्ष पूरे देश में 546वीं जयंती मनाई जा रही है।  उनकी जयंती पर इसमें सूरदास जी के जीवन परिचय, सूरदास जी की महत्वपूर्ण रचनाओं, सूरदास जी काव्य के विविध रूप भाव पक्ष एवं कला पक्ष, सूरदास की भक्ति भावना, सूरदास का भ्रमरगीत, सूरदास के लोकगीत, सूरदास के पद, दोहे एवं, भजन, कविताओं का विवेचन किया गया है। 
 
 
सूरदास के जीवन संबंधी तथ्यों का विवरण नीचे दिया है-

सूरदास का जीवन परिचय  – surdas ka jivan parichay

 

 

सूरदास का जन्म 

1478 ईस्वी

जन्मस्थान 

रुनकता, उत्तर प्रदेश 

पिता का नाम

पिता का नाम -रामदास 

माता का नाम

माता का नाम- जमुनदास

भक्ति (मंदिर) का स्थान 

श्रीनाथ जी के मंदिर 

साहित्यिक रचनाएँ एवं कृतियाँ 

सुरसागर, सुरसुरावली, साहित्य लहरी 

भाषा शैली

ब्रजभाषा, गेय मुक्तक शैली

सूरदास के गुरु एवं संप्रदाय 

बल्ल्भाचार्य, पुष्टिमार्ग संप्रदाय 

रस 

वात्सल्य एवं शृंगार रस 

प्रवर्तक

भ्रमरगीत परंपरा के प्रवर्तक 

हिन्दी साहित्य में स्थान 

भक्तिकाल के कृष्णभक्तिशाखा, अष्टछाप के प्रमुख कवि 

उपाधि 

वात्सल्य सम्राट सूरदास 

मृत्यु

1583 ईस्वी, उत्तर प्रदेश, मथुरा में 

यहां आगे सूरदास के जीवन परिचय संबंधी विवरण नीचे दिया गया है-  

कवि सूरदास का आरंभिक जीवन – जन्म एवं जन्मस्थान-Early Life of Poet Surdas – Birth and Birthplace -Surdas ka jivan parichay

सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में हुआ था। जनश्रुति के अनुसार सूरदास  का जन्मस्थान रुनकता, उत्तर प्रदेश है। कहा जाता है कि वे जन्म से ही अंधे थे एवं बचपन से ही उनमें संतों एवं वैराग्य वाली प्रवृति थी। मथुरा के नदी-घाटों में निवास करते थे।

सूरदास के माता -पिता – सूरदास के गुरु

सूरदास के पिता का नाम रामदास था एवं माता का नाम जमुनादास था।   मथुरा के घाटों पर सूरदास जी अपने गुरु बल्ल्भाचार्य से मिले थे। बल्ल्भाचार्य ने ही उन्हें अन्तः दीक्षा प्रादन की। इसके पश्चात वे गोवर्धन पर्वत पर निवास करने लगे।

इसके पश्चात गोवर्धन पर्वत पर ही श्रीनाथ जी के मंदिर में वे पूजा अराधना, कीर्तन एवं कृष्णभक्ति संबंधी पदों की रचना करते एवं सुनाते थे, जिसकी संगीत की गूंज से मुगाल शासकों से लेकर आम जनता भी प्रभावित हुई।  

सूरदास की भक्ति भावना- Surdas ki Bhakti Bhavna

कहा जाता है कि आरंभ में सूरदास जी कबीर की भांति योग, जाति-पाति, मूर्ति पूजा के विरोध, गुरु का महत्व आदि संबंधी उपदेश देते थे। जब आचार्य बल्ल्भाचार्य ने सूरदास को पुष्टिमार्ग संप्रदाय में लाए तो वे कृष्ण भक्ति की ओर उन्मुख हुए एवं कृष्ण लीला के गुणगान करने लगे। 

सूरदास जी भगवान कृष्ण के परम भक्त थे, उनमें कृष्ण के प्रति उनमें अथाह प्रेम था, उनकी भक्ति भावना प्रेमभक्ति की थी, जिसे उन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से उकेरा है जहां ब्रज की धरती में कृष्ण के प्रति सभी को प्रेम है।

यहाँ एक ओर ब्रज का प्राकृतिक सौंदर्य प्रेम है, श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं एवं बाल चेष्टाओं के प्रति माता यशोदा का प्रेम है, पिता नन्द का प्रेम है, तो दूसरी ओर राधा का प्रेम है, गोपियों का प्रेम है। बालक कृष्ण की मनमोहक छवि का जैसा सुंदर वर्णन सूरदास ने किया है वो भारतीय जनमानस में रच-बस गया है। माता यशोदा का अपने पुत्र कृष्ण के प्रति प्रेम में आज हर भारतीय  माँ अपने को देखती है । 

आचार्य बल्ल्भाचार्य की देखरेख सूरदास जी पुष्टिमार्ग संप्रदाय में रहते हुए कृष्णभक्त बने अतः पुष्टिमार्ग संप्रदाय के बारे में जानना आवश्यक है- 

सूरदास एवं पुष्टिमार्ग संप्रदाय-Surdas and Pushtimarg

आचार्य बल्ल्भाचार्य ने भागवत पुराण के आधार पर कृष्ण भक्ति का प्रचार – प्रसार किया था एवं इसी के आधार अपना पुष्टिमार्ग संप्रदाय स्थापित किया। भागवत पुराण के अनुसार पुष्टिमार्ग को इस प्रकार बताया गया है- 

  “पुष्टि कि मे ? पोषणम्। पोषणं किम्। तदनुग्रहः भगवत्कृपा ।” 

अर्थात पुष्टिमार्गी भक्ति में ‘पुष्टि’ भगवद् अनुग्रह या कृपा को कहा जाता है, भक्तों में भक्ति की भावना को जागृत करना ईश्वर के कृपा पर निर्भर होता है, जिसमें भक्त को समर्पित भाव से ईश्वर की लीला में शामिल होना होता है। इस मत के अनुसार ईश्वर भक्तों के कल्याण एवं कृपा करने के लिए इस धरा पर आते हैं।  

