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गणेश चतुर्थी पर निबंध : जानें क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी (Essay on Ganesh chaturthi)

गणेश चतुर्थी पर निबंध : गणेश चतुर्थी त्योहार प्रतिवर्ष भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। देश-विदेश  में गणेश चतुर्थी का त्योहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत में गणेश चतुर्थी विशेषकर महाराष्ट्र राज्य में बड़ें ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में भगवान गणेश को गणपती बप्पा के नाम से संबोधित करते हैं। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार गणपती बप्पा के जन्म की कथा से ही जुड़ा हुआ है।

गणेश चतुर्थी पर निबंध (Essay on Ganesh chaturthi)

कहा जाता है कि गणपती बप्पा के आगमन अर्थात उनके जन्म  से ही संसार में शुभता का आगमन हुआ। प्रथम पूजनीय भगवान  गणेश रिद्धि-सिद्धि के दाता है। प्रतिवर्ष  यह त्योहार आमतौर पर अंग्रेजी माह के अगस्त या सितंबर में पड़ता है। 

गणेश चतुर्थी कितने दिनो तक मनाया जाता है? 

 

गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है तथा इस उत्सव के समय प्रत्येक घर  में गणपति बप्पा जी की स्थापना करते है तथा पूरी श्रद्धा के साथ 10 दिनों तक  पूजा और आराधना करते है और मोदक का भोग चढ़ाते है। 

 

भगवान गणेश के अन्य नाम- 

कहा जाता है कि भगवान गणेश के 108 नाम है।  यहां कुछ प्रसिद्ध नाम दिए गए है- 

गणपति बप्पा, लंबोदर,  गजानन, धूम्रकेतु, विनायक, गणेश, भालचंद्र, विध्नहर्ता, गणाध्यक्ष, एकदंत, गजकनर्क, कपिल, विध्नहर्ता आदि.

 

क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी ? 

 
गणेश चतुर्थी पर निबंध (Essay on Ganesh chaturthi)

कहा जाता है कि माता पार्वती ने हल्दी के लेप से एक युवा लड़के की तस्वीर बनाई और उसे जीवित कर दिया। गणपती के जन्म के बाद माता पार्वती ने उनका नाम विनायक रखा था।  पार्वती जब स्नान करने जा रही थी वह  विनायक को घर के बाहर पहरा देने को कहा कि जब तक वह स्नान नहीं कर लेतीं, तब तक किसी को प्रवेश न करने दें। बालक विनायक ने माता पार्वती से दैवीय शक्तियाँ पाकर किसी भी देवता, शिवगण को आने से रोक रहे थे।

भगवान शिव कैलाश पर्वत से लौटे तो माता पार्वती से मिलने पहुंचे और बालक गणेश उन्हें अंदर जाने से रोक रहे थे जिससे शिव क्रोधित हो गए तथा  क्रोधित होकर विनायक का सर धड़ से अलग कर दिए  तथा शिव को मालूम नही था कि गणेश उन्ही का पुत्र है। जब पार्वती बाहर निकली तो यह दृश्य देखकर आश्चर्य चकित रह गयी। इस पर माता पार्वती क्रोधित होकर पूरे संसार का ही विनाश करने का ठान ली। 

माता पार्वती का क्रोध शांत करने एवं सभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने गणपति को ठीक करने का फैसला लिया और उन्हें ठीक करने के लिए देवताओं को एक कार्य सौंपा कि जो भी सबसे पहला जानवर मिले उसका सिर लेकर आए। जब देवता मार्ग की ओर प्रस्थान किए तो उन्हें हाथी का एक बच्चा मिला और वे उन्ही का सर लेकर आ गए। जिसे भगवान शिव ने गणपति के धड़ से जोड़ दिया।

