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    कुंभ मेला कब है? कुंभ मेला से जुड़ी पौराणिक कथा एवं महत्व(Kumbh Mela Kab Hai)

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    Kumbh Mela Kab Hai: भारतीय तीर्थ स्थलों में कुंभ मेला का विशेष महत्व है तथा विश्व का सबसे बड़ा मेला कुंभ मेला है। कुंभ मेला का जश्न उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में देखने को मिलती है तथा इस दौरान लाखों श्रद्धालु इस पवित्र नदी में स्नान करने के लिए यहाँ आते है। वैदिक युग से चली आ रही कुंभ मेला ऋषि मुनियों के लिए धार्मिक स्थलों में से एक है।

    मान्यता है कि आज से लगभग कई वर्षों पूर्व देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तो समुद्र मंथन के दौरान अमृत से भरा कलश निकला था और इसी अमृत की कुछ बूँदे पृथ्वी की चार जगहों पर गिरी और ये जगह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक है और तभी से इन जगहों में कुंभ मेला का आयोजन किया जाने लगा।

    2025 में कुंभ मेला की शुरुआत कब है?(Kumbh Mela Kab Hai)

    कुंभ मेला साल 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होने जा रही है तथा यह मेला 13 जनवरी से शुरू होने वाली है और 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के मौक़े पर ख़त्म होगी। कुंभ मेला लोगों के दर्शनीय स्थलों में से एक है और मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान गंगा जैसे पवित्र नदी में स्नान करने से लोगों के सारे पाप धूल जाते है।

    Kumbh Mela Kab Hai

    प्रयागराज में कुंभ मेला संगम तट पर आयोजित की जाती है। जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मिलन होता है और कुंभ मेला के दौरान गंगा नदी में काफी भिड़ उमड़ती है। प्रयागराज के अलावा कुंभ मेला भारत के चार अलग-अलग शहरों में आयोजित की जाती है।

    कुंभ का शाब्दिक अर्थ:

    कुंभ का अर्थ कलश यानि घड़ा होता है तथा एक ऐसा कलश जो अमृत से भरा हो। हिंदू सभ्यता में कलश का विशेष महत्व है।

    कुंभ मेला कब और कहाँ आयोजित की जाती है?

    कुंभ मेला हर 12 साल के बाद आयोजित किया जाता है। कुंभ मेला भारत के चार बड़े धार्मिक तथा पवित्र स्थानों- प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में आयोजित की जाती है तथा इस दौरान श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते है।

    Kumbh Mela Ki Katha (कुंभ मेला से जुड़ी पौराणिक कथा):

    पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार इंद्र देवता की मुलाक़ात रास्ते में महर्षि दूर्वासा से हुई, तो मुलाक़ात के दौरान भगवान इंद्र, महर्षि दूर्वासा को प्रणाम किए। यह देख दूर्वासा जी बेहद प्रसन्न हुए और अपने गले का माला भगवान इंद्र को पहनाए।

    लेकिन भगवान इंद्र, महर्षि दूर्वासा द्वारा पहनाए गए माला को अपने गले से निकाल कर हाथी ऐरावत के मस्तक में डाल दिए और हाथी ऐरावत इस माला को अपने गले से निकाल कर पैरों से कुचल डाला, यह सब देख ऋषि दूर्वासा काफी क्रोधित हुए और देवता इंद्र की ताक़त को ख़त्म करने का श्राप दिए।

    बेचारा इंद्र अपना दुखद चेहरा लेकर भगवान ब्रह्मा तथा शिव के पास गए, तो देवता ब्रह्मा ने इंद्र को भगवान विष्णु की प्रार्थना करने की सलाह दी। इस तरह इंद्र, भगवान विष्णु से मिले। भगवान विष्णु ने इंद्र देवता को समुद्र मंथन करने को कहा।

    इस तरह सभी देवता, दैत्यों के साथ समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। समुद्र मंथन के लिए नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया तथा समुद्र मंथन करते समय सबसे पहले हलाहल विष उत्पन्न हुआ और यह विश इतनी ज्वलन थी कि सभी देवता और दानव जलने लगे। तब भगवान शिव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए यह विश खुद ग्रहण किए जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया।

    Kumbh Mela Kab Hai

    उसके बाद समुद्र मंथन के दौरान कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, शारंग धनुष और अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुई। इस तरह देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत के बँटवारे को लेकर झगड़ा होना शुरू हो गया। देवराज इंद्र के इशारे पर इनके पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर आकाश की ओर चले गए, यह देख सभी दैत्य उनका पीछा करने लगे। इस तरह अमृत की कुछ बूँदे पृथ्वी की चार स्थानों पर गिरी।

    ये बूँदें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम स्थान पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी में, हरिद्वार में गंगा नदी में और नासिक में गोदावरी नदी में गिरी और उसके बाद इन्हीं स्थानों में कुंभ मेला का आयोजन शुरू किया गया।

    जिनमें से हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक है। स्वर्ग में अमृत कुंभ को लेकर 12 दिनों तक देवताओं तथा दैत्यों के बीच संघर्ष चलता रहा तथा पृथ्वी में यह 12 दिन बारह वर्ष के समान माने जाते है, इसलिए प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल पर कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा प्रत्येक 144 साल बाद महाकुंभ आयोजित किया जाता है।

    कुंभ मेला का आयोजन:

    मान्यता है कि कुंभ के मेला के दौरान गंगा नदी का पानी अमृत समान हो जाता है और लोग इस अमृत रूपी नदी में डुबकी लगाते है। कुंभ मेला हमारी संस्कृति की पहचान है तथा इस मेला में साधु-संत, ऋषि-मुनि और पर्यटक बड़ी संख्या में मौजूद होते है। कुंभ जैसे भव्य मेला में कई धार्मिक तथा सांस्कृतिक सभाए आयोजित की जाती है और इस दौरान इस मेले में काफी भिड़ उमड़ती है।

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