समुद्र मंथन: विष्णु पुराण में समुद्र मंथन का विस्तार देखने को मिलता है तथा सम्पूर्ण सृष्टि की रचना के लिए भगवान विष्णु और शिव ने समुद्र मंथन किया था तथा इस दौरान क्षीर सागर को मथा गया और यह मंथन देवताओं और दानवों के बीच किया गया था। जिसके एक छोर पर सभी देवता गण उपस्थित थे तथा दूसरे छोर पर दानवों ने अपनी कमान संभाली हुई थी।
समुद्र मंथन:
समुद्र मंथन के दौरान मदरांचल पर्वत को मथनी तथा वासुक़ी नाग को रस्सी बनाया गया तथा इस दौरान 14 रत्न निकले थे और सबसे आख़िरी रत्न अमृत था। अंत में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर सभी देवताओं में अमृत बाँटा और अमृत पान कर सभी देवता अमर हो गए। समुद्र मंथन के दौरान होने वाली इस संग्राम को देवासुर संग्राम के नाम से जाना जाता है।
समुद्र मंथन कहाँ हुआ था?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन बिहार के बांका ज़िला में स्थित मंदार पर्वत पर हुआ था तथा इस पर्वत को मदरांचल पर्वत भी कहा जाता है। यह पर्वत भागलपुर से क़रीब 50 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।
समुद्र मंथन से जुड़ी कहानी: (Samudra Manthan Story In Hindi)
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन को लेकर यह कहानी प्रचलित है कि एक बार देवता इंद्र की मुलाक़ात महान ऋषि महर्षि दुर्वासा से हुई, तो इस दौरान भगवान इंद्र ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम किए।
महर्षि दुर्वासा प्रसन्न होकर अपने गलों का माला भगवान इंद्र को पहना दिए तथा भगवान इंद्र यह माला उतारकर अपने हाथी के मस्तक में डाल दिए लेकिन यह माला हाथी अपने सर से निकाल कर पैरो से कुचल डाला। पूरी घटना को देख महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और स्वर्ग लोग में देवताओं तथा देव इंद्र की ताक़त को ख़त्म करने का श्राप दिए।
देव इंद्र काफी दुखी हुए और अपना दुखद चेहरा लेकर भगवान ब्रह्मा के पास गए। इस तरह भगवान ब्रह्म तथा विष्णु ने इंद्र देवता को समुद्र मंथन करने की सलाह दी और भगवान विष्णु ने यह कहा कि समुद्र मंथन के समय जो अमृत उत्पन्न होगा उस अमृत का पान कर आपकी ताक़त वापस आ जाएगी।
तब जाकर सभी देवता तथा दानव के बीच समुद्र मंथन किया गया और इस दौरान 14 रत्न उत्पन्न हुए, जिनका सम्पूर्ण विस्तार नीचे दिया गया है।

समुद्र मंथन के दौरान अंत में अमृत निकलने के कारण देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत की बँटवारे के लिए झगड़ा होना शुरू हो गया। देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भागने लगा। यह देख दानव उनका पीछा करने लगे। इस तरह स्वर्ग में अमृत कुंभ को लेकर 12 दिनों तक संघर्ष चलता रहा तथा पृथ्वी पर यह 12 दिन, बारह वर्ष के बराबर माना जाता है।
जयंत के अमृत कुंभ लेकर भागते समय अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरी और यह बूँदें हरिद्वार, प्रयाग राज, उज्जैन तथा नासिक में गिरी और इस तरह प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है और अंत में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अमृत का बँटवारा किया।
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों की सम्पूर्ण जानकारी:
1. हलाहल विष
समुद्र मंथन के दौरान सर्वप्रथम हलाहल(कालकूट) विष निकला था तथा हलाहल विष की ज्वाला काफी तीव्र थी और इस विश के ताप से पूरे सृष्टि में हाहाकार मचने लगा, तब जाकर भगवान शिव ने विश को अपने हथेली में लेकर इसे ग्रहण किया जिसके कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और इस तरह भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा।
भगवान शिव को विश ग्रहण करते समय विश की कुछ बूँदे धरती पर गिरा और इसका अंश आज भी हमें धरती पर सांप, बिच्छू और ज़हरीले कीड़ों में देखने को मिलता है।
2. कामधेनु गाय
