Jagadharti Puja 2025 In Hindi: पश्चिम बंगाल में जगद्धात्री पूजा त्योहार का विशेष महत्व है। खासकर पश्चिम बंगाल के चंदन नगर शहर में जगद्धात्री पूजा धूम-धाम से मनाया जाता है। जगत की माता कही जाने वाली माँ जगद्धात्री का स्वरूप अत्यंत सौंदर्य है। तो आइये इस आर्टिकल के माध्यम से हम जानेंगे कि साल 2025 में जगद्धात्री पूजा कब है? और इनका महत्व तथा जगद्धात्री महोत्सव के बारे में।
देवी दुर्गा का अन्य रूप माँ जगद्धात्री है तथा शारदीय नवरात्रि के क़रीब एक महीने बाद जगद्धात्री पूजा का उत्सव मनाया जाता है तथा इस दौरान चंदन नगर शहर भव्य मूर्तियाँ और आलीशान पंडालों से जगमगा उठता है। जगद्धात्री पूजा बड़े ही खुशी और हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है। पूरे चार दिनों तक मनाए जाने वाले जगद्धात्री पूजा की रौनक़ चंदन नगर शहर में सबसे अधिक देखने को मिलती है।
जगद्धात्री पूजा: (Jagadharti Puja)
जगद्धात्री का शाब्दिक अर्थ है ‘जग को धारण करने वाली’ अर्थात् पूरी पृथ्वी को धारण करने वाली नारी जगद्धात्री माता कहलाई। मान्यता है कि जगद्धात्री पूजा के दौरान माँ दुर्गा जगत की धात्री के रूप में पृथ्वी लोक पर आती है।
पश्चिम बंगाल का चंदन नगर शहर जगद्धात्री पूजा के लिए प्रसिद्ध है तथा दूर-दूर से लोग जगद्धात्री माता की पंडाल देखने के लिए यहाँ आते है और इस दौरान यहाँ पर काफी भिड़ उमड़ती है।
2025 में जगद्धात्री पूजा कब है?
जगद्धात्री पूजा प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। साल 2025 में जगद्धात्री पूजा 31 अक्टूबर, दिन- शुक्रवार को है। पूरे चार दिनों तक मनाई जाने वाली जगद्धात्री पूजा की रौनक़ सबसे अधिक रहती है।
माँ जगद्धात्री को जगत जननी कहा जाता है तथा माँ जगद्धात्री को लाल रंग का वस्त्र काफी प्रिय है तथा इस दौरान माँ जगद्धात्री की प्रतिमा को लाल वस्त्र पहनाया जाता है और इन्हें फूलों से सजाया जाता है। मान्यता है कि माता जगद्धात्री की पूजा करने से हमें अपने ज्ञाननेद्रियों पर नियंत्रण रखने का ज्ञान मिलता है।
जगद्धात्री पूजा की तारीख़: (Jagadharti Puja)
2023 में जगद्धात्री पूजा | 21 नवंबर, दिन- बुधवार |
2024 में जगद्धात्री पूजा | 10 नवंबर, दिन- रविवार |
2025 में जगद्धात्री पूजा | 31 अक्टूबर, दिन- शुक्रवार |
माँ जगद्धात्री का स्वरूप:
माँ जगद्धात्री चार हाथों वाली होती है तथा इनके हाथों में शंख, धनुष, चक्र और बाण होते है। माँ जगद्धात्री अपने बाएँ हाथ में शंख और धनुष धारण किए हुए और अपने दाहिने हाथ में चक्र तथा पंचबाण लिए हुए और शेर पर सवार इनका स्वरूप अत्यंत सुशोभित प्रतीत होता है। कहा जाता है कि माता जगद्धात्री का स्वरूप देवी दुर्गा के समान ही है।
माँ जगद्धात्री के हाथ में शंख का प्रतीक आकाश में ध्वनि फैलाना है जो शांति और समृद्धि का संकेत है। धनुष का प्रतीक शक्ति और साहस से है जो राक्षसों को वध करने के लिए किया जाता है, चक्र न्याय का प्रतीक है जो बुराइयों को जड़ से ख़त्म करता है और मनुष्यों को न्याय का रास्ता दिखाता है तथा वाण, दुश्मनों पर प्रहार के लिए है। माँ जगद्धात्री का यह स्वरूप सूर्य की लालिमा की तरह तेज है और इस स्वरूप में माँ जगद्धात्री अत्यंत सुंदर दिखती है।
जगद्धात्री पूजा चंदन नगर:
- पश्चिम बंगाल के चंदन नगर में जगद्धात्री पूजा का त्योहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है तथा इस दौरान चंदन नगर में भव्य पंडाल बनाए जाते है और इन सभी पंडालों में माँ जगद्धात्री की बेहद ही खूबसूरत प्रतिमा स्थापित की जाती है तथा इस दौरान चंदन नगर शहर और माँ जगद्धात्री की पंडालों में काफी भिड़ उमड़ती है।
- जगद्धात्री पूजा के दौरान चंदन नगर शहर को फूलों तथा लाइटों से सजाया जाता है और भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है और मेलों में जगह-जगह पर बच्चों के लिए झूले तथा खिलौने लगाए जाते है और माता जगद्धात्री की मूर्तियाँ देखने के लिए चंदन नगर में लाखों श्रद्धालुओं की भिड़ उमड़ती है।
- जगद्धात्री पूजा के समय माँ जगद्धात्री की प्रतिमा को लाल रंग की साड़ी के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के ज़ेवर पहनाए जाते है। इसके अलावा प्रतिमा को फूलों से सजाया जाता है।
- पूरे चार दिनों तक मनाई जाने वाली इस त्योहार की धूम सबसे अधिक देखने को मिलती है तथा एक साथ लोग इकट्ठा होकर माँ जगद्धात्री की पूजा और आराधना करते है।
- मान्यता है कि माँ जगद्धात्री पृथ्वी पर बुराइयों का नाश करती है और भक्तों को सुख तथा शांति प्रदान करती है।
- पश्चिम बंगाल में चंदन नगर के अलावा रिसड़ा, कृष्णा नगर तथा जगद्दल में भी माता जगद्धात्री की प्रतिमा स्थापित की जाती है।

माँ जगद्धात्री से जुड़ा इतिहास:
माँ जगद्धात्री से जुड़ा इतिहास काफी रोचक दार है कहा जाता है कि, जगद्धात्री पूजा की शुरुआत राम कृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने की थी। शारदा देवी को भगवान पर काफी आस्था था तथा ये भगवान के पुर्नजन्म पर काफी विश्वास रखती थी। माँ दुर्गा के पुर्नजन्म के रूप में जगद्धात्री पूजा का त्योहार मनाया जाता है। माना जाता है कि पृथ्वी पर माता जगद्धात्री का जन्म बुराइयों और पापों को नष्ट करने के लिए हुआ था।
अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर राक्षस पर विजय पाने के बाद देवताओं को अहंकार हो गया। और देवता गण देवी दुर्गा की शक्तियों को भूलकर अहंकारी बन गए और उनके साथ अहंकार जैसा व्यवहार करने लगे।
इन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए माँ दुर्गा ने जगद्धात्री का अवतार लिया और देवताओं को तिनका हटाने को कहा, लेकिन देवता इस तिनके को हटा नहीं सके और इससे उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और तभी से माँ जगद्धात्री की पूजा आराधना की जाने लगी।
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