कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धन्वंतरि का जन्म होने के कारण इस दिन को धनतेरस के रूप में मानाया जाता है। साल 2024 में पूरे भारत वर्ष में धनतेरस का त्योहार 29 अक्तूबर, दिन-मंगलवार को मनाया जाएगा। धनतेरस के दिन बाज़ारों में काफी भीड़ उमड़ती है तथा इस दिन ख़रीदारी का विशेष महत्व है और लोग धनतेरस के दिन सोने-चाँदी से बने आभूषण तथा पीतल का बर्तन ख़रीदते है।
धनतेरस को धनत्रयोदशी तथा धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है और लोग इस दिन माता लक्ष्मी तथा भगवान गणेश जी की पूजा आराधना करते है।
यम का दीपक:
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन जो भी परिवार यमराज को दीपदान करेगा तो उस परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती है अर्थात इस दिन आटे से बने दीपक को जला कर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है तथा इस दिया को जम का दिया(यमराज का दीपक) कहा जाता है और इस दिया को जलाने से हमारे घर में मृत्यु के देवता यमराज की नजर नहीं पड़ती है।
धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथा:
धनतेरस से जुड़ी एक रोचक कहानी इस प्रकार है कि प्राचीन समय में हिमा नाम का एक राजा था और संतान के रूप में राजा हिमा के पास एक बेटा था और इनके बेटे की कुंडली में शादी के चौथे दिन सांप काटने से इनकी मृत्यु तय थी, इस तरह इनकी कुंडली में यह भविष्य वाणी की गई थी। श्राप के बारे में पता होने के बावजूद भी 16 वर्ष के उम्र में हिमा का पुत्र युवराज, एक लड़की से विवाह कर लेता है और अपनी पत्नी को इस श्राप के बारे में बताता है।
तभी पत्नी को एक उपाय सुझता है और अपने पति को सांप से बचाने के लिए उन्हें रात भर सोने नहीं देती है, इस तरह इनकी पत्नी सोने-चांदी से बने अपने सारे क़ीमती गहने को एक टोकरी में रख कर अपने घर के प्रवेश द्वार पर रख देती है, और अपने घर के चारों ओर दीपक जला कर रोशन कर देती है तथा रात भर युवराज की पत्नी गाना गाती रही ताकि उनका पति सो न जाए।
मृत्यु के देवता यमराज सर्प का रूप धारण कर उनके घर पहुँचते है, तो इस रोशनी को देख उनकी आँखें चकाचौंध हो जाती है और उनकी आँखें चली जाती है। इस तरह यमराज उनके घर में प्रवेश नहीं कर पाते है और वहाँ से चुप चाप निकल जाते है और युवराज की जान बच जाती है।
तभी से धनतेरस के दिन घर के द्वार पर दीपक जलाने की परंपरा शुरू हुई और मान्यता यह भी है कि इस दिन दीपक जलाने से निगेटिविटी हमारे घर से कई कोश दूर रहती है।
वामन रूप में भगवान :(धनतेरस से जुड़ी कथा)
धनतेरस से जुड़ी एक ओर अन्य कथा इस प्रकार है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के लिए भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आँख फोड़ डाली।
देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिए थे और राजा बलि के यज्ञ में पहुँचे। इस तरह शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को पहचान लिए और राजा बलि से यह आग्रह किए कि वामन कुछ भी माँगे तो उन्हें इनकार कर देना, क्योंकि वामन साक्षात भगवान विष्णु है और वो देवताओं की मदद करने के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए है।
राजा बलि शुक्राचार्य की बात नहीं माने और वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि को दान देने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प के लिए जल ढालना शुरू किए तथा राजा बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य ने लघु रूप धारण कर कमण्डल में प्रवेश किए।
इस तरह कमण्डल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया और वामन रूपी भगवान विष्णु, शुक्रचार्य की चाल को समक्ष गए और अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे लगाए कि कमण्डल में रखे शुक्राचार्य की एक आँख फूट गई। इस तरह शुक्राचार्य अपने घाव के दर्द से कमण्डल से बाहर निकल आए और राजा बलि जल लेकर संकल्प करते हुए तीन पग भूमि दान में दे देते है।
इस तरह वामन भगवान ने अपने एक पग(पैर) से सम्पूर्ण पृथ्वी को नाप लिया, और दूसरे पग से अन्तरिक्ष को नाप लिए। और तीसरा पग रखने के लिए वामन भगवान के पास कोई स्थान न होने के कारण राजा बलि ने अपना सर वामन भगवान के चरणों में रख दिया।
इस तरह राजा बलि दान में अपना सब कुछ गंवा दिए और देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति मिली तथा राजा बलि जो भी धन-संपाती देवताओं से छीने थे उससे कई गुणा ज्यादा धन देवताओं को वापस मिल गया।
इस तरह शास्त्रों के अनुसार यह मान्यता है कि धनतेरस का त्योहार मनाने से हमारे यहाँ 13 गुणा धन की वृद्धि होती है और तभी से ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाने लगा।
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