सूरदास एवं अष्टछाप – Surdas and Ashtchaap

आचार्य बल्ल्भाचार्य के पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ ने 1565 ई में आचार्य बल्ल्भाचार्य के 4 शिष्य एवं अपने 4 शिष्यों को 8 संतों एवं कवियों एक समूह की स्थापना की जिसे अष्टछाप कहा जाता है। गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथ जी के मंदिर में ही सूरदास जी अपने जीवन पर्यंत सेवा करते रहे।  अपने कृष्ण के अपने पदों की रचना गाकर, कीर्तन करके ही कराते थे।  

आचार्य बल्ल्भाचार्य के 4 शिष्य इस प्रकार हैं- सूरदास, कुंभन्दास, परमानंद दास, कृष्णदास 

गोस्वामी विट्ठलनाथ के 4 शिष्य इस प्रकार हैं- छीतस्वामी, गोविंद स्वामी, कृष्णदास, चतुर्भुजदास  

सूरदास जी की रचनाएँ-Surdas ki rachna

सूरदास जी की करीब 25 से ज्यादा रचनाएं है, पर उनके लिखे कुल 03 ग्रंथों को ही प्रामाणिक माना गया है। प्रामाणिक रचनाएँ इस प्रकार है – सूर सारावली, सूरसागर, साहित्य लहरी, 

सूरदास जी की अन्य रचनाएँ इस प्रकार है- 

दृष्टिकूट के पद, सूर सागर सार, गोवर्धन लीला, विनय के स्फुट पद, राधा रसकेलि कौतूहल, दान लीला, नाग लीला, व्याह लो, सूर शतक, सूर पचीसी, नल दमयन्ती आदि। 

सूरसागर

  • सूरदास जी की प्रसिद्धि कारण यह सूरसागर ग्रंथ ही है।
  • सूरसागर का आधार ग्रंथ भागवत पुराण है, पर सूरसागर सूरदास जी की मौलिक कृति है। 
  • कहा जाता है सूरसागर के कुल 12 स्कन्ध है जिसमें लाखों पदों का समावेश है।
  • सूरसागर में कृष्ण की लीलाओं का पूरा सजीव चित्रण किया गया है।  
  • इसमें ब्रज गाँव का प्राकृतिक बिम्ब उभकर सामने आता है एवं दूसरी ओर भ्रमरगीत का विवेचन किया गया है। 

सूर सारावली

  • सूर सारावली सूरदास जी की एक प्रमुख प्रामाणिक ग्रंथ है।
  • इसमें कुल 1107 गेय पद हैं।
  • इसमें  सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन है।
  • यह ग्रंथ होली गीत के रूप में रचित है। 

साहित्य लहरी

  • साहित्य लहरी 118 पद में रचा गया एक लघु ग्रंथ है।
  • सूरदास के दृष्टिकूट पदों का संग्रह है। दृष्टिकूट पदों का अर्थ यह है कि इसका अर्थ सामान्य या सहज अर्थ से नहीं होते, बल्कि इसके पीछे की भावना अलग होती है। 
  • इसमें रस, अलंकार एवं नायिका भेद वर्णन। 
  •  

सूरदास का भ्रमरगीत-Surdas ka bhramargeet

  • सूरदास के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सुरसागर’ में सूरदास ने भ्रमरगीत के बारे में बताया है। इसमें कुल 700 पद का संग्रह है।
  • हिन्दी साहित्य में भ्रमरगीत परंपरा को आरंभ सूरदास जी ने ही किया इसीलिए उन्हें भ्रमर गीत के प्रवर्तक माना जाता है।
  • सूरदास के पदों की एक विशेषता यह भी है कि इनके सभी पदों में गेयता है अर्थात यह गाए जाने वाला पद है। 
  • इन गीतों को भ्रमरगीत नाम इसीलिए दिया गया है कि जब कृष्ण ब्रज एवं वृन्दावन को छोड़कर मथुरा जाकर बस जाते हैं तो कृष्ण के वियोग में नन्द, यशोदा, गोपियाँ, राधा सभी व्याकुल हो उठते हैं।
  • कृष्ण को भी ब्रजवासियों की याद आती है। कृष्ण ने उद्धव नाम के व्यक्ति से अपना संदेश ब्रजवासियों के लिए भेजते हैं। 
  • उद्धव को अपने ज्ञान पर बड़ा गर्व था। उद्धव को आते ही ब्रजवासी कृष्ण के बारे में पुछने लगते हैं। पर उद्धव कृष्ण के संदेश के रूप में ज्ञान की बातें करने लगते हैं जिसे गोपियाँ को पसंद नहीं आया। तभी एक भौंरा वहाँ आकार गुंजन करने लगता है। गोपियाँ इस भौंरा को माध्यम बनाकर उद्धव पर गुस्सा निकालने लगती है। 

“वह मथुरा काजर की कोठारी जे आवहें ते कारे।

तूम करे सुफलकसूत कारे, कारे मधुप भंवारे॥’ 

इस प्रकार गोपियों एवं उद्धव के बीच तर्क-वितर्क शुरू हो जाता है। 

सूरदास का वात्सलय वर्णन -Surdas ka vatslay

सूरदास जी ने भगवान कृष्ण के जन्म से लेकर भगवान कृष्ण के जीवन के हरेक पहलू का पुरा विवरण सुरसागार में किया है। बालकृष्ण के सौंदर्य, बाल क्रीड़ाओं, बाल चेष्टाओं जैसे कृष्ण का चलना, कृष्ण की वेशभूषा, माखन चोरी करना, आदि से ब्रजवासी, नन्द-यशोदा, गोपियाँ सभी मनमुग्ध हो जाता है। माखन चोरी का एक उदाहरण देखिए- 

