Durga Puja 2024 : दुर्गा पूजा एक पवित्र धार्मिक त्योहार है जिसकी धूम तथा उत्साह पूरे दस दिनों तक रहती है। दुर्गा पूजा का यह त्योहार पूरे भारत में बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है तथा ख़ासकर पश्चिम बंगाल में मनाए जाने वाला दुर्गा पूजा विश्व प्रसिद्ध है। वर्ष 2024 में दुर्गा पूजा की शुरुआत 8 अक्तूबर (पंचमी) से है एवं अगले छह दिनों तक यानि 13 अक्तूबर, 2024 के विजय दशमी तक इसकी धूम रहेगी। देश के कई हिस्सों में इस दौरान दुर्गा-नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।
Durga Puja 2024 – एक दृष्टि में-
त्योहार का नाम | दुर्गा पूजा, शरदोत्सव, दुर्गोत्सव, नवरात्रि |
त्योहार की अवधि | कुल 6 दिन – महालया , षष्ठी, सप्तमी, महा अष्टमी/दुर्गा अष्टमी, महानवमी, विजयदशमी (अश्वनी शुक्ल पक्ष से अश्वनी शुक्ल के दशमी तक) |
दुर्गा प्रतिमा | माँ दुर्गा के साथ उनकी संतान – भगवान गणेश, भगवान कार्तिक, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती |
दुर्गा पूजा मनाने वाले प्रमुख राज्य | पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, त्रिपुरा, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश |
दुर्गा पूजा का प्रमुख मंत्र | “नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” |
धर्म एवं मानने वाले लोग | हिंदू धर्म-बंगाली, असमिया, मैथली, आदि |
क्यों मनाया जाता है? | यह त्योहार बुराई पर अच्छाई, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। माँ दुर्गा असुर प्रवृतियों का विनाश करती है। |
माँ दुर्गा के नौ रूप | शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्धमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री |
Durga Puja 2024 : 2024 में दुर्गा पूजा कब है?
शास्त्रों के अनुसार 2024 में माँ दुर्गा पालकी पर आयेंगी तथा अमावस्या के अगले दिन से ही महालया की शुरुआत हो जाती है। 2024 में महाल्या 2 अक्टूबर यानि बुधवार को होगा तथा इस दिन गांधी जयंती भी है जो पूरे भारत में छुट्टी का दिन होता है। महालया के अगले दिन से ही चंडी पाठ सहित दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है। 2024 में दुर्गा पूजा की शुरुआत 9 अक्टूबर यानि बुधवार से है।
दुर्गा पूजा का त्योहार वैसे तो वर्ष में दो बार आता है पहला चेत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिसे वासन्तिक नवरात्र कहा जाता है तथा दूसरा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में जिसे शारदीय नवरात्र कहा जाता है लेकिन इन दोनो में शारदीय नवरात्र का महत्व अधिक है शारदीय नवरात्र अर्थात् अक्टूबर से नवम्बर के बीच आयोजित दुर्गा पूजा बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
Durga Puja 2024 date : दुर्गा पूजा 2024 की तिथि
महालया | 2 अक्टूबर, बुधवार 2024 |
पंचमी तिथि | 8 अक्टूबर 2024, मंगलवार |
षष्ठी तिथि आरंभ | 9 अक्टूबर 2024, बुधवार |
सप्तमी तिथि | 10 अक्टूबर , गुरुवार, 2024 |
महा अष्टमी तिथि | 11 अक्टूबर , शुक्रवार, 2024 |
नवमी तिथि प्रारम्भ | 12 अक्टूबर, शनिवार , 2024 |
विजयदशमी तिथि | 12 अक्टूबर, शनिवार, 2024 |
कोलकाता, पश्चिम बंगाल का दुर्गा पूजा का त्योहार कैसे मनाया जाता है?
