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    गुरु रविदास का जीवन परिचय, जयंती, रचनाएँ एवं इतिहास।

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    गुरु रविदास का जीवन परिचय-मध्यकालीन भक्तियुग की परंपरा में सर्वाधिक प्रसिद्ध संत शिरोमणि गुरु रविदास का नाम बड़े सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है। भारत में गुरु रविदास कई नामों से प्रसिद्ध है जैसा कि रैदास, रईदास, रयदास, रामदास, रूद्र्दास, रूईदास आदि। प्रतिवर्ष रविदास जयंती पुए भारत में श्रद्धा एवं सम्मान के साथ मनाया जाता है।

    गुरु रविदास का जीवन परिचय (Guru Ravidas Biography)

    संत शिरोमणि गुरु रविदास भक्ति आंदोलन एवं मध्ययुग एक महान संत, कवि, समाज सुधारक, आम जनों के प्रिय एवं ऐसे व्यक्तित्व के स्वामी थे जिन्हें आज भारत सहित दुनिया भर में सतगुरु अथवा जगतगुरु रविदास महाराज के नाम से जाना जाता है। रविदास जी ने आम लोगों को यह संदेश दिया कि जात-पात एवं वर्णाश्रम व्यवस्था, समाज के हित में नहीं है। हम सभी को ईश्वर ने बनाया है। अतः सभी समान है।

    संत रविदास के प्रमुख शिष्या का नाम कृष्ण भक्त मीराबाई है। कृष्ण भक्त मीराबाई ने बड़े आदर के साथ अपने पदों में इनका उल्लेख करते हैं:

    ‘रैदास संत मिलै मोही सतगुरु।‘ ‘मीरा ने गोविंद मिला जी गुरु मिलिया रैदास।‘

    गुरु रविदास जयंती-गुरु रविदास का जीवन परिचय
    नामरविदास
    अन्य प्रचलित नामरैदास, रईदास, रयदास, रामदास, रूद्र्दास, रूईदास
    जन्म1377 ई. 
    जन्मस्थानउतर प्रदेश, बनारस, सीर गोबर्धनगाँव
    पिता का  नामसंतोख दास उर्फ रग्घु
    माता का नाम कर्मा देवी उर्फ कलसा
    पत्नी का नामलोना
    गुरु का नामस्वामी रामानन्द
    भाषाराजस्थानी, ब्रज, पंजाबी, अवधि, फारसी, भोजपुरी
    अवधि14वीं से 15वीं शताब्दी
    शाखा एवं आंदोलनभक्ति आंदोलन में निर्गुण भक्ति एवं ज्ञानाश्रयी शाखा
    जाति एवं पेशाचमार एवं पेशे से मोची
    संप्रदाय रविदासिया संप्रदाय
    प्रसिद्धि का कारणमहान संत, कवि, समाज सुधारक, रविदास ने अपने पदों एवं रचनाओं के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव, ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाया एवं ईश्वर भक्ति का मार्ग समाज के सभी वर्ग के सुलभ कर दिया।

    इनके कुल 40 पद एवं 16 दोहे सिख समुदाय के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में संकलित है।

    रविदासिया सम्प्रदाय के प्रधान एवं प्रमुख
    गुरु रविदास जयंती 202512 फरवरी 2025  (बुधवार)
    मृत्युमृत्यु 1528 ईस्वी

    गुरु रविदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

    संत रविदास का जन्म 1377 ई  (संवत् 1433) में माघ मास की पूर्णिमा के दिन माना जाता है। है। इनके जन्म के संबंध में रविदासिया संप्रदाय वालों का एक दोहा अत्यंत प्रचलित है :   

    चौदह सौ तैंतीस की, माघ सुदी पंदरास।  दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे श्री रविदास।।

    यह भी प्रसिद्ध है कि इनका जन्म रविवार के दिन होने के कारण इनका नाम रविदास पड़ा। संत रविदास के जन्मस्थान के संबंध में भी साहित्य के विद्वानों में मतभेद है पर अधिकत्तर विद्वान इनका जन्मस्थान उतरप्रदेश के बनारस के आस-पास सीर गोबर्धनगाँव में ही मानते हैं।

    गुरु रविदास के माता-पिता का क्या नाम था?