मैया मैं नहि माखन खायो। ‘ख्याल’ परे सब सखा संग मिली मेरे मख लपटायो। 

अर्थात बालक कृष्ण कहते हैं कि माखन मैने नहीं खाया, इन सब ग्वाल-बालों ने मेरे मुख पर लगा दिया है। अपने भाई की शिकायत मटा यशोदा से करते हुए बालक कृष्ण का मनोरम दृश्य- 

मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो। मोसो कहत मोल को लीन्हो तोहि जसुमति कय जायो ।

अर्थात मुझे भाई बलराम यह कहकर चिढ़ा रहे हैं कि मैं माता यशोदा का पुत्र नहीं हूँ मुझे खरीदा कर लाया गया है। बालक कृष्ण को ऐसा लगता है कि उसकी केसो की चोटी बढ़ नहीं है, इस पर माता यशोदा से कहते है- 

मैया कबहि बढ़ेगी चोटी ? किती बार मोहि दूध पियति भई, यह अजहूँ है छोटी।

कुछ और उदाहरण –

शोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुन चलत रेनु तन मंडित मुख दधि सेप किए। 

सिखवत चलत जसोदा मैया। 

सूरदास के संबंध में आ. रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है- “वात्सल्य और श्रृंगार के क्षेत्रों का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने अपनी बंद आंखों से किया, उतना किसी और कवि ने नहीं। इन क्षेत्रों कोना-कोना झांक आए है।” 

 कृष्ण के बाललीला एवं माता यशोदा के मातृभावनाओं का जितना सुंदर चित्रण सूरदास ने किया है, उतना अभी किसी और कवि के बस की बात नहीं, इसीलिए सूरदास को वात्सल्य सम्राट भी कहा जाता है।

सूरदास के पद, सूरदास के दोहे, भजन, कविताएं-

Surdas ke pad, Surdas ke dohe, Bhajan, Kavita

सूरदास के पद एवं दोहे की कुछ पंक्तियाँ नीचे दिए गए हैं – 

  • जसोदा हरि पालनै झुलावैं । हलरावै, दुलराइ, मल्हावै, जोई सोइ कछु गावै
  • बूझत स्याम कौन तू गोरी। तू कहाँ रहति, काकी है बेटी, देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी ।
  • घुटुरुन चलन रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए ॥  
  • सिखवत चलन जसोदा मैया अरबराय कर पानि गहावति, डगमगाय धरै पैयौ ॥
  • शोभित कर नवनीत लिए ।
  • मैया कबहि बढेगी चोटी !कितिक बार माहिं दूध पियत भइ, यह अजहूँ है छोटी ॥ 
  • खेलन में को काको गुसैयाँ ?
  • निर्गुन कौन देस को बासी ?
  • मधुकर हँसि समुझाय सौह दै बूझति सांच, न हांसी ॥
  • मधुबन तुम कत रहत हरे ।
  • हरि है राजनीति पढि आए, समुझी बात कहत मधुकर जो? समाचार कछु पाए? 
  • संदेसो देवकी सों कहियों ।
  • बिहँसि कह्यौ हम तुम नहिं अंतर, यह कहिके उन ब्रज पठई। 
  • सूरदास प्रभु राधा माधव, व्रज बिहार नित नई-नई ॥
  • मो सम कौन कुटिल खल कामी ।
  • प्रभु जी मेरे अवगुन चित न धरो ।
  •  आयो घोष बड़ो व्यापारी । 
  •  आये जोग सिखावन पांडे ।
  • अँखियाँ हरि दरसन की प्यासी ।

सूरदास की भाषा शैली-Surdas ki bhasha

सूरदास जी ने अपने रचनाओं के लिए ब्रजभाषा का उपयोग किया है। कहा जाता है कि इनके पहले भी ब्रजभाषा का उपयोग कवियों ने किया था पर उतनी सफलता उन कवियों को नहीं मिली जैसे सूरदास जी को। आ रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार ब्रजभाषा में पहली साहित्यिक कृति सूरदाज़ जी की है। इसके अलावा अरबी फारसी शब्दों का प्रयोग भी कहीं-कहीं किया गया है। पदों की गे बनाने के लिए छंदों में दोहा, रोला छ्ंद का प्रयोग मुख्य रूप से किया गया है। 

सूरदास के संबंध में संक्षेप में निष्कर्ष –

अंततः कहा जा सकता है कि सूरदास जी भक्तिकाल एवं भक्ति आंदोलन के एक महत्वपूर्ण कवि है। उनकी ख्याति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के तीन रत्नों (अर्थात कबीर, सुरदास एवं तुलसीदास) में वे शामिल हैं जिसके बिना भक्तिकाल को परिभाषित नहीं किया जा सकता।

आज भारत के हर विद्यालय, कालेज एवं विश्वविद्यालयों में सूरदास के पद, दोहे एवं, भजन, कविताएं पढ़ाई जाती है। सूरदास ने अपनी रचना सूरसागर में बालक कृष्ण की लीलाओं का जितना सुंदर एवं मनोहारी वर्णन किया है, वह अन्यत्र नहीं मिलता। आज जो टेलीविजन पर हम कृष्ण की लीलाओं पर फिल्में एवं कार्टून देखते हैं, उनमें सूरदास जी की रचनाओं की ही झलक मिलती है। 

सूरदास जी 1583 ईस्वी, उत्तर प्रदेश, मथुरा में अपनी अंतिम साँसे ली। उनकी मृत्यु पर विट्ठलदास जी ने कहा था – 

पुष्टिमार्ग कौ जहाज जात है। जाय कछु लेनों होय सो लेउ ॥ 

सुरदास के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न –

Q-सूरदास किस भाषा के कवि थे?

A- ब्रजभाषा

Q-सूरदास के माता का नाम?

A- जमुनादास

Q-सूरदास के पिता का नाम?

A- रामदास

Q-सूरदास के गुरु कौन थे? सूरदास किसके शिष्य थे? 

A- आचार्य बल्लभाचार्य

Q-सूरदास की मृत्यु कब और कहाँ हुई?