दुर्गा पूजा के दौरान पूरा पश्चिम बंगाल खूबसूरत पंडालों तथा प्रतिमाओं से सजाया जाता है जिसके कारण पश्चिम बंगाल का दुर्गा पूजा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। दुर्गा पूजा के दौरान पूरा पश्चिम बंगाल तथा कोलकाता भक्ति रस में डूबा नजर आता है। दुर्गा पूजा के दौरान पूरा पश्चिम बंगाल भव्य पंडालों तथा माँ दुर्गा की प्रतिमाओं से सजा होता है। अखण्ड दीपक जलाकर माँ दुर्गा की आराधना करते है तथा इस पूजा के दौरान हम माँ दुर्गा के रूप में स्त्री शक्ति की पूजा करते है।
विसर्जन से पहले विवाहित महिला माँ दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर लगाती है तथा अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है इसके बाद महिला एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाती है जिसे सिंधुर खेला कहा जाता है तथा इस रस्म के अनुसार माँ दुर्गा की मांग में सिंदूर लगाकर तथा उनका मुँह मीठा कर के उन्हें मायके से विदा किया जाता है। यह क्षण सभी महिलाओं के लिए बहुत ही ख़ुशी का होता है और सभी एक-दूसरे को विजय-दशमी की शुभ कामनाएँ देते हुए माँ दुर्गा को विदा करते है।
नवरात्रि का त्योहार
नवरात्रि के दौरान पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में डांडिया खेला जाता है तथा इस समय गुजरात में गरबा की धूम रहती है। तथा सभी लोग आपस में मिलकर गरबा और डांडिया खेलते है तथा चारों तरफ़ उत्साह का माहौल छा जाता है। कई लोग नवरात्रि के दौरान व्रत रखते है तथा माँ दुर्गा के सामने अखंड ज्योत जलाते है। नवरात्रि के दौरान कई जगह पर रामलीला का आयोजन भी किया जाता है।
इस दौरान भक्त-जन माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते है जिसे नवरात्र तथा नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात में नवरात्रि का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है तथा इस दौरान युवक अपने साथियों के साथ गरबा खेलते है. नवरात्रि के दौरान लोग व्रत रखते है।
मान्यता है कि जो सुहागन औरत माँ दुर्गा को चुत्ररी तथा सिंदूर अर्पित करती है। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है तथा उनके घरों में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है. यह नवरात्रि का अंतिम दिन होता है तथा इस दिन कन्याओं की पूजा किया जाता है। कहा जाता है कि नौ रात्रि के नौ रंग होते हैं एवं पूरे नवरात्रि में लोग नौ रंगों की पोशाक पहनते है-
नवरात्रि के नव रंग – 2024
- पहला दिन- 4 अक्तूबर, 2024, शुक्रवार -नारंगी
- दूसरा दिन- 5 अक्तूबर, 2024, शनिवार -सफ़ेद
- तीसरा दिन- 6 अक्तूबर, 2024, रविवार -लाल
- चौथा दिन- 7 अक्तूबर, 2024, सोमवार -नीला
- पाँचवा दिन- 8 अक्तूबर, 2024, मंगलवार -पीला
- छठा दिन- 9 अक्तूबर, 2024, बुधवार -हरा
- सातवाँ दिन- 10 अक्तूबर, 2024, गुरुवार -ग्रे
- आठवाँ दिन- 11 अक्तूबर, 2024, शुक्रवार -बैगनी
- नौवाँ दिन- 12 अक्तूबर, 2024, शनिवार -पिकोक ग्रीन
माँ दुर्गा – महिषासुर की कहानी – जानें महिषासुर कौन था?
पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर असुरों का राजा था, इनके पिता असुरराज रंभ थे। असुरराज रंभ को ईश्वर से वरदान स्वरूप पुत्र के रूप में महिषासुर मिला था। महिषासुर का जन्म महिष अर्थात् भैंस एवं मनुष्य के मिलन से हुई थी। अतः वह जब चाहे भैंसे या इंसान का रूप ले सकता था।
आगे चलकर महिषासुर भगवान ब्रह्मा के परम भक्त बने एवं ब्रह्मदेव की तपस्या कर उनसे अमरत्व का वरदान माँगा। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है अतः वह अमरता के अलावा दूसरा वर माँग लें। उसे ऐसा वरदान प्राप्त हुआ था कि कोई भी देवता या दानव या पुरुष उसे मार न सके। उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों हो। महिषासुर स्त्री को कमज़ोर एवं अबला समझता था। उसके अनुसार संसार के किसी भी स्त्री में इतना साहस नहीं कि वह महिषासुर का सामना कर सके।
माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध क्यों किया?