    प्रचलित मान्यता के अनुसार संत रविदास के माता का नाम कर्मा देवी उर्फ कलसा था जिसे कहीं-कहीं धुरबानिया के नाम से भी जाना जाता ही तथा पिता का नाम संतोख दास उर्फ रग्घु था।

    गुरु रविदास की पत्नी – लोना देवी के बारे में।

    कहा जाता है कि संत रविदास बचपन से ही भक्त प्रवृति के थे एवं साधु संतों की संगति उन्हें प्रिय था जिसके कारण इनके माता –पिता ने बचपन में ही इनका विवाह लोना नामक लड़की से करा दिया था। यह भी कहा जाता है कि दलितों की एक जाति लोना को देवी की तरह पूजती है।  कहा जाता है कि वे जाति के चमार थे जिनका जिक्र वे अपनी रचनाओं में प्रायः किया करते थे:

    “जाति ओछी पाती ओछा, ओछा जनम हमारा। राजा राम की सेव न कीनी, कहि रविदास चमारा॥” 

    संत रविदास के गुरु कौन थे?

    संत रविदास के गुरु स्वामी रामानंद थे, जो कि उतर भारत में भक्ति आंदोलन के जनक माने जाते हैं। इनके बारह प्रमुख शिष्य हैं जिसमें रविदास भी शामिल है-

    अनंतांद, कबीर, सुखा, सुरसुरा, पद्मावति, नरहरि। पीपा, भवानंद, रैदास, धना, सेन, सुरसरी, की घरहरि ।।

    संत रविदास की रचनाएँ:

    इनके कुल 40 पद एवं 16 दोहे सिख समुदाय के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी संकलित हैं। रविदास की रचनाओं का संकलन रविदास दर्शन नाम से किया गया जिसे पृथ्वी सिंह आज़ाद ने किया था ।

    गुरु रविदास किसकी उपासना करते थे?

    गुरु रविदास निर्गुण ब्रहम की उपासना करते थे। निर्गुण ब्रह्म से तात्पर्य उस ईश्वर से है जो तीनों गुणों अर्थात सत, रज एवं तम गुणों से ऊपर हो। उसका कोई रूप या आकार नहीं है। 

    गुरु रविदास जी का इतिहास

    भारतीय इतिहास में गुरु रविदास का जिक्र मध्यकालीन युग में भक्ति आंदोलन के तहत मिलता है। भारतीय इतिहास में भक्ति आन्दोलन विशेष एवं महत्वपूर्ण स्थान है। भक्ति आंदोलन की परंपरा को हम दो भागों में देख सकते है  – सगुण भक्ति धारा एवं निर्गुण भक्ति धारा।

    निर्गुण भक्ति को कबीर, रविदास, दादू, गुरु नानक, नामदेव आदि संतों ने समृद्ध किया एवं जो ईश्वर के निर्गुण अथवा निराकार रूप की उपासना करते थे। जबकि सगुण भक्ति धारा के संत  ईश्वर के सगुण अथवा साकार रूप की उपासना करते थे जिसमें प्रमुख एवं प्रसिद्ध राम भक्त तुलसीदास जी का नाम शामिल है।

    हम जानते है कि भक्ति आंदोलन के अधिकतर संत निम्न जाति एवं दलित जाति के थे। उस समय की बहूसंख्यक आबादी का हिस्सा इन्हीं निम्न जातियों से ही भरा था। एक ओर वर्णाश्रम व्यवस्था (राजा, पंडित, क्षत्रिय, शूद्र) के कारण आधिकांश जनता को वेदों, मंदिरों में पूजा पाठ के पठन से अलग कर दिया गया था। उस समय का समाज अंधविश्वासों एवं कुरीतियों से पूरी तरहा से जकड़ा हुआ था। यज्ञ के नाम पर चारों तरफ हिंसा एवं पाखंड हो रहा था।

    दूसरी ओर देश में मुस्लिम शासकों का राज था जो हिन्दू मंदिर-मूर्तियों को तोड़े जा रहे थे। ऐसी निरशाजनक स्थिति में संत कवियों ने सभी को मनुष्यता का बोध कारया। भक्ति का द्वारा सभी के लिए खोल दिया एवं संदेश दिया कि मंदिर, मस्जिद , बाहरी पुजा विधान तीर्थाटन व्यर्थ है।

    गुरु रविदास जी के दोहे

    1- तत्कालीन परिस्थितियों में रविदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से  समाज में व्याप्त कुरुतियों का विरोध किया । सबके लिए निर्गुण ब्रह्म की उपासना का द्वारा खोल दिया। संत रविदास कहते है कि उस ईश्वर को हम अपने भीतर ही प्राप्त कर सकते है इसके लिए मंदिर मस्जिद जाने की आवश्यकता नहीं है।