विश उत्पन्न होने के बाद समुद्र मंथन के समय ज़ोर की आवाज उत्पन्न हुई और इस आवाज़ से साक्षात कामधेनु गाय प्रस्तुत हुई। हिंदू धर्म में गाय को पूजा जाता है तथा गाय को पवित्र पशु माना जाता है इस तरह गाय का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।
3. उच्चै:श्रवा घोड़ा
समुद्र मंथन करते समय अगला रत्न उच्चै घोड़ा उत्पन्न हुआ तथा अन्य घोड़ा की तुलना में सफेद उच्चै घोड़ा को राजा कहा जाता है। यह घोड़ा सबसे तेज दौराने और उड़ने वाला होता है। उच्चै का अर्थ यह होता है की जिसका क़द ऊँचा हो, इस तरह यह घोड़ा देवता को सौंपा गया।
4. ऐरावत हाथी
ऐरावत हाथी को सभी हाथियों का राजा माना जाता है तथा समुद्र के जल से उत्पन्न होने के कारण हाथी का नाम ऐरावत रखा गया। ऐरावत हाथी सफेद रंग की तथा समुद्र मंथन के दौरान 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक थी। इस तरह ऐरावत हाथी, भगवान इंद्र को सौंपा गया तथा भगवान इंद्र ने ऐरावत हाथी को अपना वाहन बनाया।
5. कौस्तुभ मणि
समुद्र मंथन के दौरान पांचवा रत्न कौस्तुभ मणि उत्पन्न हुआ तथा इस मणि को भगवान विष्णु धारण किए हुए है। कौस्तुभ मणि से जुड़ी पौराणिक कथा महाभारत में देखने को मिलता है जब श्री कृष्ण ने कालिया नाग को गरुड़ के त्रास से मुक्त किया था, तो उस समय कालिया नाग ने अपने मस्तिसक से कौस्तुभ मणि उतार कर श्री कृष्ण को दिया था। यह एक चमत्कारी मणि है और कहा जाता है कि अब यह मणि सिर्फ़ इच्छाधारी नागों के पास ही मौजूद है।
6. कल्प वृक्ष
चौदह रत्नों में से एक ओर रत्न कल्प वृक्ष प्रस्तुत हुआ तथा कल्प वृक्ष को इच्छापूर्ति वाला एक दिव्य वृक्ष माना जाता है। इस तरह सभी देवताओं के आह्वान पर कल्प वृक्ष को स्वर्ग में स्थापित किया गया।
7. रंभा
समुद्र मंथन के दौरान एक सुंदर नारी के रूप में अप्सरा प्रकट हुई जिसे रंभा कहा गया। देव इंद्र ने रंभा को अपने राज्य सभा के लिए प्राप्त किया और रंभा ब्रह्मांड में सबसे सुंदर नारी में से एक थी।
8. लक्ष्मी
उसके बाद समुद्र मंथन के दौरान अगला रत्न देवी लक्ष्मी की उत्पति हुई, यानि श्री और समृद्धि की उत्पति। सभी देवता तथा दानव देवी लक्ष्मी को पाना चाहते थे, लेकिन देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपना स्वामी बनाई।
9. वारुणी(मदिरा)
समुद्र मंथन के समय अगला रत्न वारुणी की उत्पन्न हुई जिसे आम भाषा में मदिरा कहा जाता है। कदंब के पेड़ों में उगने वाली फलो से बनाए जाने वाली मदिरा को वारुणी कहा जाता है। मदिरा रूपी वारिणी को दैत्यों ने ग्रहण किया।
10. चंद्रमा
पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा की उत्पति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। इस तरह भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तिक पर धारण किए।
11. पारिजात पुष्प
समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से एक पारिजात वृक्ष की उत्पति हुई तथा इस वृक्ष से उत्पन्न होने वाली पुष्प को ईश्वर की आराधना में चढ़ाया जाता है। पारिजात के पुष्प देवी लक्ष्मी को काफी प्रिय है। इसके अलावा पारिजात वृक्ष को औषधीय माना जाता है।
12. पांचजन्य शंख
अन्य शंखों की तुलना में पांचजन्य शंख का महत्व काफ़ी अधिक है तथा शंख को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। शंख की ध्वनि काफी शुभ होता है तथा कहा जाता है कि शंख की ध्वनि जहां तक जाती है वहाँ कि कीटाणु नष्ट हो जाती है इस तरह यह पवित्र शंख भगवान विष्णु को सौंपा गया।
13. भगवान धन्वंतरि
भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुई तथा यह समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से सबसे मूल्यवान रत्न था।
14. अमृत
इस तरह समुद्र मंथन से निकलने वाला सबसे अंतिम रत्न भगवान धन्वंतरि का अमृत था तथा इस अमृत के निकलते ही देवताओं और दानवों के बीच झगड़ा होने लगा। लेकिन अंत में भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कर ईश्वर को अमर बनाया और इसी अमृत के नाम पर पंचामृत का प्रचलन शुरू हुआ।
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