A- 1583 ई. मथुरा, उत्तर प्रदेश,

Q-सूरदास का जन्म कब हुआ था?

A-1478 ईस्वी

Q-सूरदास का जन्म स्थान कहां है?

A- रुनकता, उत्तर प्रदेश

Q-सूरदास की प्रमुख रचना/रचनाएँ ?

A- सुरसागर

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हैप्पी मदर्स डे : जानें मदर्स डे क्यों मनाया जाता है? मदर्स डे पर निबंध, कोट्स, इतिहास एवं महत्व।(Happy Mother’s Day) 

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मदर्स डे क्यों मनाया जाता है
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मदर्स डे क्यों मनाया जाता है : पूरे विश्व में मदर्स डे (Mother’s Day) इसीलिए मनाया जाता है ताकि माँ के प्रति प्रेम, आदर, सम्मान एवं माँ के निस्वार्थ प्रेम और अटूट समर्पण के प्रति कृतज्ञता प्रकट किया जा सके। इस दिन लोग अपनी माँ को गिफ्ट एवं शुभकामनाएँ देते हैं। यह त्योहार इतना प्रचलित हो चुका हैं कि विश्व के 51 से अधिक देशों में यह मनाया जा रहा है। साल 2024 में मदर्स डे 12 मई को मनाया जाएगा।

मदर्स डे (Mother’s Day)  की तिथि- 

वर्ष 2024 में  मदर्स डे (Mother’s Day) 2024  की तिथि 12 मई 2024 को है। इस वर्ष जर्मनी, भारत, न्यूजीलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रिया, अमेरिका, एवं कई देशों में इस पर्व को 12 मई 2024 को मनाया जा रहा है। तो कुछ देशों जैसे आयरलैंड , मिडिल ईस्ट देशों में मदर्स डे (Mother’s Day) मार्च को मनाया जा रहा है। आमतौर पर इसे हर साल मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है, जिसकी कोई निश्चित तिथि नहीं होती है।

मदर्स डे (Mother’s Day) 2024  की तिथि12 मई 2024
मदर्स डे (Mother’s Day) 2025  की तिथि11 मई 2024
दर्स डे (Mother’s Day) 2026  की तिथि10 मई 2024
मदर्स डे (Mother’s Day) 2027  की तिथि09 मई 2024

मदर्स डे (Mother’s Day) पर निबंध

त्योहार का नाम मदर्स डे (Mother’s Day)
तिथिSecond sunday in May in every Year
मदर्स डे (Mother’s Day की जननी अमेरिका की ऐना एम जारविस
ऐना का जन्म अमेरिका के वेस्ट वर्जिनिया
ऐना एम जारविस  की मां का नाम अन्ना एम जारविस को समर्पित दिवस 
देश –अमेरिका सहित कई देशों चीन, नेपाल, थाईलैंड, वियतनाम, ग्रीस, जापान, मैक्सिको, अफ्रीका में । 
पूरे अमेरिका में मदर्स डे को मनाने की शुरुआत राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन  द्वारा 9 मई 1914
सबसे पहला मदर्स-डे8 मई 1914 को अमेरिका में मनाया गया
उद्देश्यमाँ के सम्मान एवं योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए 

जानें मदर्स डे क्यों मनाया जाता है? (Know how Mother’s Day started)

मातृ दिवस का इतिहास समृद्ध है। इसे सबसे पहले प्राचीन काल में मनाया जाता था, जिसमें मातृ आकृतियों और मातृ देवी का सम्मान करने वाले त्यौहार मनाए जाते थे। हालाँकि, आज हम जिस आधुनिक मातृ दिवस को मनाते हैं, उसकी जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ था।

मदर्स डे (Mother’s Day) की शुरूआत अमेरिका में हुआ था एवं इसे शुरुआत करने का श्रेय अमेरिका की ऐना एम जारविस को जाता है। ऐना की माँ, अन्ना एक शिक्षक थी। ऐना को अपनी मां से बहुत ज्यादा लगाव था । उसकी माँ का सपना था कि विश्व में माँ के प्रेम एवं त्याग को समर्पित कोई यादगार दिन होना चाहिए।  ऐना को अपनी मां का विचार बहुत ही पसंद आया। वह अपना सारा जीवन माँ की सेवा करना चाहती थी। 

मदर्स डे क्यों मनाया जाता है

1905 में एना की माँ के देहांत के पश्चात एना ने मदर्स डे की शुरुआत करनी चाही एवं वह मदर्स डे को नेशनल हॉलिडे घोषित करना चाहती थी। ऐना चाहती थी कि सभी लोग अपनी माँ का सम्मान एवं  सराहना करें। वह चाहती थी कि साल का यह दिन ‘Second sunday in May’ होना चाहिए। 

एना ने अपना सारा जीवन अपनी मदर के नाम करने का संकल्प लिया और अपनी मां को सम्मान देने के उद्देश्य से मदर्स डे की शुरूआत की. इसके लिए एना ने इस तरह की तारीख चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आस-पास ही पड़े. यूरोप में इस दिन को मदरिंग संडे कहा जाता है, तो वहीं ईसाई समुदाय से जुड़े बहुत लोग इस दिन को वर्जिन मेरी के नाम से भी पुकारते हैं.

