Ramzan 2025: रमज़ान, जिसे रमदान के नाम से भी जाना जाता है। दुनिया भर के मुसलमानों के लिए रमजान का महीना बहुत ही पवित्र तथा परिवर्तनकारी होता है तथा इस पवित्र महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रख कर अल्लाह की इबादत करते है। रमजान का त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार नौवां महीना में मनाया जाता है।
रमजान के पवित्र महीने की शुरुआत चांद दिखने के बाद शुरू होती है तथा इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे एक महीने के लिए रोजा रखते है। रमजान का यह पूरा महीना उत्सव तथा त्योहार के रूप में मनाया जाता है और रमजान के ख़त्म होते ही पूरे विश्व में ईद का त्योहार बहुत ही धूम-धाम तथा हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है।
2025 में रोजा कब है? (Ramzan 2025)
साल 2025 में रोजा की शुरुआत 2 मार्च यानि- रविवार, से शुरू होगी और इसकी समाप्ति 30 मार्च को है।
रमजान में चंद्र कैलेंडर की विशेषता:
इस्लामिक कैलेंडर चंद्र चक्र पर आधारित होता है अर्थात् रमजान का पावन महीना चंद्र कैलेंडर के अनुसार तय किया जाता है। इस तरह चांद दिखने के बाद ही रमजान के महीने की शुरुआत होती है तथा रमजान में पूरे एक महीने उपवास रखने के बाद तथा चाँद दिखने के बाद ही ईद का त्योहार मनाया जाता है।

इस्लाम धर्म में पाँच स्तंभ कौन-कौन स है?
रमजान मुसलमानों के लिए पाँच स्तंभों में से एक है तथा इस दौरान मुसलमान को पाँचों सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य होता है। जिनमें से शहादा, सलाह, ज़कात, स्वाम और हज यात्रा शामिल है।
शहादा:
शहादा इस्लाम धर्म के पाँच स्तंभों में से पहला स्तंभ है जिसे शहादत भी कहा जाता है तथा यह अरबी भाषा शहादा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है एक ईश्वर अर्थात् अल्लाह। सच्चे मुसलमान को अपने धर्म में अल्लाह के सिवाय किसी ओर देवता को नहीं अपनाना है।
सलाह:
इस्लामिक धर्म में सलाह का अर्थ प्रार्थना करना होता है अर्थात् रमजान के इस पावन महीने में प्रतिदिन मुसलमानों को अल्लाह के प्रति ध्यान केन्द्रित करना है तथा इस दौरान प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़ना अनिवार्य होता है जो इस प्रकार है:-
1. फर्ज(सुबह होने से पहले) 2. धुहर(सूर्य के अपने चरम सीमा पर पहुँचने के ठीक बाद) 3. अस्त्र (भरी दोपहर में) 4. मगरिब(सूर्यास्त के बाद) और 5. ईशा(रात्रि के समय)
ज़कात:
ज़कात यानि दान देना। अर्थात् मुस्लिम समुदाय के लोगों को रमजान के इस पावन महीने में अपने वार्षिक धन राशि का 2.5% भाग ग़रीबों तथा जरुरत मंदों में दान देना चाहिए।
सवाम:
पाँच स्तंभों में से सवाम मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए चौथा स्तंभ है तथा इस दौरान मुस्लिम लोगों को रमजान के महीने में रोजा रखना अनिवार्य होता है और नियमों का भी पालन करना ज़रूरी होता है।
हज:
मुसलमानों के लिए हज यात्रा करना एक पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है तथा इस दौरान हर एक मुसलमान को अपने पूरे जीवन काल में हज यात्रा करना अनिवार्य है।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा का महत्व:
- रमजान के पूरे महीने में सुबह की सेहरी के दौरान रोजा की शुरुआत मानी जाती है तथा शाम का इफ्तार के समय रोजा खोला जाता है।
- रोजा रखने वाले हर एक व्यक्ति सूर्योदय से पहले सेहरी खाते है तथा इसके बाद पूरे दिन भूखे-प्यासे रहते है और इस दौरान हर एक व्यक्ति अल्लाह का इबादत करते है। उसके बाद शाम के समय इफ्तार कर रोजा खोला जाता है तथा इस समय खजूर और पानी के साथ उपवास तोड़कर भोजन किया जाता है।
- रमजान में इफ्तार के समय कई तरह के व्यंजन तथा स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते है।
रमजान में नमाज का महत्व: (Ramzan 2025)
रमजान में नमाज पढ़ने का विशेष महत्व है तथा इस दौरान दिन में पाँच बार नमाज पढ़ा जाता है। रमजान में नमाज पढ़ने से मुसलमानों के लिए अल्लाह के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने के बराबर है और साथ ही साथ अल्लाह से माफ़ी माँगने तथा अपने दिलों को शुद्ध करने का अच्छा समय होता है।

