Govardhan Puja Katha In Hindi: भारत में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है तथा यह त्योहार दीपावली के अगले दिन बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा में गायों की पूजा का विशेष महत्व है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है तथा यह वही दिन है जब भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र को पराजित किए थे।
गोवर्धन पूजा का त्योहार उत्तर भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है तथा खास कर मथुरा, वृंदावन और गोकुल में इनकी धूम सबसे अधिक देखने को मिलती है। गोवर्धन पूजा में महिलायें अपने घर में गोबर का पर्वत बनाकर उनकी पूजा करती है तथा इसके साथ-साथ भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा-अर्चना की जाती है।
गोवर्धन पूजा का पर्व पाँच दिवसीय दिवाली उत्सव के दौरान मनाया जाता है। पाँच दिवसीय उत्सव का पहला दिन-धनतेरस, दूसरा दिन- छोटी दिवाली, तीसरा दिन- दीपावली, चौथा दिन- गोवर्धन पूजा, पांचवा दिन- भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा:(Govardhan Puja)
गोवर्धन पूजा की शुरुआत द्वापर युग से शुरू हुई थी तथा इस दिन लोग गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ की अल्पना बना कर उनकी पूजा करते थे तथा इस पूजा में भगवान श्री कृष्ण के साथ-साथ वरुण देव, इंद्र देव तथा अग्नि देव की भी पूजा-अर्चना की जाती थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली से गोवर्धन पर्वत को उठाकर सम्पूर्ण ब्रज वासियों को भगवान इंद्र के ग़ुस्से से बचाया था तो इस दौरान भगवान श्री कृष्ण के उपासक उन्हें चावल, दाल तथा अन्य पत्तेदार सब्जी का भोग बना कर अर्पित किए थे। इस तरह गोवर्धन पूजा को अन्न कूट के नाम से भी जाना जाता है।
गोवर्धन पूजा की तिथि?
साल 2024 में गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर दिन-शनिवार को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 1 नवंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 2 नवंबर को रात 08 बजकर 21 मिनट पर होगा।
गोवर्धन पूजा की तारीख़:
वर्ष | दिन और तारीख़ |
2022 | 26 अक्टूबर, दिन- बुधवार |
2023 | 14 नवम्बर, दिन- मंगलवार |
2024 | 02 नवम्बर, दिन- शनिवार |
2025 | 22 अक्टूबर, दिन- बुधवार |
2026 | 10 नवंबर, दिन- मंगलवार |
गोवर्धन पूजा के लिए आवश्यक सामाग्री:
गोवर्धन पूजा में देवताओं को अर्पित करने के लिए विभिन्न सामाग्री की आवश्यकता पड़ती है। जिनमें से फल, फूल, मिठाई, अगर बत्ती, रोली, अक्षत, शहद तथा पंचामृत है।
गोवर्धन पूजा कैसे करे?
- गोवर्धन पूजा के दिन आप सुबह उठकर नहा-धो कर फ्रेश हो जाए, उसके बाद गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण की आकृति बनाए।
- उसके बाद इन आकृति को रंगों तथा फूलों से सजाए।
- अब भगवान को लोरी, अक्षत, धूप तथा बाती दिखाए और उसके बाद विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई तथा 56 प्रकार का भोग अर्पित करे।
- अब भगवान श्री कृष्ण की आरती करते हुए हाथ जोड़ कर प्राथना करे और अंत में इन प्रसाद को श्रद्धालुओं के बीच बाँट दे।
गोवर्धन पूजा में अन्न कूट का महत्व:
गोवर्धन पूजा में श्रद्धालु विभिन तरह के पकवान तैयार कर भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाते है, इसके अलावा इस दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग अर्पित किया जाता है तथा इसी पकवान को अन्न कूट कहा जाता है। गोवर्धन पूजा के दौरान कई धार्मिक स्थलों तथा मंदिरों में अन्न कूट का आयोजन किया जाता है क्योंकि इस पर्व में तरह-तरह के पकवानों से भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है और साथ ही साथ इस दिन ग़रीबों तथा जरुरत मंदों में अन्न कूट के प्रसाद को वितरण किया जाता है।
गोवर्धन पूजा की परिक्रमा:
गोवर्धन पूजा में गिरिराज पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है तथा गोवर्धन पूजा पूरी हो जाने के बाद इस पर्वत की सात बार परिक्रमा की जाती है तथा परिक्रमा के दौरान हाथ में लौटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए इसकी परिक्रमा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करने से हमें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी कथा: (Govardhan Puja Katha In Hindi)
विष्णु पुराण में गोवर्धन पूजा से जुड़ी कथा इस प्रकार है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर काफी अभिमान हो गया था और भगवान इंद्र के इस अभिमान को श्री कृष्ण ने चकना चूर कर दिए थे।
कथा के अनुसार एक दिन गोकुल वासी अपने घरों में तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और खुशी के साथ गीत गा रहे थे। इन सभी तैयारी को देखते हुए बाल कृष्ण अपनी माता यशोदा से यह पूछता है कि आप लोग किसकी पूजा की तैयारी कर रहे है, तो माता यशोदा यह जवाब देती है कि हम देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे है।
बाल कृष्ण को इस जवाब से संतुष्टि न होने के कारण फिर अपनी माता से प्रश्न पूछता है कि हम इंद्र देव की पूजा क्यों करते है?तब माता यशोदा भगवान कृष्ण को समझाते हुए यह कहती है कि देवराज इंद्र की कृपा से हमारे यहाँ अच्छी बारिश होती है और अन्न की पैदावार होती है। बारिश की वजह से पेड़-पौधे खिले रहते है और इससे गायों को अच्छी चारा मिलती है।
माता यशोदा की बात सुनकर भगवान श्री कृष्ण यह कहते है कि अगर ऐसी बात है तो हमें इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि हमारी गाय इसी पर्वत पर चरती है और इस पर्वत पर लगे पेड़-पौधे की वजह से बारिश होती है।
कृष्ण की बात मानते हुए सभी गोकुलवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी और यह सब देख देवराज इंद्र क्रोधित हो जाते है और अपने अपमान का बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर देते है। घनघोर बारिश देखकर सभी गोकुल वासी घबरा जाते है। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण अपनी छोटी उँगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लेते है और इस पर्वत के नीचे सभी गोकुल वासियों को बुला लेते है।
भगवान इंद्र यह सब देख काफी क्रोधित हो गए और इन्होंने बारिस काफी तेज कर दी। इस तरह लगातार 7 दिनों तक मूसला धार बारिश होने के बावजूद गोकुल वासी सुरक्षित रहते है।
अंत में देवराज इंद्र को अपनी गलती का एहसास होता है और वह भगवान कृष्ण से क्षमा माँगते है। इस तरह गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।
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