उसके प्रयास से सबसे पहला मदर्स-डे 8 मई 1914 को अमेरिका में मनाया गया। पूरे अमेरिका में मदर्स डे को मनाने की शुरुआत 9 मई 1914 को हुई जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने अमेरिकी संसद में कानून पास करके हर साल मई महीने के दूसरे संडे को मदर्स डे मनाने का फैसला लिया. तब से अमेरिका, यूरोप और भारत सहित कई देशों में मदर्स डे धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा। 

Mother’s Day quotes – मदर्स डे के संबंध में कोट्स

  1. ‘ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने पृथ्वी पर मां को भेजा।’ बाइबिल
  2. “मैं जो कुछ भी हूं या बनने की उम्मीद करता हूं, उसका पूरा श्रेय मैं अपनी मां को देना चाहता हूँ।” – अब्राहम लिंकन
  3. “माँ का प्यार मई के गुलाबों से भी ज्यादा खूबसूरत होता है।” – हेनरी वार्ड बीचर
  4. “माँ जैसा कोई मित्र नहीं होता।” – आयरिश कहावत
  5. “मातृत्व: सारा प्यार वहीं से शुरू और खत्म होता है।” – रॉबर्ट ब्राउनिंग
  6. “माँएँ अपने बच्चों का हाथ थोड़े समय के लिए थामती हैं, लेकिन उनका दिल हमेशा के लिए।” – चीनी कहावत
  7. “एक माँ की बाहें कोमलता और मिठास से बनी होती हैं। कोई और आपको कभी भी उसकी तरह नहीं थाम सकता।” – प्रिंसेस डायना
  8. “मेरी माँ की सबसे बड़ी प्रतिभा यह थी कि उनके पास जो कुछ भी था, उसी में काम चला लेती थीं।” – रीटा रुडनर
  9. “अगर मदर नेचर का कोई पद होता, तो वह माँ होता।” – रॉबर्ट ऑर्बेन
  10. “मातृत्व दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। इसे अनुवाद की आवश्यकता नहीं है, सभी दिल इसे समझते हैं।” – गेल बकले
  11. “हर माँ अपने घर में रानी की तरह होती है।” – वियतनामी कहावत
  12. “माँ गोंद की तरह होती हैं। जब आप उन्हें देख नहीं पाते, तब भी वे परिवार को एक साथ रखती हैं।” – सुसान गेल
  13. “मातृत्व सबसे बड़ी चीज़ है और सबसे कठिन चीज़ है।” – रिकी लेक
  14. “एक माँ का प्यार शांति है। इसे हासिल करने की ज़रूरत नहीं है, इसके लायक होने की ज़रूरत नहीं है।” – एरिच फ्रॉम
  15. “माँ बनना उन शक्तियों की खोज करना है जिनके बारे में आपको पता नहीं था और उन डरों से निपटना है जिनके बारे में आपको कभी पता नहीं था।” – लिंडा वूटन

मदर्स डे का महत्व (Importance of Mother’s Day)

  1. मानव जीवन में मां के महत्व को कोई भी नकार नहीं सकता। दिन भर की भागदौड़ में हमारी माँ छूट जाती है, इसीलिए मदर्स डे की महत्ता को लोग अच्छी तरीके से समझने लगे हैं। मां को उनकी अहमियत एवं त्याग को अहसास करवाने के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है।
  2. माँ के अटूट समर्पण, निस्वार्थ प्रेम का इस दुनिया में कोई मोल नहीं है। वे हमारे परिवार को सम्भालती है, पारिवारिक रिश्तों को एकजुट करती है। सीधी सी बात है कि बिना परिवार के कोई भी जीवित नहीं रह सकता है।
  3. मदर्स डे हमें इस बात की भी याद दिलाता है कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, के बारे में जागरूकता फैलाएँ ताकि उनके स्वास्थ्य एवं जीवन को कोई नुक़सान न हो ।
  4. इस दिन न सिर्फ़ माँ, बल्कि एक महिला के सभी रूप में बेटियाँ, चाची, मौसी, भतीजी, को सम्मान देने का समय है।
  5. मदर्स डे का महत्व और बढ़ जाता है, जब हम देखते हैं कि बच्चों के जीवन पर माँ का सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ता है। आखिरकार मां ही वो इंसान है, जो जन्म देने से लेकर हर सुख-दुख में अपने बच्चे के साथ हमेशा खड़ी रहती है. इसी वजह से मां की अहमियत को शब्दों में बयां कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होता है.
  6. बच्चों के प्रति माँ का प्रेम अमूल्य है। बच्चे की भलाई और खुशी के लिए माँ अपने आप को समर्पित कर देती है। माँ से ही हमारे पारिवारिक रिश्ते एवं संबंध को नई दिशा मिलती है। 

Mother’s Day wishes

  1. आपका दिन उतना ही खास हो जितना आप हैं। मदर्स डे पर आपको मेरा बहुत सारा प्यार।
  2. आपका दिन उतना ही खूबसूरत हो जितना आप हैं, माँ। मदर्स डे की शुभकामनाएँ!
  3. यह एक ऐसा दिन है जो पूरी तरह से आपके बारे में है, माँ। आप जो कुछ भी मेरे लिया किया उसके लिए धन्यवाद। हैप्पी मदर्स डे!
  4. आपका दिन हमारे लिए उतना ही शानदार हो जितना आप हैं।, आप एक सुपरहीरो हैं। हैप्पी मदर्स डे!
  5. आप हमारे जीवन में एक आशीर्वाद हैं, सबसे अच्छी माँ होने के लिए धन्यवाद। हैप्पी मदर्स डे!
  6. आपने हमारे लिए जो भी त्याग किए हैं, उसके लिए शुक्रिया। आप दुनिया की सबसे अच्छी माँ हैं। हैप्पी मदर्स डे!
  7. आपने मुझे जो प्यार दिया है, उसके लिए आपका धन्यवाद। आप मेरी प्रेरणा हैं। हैप्पी मदर्स डे!
  8. आप मेरी मार्गदर्शक हो, आपने हमारे लिए जो भी त्याग किए हैं उसके लिए धन्यवाद। । मातृ दिवस की शुभकामनाएँ!
  9. आप हमारे जीवन की रोशनी हैं। हैप्पी मदर्स डे!
मदर्स डे क्यों मनाया जाता है

मदर्स डे कैसे मनाया जाता है?