भगवान शिव के द्वारा हाथी का मस्तक लगाने पर उनका नाम गजानन अर्थात गणपति रखा गया। सर्वप्रथम माता पार्वती को विनायक का रूप पसंद नहीं आया। पर ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के यह कहने पर कि बालक गणेश के आगमन से संसार में शुभता का आगमन हुआ। अतः किसी भी शुभ कार्य के शुरुआत गणेश पूजा के बिना संभव नहीं हो पाएगा। संसार के प्रत्येक शुभ कार्य में गणेश की पूजा-अर्चना जरूरी है। 

श्री गणेश के प्रथम पूजनीय की कहानी  

कहा जाता है कि देवताओं में प्रथम पूजनीय कौन बने? इसके लिए भगवान शिव और देवी पार्वती ने देवताओं  के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित करने का फैसला किया। इस प्रतियोगता में गणेश, कार्तिक सहित सभी देवताओं ने भाग लिया।

भगवान शिव ने इस प्रतियोगिता की शर्त रखी थी कि जो इस पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा, उसे प्रथम पूजनीय घोषित किया जाएगा। प्रतियोगिता शुरू होते ही सारे देवता पृथ्वी की परिक्रमा में  लग गए।

जबकि बालक गणेश दौड़ में शामिल होने के बजाय,अपने माता -पिता अर्थात भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर काटने लागा। उन्होंने कहा  कि उनके माता-पिता ही पूरे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व है। माता-पिता की परिक्रमा करना पृथ्वी की परिक्रमा से भी ज्यादा है।  गणेश की इस कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए उन्हें ही प्रथम पूजनीय की उपाधि दी गयी ।

गणेश पूजा की विधि- गणेश पूजा के लिए सामग्री

गणपति की पूजा के लिए कुछ आवश्यक सामग्री की जरूरत होती है जैसे- गंगाजल, दिप, कपूर, धूप, लाल रंग का कपड़ा, रोली, दुर्बा, कलश, फल, सुपारी, मोदक, लाल चंदन,पंचमेवा,लाडू,आदि।

पूजा के दिन भगवान गणेश की प्रार्थना की जाती है और प्रसाद चढ़ाया जाता है। भक्त देवता को मिठाई, फल और अन्य व्यंजन चढ़ाते हैं। मोदक, चावल के आटे से बना और गुड़ और नारियल से भरा एक मीठा पकौड़ा भगवान गणेश का पसंदीदा भोजन माना जाता है।

गणेश चतुर्थी के लिए मोदक का भोग:

गणपति को पूजा करते  समय भगवान गणेश को मोदक का भोग चढ़ाया जाता है तथा इन्हें  21 मोदक का भोग  चढ़ाया जाता है जिससे गणपति के साथ-साथ बाकी सभी देवी-देवताओ का पेट भर जाए और उनका भी आशीर्वाद हमे प्राप्त हो सके। मोदक एक भारतीय व्यंजन  है तथा मोद का अर्थ होता है खुशी जिससे भगवान गणेश हमेशा खुश रहते है और अपने भक्तो के कष्टो को दूर कर उनके जीवन में भी खुशियां लाते है। 

गणेश पूजा के लिए मंत्र:-

गणपति की पूजा करते समय हमे इन मंत्रो का जाप करना चाहिए। सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से इन मंत्रो का जाप करने से हमे मनचाहा सुख की प्राप्ति होती है। इसके अलावा हमारे घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है एवं कष्टो का निवारण होता है: 

  • वक्रतुंड महाकाय,सूर्यकोटि समप्रभः निर्विध्नम कुरु में देव् स्वरकायेषु सर्वदा
  • श्री गणेशाय नमः
  • ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा 

भगवान गणेश की पूजा के लिए सवर्प्रथम स्न्नान कर शुद्ध होना पड़ता है इसके बाद गणपति को लाल कपड़े के ऊपर स्थापित किया जाता है तथा चारो और गंगा जल  छिड़क कर गजानन को फूलो  से सजाया जाता है। गणपति को 21 मोदक का भोग एवं दुर्बा चढ़ाया जाता है।

 गणेश जी की पूजा में दूर्वा घास का क्या महत्व है? 