वरदान पाकर महिषासुर ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया। देवताओं का राजा इंद्र ओर दैत्यों के राजा महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया तथा इस युद्ध में भगवान इंद्र की पराजय हुई एवं महिषासुर पूरे संसार का स्वामी बन बैठा तो इस प्रकार महिषासुर स्त्रियों के ऊपर अत्याचार करने लगे, जिससे सब देवताओं ने मिलकर महिषासुर का विनाश करने के लिए माँ दुर्गा से प्रार्थना की एवं इस प्रकार माँ दुर्गा ने महिषासुर को पराजित कर उसका वध कर दिया तब से ही माँ दुर्गा को महिषासुर-मर्दिनी कहा जाने लगा तथा इस दिन को महाल्या के नाम से भी जाना जाता है।
दूसरी कहानी राम एवं रावण युद्ध से जुड़ा हुआ है। युद्ध के समय एक समय ऐसा आया कि राम को लगने लगा कि माँ दुर्गा के आशीर्वाद के बिना रावण से युद्ध नहीं जीता जा सकता। अतः राम ने देवी की आराधना शुरू की। माँ दुर्गा की पूजा के लिए 108 कमल पुष्पों की आवश्यकता होती है। राम ने पूजा के लिए 108 कमल पुष्प एकत्रित कर पूजा शुरू किये तथा देवी दुर्गा ने राम की परीक्षा लेने के लिए 1 कमल पुष्प छिपा देती है।
राम ने देखा कि 107 कमल पुष्प देवी को अर्पित हो चुकें हैं, पर 108वां पुष्प अर्थात् 1 पुष्प कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। पूजा से उठकर कमल पुष्प कहीं ओर से लाने पर पूजा असफल हो जाएगी। अतः उसे निराशा होने लगी पर राम को याद आया कि माता बचपन में उसकी आँखों को कमल नयन कहती थी। यह सोचकर राम तीर से अपनी 1 आँख देवी दुर्गा को चढ़ाने वाले ही थे कि देवी माँ दुर्गा अपने सम्पूर्ण रूप में अवतरित होकर विजय होने का आशीर्वाद देने लगी। इस घटना को कवि निराला ने अपनी कविता राम की शक्ति पूजा के माध्यम से बखूबी उभारा है :
साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम ! कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
राम की शक्ति पूजा – कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर। वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित, मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग, दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर , श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर। “। होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।” कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
दुर्गा पूजा कब से मनाया जाता है?
वैसे तो महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है, पर पंचमी या षष्ठी से दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है। कोलकाता में षष्ठी के दिन से ही माँ दुर्गा की प्रतिमा देखने के लिए घूमना आरंभ हो जाता है तथा इस दिन ही माँ दुर्गा के मुख से आवरण हटाया जाता है। दुर्गा पूजा का यह त्योहार मनुष्य के जीवन में अपना एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि माँ दुर्गा के आगमन से हमारे जीवन में उत्साह एवं नव ऊर्जा का संचार होता है।
महाल्या – दुर्गा पूजा की शुरुआत
महाल्या से ही दुर्गा पूजा की शुरुवात हो जाती है तथा इस पूजा की धूम चारो तरफ नजर आती है तथा इस दिन ही माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था इस प्रकार यह दिन बुराई पर अच्छाई के जीत के रूप में मनाया जाता है तथा महाल्या की शुरुआत पटाखे जलाना, ढोलक बजाना तथा काफी शोर-गुल से किया जाता है।
दुर्गा पूजा का छ्ठा दिन -षष्ठी
षष्ठी से ही दुर्गा पूजा घुमने की शुरुवात हो जाती है तथा लोग दुर्गा पूजा के दौरान हर दिन नए कपड़े पहनते है तथा बड़े पैमाने पर लोग घूमने के लिए पंडाल में जाते है तथा इस दौरान कोलकाता के सड़को पर काफी भीड़ होती है। दुर्गा पूजा की वास्तविक धूम-धाम षष्ठी के दिन से होती है। पश्चिम बंगाल में षष्ठी को दुर्गा पूजा का आरम्भ कहा जाता है तथा इस दिन ही माता के मुख से आवरण हटाया जाता है।