मदर्स डे माँ के निस्वार्थ प्रेम और अटूट समर्पण का प्रतीक है एवं दुनिया भर के लोग इसे विभिन्न तरीकों से मनाते हैं, माँ के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने का तरीक़ा अलग-अलग होता है पर हम चाहे कोई भी भाषा बोलते हों, किसी भी धर्म को मानते हों, भावना तो सभी की एक ही है और वो है प्रेम। इस दिन मां को ग्रीटिंग्स, कोट्स मेसेज करना या बोलकर सुनाना, गिफ़्ट या माँ की पसंद की कोई चीज़ देकर मदर्स डे विश किया जाता है। कई लोग अपनी माँ को बाहर घुमाने के लिए भी ले जाते हैं।

FAQ :

Q- मई के दूसरे रविवार को ही मदर्स डे क्यों मनाया जाता है?

A- वर्ष के मई माह के दूसरे रविवार को, मदर्स डे की शुरुआत करनेवाली अमेरिका की ऐना एम जारविस की माँ की पुण्यतिथि है, इसीलिए माताओं को सम्मान देने के लिए मदर्स डे मनाते हैं। 

Q- अंतर्राष्ट्रीय मदर्स डे किस दिन है?

A- इस वर्ष 2024 में, अंतर्राष्ट्रीय मदर्स डे 12 मई, रविवार को मनाया जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मदर्स डे की कोई निश्चित तिथि नहीं होती है।

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1-फिल्म अभिनेता राम चरण की जीवनी, आनेवाली फ़िल्में, नेटवर्थ एवं परिवार।

जानें कबीरदास का जीवन परिचय, शिक्षाएँ, जयंती, रचनाएँ एवं दोहे। (Kabirdas ka jivan parichay)

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कबीरदास का जीवन परिचय

आज हम कबीरदास का जीवन परिचय के माध्यम से ऐसे व्यक्तित्व के बारे में जानेंगे जिसने अपने कर्म एवं मेहनत से आम जनता में अपनी जगह बनाई, समाज में व्याप्त बुराइयों, धार्मिक कुरीतियों एवं आडंबरों पर जमकर हमला बोला। कबीरदास मध्ययुग के सबसे प्रसिद्ध संत, कवि, समाजसुधारक थे। वे हिन्दी साहित्य में भक्तियुग के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माने जाते हैं। वे हिन्दी साहित्य में निर्गुण भक्ति एवं ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक हैं।

कबीरदास का जीवन का परिचय

विद्वानों ने कबीरदास की जीवनी को अधिकतर जनश्रुतियों पर आधारित माना है। अतः जनश्रुतियों पर आधारित कबीरदास का जीवन परिचय प्रस्तुत किया गया है-

नामकबीरदास 
जन्म 1398
मृत्यु 1518 
जन्मस्थान  काशी 
मृत्युस्थान  मगहर
पिता का  नाम  पिता का
नाम नीरू
 
माता का नाम  माता का
नाम नीमा
पत्नी का नाम लोई 
पुत्र एवं पुत्रियाँ पुत्र का
नाम -कमाल, 
 पुत्री का
नाम -कमाली
 
गुरु का नाम रामानन्द 
भाषा सधुक्क्ड़ी, पँचमेल खिचड़ी
अवधि 14वीं से 15वीं शताब्दी 
प्रवर्तक एवं आंदोलन  हिन्दी
साहित्य में निर्गुण भक्ति एवं ज्ञानाश्रयी शाखा
जाति एवं पेशा  जुलाहा
संत काव्य धारा के प्रथम कवि कबीरदास 
कबीर के प्रमुख शिष्य का नाम धर्मदास 
कबीर वाणी का संग्रह बीजक। इसके तीन भाग है-साखी, सबद एवं रमैनी
  

कबीरदास का जन्म कब हुआ था? कबीरदास का जीवन परिचय

सभी संत कवियों की तरह कबीर का जन्म तिथि के बारे में भी संदेह है। हालांकि अधिकतर विद्वान  कबीरदास का जन्म तिथि सन 1398 में मानते हैं। 

कबीरदास का जन्म स्थान कहाँ है?

कबीर दास का जन्म स्थान काशी माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान मगहर भी मानते हैं। पर अधिकतर लोग काशी को ही प्रमाणिक मानते है। इस संबंध में कबीर के  इस दोहे का उदाहरण देते हैं-

‘काशी में हम प्रकट भयो रामानन्द चेतायो।’

 

कबीरदास के माता-पिता का नाम क्या था?

 

माना जाता है कि कबीरदास के पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था जो पेशे से जुलाहे थे। कबीरदास के माता-पिता के संबंध में भी मतभेद है। 

 

इस संबंध में कहा जाता है कि कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मण के गर्भ से हुआ था। लोकलाज के भय से उसे उसकी माँ ने लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख कर आई थी जिसे बाद में  नीरू एवं नीमा के जुलाहे, जो निसंतान थे,  ने कबीर को उस तालाब से उठा लिया एवं उसका पालन-पोषण किया। बाद में कबीर भी पेशे से जुलाहे बने। 

कबीरदास का परिवार

कबीर की पत्नी का नाम लोई था एवं कबीर के पुत्र का नाम कमाल एवं पुत्री का नाम कमाली था। 

कबीरदास की शिक्षा

कबीरदास को कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं मिली थी बल्कि उन्होने साधु-संगति में रहकर ज्ञान अर्जन किया था।  

मसि कागज छुयौ नहीं, कलम गहयो नहीं हाथ। 

 

कबीरदास के गुरु थे-संत रामानन्द 

कबीर दास के गुरु भक्ति युग के संत   रामानन्द जी थे। कबीर अपनी रचनाओं में गुरु को अत्यधिक महत्व देते थे। 

      कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानन्द।    

कबीरदास जयंती- Kabirdas Jayanti, 2024

वर्ष 2024 में कबीरदास जयंती 22 जून 2024 को मनाया जा रहा है। जनश्रुति के अनुसार कबीरदास का जन्म ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ था। अँग्रेजी कैलेंडर में कबीरदास जयंती प्रतिवर्ष जून माह में पड़ता है।

कबीर प्रकट दिवस Kabir Prakat Divas : 

