गणेश चतुर्थी पर निबंध : गणेश चतुर्थी का त्योहार प्रतिवर्ष भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। देश-विदेश में गणेश चतुर्थी का त्योहार बहुत ही धूम-धाम से सेलिब्रेट किया जाता है। खास कर भारत में गणेश चतुर्थी का त्योहार विशेषकर महाराष्ट्र राज्य में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र में भगवान गणेश को गणपती बप्पा के नाम से संबोधित करते हैं तथा यहाँ पर गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है।
गणेश चतुर्थी पर निबंध (Essay on Ganesh chaturthi)
कहा जाता है कि गणपती बप्पा के आगमन अर्थात् भगवान गणपति के जन्म से ही संसार में शुभता का आगमन हुआ तथा प्रथम पूजनीय भगवान गणेश को रिद्धि-सिद्धि का दाता कहा जाता है तथा प्रत्येक वर्ष गणेश चतुर्थी का त्योहार भाद्र पद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी कितने दिनों तक मनाया जाता है?
गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है तथा इस उत्सव के दौरान लोग अपने घरों में गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना करते है और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान गणपति की प्रतिमा को 10 दिनों तक पूजा करते है और मोदक का भोग चढ़ाते है।
भगवान गणेश के अन्य नाम-
कहा जाता है कि भगवान गणेश के 108 नाम है। यहां कुछ प्रसिद्ध नाम दिए गए है-
गणपति बप्पा, लंबोदर, गजानन, धूम्रकेतु, विनायक, गणेश, भालचंद्र, विध्नहर्ता, गणाध्यक्ष, एकदंत, गजकनर्क, कपिल आदि.
क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी ?
कहा जाता है कि माता पार्वती ने हल्दी के लेप से एक युवा लड़के की तस्वीर बनाई और उसे जीवित कर दिया और जन्म के बाद माता पार्वती ने इनका नाम विनायक रखा, इस प्रकार भगवान गणेश के रूप में माता पार्वती को पुत्र की प्राप्ति हुई।
भगवान गणेश की उत्पति:
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती जब स्नान करने जा रही थी तो वह विनायक को घर के बाहर पहरा देने को कही कि जब तक वह स्नान नहीं कर लेतीं, तब तक घर में किसी को प्रवेश न करने दें। इस तरह बालक विनायक अपनी माता का बात मानते हुए देवता तथा शिवगण को अपने घर में आने से रोक रहे थे।
भगवान शिव कैलाश पर्वत से लौटे तो माता पार्वती से मिलने पहुंचे और बालक गणेश उन्हें अंदर जाने से रोक रहे थे और इस कारण भगवान शिव क्रोधित हो गए तथा क्रोधित होकर विनायक का सर धड़ से अलग कर दिए तथा भगवान शिव को मालूम नही था कि गणेश उन्हीं का पुत्र है। जब पार्वती स्नान कर घर से बाहर निकली तो यह दृश्य देखकर आश्चर्य चकित रह गई। इस पर माता पार्वती क्रोधित होकर पूरे संसार का ही विनाश करने का ठान ली।
माता पार्वती का क्रोध शांत करने एवं सभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने गणपति को ठीक करने का फैसला लिया और उन्हें ठीक करने के लिए देवताओं को एक कार्य सौंपा कि जंगल में जो भी पहला जानवर मिले उसका सिर लेकर आए। जब देवता जंगल मार्ग की ओर प्रस्थान किए तो उन्हें हाथी का एक बच्चा मिला और इस तरह देवतागन आपस में सोच-विचार कर भगवान शिव के पास हाथी के बच्चे का सर लेकर आए और इस सर को भगवान शिव ने गणपति के धड़ के साथ जोड़ दिए।