दुर्गा पूजा का सातवाँ दिन – सप्तमी
7वां दिन महा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है तथा इस नवरात्रि में प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है तथा इस दिन माँ दुर्गा का सातवाँ स्वरूप कालरात्रि की पूजा की जाती है. माँ कालरात्रि के तीन नेत्र तथा गले में विधुत की माला धारण किये हुए रहती है. माँ कालरात्रि की पूजा-अर्चना से रोग तथा कष्ट दूर होते है. मान्यता है कि इस दिन माँ दुर्गा की पूजा करने से शरीर के सारे कष्ट तथा दर्द दूर होते है।
दुर्गा पूजा एवं नवरात्रि का आठवाँ दिन – अष्टमी
नवरात्रि के आठवें दिन को महाअष्टमी तथा दुर्गाअष्टमी के रूप में जाना जाता है. महाअष्टमी के दिन माँ दुर्गा के रूप में माँ महागौरी की पूजा की जाती है, इस दिन हवन तथा पूजा-पाठ किया जाता है इसके साथ-साथ दुर्गा चालीस का पाठ भी किया जाता है तथा मान्यता है कि इस दिन माँ दुर्गा के रूपो की पूजा करने से सभी मनो-कामनाएं पूर्ण होती है. महाअष्टमी के दौरान कई महिलायें व्रत रखती है तथा माँ दुर्गा के रूपों की आराधना करती है।
दुर्गा पूजा एवं नवरात्रि का नवाँ दिन- नवमी
हिन्दू समाज में नवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है तथा इस दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपो का पूजा किया जाता है जिसके कारण इस दिन को नवरात्रि तथा नवमी कहा जाता है. पूरे भारत में नवरात्रि बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है तथा इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
विजय दशमी एवं दशहरा
पूरे नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा करने के बाद विजयादशमी में उनकी प्रतिमा को विसर्जीत किया जाता है इस कारण इस दिन को विजयादशमी तथा दशहरा कहा जाता है. भगवान राम ने कुम्भकरण रावण पर विजय प्राप्त पाने के लिए माँ दुर्गा की पूजा तथा अराधना की थी तथा यह वही दिन है जब भगवान राम ने माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त कर रावण का वध करने में सफल हुए, तथा इस दिन रावण के पुतलों का दहन किया जाता है ताकि बुराई पर अच्छाई की जीत हो. तब से इस दिन को विजया दशमी के रूप में मनाया जाने लगा।
रोचक जानकारियाँ :
4-आयरन मैन रॉबर्ट डाउनी जूनियर का जीवन परिचय, फ़िल्में, उम्र एवं परिवार (Robert Downey Junior)
5- कैटरीना कैफ का जीवन परिचय, फिल्में, परिवार एवं अन्य रोचक जानकारियाँ। (Katrina Kaif Biography)
6- रक्षाबंधन 2024 : जानें रक्षाबंधन की तिथि, इतिहास एवं महत्व (Raksha Bandhan)
Q- दुर्गा पूजा क्यों मनाया जाता है?
A- शास्त्रों के अनुसार माँ दुर्गा ने महिषा सुर नामक राक्षस के साथ नौं दिनो तक युद्ध कर उनका वध किया तभी से ही माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा नवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा।
Q- दुर्गा पूजा किस राज्य का प्रमुख त्योहार है?
A- दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
Q- दुर्गा पूजा मनाने की शुरुआत कैसे होती है?
A- शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना से पूजा की शुरुआत की जाती है और फिर नो दिनो तक माँ के नो रूपों की पूजा की जाती है।
Q- 2024 शारदीय नवरात्रि की शुरुआत कब से है?
A- 2024 शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर, गुरुवार से है।
Disclaimer – जीवनवृत वेबसाइट इस लेख में दिए गए किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं देता। हमारा लक्ष्य केवल सूचना आप तक पहुंचाना है, विभिन्न माध्यमों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। इस लेख में दी गई सूचना को अमल में लाने से पहले विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें एवं इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।