कबीरदास जी के अनुयायी उनके जन्मदिवस को कबीर साहेब प्रकट दिवस के रूप में भी मनाते है। ऐसा माना जाता है कि कबीरदास जी काशी के लहरतारा तालाब के किनारे प्रकट हुए थे एवं उस समय कबीर का शिशु रूप कमल फूल पर लेटे हुए थे जिसे नीरू-नीमा नाम के जुलाहे दंपति ने कबीर को  उस तालाब से उठाकर  पालन-पोषण किया।

कबीरदास जयंती के दिन कबीरदास के अनुयायी एवं उनकी शिक्षाओं पर चलने वाले लोग उनका स्मरण करते हैं एवं उनके बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हैं। कबीरदास के दोहों एवं रचनाओं का पाठ भी किया जाता है।

कबीरदास का समय एवं तत्कालीन परिस्थितियाँ : 

कबीरदास का समय धार्मिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल वाला था। इस उथल-पुथल से आम जनता भी प्रभावित हो रही थी। कबीर का आगमन ऐसे समय हुआ था जब  देश की कमान मुस्लिम शासकों के हाथ में थी। कबीर के समय देश में लोदी वंश का शासन था। कबीर ने अपने समय में तीन वंशों का शासन देखा था – -तुगलक वंश, लोदी वंश, सैयद वंश।

उस समय का समाज वर्ण व्यवस्था, जाति भेद-भाव, उंच-नीच ही निर्भर हो गया था। चारों तरफ सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़िवाद, आडंबर एवं पाखंड का बोलबाला था। निम्न श्रेणी की जनता को पूजा पाठ एवम मंदिरों में जाने की मनाही थी। कबीरदास के समय दो धर्मों की ही प्रधानता थी -हिन्दू एवं मुस्लिम। कबीरदास का दोनों धर्मों में व्याप्त रूढ़िवाद, आडंबर एवं पाखंड पर जमकर हमला बोला एवं ऐसी बुराइयों को सुधारने के उपदेश दिया जो लोक कल्याण के हित में नहीं-

अरे इन दोउन राह न पाई ।

—————————-

हिंदून के हिंदुवाई देखि तुरकन के तुरकाई। 

तत्कालीन समाज में मूर्ति पूजा, धार्मिक कर्मकांड के बहाने कुव्यवस्था फैल रही थी। कबीर आखों देखी पर विश्वास करते थे एवं धर्माधिकारियों को डांट-फटकार का एक उदाहरण –

तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आंखन की देखी।’ 

 

कबीरदास के भगवान कौन थे?

कबीरदास जी निर्गुण ब्रह्म की उपासना एवं भक्ति करते थे। निर्गुण ब्रह्म से तात्पर्य ऐसे ईश्वर से है, जिसका कोई गुण रूप (शारीरिक) नहीं। केवल उसकी अनुभूति की जा सकती है जैसे कस्तुरी की सुगंध से हिरण पूरे जंगल में उसे ढूंढता रहता है, कस्तुरी की सुगंध उसके शरीर के अंदर से ही आ रही है। उसी प्रकार ईश्वर की प्राप्त मंदिर -मस्जिदों में नहीं हो सकती। उसे अपने अंदर तलाशना पड़ता है। सांसारिक माया से वशीभूत होने के कारण व्यक्ति उसे देख नहीं पाता।

(1)कस्तुरी कुंडली बसे मृग ढूंदे वन माहे। 

ऐसे घट-घट राम है दुनिया देखत नाहीं॥    

(2) मोको कहाँ ढूंडे रे बंदे मै, तो तेरे पास में,

न मैं मस्जिद, न मैं मंदिर न काबा-कैलास में। 

इस प्रकार कबीर ने ईश्वर भक्ति का द्वार उन सभी लोगों के लिए खोल दिया जिन्हें मंदिर -मस्जिदों में आवाजाही  करने की मनाही थी। 

कबीरदास के शिष्य एवं अनुयायी-

कबीरदास के प्रमुख शिष्य का नाम धर्मदास एवं मूलकदास था। इसके अलावा अन्य भक्त  भी  कबीरपंथ के अनुयायी बनें। इसमें शामिल हैं-कबीर दोनों संताने कमाल और कमाली, हरदास, जीवा, गरीबदास आदि ।

कबीरदास की रचनाएँ- बीजक

चूंकि कबीरदास की पारम्परिक  शिक्षा नहीं मिली हुई थी। इनके वाणियों एवं उपदेशों का संकलन इनके शिष्यों ने ही किया। कहा जाता है कि कबीर वाणी का पहला संकलन धर्मदास ने बीजक नाम से 1464 में किया।  बीजक का अर्थ परम ज्ञान या धन। जीव अर्थात मनुष्य के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान। बीजक में भक्ति, गुरु की महत्ता, ब्रह्म, जीव, जगत की निश्वरता, माया से संबंधित बातें कही गयी है।  

 बीजक- इसके तीन भाग है-साखी, सबद एवं रमैनी।

  1. साखी – साखी का अर्थ है कि साक्षी। इसमें जीव अर्थात मनुष्य के संबंध में विचार व्यक्त किए गए है।
  2. सबद – इसमें ब्रह्म एवं ईश्वर संबंधी विचार व्यक्त किए गए है।
  3. रमैनी -इसमें मनुष्य के सांसारिक जगत के संबंध में विचार व्यक्त किए गए है।

 सिख धर्म के आदि ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में कबीरदास की रचनाओं का संकलन –

इसके अलावा सिख धर्म के प्रमुख धर्मग्रंथ-गुरु ग्रंथ साहिब में कबीरदास की कुछ पदों  का संकलन किया गया है। कहा गया है कि कबीर के पदों का सबसे पुराना संकलन गुरु ग्रंथ साहिब में ही मिलता है।  

कबीरदास की सधुक्क्ड़ी भाषा: 

