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    जानें बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है: महात्मा बुद्ध के जीवन एवं शिक्षाओं पर विहंगम दृष्टि

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    यहाँ संक्षेप में ‘बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है’ विषय पर एक सारगर्भित जानकारी एवं बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध का संक्षिप्त जीवन परिचय भी प्रस्तुत किया गया है।

    बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार बैशाख मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, एशिया का ज्योति पुञ्ज (Light of Asia) कहे जाने वाले गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध पूर्णिमा का यह त्योहार बौद्ध धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है।

    मानवता के लिए बुद्ध ने यह संदेश दिया कि – “विश्व दुखों से भरा है।” इस दुःख का कोई न कोई कारण है, जिसे छुटकारा पाने से व्यक्ति निर्वाण अर्थात् मुक्ति को प्राप्त होता है।

    बुद्ध पूर्णिमा और महात्मा गौतमबुद्ध – बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है?

    बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार हर साल बैसाख मास के पूर्णिमा को मनाई जाती है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था और लगभग सात साल कठिन तपस्या करने के बाद इसी दिन महात्मा बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, तथा बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही महात्मा बुद्ध ने कुशीनगर में अपना देह त्यागा था।

    बुद्ध पूर्णिमा का सीधा संबंध गौतम बुद्ध की जीवनी से जुड़ा हुआ है। अतः गौतम बुद्ध की जीवनी का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया गया है:

    गौतम बुद्ध की जीवनी

    नामगौतम बुद्ध
    बचपन का नामसिद्धार्थ गौतम
    जन्मतिथि एवं जन्म स्थान563 ईसा पूर्व में कपिल वस्तु के लुम्बिनी, नेपाल
    नारा“विश्य दुखों से भरा है”
    माता – पितापिता -शुद्धोधन एवं माता-मायादेवी, सौतेली माँ प्रजापति गौतमी
    पत्नी का नामयशोधरा
    पुत्र का नामराहुल
    गुरुवैशाली के आलारकलाम, राजगीर के रुद्रकरामपुत्त
    मृत्यु एवं स्थान80 वर्ष की अवस्था में 483 ईसा पूर्व में कुशीनारा (ववरिया, उत्तर प्रदेश) में
    ज्ञान प्राप्ति35 वर्ष की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना (फल्गु) नदी के किनारे,
    जानें बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है?
    Image credit pexels

    गौतम बुद्ध का जन्म, जन्मस्थान, माता-पिता एवं परिवार

    गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी में हुआ था तथा वर्तमान में यह स्थान नेपाल में है। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था जो बाद मे गौतम बुद्ध के नाम से जाने गये। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो शाक्य गण के प्रधान थे एवं इनकी माता का नाम मायादेवी था, बुद्ध के जन्म के कुछ दिन बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया। इनका लालन-पालन सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया था।

    महाभिनिष्क्रमण क्या है?

    16 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा के साथ हुआ जिनसे इनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल था। विवाह के कुछ वर्ष बीत जाने पर बुद्ध का मन सासांरिक मोहमाया से ऊबने लगा एवं पाया कि “विश्व दुखों से भरा है” अतः व्यथित होकर सिद्धार्थ ने घर छोड़ मानवता को दुख से मुक्ति दिलाने के लिए निकल पड़े। उस समय वे 29 वर्ष के थे, उनके गृह त्याग की घटना को बौद्धधर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।

    बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कब और कहाँ हुई?

    गृह त्याग करने के बाद बुद्ध के प्रथम गुरु वैशाली के आलारकलाम हुए जिनसे बुद्ध ने सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण किए। इसके पश्चात राजगीर के रुद्रकरामपुत्त से शिक्षा ग्रहण की।

    लगभग सात सालो तक कठिन तपस्या करने के बाद भगवान गौतम बुद्ध को वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में 35 वर्ष की आयु में निरंजना (फल्गु) नदी के किनारे, पीपल वृक्ष -बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

    धर्मचक्रप्रवर्तन – प्रथम उपदेश

    गौतम बुद्ध को संसार के सबसे प्रसिद्ध और आध्यात्मिक पुरुषों में से एक माना जाता है। वे 80 वर्ष तक अपने धर्म का प्रचार करते रहे। इसके लिए उन्होने लोकभाषा का सहारा लिया। बुद्ध ने संस्कृत की वजाय, अपना प्रथम उपदेश लोकभाषा पाली में सारनाथ, ऋषिपतनम् में दिया, जिसे बौद्ध धर्म में धर्मचक्रप्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।