रमजान के तीन अशरे कौन-कौन से है?
रमजान को माह-ए-रमजान के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दौरान रमजान का महीना 30 दिनों का होता है और इन दिनों को अशरा कहा जाता है। रमजान में तीनों अशरों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है:
पहला 10 दिन- रहमत
बीच का 10 दिन- मगफिरत
आख़िरी का दस दिन- निजात
- रमजान का पहला अशरा 1 से 10 दिन का होता है तथा यह दस दिन रहमत और बरकत का दिन माना जाता है।
- रमजान का दूसरा अशरा 11 से 20 दिनों का होता है तथा इस अशरे को मगफिरत कहा जाता है अर्थात् इस अशरे में मुस्लिम लोग अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी माँगते है और मान्यता यह भी है कि अल्लाह, लोगों द्वारा किए गए गुनाह को माफ़ कर देते है।
- तीसरा अशरा 21 से 30 दिनों का होता है तथा यह अशरा निजात के लिए जाना जाता है तथा मुसलमानों के लिए यह दस दिन बेहद ही महत्वपूर्ण होता है और इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह से दुआ माँगते है।
फ़रमान की रात:
रमज़ान की कई महत्वपूर्ण रातों में से “लैलत अल-क़द्र” या “शक्ति की रात” सबसे अलग है। माना जाता है कि रमज़ान के आखिरी दस दिनों में से एक विषम रात में पड़ने वाली लैलत अल-क़द्र अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व की रात है। यह वह रात है जब कुरान पहली बार पैगंबर मुहम्मद साहब पर प्रकट हुई थी। इस तरह फ़रमान की रात में अल्लाह की दया और आशीर्वाद प्रचुर मात्रा में होते हैं और इस रात में की गई दुआए विशेष रूप से शक्तिशाली होती हैं।
ईद-उल-फ़ित्र:
रमजान का पवित्र महीना ख़त्म होने के बाद पूरे विश्व में ईद का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है तथा यह वह दिन है जब हज़रत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में जीत हासिल की थी। कहा जाता है कि सन 624 इशवी में पहली बार ईद मनाया गया था।
ईद का त्यौहार रमज़ान के अंत का प्रतीक है तथा यह खुशी, सामूहिक प्रार्थना, दावत और उपवास के अंत का जश्न मनाने का दिन है।

रमजान में क्या करे और क्या नहीं:
- इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने में रमजान का त्योहार मनाया जाता है तथा इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते है और ख़ुदा की इबादत करते है और इस तरह रमजान के महीने में क़ुरान पढ़ना काफी शुभ माना जाता है।
- रमजान के इस पावन महीने में हमें दिन में कम से कम पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए और अल्लाह की इबादत करनी चाहिए।
- रमजान के महीने में किसी की बुराई तथा गलत काम करने से बचे अर्थात् जो काम हराम माना गया है उसे हमें रमजान के महीने में नहीं करना चाहिए।
- मान्यता है कि रोजा के दौरान लोगों द्वारा माँगी गई दुआओँ को अल्लाह क़बूल करते है और उनकी सभी मनोकामनायें तथा इच्छा को पूरा करते है।
- रमजान के दौरान ज़कात(मदद करना) का विशेष महत्व होता है तथा इस पावन महीने में लोग अपने कमाई का ढाई प्रतिशत ग़रीबों तथा जरुरत मंदों में बाँटते है।
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