    बाहर खोजत का फिरह, घट भीतर ही होत।

    2- रविदास के अनुसार दिखावे के लिए पूजा –अर्चना, वेशधरण, मूर्तिपूजा, कर्मकांड, आदि व्यर्थ है। ईश्वर उन्हीं को प्राप्त होते है जिनके मन में कोई मेल नहीं हो।

    मन चंगा तो कठौती में गंगा।

    उनका मनाना है कि सभी मनुष्य एवं जीव-जन्तु एक ही ईश्वर से उत्पन्न हुए है चाहे वह ब्राह्मण हो या शूद्र। इसीलिए सभी मनुष्य एक समान है।  

    3-संत रविदास के अनुसार गुरू ईश्वर के समान है जो भक्तों में ज्ञान का दीपक जलाता और सही मार्ग की ओर ले जाता है।

    ‘गुरु ज्ञान दीपक दिया, बाती दई जलाई।‘

    4-संत रविदास ने ईश्वर प्राप्ति तभी संभव है जब हम आपने आराध्य के प्रति समर्पण भाव रखें-

    प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग -अंग बास समानी 

    5-संत रविदास कहते है कि ईश्वर हमें सहज रूप में ही प्राप्त होते है, उसे बाहरी स्थानों मंदिर, तीर्थ स्थानों, पुजा-अर्चना से पाया नहीं जा सकता।

    क-थकित भयो सब हालचाल ते, लोक न वेद बड़ाई। थकित भयो गायन अरू नाचन, थाकी सेवा पूजा।

    ख-चलत-चलत मेरो मन थाक्यो, मो पै चल्यो न जाई। साँई सहज मिल्यो सोई सन्मुख, कह रैदास बताई।

    6-उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे जीवन में कर्म को प्रधानता देते थे न कि जात को

    न्म जात मत पूछिए का जात अरू पात।  रविदास पूत सब प्रभु के नहीं जात कुजात ॥

    गुरु रविदास जी भाषा शैली  : 

    गुरु रविदास जी ने विभिन्न जन भाषाओं का प्रयोग किया है। इसमें  राजस्थानी, ब्रज, पंजाबी, अवधि, फारसी, भोजपुरी शामिल है।

    संत रविदास मंदिर एवं गुरुद्वारा :

    श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, गोवर्धनपुर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, में स्थित है, इसके अलावा बिहार, राजस्थान, पंजाब, हैदराबार-तेलंगाना, हरियाणा, उत्तराखंड, जम्मू एवं कश्मीर, आदि राज्यों में कई मंदिर एवं गुरुद्वारे हैं जहां उनके अनुयायी आरती एवं अर्चना करते हैं। 

    भारत के अलावा विभीन देशो जैसे आस्ट्रेलिया-मेल्बर्न, यूके, स्कॉटलैंड, टोरइंटों, नीदरलैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली, स्पेन एवं फ्रांस जैसे देशों संत शिरोमणि रविदास जी के मंदिर एवं गुरुद्वारा स्थित  है। 

    संत रविदास की प्रतिमा का अनावरण 

    संत रविदास की प्रतिमा का अनावरण 23 फरवरी, 2024 को वाराणसी के मड़वाड़ी के गांव गोवर्धनपुर में स्थापित की गयी है। यह प्रतिमा 25 फीट ऊंची जो कि एक कांस्य प्रतिमा है। इस प्रतिमा का अनावरण उनकी 647वीं जयंती के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया।  

    गुरु रविदास का जीवन परिचय

    कहा जा सकता है कि तत्कालीन निर्गुण संतों में रविदास अत्यंत प्रसिद्ध एवं अद्वितीय संत थे। उन्होंने भक्ति का मार्ग सभी के लिए खोल दिया। ईश्वर भक्ति में अपने आपको समर्पित करने के लिए रविदास ने सभी बाह्या विधानों का विरोध किया है। उन्होंने समाज में व्याप्त जाति-पाति, वर्णव्यवस्था, सांप्रदायिकता आदि का विरोध करते हुए समाज में सभी में सांप्रदायिक सद्भाव की भावना को पुष्ट किया।

    समाज में मानवतावाद की स्थापना की। आज भारत सहित विश्व के कई देशों में उन्हें मानने वाले अनुयायी उन्हीं की शिक्षाओं पर चल रहे हैं। रविदास जी ने अपनी सोच के माध्यम से उस समय की जानता को एकजुट कर पाए। उनकी रचनाओं के केंद्र में मनुष्य की मनुष्यता है।

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