पौराणिक कथाओ के अनुसार गणपति को दुर्बा चढ़ाने के पीछे एक कथा है। प्राचीन समय में अनलासुर नाम का राक्षस साधुओ को जिंदा ही निगल रहे थे जिससे चारो और हाहाकार मच गया। फिर कुछ बचे साधुओ ने गणपति का आराधना करने लगे। 

जब गणपति प्रकट हुए और उन्हें उन रक्षास  के बारे में पता चला। गणेश ने उस राक्षस को जिंदा ही निगल लिए तब उसके बाद उनके पेट में काफी तेज जलन होने लगा। 

थोड़े समय बाद कश्यप नाम का ऋषि प्रस्तुत हुआ और उनके पेट के जलन को सांत करने के लिए उन्हें दुर्बा घास खाने को दिया जिससे गणपति ने उस दुर्बा घास को खाये तब जा कर उनका पेट का जलन शांत हुआ। तभी से यह मान्यता प्रचलित है कि भगवान गणेश को दुर्बा चढ़ाने से वो जल्द ही प्रश्न हो जाते है।

भारत के प्रसिद्ध गणेश मंदिर -GANESH TEMPLE IN INDIA

भारत में गणेश के कई मंदिर है जो भारत के विभिन्न राज्यों में स्थापित किए गए है। इन मंदिरों में लाखो की संख्या में श्रद्धालु आते है एवं गणपती की अराधना करते है। यहाँ  भारत के कुछ  प्रसिद्ध गणेश मंदिर का परिचय दिया गया है-

मंदिर का नाम स्थान

  1. सिद्धिविनायक मंदिर  मुंबई के प्रभादेवी नामक स्थान
  2. श्री महा गणपति मंदिर गोवा के मार्सेल गांव
  3. दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर पुणे, महाराष्ट्र
  4. कनिपकम विनायक मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में
  5. उच्ची पिल्लयार मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली
  6. करपाका विनायकर मंदिर  तमिलनाडु के पिल्लयारपट्टी
  7. मनाकुला विनयागर मंदिर पुडुचेरी
  8. सिद्धि विनायक मंदिर अहमदाबाद
  9. अष्टविनायक मंदिर पुणे, महाराष्ट्र
  10. बल्लालेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के पाली में
  11. मोरगांव गणपति मंदिर महाराष्ट्र के मोरगांव
  12. लालबागचा राजा मुंबई
  13. गणेश मंदिर कर्नाटक के प्राचीन शहर हम्पी
  14. सिद्धेश्वर गणपति मंदिर सोलापुर
  15. कुद्रोली गोकर्णनाथ मंदिर कर्नाटक के मैंगलोर

गणेश चतुर्थी का महत्व:

अतः कहा जा सकता है कि भारत में गणेश चतुर्थी का त्योहार एक सासंकृतिक त्योहार है। मान्यता है कि आज भी प्रत्येक शुभ अनुष्ठान या कार्यक्रम, पूजा, शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में श्री गणेश की पूजा की जाती है। भारतीय संस्कृति में एक मुहावरा भी प्रचलित है -श्रीगणेश करना अर्थात किसी कार्य का शुभारंभ करना।

भगवान गणेश शुभ कार्यों का प्रतीक है। उनकी पुजा से सभी कार्य शुभ हो जाते है। प्रथम पूजनीय भगवान गणेश सभी कठिनाइयों को दूर करने वाले ज्ञान, समृद्धि के देवता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस पूजा अनुष्ठान में भक्त गणपति आरती करते हुए प्रार्थना करते है कि भगवान उसके सारे कष्ट हर ले और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाये। इसलिए गणपति बप्पा को विध्नहर्ता भी कहा जाता है।  

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FAQ

Q-गणेश को विध्नहर्ता क्यों कहा जाता है? 

A- भगवान गणेश अपने भक्तों के विध्न, कष्ट दूर करते है । इसलिए गणपति बप्पा को विध्नहर्ता भी कहा जाता है।  

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