    महापरिनिर्वाण के बारे में

    बौद्ध धर्म में निर्वाण का अर्थ है ‘दीपक का निर्वाण वीर अर्थात् जीवन एवं मृत्यु चक्र से मुक्त हो जाना। बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में 483 ईसा पूर्व में कुशीनारा, उत्तर प्रदेश में हुई, जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है।

    बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति को सरल बनाने के लिए निम्नलिखित दस शीलों पर बल दिया- जिनमें से बौद्ध गृहस्थों के लिए केवल प्रथम पाँच शील तथा बौद्ध भिक्षुओं के लिए दसों शील मानना पड़ता था-

    1. अहिंसा,
    2. सत्य,
    3. चोरी न करना,
    4. सम्पत्ति का अर्जन न करना
    5. मध सेवन न करना,
    6. असमय भोजन न करना,
    7. सुखाप्रद बिस्तर पर नहीं सोना,
    8. धन-संचय न करना,
    9. स्त्रियों और नृत्य-गायन से पृथक रहना ।

    भगवान गौतम बुद्ध के उपदेश व सिद्धान्त

    गौतम बुद्ध का यह मानाना था कि यह संसार दुखों से भरा है। अहिंसा बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इन्होंने प्रेम, शांति, धैर्य, तथा सत्य का संदेश दिया। बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपनाने का उपदेश दिया। दुःख और पीड़ा से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए 4 आर्य सत्य के बारे में कहा :

    जानें बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है?
    1. “विश्व दुखों से भरा है”
    2. इस दुख का कोई न कोई कारण जरूर होगा और वह है इच्छा।
    3. इच्छा से छुटकारा पाना अनिवार्य है।
    4. दुखों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को सही रास्ता पता होना चाहिए।

    अष्टांगिक मार्ग क्या है?

    संसारिक दुःखों से निर्वाण-मुक्ति तभी प्राप्त की जा सकती है, जब हम बुद्ध द्वारा सुझाए गए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करें 1. सम्यक दृष्टि 2. सम्यक संकल्प 3. सम्यक वाणी 4 सम्यक कान्त 5 सम्यक आजीवका 6 सम्यक व्यायाम 7. सम्यक् स्मृति एवं 8. सम्यक् ध्यान।

    बुद्ध पूर्णिमा के अन्य नाम:

    साल 2024 मे गौतम बुद्ध की 2586वी जयंती मनाई जाएगी, तथा आज पूरे विश्व में 180 करोड़ से भी अधिक लोग बौद्ध धर्म को मानते है तथा बुद्ध पूर्णिमा की इस त्योहार को एक उत्सव के रूप में मनाते है।

    • वैशाख पूर्णिमा
    • धर्म राज पूर्णिमा
    • बुद्ध जयंती

    भगवान विष्णु एवं गौतम बुद्ध

    माना जाता है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के नौवां तथा आखरी अवतार महात्मा बुद्ध है इसलिए बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, तथा बौद्ध धर्म के लोग बुद्ध पूर्णिमा के त्योहार को बहुत ही धूम-धाम से मनाते है, तथा बुद्ध पूर्णिमा का यह त्योहार शांति का प्रतीक है।

    गौतम बुद्ध अपने आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिये संसार के सभी सुख तथा सम्पत्ति को त्याग दिया तथा लोगों के बीच सच्चे मार्ग दर्शन तथा सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया तथा इनके द्वारा दिये गये उपदेश मनुष्य के जीवन को कष्टों से उभारता है, बुद्ध पूर्णिमा का दिन बौद्ध अनुयायियों के लिये विशेष महत्व होता है।

    बुद्ध पूर्णिमा के दिन पूजा की विधि विधान:

    बुद्ध पूर्णिमा के दिन सुबह उठ स्नान कर स्वच्छ कपड़े धारण करे तथा पूजा शुरू करने से पहले अपने ऊपर गंगा जल का छिड़काव करे, तथा इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व होता है और अब भगवान विष्णु की पूजा करते हुए इनके समस्त दीपक जलायें तथा खीर का भोग लगाते हुए भगवान विष्णु की प्रार्थना करें।

    बुद्ध पूर्णिमा कैसे मनाया जाता है?