भगवान शिव के द्वारा हाथी का मस्तक लगाने पर इनका नाम गजानन अर्थात् गणपति रखा गया। सर्वप्रथम माता पार्वती को विनायक का यह रूप पसंद नहीं आया। पर ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के यह कहने पर कि बालक गणेश के आगमन से संसार में शुभता का आगमन होगा। अतः किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजा के बिना संभव नहीं हो पाएगा। संसार के प्रत्येक शुभ कार्य में गणेश की पूजा-अर्चना जरूरी है इस तरह देवताओं के कहने पर माता पार्वती ने हाथी के सिर के रूप में भगवान गणपति को अपनाए।
श्री गणेश के प्रथम पूजनीय की कहानी:

देवताओं में प्रथम पूजनीय कौन बने? इसके लिए देवताओं के बीच आपस में बहस होनी शुरू हो गई। इस तरह भगवान शिव और देवी पार्वती ने देवताओं के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित करने का फैसला किया। इस प्रतियोगता में गणेश, कार्तिक सहित सभी देवताओं ने भाग लिया।
भगवान शिव ने इस प्रतियोगिता की शर्त रखी थी कि जो भी व्यक्ति पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा, उसे प्रथम पूजनीय घोषित किया जाएगा। प्रतियोगिता शुरू होते ही सारे देवता पृथ्वी की परिक्रमा में लग गए।
जबकि बालक गणेश दौड़ में शामिल होने के बजाय, अपने माता -पिता अर्थात् भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर काटने लगे। इस तरह भगवान गणपति ने यह कहा कि मेरे माता-पिता ही पूरे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व है। माता-पिता की परिक्रमा करना पृथ्वी की परिक्रमा से भी ज्यादा है। गणेश की कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए भगवान शिव ने गणपति को प्रथम पूजनीय की उपाधि दी।
गणेश पूजा के लिए आवश्यक सामाग्री तथा पूजा की विधि-विधान
- गणपति की पूजा के लिए हमें विभिन्न तरह की आवश्यक सामग्री की जरूरत होती है जैसे- गंगाजल, दिप, कपूर, धूप, लाल रंग का कपड़ा, रोली, दूर्बा, कलश, फल, सुपारी, मोदक, लाल चंदन तथा पंचमेवा आदि।
- भगवान गणपति की पूजा के लिए सूर्योदय से पहले उठे, उसके बाद सुबह स्नान कर साफ तथा स्वच्छ कपड़े धारण करे।
- अब एक लकड़ी की चौकी ले और इस पर लाल कपड़ा बिछाए, और अब भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करे।
- अब भगवान गणपति को फूल तथा दूर्वा अर्पित करे तथा भगवान गणेश को फल, मोदक और लड्डू का भोग लगाए।
- उसके बाद गणपति बप्पा के सामने घी का दीपक जलाए और कपूर से गणपति बप्पा की आरती करते हुए गणेश चालीसा का पाठ करे और सर झुका कर भगवान गणपति से प्रार्थना करे।
- अंत में भगवान गणपति का प्रसाद लोगों के बीच बाँटे।
गणेश चतुर्थी के लिए मोदक का भोग क्यों ज़रूरी है?
चावल के आटे से तैयार किया गया मोदक गुड़ और नारियल से भरा एक मीठा व्यंजन है अर्थात् मोदक भगवान गणेश का पसंदीदा भोजन माना जाता है।
गणपति की पूजा करते समय भगवान गणेश को मोदक का भोग चढ़ाया जाता है तथा इन्हें 21 मोदक का भोग चढ़ाया जाता है जिससे गणपति के साथ-साथ बाकी सभी देवी-देवताओ का पेट भर जाए और हमें सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। मोदक एक भारतीय व्यंजन है तथा मोद का अर्थ होता है खुशी जिससे भगवान गणेश हमेशा खुश रहते है और अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर उनके जीवन में खुशियां लाते है।
गणेश पूजा के लिए मंत्र:-
गणपति की पूजा करते समय हमें इन मंत्रों का जाप करना चाहिए। सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से इन मंत्रों का जाप करने से हमें मनचाहा सुख की प्राप्ति होती है। इसके अलावा हमारे घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है और साथ ही साथ कष्टों का निवारण होता है:
- वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभः निर्विध्नम कुरु में देव् स्वरकायेषु सर्वदा