कबीरदास के आम जनों की भाषा का उपयोग अपने वाणी एवं उपदेशों में किया है जिसे साधुक्क्ड़ी भाषा या पँचमेल भाषा या मिश्रित भाषा भी कहा जाता है। कबीरदास ने अपनी भाषा में ब्रजभाषा, खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी, मागधी आदि का प्रयोग किया है।  इनकी रचना में निम्नलिखित भाषा के नमूने मिलते है –

  1. साखी – ब्रजभाषा एवं पूर्वी बोली।
  2. सबद – ब्रजभाषा एवं पूर्वी बोली।
  3. रमैनी -खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी

कबीरदास की शिक्षाएँ-Teachings of Kabirdas

कहा जाता है कि कबीर भक्तिकाल एवं संत काव्यधारा के अग्रणी कवि थे एवं उनकी रचनाओं में लोक-कल्याण एवं समाज को सुधारने की भावना थी।  

1) वे हिन्दू -मुस्लिम एकता के पक्षधर थे एवं वे मानते थे कि  ईश्वर एक है। अतः वे लोगों को  बाहरी विधि-विधान एवं मर्ति पूजा, नमाज एवं  कर्मकांड (दिखावे के लिए धार्मिक अनुष्ठान) आदि से लोगों को दूर रहने का संदेश देते थे-

‘पाथर पूजे हरी मिलै तो मैं पूजू पहाड़।’ 
याते वह चक्की भली पीस खाय संसार॥ 
कांकड़ पाथर जोड़ि के मस्जिद लिया बनाय ।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥ 
 

2) ईश्वर ने सबको एक समान बनाया है। उसकी नजर में भेद-भाव नहीं। अतः हमें छुआ-छूत, जाति, धर्म आदि के नाम पर भेदभाव नहीं रखना चाहिए। 

3) मानव मात्र को अपने अंदर छिपे बुराई को पहले दूर करना चाहिए-

माला फेरत युग गया मिटा न मन का मेल।
कर का मनका ढार दे मन का मनका फेर। । 
 

4) कबीर के अनुसार गुरु का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु ही शिष्य को संसार का ज्ञान कराता है। अतः गुरु का महत्व ईश्वर से भी ज्यादा है। कबीर ने आम लोगों को अपने गुरु का सम्मान करने का संदेश दिया है। 

गुरु गोविंद दोउ खड़े काकै लागु पाय।
बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय॥ 
 

5) कबीर कहते हैं कि हमें मानव मात्र से प्रेम करना चाहिए। प्रेम से बड़ा धर्म कोई नहीं। कबीर का मानना था कि 

‘पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम के पढे सो पंडित होय ॥’
 

6) हमें एक दूसरे की बुराई कभी नहीं करनी चाहिए। किसी की बुराई करने से पहले हमें अपने अंदर झांकना चाहिए क्या हमारे अंदर कोई बुराई नहीं।  कबीर कहते है- 

बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोई ।
जो दिल खोजा आपमा मुझसा बुरा न कोई ॥ 

 

निष्कर्ष –

कहा जा सकता है कि कबीर अपने समय के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। वे भक्तिकाल के प्रथम कवि भी थे। विद्वानों ने कबीरदास को हिन्दी साहित्य में निर्गुण काव्यधारा, संत काव्यधारा एवं ज्ञानाश्रयी के प्रवर्तक मानते है। कबीरदास ने अपनी प्रखर उपदेशों से आम जनता के दिलों में अपनी जगह बना ली थी।
 
प्रायः यह देखा गया है कि कबीरदास की कविताएं आम जनता के जुबान पर रहती है। कबीर का जीवन ही तत्कालीन समाज का दर्पण माना जाता है। उस सामंती एवं राजशाही व्यवस्था का पूरा प्रतिबिंब हमें कबीर की रचनाओं में देखने को मिलता है। कबीर का जीवन ही उस समय के दूरव्यवस्था का जीवंत दस्तावेज़ है।
 
कबीर की सबसे बड़ी विशेषता थी – वे दिल के एकदम सच्चे थे एवं उसकी तर्कशक्ति एवं लोकल्याण की भावना पूरे भक्ति साहित्य में कहीं नहीं मिलता। उन्होने अपने ज्ञान एवं तर्क से लोगों को अपनी बात मनवायी और ऐसा वे इसीलिए कर पाए क्योंकि उनमें लोककल्याण की भावना निहित थी। आज पूरे देश में उनके अनुयायी एवं चाहने वालों की कोई कमी नहीं है। उनके अनुयायी कबीरपंथी के नाम से जाने जाते है। कबीर अत्यंत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, इस बात को हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी माना है-‘प्रतिभा उनमें प्रखर थी, इसमें कोई संदेह नहीं।’    
 

कबीरदास के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q- कबीर के अनुसार भगवान कहां निवास करते हैं?

A-प्रत्येक व्यक्ति के अंदर उस परमतत्व का वास रहता है। 

Q-कबीर के अनुसार ईश्वर है? कबीर दास जी भगवान है?

A-निर्गुण एवं निराकार ईश्वर।

Q-कबीर की शिक्षा क्या थी?

A-कबीरदास को कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं मिली थी बल्कि उन्होने साधु-संगति में रहकर ज्ञान अर्जन किया था।

Q-कबीर दास जी की रचनाएं कौन -कौन सी है?

A-कबीर दास जी की रचना बीजक है एवं इसके तीन भाग है-साखी, सबद एवं रमैनी।
 

Q-कबीर दास जी की भाषा कौन सी है?

A-साधुक्क्ड़ी भाषा या पँचमेल भाषा या मिश्रित भाषा।

Q-कबीर किसके अनुयायी थे?

A-रामानन्द

Q-कबीर दास का जन्म कब हुआ था? Kabirdas ka janm kab hua tha? 

A-कबीरदास का जन्म सन 1398 में हुआ था। 

Q-कबीरदास का जन्म कहाँ हुआ था? Kabirdas ka janm kaha hua tha? 

A-कबीर दास का जन्म स्थान काशी माना जाता है।

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