    बैशाख माह के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ तथा सात साल कठिन तपस्या करने के बाद इन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, और 80 वर्ष की आयु में बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में इनका महाप्रयाण हुआ था इसलिए इस दिन को बुद्ध जयंती के रूप मे मनाया जाता है।

    बुद्ध पूर्णिमा के दिन लोग अपने घरों को फूलो से सजाते है तथा दीपक जलाते हुये इस त्योहार को मनाते है, बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार भारत के अलावा अन्य कई देशों में मनाया जाता है। चीन मे बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मोमबती, दीपक, धूप तथा लालटेन जला कर इस त्योहार को मनाते है, तथा जापान मे बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार फूल उत्सव के रूप मे मनाया जाता है।

    बिहार मे बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार बोधि वृक्ष के नीचे दीपक जला कर मनाया जाता है तथा कई लोग इस वृक्ष के चारो ओर घूमते है, नेपाल मे बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार परेड तथा जुलूस निकाल कर मनाया जाता है तथा इस दौरान असंख्य लोगो की भीड़ एक साथ मौजूद होती है।

    बुद्ध पूर्णिमा से जुड़ी 5 रोचक बातें

    1. बुद्ध पूर्णिमा का यह त्योहार भगवान बुद्ध के जीवन की तीन घटनाओ से जुड़ी हुई है भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति तथा महापरायण। बुद्ध पूर्णिमा का यह पर्व हमें सच्चे मार्ग पर चलने का संदेश देता है।
    2. कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा जैसे पवित्र अवसर पर एक माह के लिए मेला का आयोजन किया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन घरों में खीर बनाने की परम्परा होती है क्योंकि ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने खीर खा कर ही अपना व्रत तोड़ा था, और अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरे विश्व को प्रकाशित किया।
    3. बौद्ध मंदिरो में बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है इस दिन मंदिरो को फूलो से सजाया जाता है, तथा भगवान बुद्ध की उपासना कर दीपक जलायें जाते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन अच्छे कार्य करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
    4. बुद्ध पूर्णिमा को वेसाक तथा सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार बैसाख महीने की पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। भारत के कुछ स्थानों पर परेड तथा व्यायाम करके बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।
    5. बुद्ध पूर्णिमा का यह त्योहार भारत सहित चीन, नेपाल, जापान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्यांमार तथा पाकिस्तान जैसे कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।

    बुद्ध पूर्णिमा का महत्व:

    बुद्ध पूर्णिमा त्योहार का विशेष महत्व है, बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार गौतम बुद्ध के जन्म और मृत्यु दिवस के रूप में मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के बाद बौद्ध धर्मों का झंडा फहराया जाता है, तथा इस झंडे में पाँच रंग होते है जो हमारे जीवन के मार्ग को दर्शाते है, तथा यह पाँच रंग सफेद, पीला, लाल, नीला और केसरी है। रंगों के अर्थ इस प्रकार है-

    • सफेद-पवित्र
    • पीला-विपत्ति से बचने का
    • लाल-आशीर्वाद
    • नीला-प्रेम का प्रतीक
    • केसरी-बुद्धि

    बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान- दक्षिणा का महत्व:

    बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-दक्षिणा का विशेष महत्व है तथा इस दिन दान करना काफी शुभ माना जाता है, बुद्ध पूर्णिमा के दिन जरूरतमंदो को भोजन तथा वस्त्र दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा पूर्णिमा के दिन कई लोग उपवास रह कर दान -दक्षिणा देने मे विश्वास रखते है।

    बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध मठों में भगवान बुद्ध के दिये उपदेश सुने जाते है। भारत के बिहार में स्थित बोधगया हिंदुओ का पवित्र धार्मिक स्थल है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन कई शेलानियाँ बोधगया जाते है तथा इस दिन लोग बोधिवृक्ष यानि पीपल के पेड़ की पूजा करते है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध मंदिरो को फूलो से सजाया जाता है तथा इस दिन दान दक्षिणा का विशेष महत्व है। बौद्ध धर्म के लोग इस दिन को बड़े ही उत्सव के साथ मनाते है।

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