- श्री गणेशाय नमः
- ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा
गणेश जी की पूजा में दूर्वा घास का क्या महत्व है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार गणपति को दूर्वा चढ़ाने के पीछे एक कथा है। प्राचीन समय में अनलासुर नाम का राक्षस साधुओं को जिंदा ही निगल रहे थे जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया तो फिर कुछ बचे साधुओं ने गणपति का आराधना करने लगे।
इस तरह भगवान गणपति उस स्थान पर प्रकट हुए तथा भगवान गणेश ने अनलासुर राक्षस को जिंदा ही निगल लिए और इसके कारण भगवान गणेश के पेट में काफी तेज जलन होने लगा।
थोड़े समय बाद कश्यप नाम का ऋषि प्रस्तुत हुआ और भगवान गणेश के पेट के जलन को सांत करने के लिए उन्हें दूर्वा घास खाने को दिए, इस तरह भगवान गणपति ने अपने पेट के जलन को शांत करने के लिए दुर्बा घास खाए और तब जाकर उनका पेट का जलन शांत हुआ और तभी से यह मान्यता प्रचलित है कि भगवान गणेश को दुर्बा चढ़ाने से वे जल्द ही प्रश्न हो जाते है।
भारत में प्रसिद्ध गणेश मंदिर कहाँ स्थापित है? – FAMOUS GANESH TEMPLE IN INDIA
भारत में भगवान गणेश के कई मंदिर है जो भारत के विभिन्न राज्यों में स्थापित किए गए है। इन मंदिरों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है एवं गणपती की अराधना करते है। यहाँ भारत के कुछ प्रसिद्ध गणेश मंदिर का परिचय दिया गया है-
मंदिर का नाम तथा स्थान:
- सिद्धिविनायक मंदिर मुंबई के प्रभादेवी नामक स्थान
- श्री महा गणपति मंदिर गोवा के मार्सेल गांव
- दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर पुणे, महाराष्ट्र
- कनिपकम विनायक मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में
- उच्ची पिल्लयार मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली
- करपाका विनायकर मंदिर तमिलनाडु के पिल्लयारपट्टी
- मनाकुला विनयागर मंदिर पुडुचेरी
- सिद्धि विनायक मंदिर अहमदाबाद
- अष्टविनायक मंदिर पुणे, महाराष्ट्र
- बल्लालेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के पाली में
- मोरगांव गणपति मंदिर महाराष्ट्र के मोरगांव
- लालबागचा राजा मुंबई
- गणेश मंदिर कर्नाटक के प्राचीन शहर हम्पी
- सिद्धेश्वर गणपति मंदिर सोलापुर
- कुद्रोली गोकर्णनाथ मंदिर कर्नाटक के मैंगलोर
गणेश चतुर्थी का महत्व:
अतः कहा जा सकता है कि भारत में गणेश चतुर्थी का त्योहार एक सांस्कृतिक त्योहार है। मान्यता है कि आज भी प्रत्येक शुभ अनुष्ठान में श्री गणेश की पूजा की जाती है। भारतीय संस्कृति में एक मुहावरा भी प्रचलित है – श्रीगणेश करना अर्थात् किसी कार्य का शुभारंभ करना।
भगवान गणेश शुभ कार्यों का प्रतीक है। उनकी पुजा से सभी कार्य शुभ हो जाते है। प्रथम पूजनीय भगवान गणेश सभी कठिनाइयों को दूर करने वाले ज्ञान, समृद्धि के देवता है। 10 दिनों तक चलने वाले पूजा अनुष्ठान में भक्त जनो, भगवान गणपति की आरती करते हुए प्रार्थना करते है ताकि भगवान गणपति अपने भक्तों के सारे कष्ट को हर ले, इसलिए गणपति बप्पा को विध्नहर्ता भी कहा जाता है।
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FAQ
Q- गणेश को विध्नहर्ता क्यों कहा जाता है?
A- भगवान गणेश अपने भक्तों के विध्न, कष्ट दूर करते है । इसलिए गणपति बप्पा को विध्नहर्ता भी कहा जाता है।
Q- 2025 में गणेश चतुर्थी कब है?
A- 2025 में गणेश चतुर्थी की शुरुआत 27 अगस्त, दिन- बुधवार से है।
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